अपनी भाषा अपना विज्ञान: जीवन क्या है (What is Life)

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अपनी भाषा अपना विज्ञान: जीवन क्या है (What is Life)

डॉ. अपूर्व पौराणिक

मेरी मां से जब मैंने इस विषय पर बात करी तो वे कहने लगी महाभारत में यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से जीवित मृत के मध्य भेद के बारे में और रामचरितमानस में तुलसीदास जी की इस अर्धाली को उध्रत किया “जीवित सव सम चौदह प्राणी”। मैंने कहा, मां मेरा विषय यह नहीं है। मैं वैज्ञानिक पहलूओं पर चर्चा करने जा रहा हूँ।

इस विषय में मेरी रूचि वर्ष 1965 में जागृत हुई थी। मिडिल स्कूल से हायरसेकण्डरी स्कूल में जाना छात्र जीवन में याद रह जाता है। वर्ष 1965 में मैंने सूरजपोल माध्यमिक विद्यालय रतलाम से आठवीं कक्षा पास कर के माणक चौक हायर सेकण्डरी स्कूल की नवीं कक्षा में दाखिला लिया था। पहला दिन, पहला पीरीयिड, वह कमरा, वे टीचर श्री मीर सर, मुझे याद है। पहला पाठ था बायोलाजी क्लास का जीवित और अजीवित का भेद। किसी लेक्चरर से पहली बार पढ़ कर में प्रभावित था। हाल ही मैंने CBSE की पाठ्‌यपुस्तक में इसे फिर पढ़ा। कोई खास अन्तर नहीं मिला।

स्कुल स्तर से ऊपर उठकर यदि हम कॉलेज स्तर पर आयें तो मैं नोबल पुरुस्कार विजेता मेडिसिन और फिजियोलाजी (2001) प्रोफ़ेसर पॉल नर्स को उद्दत करूँगा

अपनी भाषा अपना विज्ञान: जीवन क्या है (What is Life)

[Link: https://www.youtube.com/watch?v=_z-SUo2wP4I] जिनके अनुसार जीवन की विशेषताओं और परिभाषाओं को कुछ ऐसे गिना सकते हैं-

(1)     जीवित प्राणी अपने आप को सुसंठित, सुव्यवस्थित (Organised) रखते हैं, उनमें वृद्धि होती है, वे स्वयं का संधारण करने के काबिल होते हैं, उनमें आनुवांशिकता और वैभिन्य होता है।

(2)     प्रजनन, आनुवांशिकता और वैभिन्य के कारण प्राकृतिक चयन होता है और प्राणियों की स्पीशीज में विकास [Evolution] होता है।

(3)     जीवन की मूलभूत रचनात्मक और कार्यात्मक ईकाई कोशिका [cell] होती है। जो शरीर तथा बाह्य वातावरण से प्रथक होते हुए भी उनसे संपर्क व संवाद में रहती है। वे सभी एक दूसरे को प्रभावित करते है।

(4)     जीवन का मूल रासायनिक आधार होते है (1) कार्बन पर आधारित पालिमर योगिक (2) न्यूक्लियक एसिड जो सूचना का संग्रह और सम्प्रेषण करते है। (3) प्रोटीन जो रचनात्मक और कार्यात्मक भूमिकाएं निभाते है।

(5)     जीवन का एक और आधारभूत गुण है — सूचनाओं और जानकारी का मेनेजमेंट। आवक-जावक-विश्लेषण, संग्रहण, छटनी।

(6)     जीवन, समस्त अन्य प्रकार के जीवों से पुराना व नया रिश्ता रखता है, और सभी एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।

(7)     जीवित पदार्थो को अपना स्वरूप तथा कार्य बनाये रखने के लिये उर्जा जरुरी है जो उन्हें सूर्य प्रकाश में फोटो-सिन्थेसिस द्वारा प्राप्त होती है। प्राणी अपने पोषण के लिये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पति जगत पर निर्भर रहते हैं।

