

Organic and Natural Gardening : जीवामृत और अमृत मिट्टी बनाने के तरीके और उसकी देखभाल
डॉ. स्वाति तिवारी
जो व्यक्ति केमिकल युक्त या रासायनिक बागवानी नहीं करना चाहता है और जैविक और प्राकृतिक बागवानी की ओर आना चाहता है, उसके लिए जीवामृत किसी वरदान से कम नहीं है. क्योंकि यह आपके बाग़ की उपजाऊ शक्ति बढ़ा देता है. पोषक तत्वों की भरमार कर देता है. बागवानी विशेषग्य श्री दिनकर पैठे जी बताते हैं कि, जीवामृत से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व की भरमार हो जाती है. इसे मिट्टी में डालते ही फसलों को फायदा पहुंचाने वाले जीवाणु, बैक्टीरिया, वायरस, केंचुआ, राइजोबियम बैक्टीरिया की संख्या अपने आप बढ़ने लगती है. इसके साथ ही भूमि में कार्बन की संख्या भी बढ़ती है. इससे भूमि की संरचना में सुधार होता है. जिस वाटिका में इसे डालते हैं वहां उपज अच्छी हो जाती है. जीवामृत का मुख्य उद्देश्य भूमि की उपज को बढ़ाना होता है. इससे भूमि में मौजूद अलग-अलग तरह के पोषक तत्व आ जाते हैं.बेहद कम लागत में बनने वाला जीवामृत मिट्टी को स्वर्ण में बदल देता है और इससे फसल अमृत के समान शुद्ध होती है.पेड़ पौधों के विकास हेतु मिट्टी की गुणवत्ता एवं खाद की आवश्यकता से बागवान परिचित रहते ही है। जैविक बागवानी करने वाले बागवान अतिरिक्त परिश्रम कर अमृत-मिट्टी एवं जीवामृत बनाकर अपने पौधों को पोषित करते हैं । मुझे अमृत मिट्टी एवं जीवामृत से परिचय पहली बार एक समूह में श्री दिनकर जी पेठे के माध्यम से ही हुआ ।जीवामृत एक जीवाणु घोल है जिससे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। ऐसा ही एक जीवाणु घोल है वेस्ट डिकमपोजर जो एक जामन है केवल गुड़ और पानी से बढ़ाया जाता है। एक है गो कृपा अमृत जो उसके जामन में गुड़ और देशी गाय के दूध से बनी छाछ मिलाकर बढ़ाया जाता है । मै तीनों बनाता हूं और बांटता हूं।
दिनकर पेठे, से. नि. लेखा अधिकारी। निवासी वैशाली नगर। इंदौर। विगत दस वर्षों से प्राकृतिक खेती की विधी से, देशी बीजों का प्रयोग कर , जीवामृत, घनजीवामृत, अमृत मिट्टी से जीवाणुयुक्त समृद्ध पत्तों की खाद बनाकर विषमुक्त सब्जियां उगानेके लिए बागवानी प्रेमियों में पहचाने जाते हैं। सब्जियों की बागवानी में जीवामृत एवं अमृत मिट्टी के उपयोग की महत्ता अनेक समूहों में दर्शाने के साथ ही इंदौर के दिनकर पेठे बागवानी के पांच गार्डन ग्रुप के माध्यम से प्राकृतिक बागवानी का प्रचार और इसमें आने वाली समस्याओं का समाधान करते हैं और मार्ग दर्शन देते है।
श्री दिनकर पैठेजी ने मुझे बताया हम घर पर ही जीवामृत, जैविक खाद बना सकते हैं. इसमें डाली जाने वाली ज्यादातर चीजें घर में ही मौजूद होती हैं. आइये जानते हैं इसे बनाने का तरीका-
जीवामृत की विधी –
सारा सामान नाप तोल कर लें तो अच्छा है नहीं तो आप से अंदाज से भी ले सकते हैं । थोड़ा कम ज्यादा हो तो फर्क नहीं पड़ेगा। एक किलो देशी गाय का ताजा गोबर, एक लीटर गौमूत्र, एक मुठ्ठी बेसन या कोई दाल का आटा, 100ग्राम गुड़, बड़ या पीपल के वृक्ष के नीचे की एक चुटकी मिट्टी। सभी सामग्री को दस लीटर पानी में मिलाना है। लकड़ी के डंडे से खूब हिलाकर मिलाएं। छांव में कॉटन का कपड़ा डालकर ढांक दे। रोज सुबह लकड़ी से क्लॉकवाइज एक मिनिट घुमाए। दूसरे दिन पूरा गोबर किण्वन क्रिया फर्मेंटेशन होकर उपर आ जाएगा। ठंड में आठ दिन और गर्मी में चार दिन लगते है बनने में। जिस दिन पूरा गोबर तले मे बैठ जाए और पानी ऊपर आ जाए समझो जीवामृत बन गया। इसे दो तीन दिन में ही उपयोग में लेना है। जैसे जैसे पुराना होगा, गुणवत्ता कम होगी। ऊपर का पानी एक एक कप सभी पौधों के जड़ों को देवें। यदि छिड़काव करना है तो और पानी मिलाकर छान कर स्प्रे करें। नीचे जो गाढ़ा बचेगा उसे थोड़ा थोड़ा पत्तों की खाद बनाने में प्रयोग करें।मिट्टी जीवाणुओं से समृद्ध होगी और पौधों पर कीट कम आयेंगे। यह मेरा अनुभव है।
क्या हैं जीवामृत के फायदे
- खेतों में जीवामृत से पौधों की जड़ को ऑक्सीजन लेने में काफी मदद मिलती है.
