अपनी भाषा अपना विज्ञान: “स्वस्थ मस्तिष्क को कैसे साधे?” “How to Sustain Brain Health?”

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“स्वस्थ मस्तिष्क को कैसे साधे?” “How to Sustain Brain Health?”

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इस विषय को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
1. स्वस्थ मस्तिष्क को साधना, व्यस्तिगत स्तर पर। हर इंसान अपने खुद के लिए क्या कर
सकता है?
2. समाज के स्तर पर। हम समाज के रूप मेंया हमारा शासन और हमारा प्रशासन
सामुदायिक स्तर पर क्या कर सकते हैं?

फिलहाल इस लेख में मैं व्यक्तिगत स्तर पर स्वस्थ मस्तिष्क के बारे में चर्चा कर रहा हूँ

काया चुस्त तो दिमाग दुरुस्त।

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क विराजता है। मस्तिष्क हमारे शरीर का ही एक अंग है। इनलिए शरीर का तंदुरुस्त होना हेल्थी ब्रेन की पहली शर्त है। शारीरिक व्यायाम ना केवल काया को बल्कि बुद्धि और मन को भी पोसते है। यह पहली शर्त  है और शरीर और ब्रेन एक ही चीज है। किसी भी प्रकार का परिश्रम किसी भी प्रकार का व्यायाम, किसी भी तरह का खेलकूद, ब्रेन हेल्थ के लिए अत्यंत जरूरी है। आराम हराम है। शारीरिक काम जरूरी है। मोटापा मारता है।

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खूब खेलो और व्यायाम करो।

किसी भी स्पोर्ट में नियमित भाग लो। कोई भी व्यायाम करो। व्यायाम कई तरह के, सब तरह के होना चाहिए। रेसिस्टेंट एक्सरसाइजेज, वेट लिफ्टिंग, कार्डियो वाली एक्सरसाइज जिसमें आपकी श्वास की गति और हृदय की धड़कन तेज होती है। जिम जॉइन करो, दौड़ना, साइकिलिंग, तैरना और योग अभ्यास। तमाम प्रकार के व्यायाम। मैं इनमें से किसी एक पर जोर नहीं दे रहा हूं कि यह कम अच्छा है या ज्यादा बुरा है। जिसको जो पसंद हो वह करें। उसको नियमित रूप से करें।

मोटापे को किसी भी तरह से नहीं आने देना है।

सही वजन के फार्मूले दो है। (1) Body mass Index (BMI) (कि.ग्रा. (वजन)/ (सेन्टीमीटर) (ऊंचाई)) जो 20 से 25 के बीच या 25 के आसपास हो तो ठीक। जिसमें हम शरीर का वजन (किलोग्राम में) को भाजित करते हैं हाइट या ऊंचाई (सेंटीमीटर) उसके वर्ग से। (2) Waist Hip Ratio । इस पर आजकल ज्यादा जोर दे रहे है। कमर का घेरा सेंटीमीटर में और कूल्हे या हिप का घेरा सेंटीमीटर में। उनका अनुपात 0.8 से 0.9 के बीच होना चाहिए। मेरा कमर का घेरा अगर एक से ज्यादा आ रहा है, रेश्यो अगर यह ज्यादा है तो गलत है। यह थोड़ा कम होना चाहिए। इसकी तुलना में 0.8, (80%) या 90% होना चाहिए। मैं मोटापा कम करने के और डाइट कंट्रोल के डिटेल में नहीं जाऊंगा।

भोजन पर नियंत्रण एक ही उपाय है “मुंह पर ताला”।

अगर आपको वजन कम करना है तो जितना अभी खाते हो उसका आधा कर दो। यह एक मोटा मोटा नियम है। उसमें मीठा बंद, तला बंद, तेल, घी, मक्खन, मैदा बंद, चाय, दूध, फीके। एक्सरसाइज करने का कंट्रीब्यूशन 20% है। कैलोरी इनटेक कंट्रोल करने का कंट्रीब्यूशन 80% है। आप यह एक मोटी मोटी बात याद रखना। डाइट में क्या चेंज करना, वजन कैसे कंट्रोल करना इसके विस्तार में मैं नहीं जाऊंगा। क्योंकि मैं केवल मोटे मोटे पॉइंट गिना रहा हूं कि यह सब चीजें ब्रेन हेल्थ के लिए जरूरी है। वजन आपका मोटापे के दायरे नहीं होना चाहिए।

ब्रेन का बैंक बैलेंस बढ़ाओ।

ब्रेन का बैंक बैलेंस कैसे बढ़ाएंगे? खूब शिक्षा प्राप्त करो, ज्ञान बढ़ाओ, ढेर सारे हुनर सीखो। समय के साथ, उम्र के साथ सब कुछ घटता है। ब्रेन में जो न्यूरॉन कोशिकाएं है और उनके आपसी तंतुओं के साइनेप्स की संख्या है वह उम्र के साथ घटती है। अगर शुरू से पूंजी अधिक रहेगी तो देर तक धक जाएगी। कहते हैं ना हाथी दुबला भी हो जाएw तो भी हाथी ही रहता है। जितना भरोगे उतना चलेगा। बचपन से लेकर युवावस्था तक, बुढ़ापे तक जितना पढ़ोगे, सीखोगे, ज्ञान प्राप्त करोगे, मस्तिष्क उतना ही उम्दा रहेगा। बुढ़ापे और बीमारी में ब्रेन घटता है। इसलिए पहले से ही ब्रेन बैलेंस बनाओ।

जितनी वैरायटी डालोगे उतना अच्छा बनेगा।

न केवल क्वांटिटी बल्कि क्वालिटी भी और क्वालिटी में वैरायटी भी। किसी एक फन में उस्ताद होना अच्छा है। लेकिन उसके अलावा भी कुछ और होना चाहिए। नए हुनर सीखो। एक से अधिक भाषाओं के जानकार बनो। अपनी विशेषज्ञता से परे दूसरे सब्जेक्ट में थोड़ा थोड़ा दखल रखो। कोई हॉबी को पालो और पोसो। उसमें योग्यता और हुनर बढ़ाने की कोशिश करो। वैरायटी भी चाहिए, क्वांटिटी भी चाहिए, क्वालिटी भी चाहिए। ब्रेन को स्टिमुलेशन चाहिए। उसको चैलेंज चाहिए। अगर ब्रेन को हम चैलेंज करेंगे तो वह और ज्यादा समृद्ध बनेगा। उसमें और ज्यादा नेटवर्क विकसित होंगे। उसमें और ज्यादा साइनेप्सिस बनेंगे। नई चीजों को सीखना वैरायटी को डालना बहुत जरूरी है।