जीवन की कहानी “सरल से जटिल” की यात्रा की कहानी है।

आरम्भ में शुद्ध सरलता थी। बिग बैंग के समय Singularity थी। एकात्मता थी। सिर्फ ऊर्जा थी। फिर पदार्थ बनना शुरु हुए। पहले पहले कुछ कण बने, Particles बने, फिर परमाणु, उसके बाद तत्वो के अणु और एक से अधिक तत्वों के जुड़ने से यौगिक।

इस यात्रा में एक विशेष गुण था। अस्थिरता से स्थिरता की दिशा में यात्रा थी। पदार्थों के कण अस्थिर थे। सरल और लघु थे। बनते ही टूटते थे। विखण्डित होते थे। किसी पदार्थ की स्थिरता का क्या पैमाना? टूटने और निरोहित होने के पहले उसकी आयु इननी तो हो कि उसकी कोई पहचान हो तथा उसे नाम मिले। न केवल आयु वरन उसका बाहुल्य इतना हो कि उसे चीन्हा जा सके, वह गुम न रहे। जैसे कि “एवरेस्ट” पहाड़ या “हीरा” नाम का एक कंकर।

या फिर वह पदार्थ भले ही बनता और मिटता रहे लेकिन अपने सामुहिक स्वरूप में वह प्रचुर मात्रा में बार बार अस्तित्व में आता रहे — जैसे कि वर्षा की बूंदे या बादल के टुकड़े या सागर में लहरे, तो उन्हे भी हम “स्थिर पदार्थों की श्रेणी में रख सकते हैं।

हीरे की संरचना तुलनात्मक रूप से सरल है। एक ही तत्व है। कार्बन। उसी के अणु एक खास पैटर्न में जमते जाते है, रवा या Crystal का रूप धारण करते हैं। अनेक दूसरे पदार्थ के अणु विशाल और Complicated /जटिल होते हैं। जैसे कि हमारे रक्त की लाल कोशिकाओं [R.B.C.] में पाया जाने वाला Pigment हीमोग्लोबिन। जो एक स्थिर मालीक्यूल [यौगिक] है। बाहर से देखने पर Thorn bush कटीली झाड़ी सा दिखता है। लेकिन उसके जैसा बेतरतीब नहीं होता। मानव रक्त में प्रवाहित हीमोग्लोबिल के समस्त अरबों-खरबों अणु हुबहु होते हैं, एक ही सांचे में ढलकर आते हैं। प्रति पल करोड़ों की संख्या में बनते हैं और नष्ट भी होते हैं। लेकिन हम कहेंगे कि Hemoglobin एक Stable या स्थिर संरचना है। आज से नहीं, प्राणियों के विकास में करोड़ो वर्ष पूर्व से, इस अणु /यौगिक पदार्पण हो चुका था।

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हीमोग्लोबिन या जीवों में पाये जाने वाले लाखों प्रकार के Stable /स्थिर अणु /यौगिक बहुत बाद में बने।  ब्रह्माण्ड 14 बिलियन वर्ष पूर्व उत्पन्न हुआ था। धरती बनी 4.5 बिलियन वर्ष पहले। जीवन उद्गम 3.5 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ। उसके पहले कौनसे स्थिर। Stable पदार्थ थे? उनकी भी कोई कमी नहीं थी। वे तुलनात्मक रूप से कम जटिल थे, लेकिन यात्रा की दिशा वही थी — अस्थिरता से स्थिरता की ओर। तथा सरलता से जटिलता की ओर। नयी स्पीशीज के विकास का डार्विनियन सिद्धांत “Natural Selection [प्राकृतिक चयन] तो बहुत बाद में लागू होना शुरु हुआ लेकिन “पदार्थों में विकास” में वह पहले से लागू था।

