अपनी भाषा अपना विज्ञान: हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबु

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अपनी भाषा अपना विज्ञान: हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबु

सह: संवेदना (SYNESTHESIA)

आज मेरे पाठकों के साथ एक ‘विचार प्रयोग’

Thought Experiment

एक मिनिट के लिए आँखे बंद कर लीजिये।

फिर जैसा मै कहूँ वैसा सोचिये।

1 से दस तक अंको की कल्पना कीजिये।

वे किस डिजाइन में जमे हुए है?

एक आड़ी पंक्ति में – बायें से दाये?

या एक खड़ी पंक्ति में  – ऊपर से नीचे।

या एक गोलाकार रूप में,घड़ी के सामान।

यहाँ तक तो ठीक है।

इसके बाद एक प्रश्न और।

इन अंको का रंग कैसा है?

अधिकाँश लोग कहेंगे एक जैसा रंग है – मुख्यतया काला या Dark Grey।

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इन नंबर्स की पृष्ठभूमि का रंग कैसा है? Background colour?
अधिकांश लोग कहेंगे “कुछ खास नहीं” शायद रंगहीन या सफ़ेद।
यही प्रयोग हिन्दी या अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों के साथ दोहराइए।

इनका विन्यास,रंग, और पृष्ठभूमि कैसे है?

मुझे विश्वास है कि लगभग 5% पाठक ऐसे होंगे जो कहेंगे (जैसा कि मेरे साथ होता है)

“1 हल्का Dark है, 2 Bright है, 3 Dull है, 4 चमकीला केशरिया है, 5 Neutral है, 6 फिर Bright आदि आदि

 

 

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चित्र: ‘5’ के इस ग्रिड में से ‘2’ को ढूँढना मुश्किल है लेकिन सिनेस्थिट व्यक्ति फटाफट कर लेंगे क्योकिं उन्हें भिन्न रंग दिख जाते है

“ ‘क’ हल्के कलर का है, ‘ख’ का रंग गाढ़ा है

“घड़ी के अंक किस डिजाईन में जमे हुए है ? गोलाकार, चौकोर या तिकोन? उनके रंग और आकार कैसे है?

इससे भी कम लोग होते है जो और भी अजीब बाते करते है। यदि उनसे पूछा जाये तो या उन्हें कहने का मौका मिले तो। वर्ना संकोच करते है। सोचते है ‘यह भी क्या कोई बताने की बात हुई? लोग क्या कहेंगे?

सरगम के स्वर (सा, रे, ग,म,प, ध, नि, सा) मन की आँखों के सम्मुख कैसा पैटर्न बनाते है, उनके रंग कैसे है?

मेरा ‘सा’ चमकीला है, ‘रे’ गाढ़ा, ‘ग’ हल्का, ‘म’ गहरा, ‘प’ हरा या ऐसा ही कुछ।

 

इस अवस्था का नाम है – Synesthesia

‘सिनस्थी-सिया’
Syn = साथ-साथ, Together

Asthesia – perception, संवेदना, मालूम पड़ना

 

दो भिन्न प्रकार की इन्द्रियों से प्राप्त संवेदनाओं (sensory perception) का आपस में मिल जाना, गड्ड-मड्ड हो जाना।

एक इन्द्रिय से प्राप्त सूचना द्वारा दूसरे प्रकार की इन्द्रिय से प्राप्त सूचना का एहसास होना।

 

मोजार्ट और बीथोवन की सिंफनी सुनते सुनते कुछ सह्संवेदी (synesthetic) व्यक्तियों की आँखों के आगे रंगीन डिजाईने बनने लगती है जिन्हें वे पेंटिग के रूप में बना डालते है।
एक पकवान को चखाने पर वह ‘गोलाकार’ लगा तो दूसरे को ‘नुकीला’। मेंढक के टर्राने की आवाज से खुरदुरे स्पर्श का एहसास हुआ।
‘7’ का रंग हरा और ‘सात’ का रंग पीला है।
‘लाल रंग’ देखने पर ‘तीन’ दिखने लगता है। नीला रंग देखने पर ‘3’ नजर आता है।

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चित्र: एक मरीज ने कहा इन्द्रधनुष का स्वाद गोभी के फूल जैसा लगता है

 

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चित्र: एक व्यक्ति ने बताया कि खुशबुओं के रंग होते है

 

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चित्र: एक महिला ने संगीत के सुरों के रंग की पेंटिंग बना डाली

 

 

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चित्र: संगीत की खुशबु का वर्णन तो गूंगे के गुड़ के समान है
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चित्र: कोई आवाज का स्पर्श मखमली तो किसी का रेशमी

सिनेस्थीसिया के प्रकार
यह ट्रेफिक दुतरफा है

 

 

  1. अंक / अक्षर
रंग
  1. अंक / अक्षर
ध्वनि / संगीत
  1. संगीत – स्वर
रंग, डिजाईन
  1. रंग, डिजाईन
स्वाद
  1. रंग, डिजाईन
गंध, खुशबु
  1. संगीत, स्वर
सतह का Texture
  1. शब्द, ध्वनि
रूपाकार, डिजाईन
  1. रूपाकार, रंग
ध्वनि, संगीत

 

 

 

 