Use it or, loose it. ब्रेन को काम में लेते रहो। वरना उसे आप खो दोगे।

Participate in competition, in quizzes तथा क्रॉस वर्ड तथा प्रश्न पहेलियां हल करो, पढ़ते रहो, लिखते रहो, पत्र लिखो, डायरी में लिखो। लिखना बहुत अच्छी एक्सरसाइज है। अब लिखने का मतलब कागज कलम नहीं। आजकल तो की-बोर्ड को भी हम लिखना ही मानते हैं। की-बोर्ड पर लिखो, पंच करो, टाइपिंग में लिखो।

एक से अधिक भाषाएं आना चाहिये।

मेरी मित्र हैं डॉक्टर सुवर्णा, न्यूरोलॉजिस्ट, निमहंस बैंगलोर में। One of the Highly Cited Research. शोधपत्र छपने के बाद बहुत सारे वैज्ञानिकों ने उसे उधृत जिन्हें कोट किया। उनके पास एक बहुत बड़ा फॉलोअप है। अल्जाइमर रोग का, डिमेंशिया के मरीजों का। जिनको वृद्धावस्था में बुद्धि क्षय होने लगता है। सैकड़ों मरीजों की रजिस्ट्री है उनके पास। उसमें उन्होंने कई फैक्टर देखे कि किन लोगों में डिमेंशिया ज्यादा था अधिक तीव्रता का था? अन्य फैक्टर्स के अलावा एक फैक्टर उन्होंने उस शोध में देखा कि जिन्हें एक से अधिक भाषा आती थी उनमें अल्जाइमर रोग चार से पांच साल बाद की उम्र में हुआ। The average age of onset of dementia was five years later in those who were bilingual and multilingual as compared to monolingual.
जिनको एक ही भाषा आती थी उनमें 70 साल की उम्र के आसपास डिमेंशिया होना चालू हो गया था। जिनको एक से अधिक भाषाएं आती थी उनको 75 साल की उम्र के बाद डिमेंशिया की थोड़ी बहुत शुरुआत हुई। इसीलिए नई भाषा और नई लिपि सीखने के ऊपर जोर दिया जाता है। ब्रेन के बैलेंस को बनाए रखने के लिए।

काम ज्यादा करने से कोई बीमार नहीं होता। काम को रूचि के साथ करो काम को बेहतर तरीके से करो। दिमाग को जितना चलाओगे उतना चलेगा। जितना काम में लेते रहोगे उतना चलेगा। जैसे आलस्य और अधिक आराम से शरीर कमजोर होता है वैसे ही मस्तिष्क के काम ना करने से उसकी उम्र कम हो जाती है।

ब्रेन की एक्सरसाइज।

ब्रेन की एक्सरसाइज कई तरह की होती है। शब्द पहेलियां, क्रॉस वर्ड पजल, सुडोकू इनकी उपयोगिता सीमित है। नुकसान तो नहीं करती है। आपको अगर मजा आता है तो जरूर करो। एंजॉय करो। सुडोकू या क्रॉस वर्ड या कोई सी भी चीज। लेकिन इनको लेकर रिसर्च पेपर्स में जिसे High Quality Evidence की बात करते हैं यह Highly evidence based नहीं है। आप उस पर्टिकुलर एक्सरसाइज में निष्णात हो जाओगे। लेकिन क्या उसका Generalization होगा? क्या उसका व्यापकीकरण होगा? शायद नहीं। आपकी बाकी बुद्धि, बाकी स्मृति बहुत अच्छी हो जाए इस बात की गारंटी नहीं है कि आपने कितने क्रॉस वर्ड करे, कितने सुडोकू करे। आप उस खास एक्सरसाइज में अच्छे हो जाओगे। लेकिन बाकी शायद कोई फरक ना पड़े।

न्यूरोबिक्स Neurobics

मस्तिष्क के अधिक भागों को कैसे सक्रिय रखना? इसके ऊपर रिसर्च कम हुई है। पर मुझे यह पॉइंट ठीक-ठाक लगा। यदि आप दाहिने हाथ से काम करते हैं (ज्यादातर लोग राइट हैंडर होते हैं।) तो रोज कोई एक काम 10 मिनट के लिये लेफ्ट हैंड से करो। प्रैक्टिस करो। उससे क्या होगा? आपका जो Opposite Hemisphere है वह एक्टिव होगा। जब आप राइट हैंड से काम करते हैं तो बायां गोलार्ध काम करता है ब्रेन का। अगर आप बायें हैंड से कुछ काम करने की आदत डालेंगे जैसे सब्जी काटना चाकू से तो ब्रेन में नये कनेक्शन बनेंगे। लेफ्ट हैंड से लिखने का अभ्यास करो। केवल प्रैक्टिस के लिए। उससे आपके ब्रेन को स्टिमुलेशन मिलता है दूसरे वाले स्थान पर।

एक और चीज है पांच मिनट-दस मिनट के लिए कोई छोटा सा काम आंख पर पट्टी बांध के करो। उससे आपका Proprioceptive system मजबूत होगा। आप आंख से देख के करते हो। ठीक है। लेकिन आप कोई काम आप आंख बंद करके करते हो तो आपके ब्रेन के दूसरे भाग को एक्टिविटी ज्यादा मिलती है। Proprioceptive का मतलब होता है कि यदि मैं आंख बंद करूं तो भी मुझे पता है कि इस समय मेरा दाहिना हाथ कितने कोण से ऊपर उठा हुआ है मेरी मुट्ठी बंधी हुई है या नहीं, खुली हुई है। आंख बंद करके भी मुझे मालूम पड़ रहा है। क्योंकि यहां से जो तंत्रिकाएं हैं, नर्क्स हैं वह मेरे ब्रेन को सूचना दे रही हैं। इस सूचना देने वाले तंत्र का नाम है Proprioceptive system. आंख बंद करके उस सिस्टम को मजबूत करते हैं। ब्रेन के अनेक भाग ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं। इन सब चीजों से नए-नए साइनेप्स बनते हैं। जो बने हुए साइनेप्स हैं वह ज्यादा सुदृढ़ होते हैं। इस तरह से हमारा ब्रेन हेल्थ सुधरता है। यह दो छोटी सी एक्सरसाइज है। अगर आप लेफ्ट हैंडर हैं तो कुछ काम राइट हैंड से करिए and vice versa । कुछ चीज एक्सरसाइज कुछ दिनों बाद उस एक्सरसाइज को चेंज कर दो। आंख से बंद कर दें। Just for the Sake of Fun. इसका साइंटिफिक एविडेंस है कि नहीं मैंने इसको रिसर्च नहीं किया है। मैंने इसका Review of Literature नहीं किया है। करूंगा तो बताऊंगा शेयर करूंगा कि इसके ऊपर कुछ डाटा है कि नहीं एविडेंस बेस्ड होने का।