- जीवामृत का प्रयोग कंपोस्ट खाद बनाने में भी किया जाता है, इससे केंचुए की संख्या बढ़ाने में भी मदद मिलती है.
- इसके इस्तेमाल से पौधों को पोषक तत्व सोखने में भी काफी मदद मिलती है.
- जीवामृत से मिट्टी की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ फसल का उत्पादन बढ़ाने में भी मदद मिलती है.
- इससे फसल को बढ़ाने वाले सूक्ष्म जीव, जीवाणु व बैक्टीरिया को तेजी से काम करने लगते है.
- इसके इस्तेमाल से मिट्टी नरम हो जाती है, जिससे जड़ों को फैलने में मदद मिलती है.
- जीवामृत के प्रयोग से बंजर मिट्टी को भी उपजाऊ बनाने में भी मदद मिलती है.
- जीवामृत बीजों के अंकुरण और पत्तियों को हरा-भरा बनाने में काफी मदद मिलती है.
- इसके इस्तेमाल से उगने वाली सब्जी, फल और अनाजों में अलग ही स्वाद होता है.
2. अमृत मिट्टी बनाने की विधि -श्री दिनकर पैठे जी द्वारा अपनाई जानेवाली –
- आम तोर पर हम जो मिटटी देखते हैं वह धूल होती है ,उसमें पोषक तत्व नहीं होते जो मिटटी को उर्वरक बनाते हैं। अतः समृद्ध मिटटी ही अमृत मिटटी होती है। अमृत मिट्टी, जिसे “जीवित मिट्टी” या “नर्सरी मिट्टी” भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक रूप से उपजाऊ मिट्टी है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों और खनिजों से भरपूर होती है। यह रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मुक्त होती है, जिससे यह पौधों के लिए सुरक्षित और फायदेमंद होती है।
श्री दिनकर पैठे जी ने बताया कि अमृत मिटटी बनाने की अलग अलग विधियाँ है जिन्हें लोग अपनाते है। मैं आमतोर पर सरल विधि की और जाता हूँ। मेरी बनाई विधि में एक बोर या कंटेनर में सुखा गिला बायोमास ,मिटटी और सुखा गोबर भरे। उसके ऊपर चार इंच हमारे पास जो भी गार्डन मिटटी है वह डाल दें। इस पर बीज बो दें।
बोये जानेवाले बीज में प्रकार —–
1 . अनाज -जैसे गेंहू ,ज्वार ,बाजरा
2 .तेल बीज जैसे -मूंगफली ,सोयाबीन ,तील
3 .दालें जैसे -मुंग ,उड़द ,तुअर,मैथी
4 .हरी खाद जैसे सन ,ढेंचा
5 .मसाले जैसे राई. मिर्च ,खड़ा धनिया
हमें बोर में उक्त प्रकार के चार चार बीज बोने हैं अधिक भी बो सकते हैं। नमी बने रखें ताकि बीज उग सकें। पहले दिन से हर माह जीवामृत डाले।
पहली बुआई के 45 दिन बाद बोर खाली कर उगा हुआ सब फावड़े से मिला कर पुनह बोर में भर दें और उपर से चार इंच मिटटी दाल करफिर से बीज लगादें। इसके लगाने क्र 75 दिन बाद इस उगे हुए को फिर से मिलाकर बोर में भर दें और उपर से चार इंच मिटटी डाल दें। फिर से बीज बोयें। अब इसके 100 दिन बाद सारा उगा हुआ मिलाकर फिरसे बोर में भर दें हो गई अमृत ,समृद्ध ,“जीवित मिट्टी.