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वैज्ञानिकों ने प्रयोग किये हैं। बड़े बड़े एयर-टाइट जार में गिने चुने तत्व भर दिये, काकटेल-मिक्सर की भांति उसे हिलाते रहे, हिलाते रहे, बीच बीच में गर्म करते रहे, बिजली की चिनगारियां प्रवाहित करती रहे। धीरे-धीरे नये पदार्थ बनने लगते हैं। अधिक स्थिर। अधिक जटिल। क्या “जीव” बन सकता है? इस विधि से तो नहीं। हालांकि अमीनो एसिड बनना देखा गया है। जो अधिक स्थिर और अधिक जटिल प्रोटीन मालीक्यूल की रचनात्मक इकाई हाते है, मानो किसी इमारत की ईटें हों।

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धरती का शैशव काल

300 से 400 करोड़ वर्ष पूर्व धरती पर विशाल सागर हहराते थे। भूमि नही थी। उस प्राथमिक सूप [Primitive Soup] में कौन कौन से कम स्थिर और कम जटिल पदार्थ रहे होगे? शायद H2O (पानी), C02 [कार्बन डाय आक्साइड] CH4 [मीथेन], NH3 [अमोनिया]। हमारे सौर मण्डल के अन्य ग्रहों पर, जहां जीवन नहीं है वहां भी उपरोक्त यौगिक पाये गये हैं। कुछ जटिल यौगिक भी मिले हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मंगल ग्रह (या किसी अन्य ग्रह पर) जीवन है या रहा होगा। वायुमण्डल की गैसों, सूर्य की अल्ट्रावायोलेट किरणों और ज्वालामुखियों की उष्मा ने अनेक महाकाय प्रयोगशालाओं मे अमीनो एसिड और Purines, Pyrimidine [जो DNA की रचना में कमाते हैं] तक जटिल योगिकों का निर्माण सम्भव कर दिया होगा। अब धरती पर प्राकृतिक रुप से ऐसे कार्बनिक यौगिकों का अजीवित विधि से बनना और मिलना सम्भव नहीं है। अब धरती के चप्पे चप्पे पर जीवन है। बेक्टीरिया सर्वव्यापी है जो Organic Matter को हजम कर जाते है या विखण्डित कर देते है। पुरानी धरती पर वे नहीं थे। अधिक स्थिर अधिक जटिल Molecules बनते गये, इकठ्ठा होते गये। लेकिन जीवन वहां नहीं बना। सिर्फ धरती पर ही क्यों बना? कब बना? कैसे बना?

 

Replicators नकलकर्ता

अनेक वर्षो से वैज्ञानिक सोचते रहे कि एक संयोग होता है। कुछ पदार्थ ऐसे बनते हैं जो अपनी कापी खुद बनाते हैं। बनाते नहीं है, अपने आप बनती जाती है। यह एक अत्यन्त दुर्लभ घटना थी। इतनी दुर्लभ कि एक इसान के जीवन के लिये “असम्भव”। लेकिन प्रकृति की रसायन शाला के पास करोड़ो वर्ष थे। यदि आप करोड़ो साल तक जुआ खेलते रहें तो कभी न कभी बड़ी लाटरी या जेकपाट निकल सकता है।  लेकिन अब मानते हैं कि जटिल योगिकों का निर्माण एक सुसंगत प्रकिया थी जिस पर Evolution के नियम लागू होते हैं।

ये Molecule अपनी कापी कैसे बना सकते है?