ब्रेन की ब्लड सप्लाई।

शरीर के समस्त अंगों के साथ साथ मस्तिष्क में भी खून का पर्याप्त बहाव उसके स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। दूसरे अंग तो फिर भी थोड़ी बहुत कमी झेल लेते हैं। लेकिन किडनी, हार्ट और सबसे प्रमुख ब्रेन बहुत नाजुक होते हैं। समस्त अंगों की ब्लड सप्लाई में कमी ना आने पाए इसके लिए बहुत जरूरी है कि आपका ब्लड प्रेशर कंट्रोल में हो। ब्लड प्रेशर की उपेक्षा करना, उसका ठीक से इलाज ना करना, उसका ठीक से मॉनिटरिंग ना करना, ब्लड शुगर का मॉनिटरिंग नहीं करना, उसको कंट्रोल में रखना, रक्त में कोलेस्ट्रॉल और अन्य लिपिड्स की मात्राओं का मॉनिटरिंग करना, उसको ना बढ़ने देना। यह सब धीरे धीरे धीरे हमारे ब्रेन की रक्त वाहिनियों में Atherosclerosis को बढ़ाते हैं। Atherosclerosis मतलब रक्त वाहिनियों के अंदर वसा की, लिपिड की परत जमा होती है। वे नलियां धीरे धीरे सिकुड़ने लगती है। जब कोई बड़ी नली में क्लॉट आता है तब तो लकवा होता है। लेकिन उसके बिना भी Microcirculation के लेवल पर छोटी छोटी रक्त वाहिकाओं के लेवल पर भी संकरापन आता है। वह वास्कुलर डिमेंशिया का कारण बनता है। ऐसा डिमेंशिया जो अल्जाइमर रोग नहीं है। लेकिन ब्रेन की ब्लड सप्लाई Microcirculation के लेवल पर, सूक्ष्म रक्त प्रवाह के लेवल पर कम हो रही है। यह जो Vascular Diseases है जिसको हम Vascular Health बोलते हैं। हमारी रक्त वाहिनियों का स्वास्थ्य। शरीर की रक्त वाहिनियां हमारे नगर की सीवरेज लाइंस के समान है। जैसे सीवर की लाइंस में या नर्मदा की पाइपलाइन में अगर रखरखाव ना हो उनके अंदर गाद जमा होने लगती है। उस गाद को जमा होने की प्रक्रिया को धीमा करने के लिए यह फिजिकल हेल्थ जरूरी है, व्यायाम जरूरी है, ब्लड प्रेशर, शुगर, कोलेस्ट्रॉल इन सब का कंट्रोल जरूरी है। Vascular dementia हमारे देश में बहुत कॉमन है। बल्कि Alzheimers dementia से ज्यादा कॉमन Vascular dementia है। चाहे लकवे का अटैक आया हो, चाहे ना आया हो वैस्कुलर ब्लड सप्लाई कम होने के कारण ब्रेन पावर लोगों की कम हो जाती है।

सभी प्रकार के नशों से दूर रहना है।

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धूम्रपान और तंबाकू का किसी भी रूप में उपयोग पूरे शरीर के लिए और खासतौर से मस्तिष्क के लिए अत्यंत घातक है। शराब हर हाल में बुरी है। उसकी थोड़ी सी मात्रा का यदा कदा सेवन भी मन और मस्तिष्क और काया के लिए नुकसानदायक है। भांग और अन्य सभी प्रकार के नशे दिमाग की कार्यप्रणाली पर स्थाई बुरा असर डालते हैं। तो, सभी प्रकार के नशों से बचना है।

नई बुरी आदतें

ढेर सारा स्क्रीन टाइम। ढेर सारा सिटिंग टाइम। मैंने एक कार्टून देखा था। एक कुर्सी रखी है उस पर ढेर सारे आइटम रखे हैं। शराब है, सिगरेट है, नशे हैं, अनहेल्दी food है। लोगों से पूछते हैं इसमें से सबसे खराब कौन है? कोई सिगरेट को बोलता है, कोई शराब को बोलता है, कोई अनहेल्दी food को बोलता है। एक-एक करके सब हटाते जाते हैं उस इमेज से। सब खत्म हो गए। अकेली कुर्सी बची। फिर हम बताते है कि सबसे खराब है कुर्सी। आप 24 घंटे में आप कितना समय सिटिंग में गुजारते हैं? बीच-बीच में खड़े हो जाओ। मेरा ओपीडी आठ घंटे चलता था एमवाय में तो मैं क्या करता था? मैं हर पेशेंट को काउच पर जाके लिटाता था। भले ही जरूरत नहीं हो। मैं उस कुर्सी पर बैठा के भी उसकी डायग्नोसिस बना के नुस्खा लिख सकता था। पर कहता था “जा भैया लेट वहां पर”। उस बहाने मेरे को खड़े होकर उसको एग्जामिन करना पड़ेगा। यह मूवमेंट आपको करते रहना पड़ता है। कुर्सी पर बैठने के समय को हटाने के लिए।

“आहार शुद्धौ सत्व शुद्धिः”।

यह हमारे यहां कहा गया है। शुद्ध भोजन से मन, मस्तिष्क का भी स्वरूप शुद्ध रहता है। हेल्दी food का सेवन करें, संतुलित आहार ले। नमक की आदत कम ही होना चाहिए चाहे ब्लड प्रेशर ना हो तो भी। बढ़ने लगा है तब तो आपको वाकई में कम करना पड़ेगा। मीठे की आदत कम ही होना चाहिए। डायबिटीज नहीं हो तो भी। कार्बोहाइड्रेट हम हिंदुस्तानियों के भोजन में जरा ज्यादा ही रहता है। प्रोटीन हमारे भोजन में तुलनात्मक रूप से कम रहता है। खासतौर से यदि हम शाकाहारी है। ऊपर से अगर हम वीगन बन गए, हमने दूध और डेरी प्रोडक्ट भी बंद कर दिए तो हमारा प्रोटीन इनटेक और भी कम होने की आशंका बढ़ जाती है। इस तरह के वेजिटेरियन लोगों में रक्त में विटामिन B12 की मात्रा भी कम होने लगती है। विटामिन B12 की कमी का बौद्धिक कामों से संबंध देखा गया है। समय समय पर हम अपने मरीजों में रक्त में B12 की मात्रा का भी परीक्षण कराते हैं। यदि वह सामान्य से कम निकलती है तो हम उसे इंजेक्शन के रूप में ना कि टेबलेट के रूप में देते है। क्योंकि कई बार टेबलेट एब्जॉर्ब नहीं होती है। इंजेक्शन के रूप में हम B12 देना Prefer करते हैं। हमारे भोजन में रेशा या फाइबर पर्याप्त मात्रा में हो।

शाकाहार तुलनात्मक रूप से अधिक होना चाहिए। मैं स्वयं शाकाहारी हूं लेकिन मैं स्वीकार करूंगा कि Animal origin के food के कुछ फायदे हैं जो शाकाहार में शायद कम मिलते हैं। जब मैं Animal origin food कहता हूँ तो उसमें दूध व अन्य डेयरी उत्पाद शरीक होते हैं। They are all animal origin foods। गनीमत है कि हममें से अधिकांश शाकाहारी मिल्क प्रोडक्ट ले लेते हैं तो हमारी पूर्ति कुछ हद तक हो जाती है। फल और सब्जियां अधिक होना चाहिए। सैचुरेटेड फैट कम होना चाहिए। घी और तला हुआ बंद होना चाहिए। मैदा कम होना चाहिए और प्रोसेस्ड food कम होना चाहिए। इसीलिए कहते हैं घर का ज्यादा खाओ, बाहर का कम खाओ।

क्या कोई खास food है?