दूसरी विधि अनुसार कई लोग इस प्रकार भी अमृत मिटटी बनाते है ——-यह विधि मैंने डॉ. पूर्णिमा सांवरगावकर जी से सीखी है —
जीवामृत में सुखे पत्ते चोबीस घंटे भिगोकर , डुबाकर रखें । इससे पत्तों की शिराओ में जीवामृत चला जाएगा। बाहर जमीन पर चार ईंटों का एक हौद नुमा बनाए, जितने पत्ते हो उतना चौड़ा। इन पत्तों को बाहर निकालकर उस हौद में एक पतली सी परत बिछाएं। फिर इसके उपर बारीक परत अमृत मिट्टी हो तो या पहली बार बना रहे है तो केंचुआ खाद या गार्डन सॉइल की पतली परत बिछाएं। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराएं जब तक ये एक फीट ऊंची न हो जाए। ये ढेर तैयार होने के बाद इसे सुखे बायोमास से ढांक दे। इसके बाद हर सात दिन में अच्छे से उलट पलट करना है। अब इस ढेर पर फिर जीवामृत का छिड़काव करें। इसे फिर सुखे बायोमास से ढांक दे। आगले तीस दिन तक इसी प्रक्रिया को दोहराएं। हम देखेंगे की इसमें सौंधी सौंधी खुशबू आने लगेगी। अब हम इस पर दो इंच ऊपर दर्शाए अनुसार खाद की परत बिछाएं। फिर से इस पर जीवामृत का छिड़काव करें। अब इस पर 6 तरह का रस (खट्टा, मीठा, कड़वा, तीता, तीखा ) इनके बीज तथा एक दल, द्विदल के बीज चार घंटे जीवामृत में भिगोकर फिर रोप देंगे। अब हम इस पर दो इंच मिट्टी की परत रखेंगे। इसके बाद अंकुरित होने तक इसे सुखे पत्तों से ढंक दें। पौधे अंकुरित होने के 21दिन बाद इन्हें उपर से 25% काटना है और वहीं पर रख देना है। यही प्रक्रिया पौधों के फिर बढ़ने पर 42 दिन बाद दोहराना है। 63 दिन बाद नीचे से एक इंच छोड़ कर काटना है और इसी ढेर पर 7 दिनों तक रहने दे। जब ये सुख जाए तो इसे चार घंटे के लिए जीवामृत में डाले । इसे निकालकर ढेर पर डालकर पूरे ढेर में अच्छे से मिलाएं। अगले तीस दिन तक हर सात दिन में अच्छे से उलट पलट करना है। इस ढेर को फिर सुखे बायोमास से ढांक दे। इस तरह 140 दिन में ये अमृत मिट्टी तैयार हो जाएगी।
प्राकृतिक बागवानी में जीवामृत, घन जीवामृत, अच्छादन और वापसा आदि मुख्य है। वैसे तो प्राकृतिक में कीट कम आते है पर आ भी जाए तो केबल देशी गाय के कंडो की राख, गौमुत्र, नीम का अर्क प्रयोग करता हूं।”
- खाद बनाने की एक सामान्य विधि —
- पॉट में किये छेद पर दो इंच ईट के टुकड़े रखे। उसके ऊपर नारियल की जटा रखकर खाद बनाना शुरू करें। पहली चार इंच परत सूखे बायोमास की, उसके ऊपर तीन इंच गिले बायोमास की परत। इस पर केंचुआ खाद ( केवल एक बार गो शाला से लाएं, फिर कभी नहीं लाना पड़ेगा , आपके यहां ही बन जाएगा ) की एक इंच की परत पूरा गिला बायोमास ढंक जाए इतनी। इसी क्रम में घर के कचरे से भरते जाय।
जब पूरा पॉट दबा दबाकर भर जाय तो इसको इसी आकार के दूसरे पॉट में जिसमें नीचे छेड़ और ईंट के टुकड़े रखे है उसमें पलट दे। सबसे नीचे का बायोमास जो थोड़ा डिकमपोज हो चुका होगा, ऊपर आ जाएगा और अभी अभी जो भरा है वह नीचे चला जाएगा। अब देखिए आपका खाद बनाने का पॉट खाली हो गया, इसमें नए सीरे से खाद बनाना शुरू करें। जिस पॉट में हमने इसे खाली किया है उसमें ऊपर चार इंच गार्डन की मिट्टी डालकर उसपर 90 दिन की कोई फसल, बीज बो दीजिए। यदि पालक, मेथी बोते है तो चार दाने मूंग के डाल दीजिए। 90 दिन बाद आपको फसल के साथ शानदार केंचुआ खाद मिल जाएगा। इसी तरह घर की खाद से एक एक गमला बढ़ाते जाय और ऋतु अनुसार सब्जियों का आनंद ले।