RGPV में करोड़ो के घोटाले का पदार्फाश करने फ्रॉड डिटेक्शन ऑडिट का आदेश, 9 साल का हिसाब होगा साफ

एक साल पहले खुला था वित्तीय घोटाला, अधूरी फाइलों में अटकी जांच

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RGPV में करोड़ो के घोटाले का पदार्फाश करने फ्रॉड डिटेक्शन ऑडिट का आदेश, 9 साल का हिसाब होगा साफ

भोपाल।राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (RGPV) में हुए वित्तीय घोटालों की परतें खोलने के लिए फ्रॉड डिटेक्शन ऑडिट कराया जाएगा। खास बात यह है कि विश्वविद्यालय विगत दो या चार नहीं बल्कि नौ वर्ष यानि वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2023-24 तक की अवधि के लिए फॉरेंसिक ऑडिट कराने जा रहा है।

इससे उम्मीद की जा रही है कि विगत एक साल से घोटाले के नाम से मशहूर हो चुकी RGPV में हुए घोटालों की वास्तविक स्थिती स्पष्ट हो सकेगी। यह फॉरेंसिक ऑडिट स्पार्क एण्ड एसोसिएट से कराए जाने का आदेश जारी हुआ है। इस के तहत कंपनी के ट्रेंड सीए ट्रांसेक्शन, डाक्यूमेंट कॉन्ट्रेक्ट, परचेज आर्डर, विवि के संचार माध्यम ई-मेल, नोट शीट आदि उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर कड़ी से कड़ी जोडकर विस्तृत इंवेस्टिगेशन करेंगे। जांच का दायरा काफी व्यापक होगा।

एक साल पहले 19.48 करोड़ का घोटाला उजागर होने और इसमें विवि के आला अधिकारियों की संलिप्पता, अकाउंटस में हेरफेर, के कारण बड़े घोटाले का अंदेशा जताया जा रहा है।

हालात के मद्देनजर माना जा रहा है कि यह आर्थिक घोटाला कई सौ करोड़ का हो सकता है। इसलिए तभी से सबकी नजरें शासन द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट पर टिकी हैं। लेकिन यह समिति भी एक साल में किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है। इसका मुख्य कारण है-लेखा शाखा में खातों व लेजर से संबंधित दस्तावेजों की भारी कमी और अव्यवस्था।

इसके चलते अब तकनीकी शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के निर्देश पर विवि प्रशासन ने वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2023-24 तक की अवधि के लिए फॉरेंसिक आॅडिट कराने का निर्णय लिया है।

 

*दस्तावेजों की कमी बनी सबसे बड़ी चुनौती*

आरजीपीवी में बैंक खातों और वित्तीय लेन-देन से संबंधित दस्तावेज इतने असंगठित हैं कि जांच समिति को किसी भी स्तर पर स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही है। रिकॉर्ड की इस बदहाली के कारण न केवल पिछली वित्तीय गतिविधियों की समीक्षा बाधित हुई है, बल्कि विश्वविद्यालय की वर्तमान वित्तीय स्थिति का आकलन भी संभव नहीं हो सका है। इसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि विवि में कार्यरत लेखा शाखा के अधिकारी और बाबू इस कार्य के लिए योग्य नहीं हैं। उन्होंने रिकार्ड मेंनटेन नहीं किए हैं और सालाना आॅडिट रिर्पोट को संज्ञान में लेते हुए उपयुक्त कार्यवाही नहीं की है।

16 अप्रैल तक मांगी सहमति

आरजीपीवी प्रशासन ने 26 दिसंबर 2024 को फॉरेंसिक आॅडिट के लिए विज्ञापन जारी किया था। ई-टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से चयनित स्पार्क एण्ड एसोसिएट कायादेश सौंपा गया है। फर्म को 2015-16 से 2023-24 तक के वित्तीय लेन-देन, खातों की संधारण प्रक्रिया और संभावित अनियमितताओं की बारीकी से जांच करनी होगी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने आॅडिट फर्म को निर्देशित किया है कि वह 16 अप्रैल 2025 तक कायादेश पर अपनी सहमति प्रेषित करे। साथ ही, उसे वर्क आॅफ स्कोप के अनुसार तय समय-सीमा में जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपनी होगी।