कुछ पेपर आए थे हमारे जर्नल्स में। कि Mediterranean food ब्रेन हेल्थ के लिए अच्छा है, हार्ट के लिए अच्छा है। ठीक है। उसमें थोड़ा सच है। Mediterranean food क्या होता है? Mediterranean समुद्र है दुनिया के नक्शे में। उस समुद्र के उत्तर में यूरोप है, उसके दक्षिण में अफ्रीका है। उन दोनों के बीच में यह समुद्र है Mediterranean समुद्र। खासतौर से यूनान, लेबनान, तुर्की, इटली का दक्षिणी हिस्सा, फ्रांस का दक्षिणी हिस्सा, उत्तरी अफ्रीका के देशों में जो भोजन चलता है उसको Mediterranean food बोलते हैं। भूमध्य सागरीय भोजन में वही सब चीजें हैं जिनकी चर्चा अभी हम कर रहे यहां Non-veg है लेकिन Non-veg ज्यादातर Sea food है। मछलियां है। या Prawn है। उनके यहां Red meat कम है। जिसको हम मटन या थे। बीफ बोलते हैं वह उनके भोजन में कम है। चिकन और बल्कि चिकन से भी थोड़ा और Primitive में जाओ तो Fish and others sea food को अच्छा माना गया है। उनके यहां Salads बहुत है। Greek Salads बड़े फेमस होते हैं। उनके यहां Olive oil है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है। हमें उसकी तरफ जाने की जरूरत नहीं है। हमारा भारतीय शाकाहारी भोजन और उसके साथ थोड़ा बहुत जो डेरी प्रोडक्ट्स है वह मिलके भी काफी हद तक उसकी पूर्ति कर सकते हैं।

सामाजिक बने रहो।

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मैं बात कर रहा हूं सामाजिकता की, नेटवर्किंग की, मित्रता की। उसकी बड़ी साम्य है। उसकी बड़ी उपमा है। उपमा है ब्रेन के साथ न्यूरो के साथ। और चूंकि मैं न्यूरोलॉजिस्ट हूं इसलिए मैं इस बात पर बड़ा गर्व करता हूं। कि यह जो न्यूरो प्रत्यय है इसके जितने ज्यादा कॉम्बिनेशन बनते हैं उतने और किसी के नहीं बनते। जैसे यहां मैंने लिखा है Neuro anatomy, neuro pathology, neuro pharmacology, neuro trauma, neuro science, neuro aesthetics यह ह्यूमैनिटीज के सब्जेक्ट हो गए। Neuro Politics, Neuro Psycholinguistics, Neuro Culture, Neuro Humanities मैं यह जो प्रत्यय लगा रहा हूं न्यूरो के साथ में, यह झूठ-मूठ के प्रत्यय नहीं है। यह तमाम चीजें [Neuro Philosophy, Neuro Sociology, Neuro Theology] यह ह्यूमैनिटीज के भी ग्रुप है इतने। किसी के साथ Cardio के साथ, Gastro के साथ, Respiratory के साथ आप इनके साथ जोड़ के देख लो। बनाने की कोशिश कर लो। बनते ही नहीं है।

इनमें से प्रत्येक की अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं हैं। इनमें से प्रत्येक की जर्नल्स निकलती है। Neuro Linguistics का उदाहरण देखिये। Linguistics [भाषा विज्ञान] एक अलग विषय है। Neurology अलग विषय है। लेकिन Neuro Linguistics की जर्नल निकलती है। Neuro Linguistics की वार्षिक कॉन्फ्रेंस होती है। यह थोड़ा सा विषयांतर कर रहा हूं। मैं शुरू किया था कि हमको सामाजिक बने रहना है। न्यूरो भी तो देखो कितना सामाजिक है।

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उस तुलना को मैं और नीचे लाऊंगा। Why the neuro prefix is like that? Because humans are social animals. And the brain is the seatobocialization. No wonder neuro is so prolific in making affiliations. Affiliations which are cross disciplinary and inter disary. इसका मैसेज यह है कि हमें जो मित्रताएं ढूंढनी है अपने प्रोफेशन के बाहर की ढूंढनी है। मैं डॉक्टर हूं, न्यूरोलॉजिस्ट हूं। मेरे सारे फ्रेंड न्यूरोलॉजिस्ट हैं। ठीक है बहुत बड़ी बात है। पर मेरे फ्रेंड डॉक्टरों के अलावा भी होने चाहिए। इसीलिए कुछ सोशल संस्थाएं होती हैं। रोटरी या लायंस जैसी उनको मैं एक प्लस पॉइंट देता हूं। कम से कम वे हमको मौका देती हैं हमारे प्रोफेशन से बाहर मित्रता बनाने की। नहीं तो हम हमारे खोल में, हमारे ग्रुप के अंदर

घुसे रहते हैं। यह जो न्यूरो की क्षमता है मनुष्य पर भी लागू होना चाहिए। यह मैक्रो से लेकर माइक्रो लेवल तक जाती है। माइक्रो लेवल मतलब हमारे ब्रेन की जो संरचना है वह खुद नेटवर्क की है। एक न्यूरॉन 10 से साइनेप्स बनाता है और दूसरा न्यूरॉन फिर 10 से साइनेप्स बनाता है। यह इस तरह नेटवर्किंग की जो विधा है यह हमें अपनाना है। अच्छे ब्रेन के लिए।

More face to face and less on screen.