प्रत्येक ज्ञानेन्द्रि से प्राप्त संवेदना  अपनी सीमा रेखा का अतिक्रमण करके पड़ोस के खेत में मुंह मारने लगती है। इसके भी आगे वह नाना प्रकार की EMOTIONS भावनाओं को उद्दीप्त करती है। हम सबके साथ होता है। नीला रंग शांत है। केशरिया वीर रस है। संगीत और मन के मूड्स का रिश्ता सब जानते है।

विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों से पाप्त सूचनाएं, संवेदनाएं(Sensations) के लिए दिमाग ने पहुँचने का अलग अलग ठीया होता है, मंजिल होती है। उसे केंद्र कह लो, सेंटर कह लो, Area या क्षेत्र कह लो।

 

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चित्र:मस्तिष्क में विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों से पहुँचने वाली जानकारी नियत गंतव्य पर ही पहुँचती है। सिनेस्थीट लोगों में इन केन्द्रों के बीच क्रॉस-टॉक होता है

 

 

क्या ये सारे डिपार्टमेंट अपने अपने दड़बों में दुबके बैठे रहते है – अपने अपने SILOS में सिमटे रहते है? क्या सिर्फ अपने काम से काम रखते है?

नहीं, ऐसा नहीं है। इनमें आपसी संवाद होता है। सूचनाओं का आदान प्रदान होता है।

 

मस्तिष्क की Real Estate की Boundary wall कच्ची होती है, Porous होती है, लक्ष्मण रेखा के माफिक नहीं होती है, ग्लोबलाइजेशन और लोकलाइजेशन का संतुलन होता है, वैश्विकरण और स्थानीय आत्मनिर्भरता का अजीब सा ठीला ठाला, परिवर्तनशील ताना बाना होता है।

दो देशों के बीच बफर स्टेट होती है। जैसे चीन और भारत के बीच नेपाल है।

जहां दोनों पड़ोसियों का दखल रहता है। एक भला भला सा दखल।

श्रव्य देश, दृश्य देश और स्पर्श देश के बीच Association Areas होते है। संपर्क क्षेत्र। सहयोग क्षेत्र। संश्लेषण क्षेत्र।

जो सुना, जो देखा, छुआ, सूंघा, चखा, उन सबकी प्राथमिक अनुभूति की अगली पायदाने होती है। उन आवाजों, दृश्यों, स्पर्शों, गन्धो, स्वादों  के निहितार्थ उभरते है, उनसे जुड़ी स्मृतियां सजीव होते है, गूढ़ विचार जन्मते है। Association Cortex हमारे ब्रेन के सर्वोच्च हिस्से होते हैं।

सिनेस्थीसिया के अनुभव इन्ही Buffer States के रंगमंच पर फलीभूत होते है।

ऐसा सब के साथ क्यों नहीं होता?

सिर्फ 2-4% क्यों? शायद बचपन में हम सब Synesthete होते है लेकिन अभियव्यक्त नहीं कर पाते। यूँ तो बड़े वयस्क भी प्रायः चुप ही रह जाते हैं।

 

मैंने छ: वर्षीय पोते रियान से बाते करी तो उसने बताया –

“जीरो काले रंग का है और ‘अनंत’ चमकीला पीला है”

“अंग्रेजी और हिंदी वर्णमाला गोलाकार रूप में जमी है  और प्रत्येक अक्षर का अपना स्थायी रंग है।”

“संगीत के सरगम में सात स्वर रंगबिरंगे है और सीढियों पर रखे हुए है”

 

 

भ्रूणावस्था और बचपन में हमारे मस्तिष्क के विभिन्न इलाकों की न्यूरॉन कोशिकाओं के मध्य सघन परिपथ होते है। Dense and Rich Connection & Networks

 

विकास के दौरान इन परिपथों की बेरहमी से छंटाई होती है। अंग्रेजी शब्द है  Pruning।  बागवानी करने वाले इस शब्द से परिचित होंगे। गुलाब व् अन्य पौधों को विकसित करते समय अनेक पत्तियां व शाखाएं काट दी जाती है।

 

प्रकृति ने करोड़ों वर्षों के डार्विनियन विकास में यह पाया कि इतने ज्यादा connection, प्राणी के survival के काम के नहीं है। स्पीशीज की छंटाई अपने आप होने लगी।

 

लेकिन जनसँख्या का एक छोटा प्रतिशत रह जाता है जिनमें यह Pruning कम बेरहमी से होती है। ये ही लोग Synesthete बनते है। सह: संवेदी बनते है। बेल कर्व(घंटाकृति चाप) के दूसरे किनारे वाली पूंछ में भी एक थोड़ा सा प्रतिशत लोगो का होता है जिनमें यह छंटाई जरा ज्यादा ही बेरहमी से हो जाती है। ये लोग ठस दिमाग होते है। लकीर के फ़क़ीर होते है। चुटकुले और उपमाओं का आनंद नहीं ले पाते।

मुझे ख़ुशी होगी यदि अधिक लोग Synesthete हो या अपनी सुशुप्त प्रतिभा  को पहचाने और विकसित करें।  इनकी स्मृति और बुद्धिमता बेहतर होती है। इन लोगो में कलाकारों व साहित्यकारों का प्रतिशत अधिक होता है।  अनेक परिवारों में यह प्रकृति जिनेटिक आधार पर संचारित होती है।

 

आओं हम सब उत्सव मनाएं अपने अन्दर के गुलजार का जो कहे कि –
“हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबु”

 

 

 

 

 

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