उनकी कल्पना करिये एक सांचे या ढांचे के रूप में। उस मालीक्यूल की रचना में एक जैसी ईंटे या पत्थर या इकाइ‌यां एक निर्दिष्ट क्रम से संयोगवश जम गये हैं। वे इकाइयां उस सूप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। विभिन्न रासायनिक पदार्थों में एक गुण होता है। अपने जैसे किन्हीं यौगिकों के प्रति आकर्षण या विकर्षण रखना।

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जब जब कोई ईंट का टुकड़ा उक्त बड़े मालीक्यूल की समान धर्मी ईंट के समीप आयेगा। तो चिपक जायेगा। इस तरह एक लड़ी बनती जायेगी जो मूल यौगिक की नकल होगी। रवे या Crystal इसी विधि से बनते हैं। चूंकि ये यौगिक तुलनात्मक रूप से अस्थिर होते है इसलिये बड़े होते होते ये लड़ियां टूटकर छोटी पुत्रियों को जन्म देंगे। प्रक्रिया जारी रहेगी। धीरे-धीरे उस आदिम सूप में ऐसे नकलची मॉलीक्यूल की संख्या बढ़ती जायेगी। इन्हें कहते है REPLICATORS. रेप्लीकेटर्स। प्रतिकृति निर्माता। कापी-कर्ता। हमारी पुराण कथाओं में राक्षस “रक्तबीज” की तरह।

ऐसा भी हो सकता है उक्त Replicator की प्रत्येक इकाई का आकर्षण अपने हमशक्ल हमनवा से होने के बजाय विपरीत-गुण वाले से हो। वैसी स्थिति में जो नई लड़ी बनेगी वह मूल रचना की विषम-धर्मी होगी।

प्राचीन महासागर की Chemistry में धीरे-धीरे जटिलता बढ़ती जा रही थी।

सागर के अलग-अलग कोनों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कापी-कर्ता यौगिकों की विविधता और सांद्रता बढ़ रही होगी। लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। फिर कुछ और दुर्घटनाएं होती है।

नकल में चूकें

नकल में भी अकल में लगती है? नकल में गलती होती है।

मैंने यह आलेख हाथ से लिखा। टाइपिस्ट ने टाइप किया। प्रूफ रीडर ने गलतियां सुधारी। फिर भी कुछ रह जाती है। पुराने जमाने में वेद-पुराण-बाईबिल-कुरान वाचिक परम्परा से आगे आकर लिखित परम्परा में कागजों पर उतारे गये होंगे। प्रिटिंग प्रेस बहुत बाद में आई। पीढ़ी दर पीढ़ी लिख्खाड़ लोग लिखते रहे। गलतियां या परिवर्तन ढेर सारे होते रहे। जमा होते गये। बढ़ते गये। इसीलिये मालूम ही नही पड़ा कि कब हिब्रू बाइबिल की मरियम “युवा स्त्री” से यूनानी बाईबिल में “कुंवारी स्त्री” में अनुदित हो गई। कब  कैसे मनुस्मृति में अनेक क्षेपक जुड़ते गये जो सामाजिक आलोचना के हथियार के रूप में काम में लाये जाते हैं।

Replicators की नकल में होने वाली गलतियों को हम महज “परिवर्तन” मानेंगे। जिनके प्रभाव न अच्छे होते हैं, न बुरे। बड़े यौगिकों की विविधता और सांद्रता और भी अधिक बढ़ती जाती है।

किस वेरायटी के रेप्लीकेटर्स का बाहुल्य अधिक होगा यह तीन बातों पर निर्भर करता है:-

  1. उक्त यौगिक कितना स्थिर है?
  2. 2. उस यौगिक द्वारा कितनी तेजी से स्वयं की कापी बनाई जाती हैं।
  3. उन्क्त यौगिक अपनी कापी बनाते समय कितनी कम गलतियां करता है।

जिन लोगों में स्कूल की बायोलाजिकल कक्षाओं में डार्विन का विकास सिद्धांत पढ़ा है वे जानते होंगे कि नकल में होने वाली गलतियां [नहीं, परिवर्तन बोलो] अन्तत: Natural Variation [प्राकृतिक भिन्नता] की वाहक बनती है जो तदुपरान्त Natural Selection [प्राकृ‌तिक चयन] का आधार होता है।

एक प्राणी के रूप में हमारा अपना “इवॉल्युशन” इन्ही “गलतियों” या “म्यूटेशन्स” के कारण सम्भव हुआ है। “नकल में दखल” के अधिकांश उदाहरण न तो अच्छे है या बुरे। वे निरपेक्ष होते हैं। इवोल्युशन तो बस होता जाता है। उसके पीछे न कोई कर्ता है, न कोई चाहत या Intention.