लोग बोलते हैं मैं बहुत सामाजिक हूं। मेरे 1000 फ्रेंड हैं। मेरे 5000 फॉलोअर हैं। यह अच्छा पैमाना नहीं है। मित्र बनाओ, बातें करो, मिले जुलो। अकेलापन खराब है। Those who are isolated, self-centered, introverted. उनके ब्रेन हेल्थ में प्रॉब्लम आ सकती है। एकल सुरे मत बनो। गप्पे मारो, सत्संग में चर्चा करो, परिवार और मित्रों के साथ समय गुजारो। अच्छी संगत रखो। बच्चों और युवाओं के साथ रहो। अपने से कम उम्र के लोगों के साथ रहो। मित्रों के साथ बिताया समय मन मस्तिष्क को प्रसन्नता पूर्ण बनाता है। So try to meet & make friends with younger people । अपने से अधिक बुद्धिमान और हुनरमंद से मित्रता करने की कोशिश करो। ट्राई करो कि यार यह बंदा बड़ा स्मार्ट है। काश मैं इसका मित्र बन पाऊं। हो सकता है उसमें आपको कुछ अच्छा मिले। प्रतिस्पर्धा से इंसान सीखता है। कंपीट करो अच्छा करने के लिए। उसमें वह ईर्ष्या वाली भावना नहीं होना चाहिए कि उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों? लेकिन एक प्रतिस्पर्धा की भावना हो कि हां मुझे भी उसके जैसा अच्छा करना है।

परिवार को साधो

परिवार को साधो। परिवार खरे हैं। पारिवारिक प्रेम और सौहार्द और सहारे के बिना स्वस्थ मस्तिष्क संभव नहीं हैं।

कलाओं में डूबो। एंजॉय आर्ट्स।

गीत, संगीत, नृत्य, पेंटिंग, अभिनय, खुद कुछ नया सीखो, रचनात्मक बनो, Be Creative. हर कोई नहीं बन सकता। कोई बात नहीं। हर एक के अंदर रचनात्मकता नहीं होती। कोई बात नहीं। कम से कम गुण ग्राहक तो बनो। सुनो, देखो, पारखी बनो। कलाओं का आनंद लो। बन सके तो खुद भी सीखो। उसके मजे लेना सीखो। कलाएं हमारे ब्रेन को हेल्दी रखती हैं। We should be connoisseurs of art. हमें कला पारखी होना चाहिए। किसी को संगीत अच्छा लगता है, किसी को कोई और कला अच्छी लगती है। जिसमें रुचि हो उसमें डूबो। उसको एंजॉय करो। वह आपके ब्रेन को रिलैक्स भी करेगा और Enrich भी करेगा। उसके स्वास्थ्य को बना कर रखेगा।

अच्छे ब्रेन हेल्थ के लिए नींद जरूरी है।

आज का समाज Sleep Deprived Society है। धीरे-धीरे हमारी नींदें कम होती जा रही हैं। लंबी, गहरी नींद में मस्तिष्क में से गंदे पदार्थों की सफाई होती है। यह आज बायोलॉजिकली सिद्ध हो चुका है। लंबी गहरी नींद में मस्तिष्क का क्लीनिंग होता है। सात-आठ घंटे की नींद होना चाहिए। दिन में आराम करते समय नींद ना आ रही हो या बैठे रहना हो तो भी कुछ समय के लिए आंखों को पट्टी से ढक लें।

नींद के अनेक कार्य होते हैं। नींद के अंदर ब्रेन का डेवलपमेंट होता है। ऐसा कहते हैं ना एक नन्हा शिशु जब सोता है तो हम कहते हैं इसका ब्रेन डेवलप हो रहा है। नींद के दौरान हमारे साइनेप्सिस की प्लास्टिसिटी बढ़ती है। हमारा मेंटल हेल्थ अच्छा होता है। Consolidation of memories होता है। हमारी स्मृतियों का सुदृढ़ीकरण गहरी नींद के अंदर होता है। नींद के अंदर हमारे मेटाबॉलिक फंक्शंस अच्छे होते हैं। कैंसर की रोकथाम होती है। हमारा इम्यून सिस्टम अच्छा मजबूत रहने के लिए पर्याप्त नींद होना बहुत जरूरी है। नींद हमारे दिमाग में झाडू पोछे का काम करती है। गंदगी की सफाई का काम करती है। इसके लिए एक नया शब्द पिछले 10 सालों में निकला है Glymphatic.

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आप में से जो बायोलॉजी के पढ़े हुए लोग हैं उन्होंने lymphatic का नाम सुना होगा। हमारे टिश्यूज में आर्टरीज होती हैं, वेंस होती हैं, कैपिलरीज होती हैं और उनके अलावा lymphatic होती है। इंटरस्टीशियल टिश्यू में से जो फ्लूइड होता है उसको ड्रेनेज का काम lymphatic करती है। ऐसा मानते थे ब्रेन एनाटॉमी में आज से 10-20 साल पहले, कि ब्रेन में lymphatic नहीं होती। एनाटॉमी की कोई भी पुरानी बुक उठा के पढ़ लो उसमें मिलेगा शरीर के सब अंगों में lymphatic होते हैं। ब्रेन में lymphatic नहीं होते। अब ब्रेन में मालूम पड़ा है Glymphatic होते हैं। Glymphatic फ्लूइड चैनल होती हैं जो कि ग्लाया नाम की कोशिकाओं से मिलके बनती हैं। वह ब्रेन के वेस्ट को ड्रेन करके ब्लड वेसल तक ले जाती हैं। नींद में यह ज्यादा ओपन होती हैं, एक्टिव रहती हैं। जब हम जागृत रहते हैं तो यह चैनल क्लोज हो जाती है। तो यह झाडू पोछे का काम नींद के अंदर होता है।

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एक स्टडी करी थी आंख बंद करने को MRI की / Functional Mri की कि कुछ हेल्दी वॉलंटियर्स को MRI मशीन में लिटा दिया। जब MRI में लिटाते हैं तो वहां ऊपर एक स्क्रीन आता है जिस पर आपको कोई सीन दिखता रहता है। MRI में आजकल सुविधा होती है। एक स्क्रीन लगा देते हैं। आप लेटे-लेटे पर्दे पर कुछ दृश्य देख रहे हैं। आपके ब्रेन का फोटो खींचा जा रहा है। फिर वह फोटो बंद हो गया। कुछ नहीं। लाइटें बंद कर दी या आपके आंखों पर पट्टी बांध दी। फिर आपका MRI कनेक्ट करा। ब्रेन के कौन से हिस्से और कितने हिस्से Metabolically active थे। दोनों परिस्थितियों में। जब आंख बंद थी, कुछ भी नहीं देख रहे थे तो ब्रेन तुलनात्मक रूप से शांत था, आराम कर रहा था। दरअसल देखा जाए तो आंखों से जो गुजरता है वह केवल Occipital Lobe तक नहीं जाता बल्कि Occipital Lobe के आगे Parietal और Temporal Lobe के भी बहुत सारे खंडों को वह उद्दीप्त कर देता है, एक्टिव कर देता है Metabolically. इसीलिए कहते हैं आंख बंद तो पहाड़ ओट।

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आंख बंद है तो आपके ब्रेन को आराम मिलता है। नींद भी जरूरी है और अगर नींद नहीं मिल रही है तो मैं जो विधि अपनाता हूं जब मैं कम्यूट करता हूं कार में या हम ड्राइव पर जाता हूं, मैं तो खुद ड्राइव नहीं करता। मैं इस तरह की पट्टी अपने आंखों के ऊपर बांध देता हूं। नींद तो नहीं आती लेकिन ब्रेन को आराम मिलता है। हो सकता है मैं कुछ सोच रहा होगा उस दौरान या मैं एनालाइज कर रहा होगा।

प्रकृति के पास जाओ

भ्रम ब्रेन के स्वास्थ्य के लिए टूरिस्ट होना जरूरी है। यह आपके ब्रेन को स्वस्थ बना के रखेगा। सैलानी बनो। प्रकृति में रहो, ट्रैकिंग करो, नई जगह देखो, नए लोगों से मिलो, नए मित्र बनाओ। हरियाली, नदी, पहाड़, जंगल। Nature is rejuvenating for the brain and overall health। यह बहुत जरूरी है मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए।

तनाव को कंट्रोल करना मन प्रसन्न तो मस्तिष्क भी दुरुस्त।

दिमाग यानी मन। मन या माइंड भी ब्रेन में ही रहता है। दिमाग स्वस्थ तो मन भी चंगा। दोनों का यह two way traffic है। यदि हमारा शरीर और ब्रेन अच्छा है तो हमारा मन अच्छा होगा। यदि हमारा मन खराब है तो हमारा शरीर और ब्रेन भी खराब होगा। यह two way traffic है। स्वस्थ ब्रेन पाने के लिए हमें स्वस्थ मन भी रखना पड़ेगा। पर क्या करें? मन कहां है? वह भी तो ब्रेन ही है। मन कोई और कोई चीज तो है नहीं।

मन को स्वस्थ रखने के लिए तनाव को कंट्रोल करना। बीच-बीच में थोड़े ब्रेक लेना चाहिए। उनको हम ब्रेन ब्रेक बोल सकते हैं। यदि आप दिमाग का काम कर रहे हैं घंटे भर से, खासतौर से जो आईटी वाले लोग हैं, सॉफ्टवेयर वाले हैं, जो 10-12 घंटे सिस्टम के सामने बैठे रहते हैं, उन लोगों को तो मैं कहता हूं “भैया थोड़ा सा ब्रेक ले लिया करो”
इसके अलावा अनेक साधन हैं। योग, ध्यान साधना, आध्यात्मिकता, धार्मिकता, दार्शनिकता, माइंडफुलनेस। इसमें अनेक विधियां हैं। सभी विधियां अच्छी हैं।

मैं इनको खारिज नहीं कर रहा हूं। मैं इनको सपोर्ट कर रहा हूं। मैं इनको एंडोर्स कर रहा हूं। Yes, They are good। जिसको जो भाए, जिसको जितना करना हो करे। इससे फायदा ही होगा, नुकसान तो कतई नहीं होगा। मन को अच्छा लगता है। इन तमाम प्रक्रियाओं का एक मूल मंत्र है:- मन को वर्तमान समय में, इसी स्थान पर, अपनी काया के विभिन्न अंगों पर और अपनी श्वास पर केंद्रित करना। यह एक बेसिक प्रकिया होती है तमाम विधियों की। “जो भी है यही एक पल है कर ले आरजू। आगे भी जाने ना तू, पीछे भी जाने ना तू”। साहिर जी लिख गए अपने महान गीत में। Here and now. । इस स्थान पर इस क्षण में अपने आप को केंद्रित करना है। The Power of Now जो Eckhart Tolle ने किताब में लिखी है। और भी लोगों ने लिखा है। ये तमाम विधियां उसी सिद्धांत पर काम करती हैं। इसके अलावा कुछ लोगों को भजन, कीर्तन, पूजा से भी अच्छा लगता है। उसकी भी अपनी उपयोगिता है। उनको भी मैं एंडोर्स करता हूं।

टेंशन कम करने के लिये हैं क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट का परामर्श भी कई बार काम आता है। कोई शर्म नहीं करना। यदि हमारे मन में तनाव बहुत है, उलझन है, तो अच्छे प्रोफेशनल्स अपने समाज में उपलब्ध हैं जिनको हम क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट या काउंसलर बोलते हैं। उनकी सेवाओं का उपयोग जरूर लेना चाहिए।

थोड़ा सा Stress जरूरी है।

थोड़ा बहुत तनाव और स्ट्रेस ना केवल अवश्यंभावी है वरन जरूरी और उपयोगी भी है। बिना तनाव के लाइफ नहीं होती। उसके बिना इंसान प्रगति नहीं करता। थोड़ी बहुत महत्वाकांक्षा होना जरूरी है। सपने देखना जरूरी है। उन सपनों को पूरा करने के लिए जद्दोजहद करना जरूरी है। वह जद्दोजहद आपके ब्रेन को बेहतर बनाती है। महत्वपूर्ण यह है कि उसकी लक्ष्मण रेखा कहां आती है। उसकी रेड लाइन कहां आती है? उसका शिखर कहां आता है। वह हर एक का अलग-अलग होगा।

Work life balance. देखो। यह भी जरूरी है आराम भी जरूरी है। दोनों के मध्य का संतुलन साधना हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकता है।

मानसिक रोगों का पूरा इलाज कराना।

डिप्रेशन, एंजाइटी, साइकोसिस जैसे मानसिक रोगों का ब्रेन हेल्थ से दोतरफा लिंक है। जैसे मन और ब्रेन की मैंने दोतरफा रिश्ते की बात वही प्योर साइकेट्रिक रोग पर भी लागू होती है। मस्तिष्क में पैथोलॉजी के कारण साइकेट्रिक डिसीज पैदा होती है और साइकेट्रिक डिसीज के कारण ब्रेन हेल्थ को नुकसान पहुंचता है। जोखिम कारक होते है। वे कारक जिनकी उपस्थिति से कोई इस अवस्था होने की आशंका बढ़ जाती है। Being depressed was a risk factor. यदि आप लंबे समय से डिप्रेस्ड रहे हैं आपको डिमेंशिया होने का रिस्क बढ़ जाता है। जरूरी है कि आप साइकेट्रिस्ट के पास जाकर उस अवस्था का इलाज कराएं ताकि आपका ब्रेन हेल्थ अच्छा रहे। डिप्रेशन का इलाज ना केवल डिप्रेशन के लिए करवाना है बल्कि ब्रेन हेल्थ के लिए करवाना है। मनोरोग विशेषज्ञ का इलाज लम्बा चलता है। वो इलाज बहुत जरूरी है।

शोध की विधियां (a)

मैं जो आज बातें कर रहा हूं वह विज्ञान सम्मत बातें कर रहा हूं। मैं जिन चीजों को आज रिकमेंड कर रहा हूं उन सब पर अध्ययन हुए हैं। उन सब पर अच्छा एविडेंस मिला है। इस हेतु शोध की विधियों पर कुछ प्रकाश डालूंगा, भले ही थोड़ा विषयांतर होवे।

लोग बादाम की बड़ी तारीफ करते हैं। अखरोट की बात करते हैं, च्यवनप्राश की बात करते हैं। यह अलग बात है कि विश्वनाथन आनंद आकर विज्ञापन देता है किसी पर्टिकुलर आइटम के लिए कि उससे मेरी शतरंज की बुद्धि तेज हो गई। यह सब तो विज्ञापन है। पैसे का खेल हैं। लेकिन वैज्ञानिक सबूत हेतु अध्ययन करेंगे तो करेंगे कैसे? बड़ा कठिन है। मैं इतने साल से बादाम खा रहा हूं मेरी बुद्धि बहुत अच्छी है। मैंने इतने साल से फलाना ब्रांड का च्यवनप्राश खाया। इर
दे बहुत अच्छी हो गई।