पुरानी धरती के महासागरों में खदबदाते प्राथमिक सूप में बनने वाले Replicators [नकल-मार] यौगिकों को क्या हम “जीव” या “जीवित” मान सकते हैं? कदापि नहीं। लेकिन वे “जीवन” के “पूर्वज” या “अग्रगामी” जरुर माने जाने चाहिये। या यूं भी कह सकते है कि जीवित माने, या “अजीवित” क्या फर्क पड़ता है?

चार्ल्स डार्विन ने अपनी कालजयी पुस्तक The Origin of Species में “प्राकृतिक भिन्नता” और “प्राकृतिक चयन” के साथ साथ एक और तीसरे पहलू की भूमिका पर प्रकाश डाला था। “प्रतिस्पर्धा”। “काम्पीटीशन”। प्राणियों और पौधों के बीच जिन्दा रहने और अपना कुनबा बढ़‌ाने की होड़। डार्बिन को युवा पृथ्वी के सागर में रासायनिक होड़ के बारें में नहीं मालूम था। लेकिन कितना अद्‌भुत साम्य है दोनों प्रक्रियाओं में।  स्थिर, जटिल Replicators के मध्य प्रतियोगिता थी। सबको अपनी अपनी बड़ी इमारतें बनाने थी। लेकिन सूप में ईटों की संख्या अनन्त से कम थी।

संयोगों की एक श्रृंखला में कुछ ऐसा होता चला जाता है कि कापी कर्ता यौगिक, अपनी जटिलता बढ़ाते बढ़ाते कुछ ऐसी डिजाइन बनाते है कि वे दूसरे प्रतियोगी Compounds के अणुओं का विखण्डन करते हैं। इससे भी आगे बढ़कर जीतने वाले रसायन अपनी संरचना में एक बाहय आवरण (खोल) बनाते है जो कुछ दूसरे प्रकार के के रसायन का होता है। ताकि वे टूटते या तोड़े जाने से बच जायें।

जीवन की प्रस्तावना वाले योगिक

करोड़ों वर्षों की जोड़-तोड़, टूट-फूट, Trial and Error द्वारा कुछ Replicator ऐसे बने जिनकी मूल रचना का नाम बाद में पड़ा Deoxyribonucleic acid [DNA] और बाहरी सुरक्षा झिल्ली बनी प्रोटीन और वसा की परतों वाली। शायद हम इन्हें प्रथम “जीवित कोशिकाएं” मान पायें।  कापीकर्ताओं ने खुद के लिये सूक्ष्म “थैलिया” गढ़‌ना सीख लिया था। इन्हें कहेंगे Survival Machines. [जिन्दा रहने वाले यंत्र]। उन पुराने Replicator molecules के कोई अवशेष नहीं मिलते। उन्हें किसी पुरातात्विक खुदाई में फासिल के रूप में नहीं पाया जा सकता।

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लेकिन वे मिटे नहीं। आज भी मौजूद है। समस्त जीव जगत की काया में। आपके और हमारे शरीरों के अन्दर। Survival Machine के रूप में। उनकी सफलता का शीर्ष प्रमाण है Homo Sapience I अब उन Replicators का नाम हो गया है Genes । इसके आगे की कहानी को कहते हैं, “The Rest is History”.