इसका कहते हैं? Anecdotal Evidence. Anecdotal मतलब एक Individual किस्सा। विज्ञान में उसे प्रमाण नहीं मानते। या दोयम दर्जे का, निचले दर्जे का प्रमाण मानते हैं। सबसे अच्छा प्रमाण होता है Randomized control Trial (RCT)। थोड़ा सा विषयांतर है लेकिन मैं जब भी विज्ञान की बात करता हूं

तो आरसीटी का उल्लेख जानबूझ के करता हूं। मैं अपने आप को रोक नहीं पाता। RCT ना केवल food पे, ना केवल मेडिसिन पे, ना केवल सर्जरी पे, ना केवल हैबिट्स पे, हर चीज पे Randomized control trial लागू होता है। यह विज्ञान की विधि है। उस विधि की इज्जत आपको करना पड़ेगी। हर जगह वह विधि लागू नहीं हो सकती। हर जगह उस विधि का शोध शायद संभव भी नहीं है इसलिए हमारे पास प्रमाण नहीं है। तब हमें थोड़े दोयम दर्जे के Evidence से जाना पड़ता है मजबूरी में। उसको भी हम फॉलो करते हैं। ऐसा नहीं कि नहीं करते।

मैं बहुत संक्षेप में बताऊंगा। कल्पना करो कि 1000 लोगों को एक साल तक एक पर्टिकुलर ब्रांड का च्यवनप्राश इतने ग्राम प्रतिदिन खिलाया गया। उस अध्ययन में शामिल करने के पहले उनकी बुद्धि के माप के अनेक सूचकांक, IQ (Intelligence Question) और उसके भी अनेक पहलू नापे गए विस्तार में। उस नापने की क्रिया में दो-दो घंटे लग जाते हैं। उसको हम बोलेंगे Baseline Data कि उनकी बुद्धि कैसी थी। यह 1000 लोग थे। दूसरे 1000 लोग थे उनकी भी हमने बुद्धि नापी। एक-एक बंदे को दो-दो घंटे का टाइम देके हमने नापी। उसका डिटेल्ड स्कोर निकाला। दोनों ग्रुप के 1000 लोगों के यह Comparable थे। तुलनीय थे।

अब Comparable का क्या मतलब होता है? ऐसा तो नहीं कि यह 1000 जो थे यह पहले से बीमार थे और उनको पहले से नशों की आदतें थी और जो दूसरे 1000 आपने चुने वह पहले से हेल्दी थे दोनों ग्रुप Comparable होना चाहिए। उनकी औसत उम्र में, उनके लिंग अनुपात में, उनके शरीर के वजन के अनुपात में, उनकी नशे की आदतों के अनुपात में, उनमें से कितनों को हार्ट डिसीज पहले से थी, कितनों को कोलेस्ट्रॉल पहले से था, यह दोनों ग्रुप Comparable होना चाहिए। अध्ययन शुरू करने के पहले। एक ग्रुप को च्यवनप्राश दिया और एक को नहीं दिया और उनको एक साल तक फॉलो किया। हर तीन महीने पर उनका हमने बुद्धि परीक्षण किया उनका ग्राफ बनाया वर्ष के अन्त में हमने फिर उनका परीक्षण किया। तब परिणाम निकलेगा कि जिन्होंने च्यवनप्राश खाया उनकी बुद्धि बढ़ी कि नहीं बढ़ी। यह एक Hypothetical अध्ययन है। ऐसा हुआ नहीं है। पर ऐसा होना चाहिए। जो बंदा च्यवनप्राश बेच रहा है उसके ऊपर जिम्मेदारी आती है कि वह ऐसा अध्ययन करे। यह बहुत महंगा काम है। इसके लिए रिसर्च ग्रांट एप्लीकेशन लिखना पड़ती है। रिसर्च ग्रांट एप्लीकेशन लिखना ही अपने आप में एक बहुत हुनरमंदी का काम है। हर कोई नहीं लिख सकता। किसको लिखना पड़ती है? ICMR को। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च। DST (डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी)। इन एजेंसीज के पास करोड़ों रुपया है, अरबों रुपया। वह देने को तैयार है। कोई बढ़िया सा प्रोटोकॉल तो लिख के लाए। हम ऐसे अध्ययन करना चाहते हैं। लोग लाते ही नहीं है ऐसा प्रोटोकॉल लिख के। पैसा पड़ा रहता है उनके पास। अगर आप यह दावा करते हैं कि हमारी इस चीज से फायदा होता है तो लिखो ना प्रोटोकॉल, मांगो ना ग्रांट, करो ना अध्ययन फिर अध्ययन करने के बाद आपके अंदर माद्दा होना चाहिए एक ईमानदारी होना चाहिए कि शोध के अन्त में यदि रिजल्ट नेगेटिव आए तो आप उसको स्वीकार करें। हां भैया नहीं होता फायदा। दुर्भाग्य से इस तरह का अध्ययन हमारे यहां लोग नहीं करते। उनका काम तो बिना शोध बिना प्रमाण, सिर्फ विज्ञापन दे कर चल जाता है तो क्यों कर इतनी करे। यह योग पर भी लागू होता है। यह एक्सरसाइज पर भी लागू होता है। यह food पर भी लागू होता है। यह दवाइयों पर भी लागू होता है। यह food Supplements पर भी लागू होता है। हर चीज पर विज्ञान की विधि लागू होती है।

शोध की विधियां (b)

जब भी कोई अध्ययन होता है तो उसका उस रिसर्च पेपर को पढ़ के उसका विश्लेषण करने की एक योग्यता होना चाहिए वैज्ञानिकों में। उस योग्यता को बोलते हैं Critical Appraisal. उदाहरण के लिये योग के फायदों के बारे में एक अध्ययन छपा जिसमें कि उन्होंने बताया कि हमने इतने कैंडिडेट लिए। आधों को योगा कराया, आधों को नहीं कराया। हमारे यह आउटकम थे अर्थात् आकलन करने के पैमाने थे जिनके आधार पर हम तुलना करेंगे। वह भी बड़े अच्छे से बताया किया। एक साइंटिस्ट के रूप में मुझे उस पेपर को पढ़क्र उसका Critical Appraisal करते आना चाहिए। मैने किया है। ऐसे पेपर हैं। उतनी अच्छी क्वालिटी के नहीं हैं जितने कि होना चाहिए। ज्यादा जरूरत है इस क्षेत्र में काम करने की। योग, ध्यान साधना, आध्यात्मिकता, विपश्यना इतर इंजीनियरिंग आदि के लिये Randomized Control Trial हुए हैं। मैं विश्वास के साथ कहूंगा कि तमाम विधियां विज्ञान सम्मत हैं। लेकिन इतने अच्छे अध्ययन नहीं हैं जितने आदर्श रूप से होना चाहिए।

कैसी जरूरत है? Number of subjects. आपने कितने लोगों का अध्ययन में लिया? उन्होंने कहा हमने 10 लोगों को योगा कराया। 10 को नहीं। अरे 10 कोई नंबर होता है? 100 होना चाहिए। 1000 होना चाहिए। एक तो Number of subjects कितने थे? दूसरा होता है Duration of follow up. हमने योगा कराया और एक महीने बाद उनका हमने असेसमेंट। अरे एक महीना क्या टाइम होता है। आपको साल भर तक अध्ययन करना पड़ेगा। क्या लाभकारी प्रभाव बाद में भी बना रहा? जिन लोगों ने योग नहीं किया उनमें क्या फर्क पड़ा? तुलनात्मक अध्ययन जरुरी है। हमने उनका अध्ययन किया और उसमें 2% का डिफरेंस आया। अरे भैया यह बताओ कि 2% का difference statistically significant है कि नहीं? उसकी पी वैल्यू कितनी है? ये Criteria होते हैं Critical Appraisal के। वह लगाना पड़ेंगे हमको इन सब पर। योग, ध्यान, साधना, आध्यात्मिकता, धार्मिकता, दार्शनिकता, माइंडफुलनेस पर।

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श्रोताओं के साथ प्रश्न-उत्तर

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Q. मेरे पिताजी की उम्र 73 साल है। मैं बहुत कोशिश करता हूं उनसे बात करने के लिए। मेरे जीवन में बड़ा उत्साह है। मैं नई-नई चीजें सीखता रहता हूं। नए लोगों पर से बात करता रहता हूं। लेकिन मेरे माता-पिता का रुख अलग होता है। वे कहते है “अरे इसमें क्या रखा है? कुछ नहीं है? ये तो बहुत ही बेकार बातें है? अरे यह नहीं करना है। हम दोनों की न्यूरोलॉजी में क्या भेद है? उनके साथ में मैं कैसा व्यवहार करूं? मतलब युवा पीढ़ी को क्या करना चाहिए?

Ans. प्रत्येक व्यक्ति की पर्सनालिटी अलग-अलग होती है। कुछ तो जन्मजात होती है और कुछ जीवन के अनुभवों के आधार पर बनती है। हो सकता है आपके माता-पिता का जीवन कुछ तरह का बीता हो। उनके अंदर वैसी रुचि नई-नई चीजों के लिए नहीं आ पाई जो कि आपके अंदर है। इसको परिवर्तित करना मुश्किल है पर प्रयास जरूर करना चाहिए। प्रयास कई तरह से। एक तो आप उनके साथ बड़े प्यार से, समझाते रहें। हमेशा उनको मोटिवेट करते रहें। दूसरा उनके लिए कुछ अच्छे मित्र ढूंढो। उन्हीं की उम्र के जो कुछ इस तरह के हों जैसे कि आप चाहते हो। हो सकता है उस संगति का उनके ऊपर फर्क पड़ जाए।

Q. अगर किसी की नेचुरल प्रोटीन की रिक्वायरमेंट पूरी नहीं हो पा रही है तो सप्लीमेंट ले सकते हैं क्या?
Ans. जहां तक संभव हो प्रोसेस्ड food से बचना है। नेचुरल प्रोटीन ही लेना अच्छा है। अगर कम पड़ रहा है तो आप ले सकते हैं प्रोटीन पाउडर। पर मैं नॉर्मली उनको रिकमेंड नहीं करता। शाकाहारी लोगों के लिये मिल्क प्रोडक्ट्स हैं, मिल्क है, पनीर है, दही, छाछ है।

पनीर अच्छा है। पनीर के साथ एक माइनस पॉइंट है कि उसमें प्रोटीन के साथ फैट भी बहुत है। यदि आपको कोलेस्ट्रॉल या फैट कंट्रोल करना है तो आपको ऐसा प्रोटीन सोर्स लेना पड़ेगा जिसमें चर्बी का अंश कम हो। अब जैसे मूंगफली। मूंगफली का प्रोटीन बहुत अच्छा है पर उसमें ऑयल भी बहुत है। आप बहुत ज्यादा क्वांटिटी में मूंगफली को स्टेपल डाइट नहीं बना सकते। पनीर को आप स्टेपल डाइट नहीं बना सकते। एक लिमिटेड क्वांटिटी में दिन में एक-दो बार खा सकते हैं।

वीगन लोगों के लिए लेग्यूम्स हैं, दालें हैं। सोयाबीन के प्रोडक्ट बहुत अच्छे आते हैं। सोयाबीन का चीज (टोफू), पनीर बनता है, सोयाबीन का दूध बनता है। सोयाबीन और अन्य लेग्यूम्स या जिनको हम पल्सेस बोलते हैं, मूंगफली है। इन सब में अच्छा प्रोटीन है। पुराने जमाने में मुझे याद है 1960 के दशक में जब मैं स्कूल में पढ़ता था एक पहलवान का नाम बड़ा प्रसिद्ध हुआ था चंदगीराम। हरियाणा के थे। उनकी डाइट के बारे में पढ़ता था तो बड़ा गर्व होता था कि चंदगीराम शाकाहारी है। बड़ी खुशी होती थी। वेजिटेरियन लोग भी अच्छे पहलवान हो सकते हैं।

Q. आपने बताया था कि जो नींद सात से आठ घंटे लेनी चाहिए। लेकिन जो मेडिटेशन करते हैं वे चार से पांच घंटे में संतुष्ट रहते हैं। हमारे मोदी जी भी चार से पांच घंटे नींद लेते हैं और पूरा एनर्जेटिक होते हैं।

Ans. हमारी जो फिजियोलॉजिकल जरूरत है वह सबकी अलग अलग है। ज्यादातर लोग पांच से आठ घंटे की नींद में ठीक रहते हैं। उम्र के साथ नींद की आवश्यकता कम होती है। शैलेन्द्र का एक गीत थाः “बचपन खेल गंवाया जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख रोया”। औसत (या Mean) के आजू बाजू दो स्टैंडर्ड डेविएशन में 90% लोग आ जाते हैं। उसके आगे जो होते हैं उनको आउटलायर्स बोलते हैं। मोदी जी Outlier हैं। उनको हम उदाहरण नहीं बना सकते। मेडिटेशन वगैरह से कुछ लोगों को नींद में फायदा होता है। जरूरी नहीं कि सबको होता हो।

Q. सपने देखना अच्छी नींद की निशानी है?

Ans. हां। अच्छा है।

Q. ब्रेन की हेल्थ के लिए एक्सरसाइज के लिये कोई एज लिमिट है?

Ans. कोई लिमिट नहीं है।
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