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आरम्भिक धरती

 
Carbon Hydrogen Nitrogen. Oxygen
H20, H2, NH3. CH4
लघु अणु
Micro molecules
थोड़े बड़े अणु
Macro-molekules
CO a cervates + Microsphere
Pre-Cells, Protocells
पूर्व-कोशिकाएं
बडिंग द्वारा प्रजनन
म्यूटेशन /भिन्नता की संभावना
फर्मेन्टेशन द्वारा ऊर्जा
आक्सीजन के बिना भी जीवन

DNA+ RNA

  प्रथम कोशिकाएं  
बेक्टीरिया या वायरस

माइटोसिस द्वारा विभाजन

प्रोटीन का बनना

 

Anaerobic chemotrophs

ऑक्सीजन विहीन वातावरण में रसायनों पर निर्भर रहने वाले जीव

 

क्लोरिफिल की उत्पप्ति

Anaerobic phototrophs

   
H2O की उपलब्धि- हाइड्रोजन के स्रोत के रुप में

Aerobic photographs ऑक्सीजन युक्त वातावरण में

प्रकाश संश्लेषण करने वाले आरम्भिक पादप

कैसी अद्भुत कहानी है यह। जिसके चार आख्यान है।

 

 

Quantum Physics

 

 

1

 

शून्य या Nothing. से ब्रहमाण्ड का निर्माण
उर्जा का पदार्थ में बदलना। दोनों का आपस में बदलते रहना। दोनों की कुल मात्रा का स्थिर होना। इस विषय की चर्चा मैं अपने मासिक कालम में कर चूका हूँ

[Link: https://mediawala.in/apni-bhasha-apna-vigyan-big-bang-from-zero-to-infinity/

Chemistry

जो कि आज का विषय है।

 

 

2

पदार्थों के जटिल सुसंगठित Orderly Stable, Complex स्वरूपों का विकास होना।
जटिलता बढ़ते बढ़ते एक पायदान ऐसी आना कि उक्त पदार्थों में “जीवन” “Life” के गुण प्रकट होने लगे।
Biology 3 जीवन की जटिलता, विविधता का बढ़ते जाना नयी नयी स्पीशीज बनना, जिनमें हम भी शामिल है और जिसे चार्ल्स डार्विन ने प्रतिपादित किया।
Neuro Science 4 मानव Homo Sapience मस्तिष्क इतना विकसित हो जाना कि वह इतना सब सोच सके, शोध कर सके ताकि हम सब आज यहां इस हाल में बैठकर चर्चा कर सके, मनन कर सके। इस विषय की चर्चा में अपने प्रथम व्याख्यान में कर चुका हूँ —

Link उपलब्ध है — चेतना का न्यूरोविज्ञान [https://neurogyan.com/neuroscience-of-consciousness]

Artificial Intelligence

कृत्रिम जीवन

5 पता नहीं क्या होगा आगे?

जीवन के रसायन

(i)      न्यूक्लियोटाइड्स (Nucleotides) पांच प्रकार के

          Purines  ® Adenine, Guanine

          Pyrimidine ® Cytosine, Uracil, Thymine

(ii)      अमीनो एसिड्स (बीस प्रकार के)

(iii)     DNA (जीन्स) लगभग 20,000.

(iv)    हजारों लाखो प्रकार के प्रोटीन

जीवन की केमिस्ट्री में फीडबैकलूप होते हैं। किसी पदार्थ की मात्रा या सान्द्रता बढ़ने पर उसे बनाने वाले क्रिया महिम पड़ जाती है। ऐसा अजीवित पदार्थों की केमिस्ट्री में नहीं होता। कहने का तात्पर्य यह कि जीवित व अजीवित के रसायनों की न केवल रचनाएं भिन्न होती है, वरन उन्हें संचालित करने वाली क्रियाएं भी भिन्न होती है।

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जीवन की केमिस्ट्री का मूल तत्व है। कार्बन। Organic Chemistry. अकार्बनिक रसायनों से जीवन नहीं बना करता। दूसरी खासियत है Polymers. केमिस्ट्री के मूल में फिजिक्स है। किसी भी रासायनिक प्रक्रिया को समझने के लिये हमें उक्त क्रिया में भाग लेते रसायनों की त्रिआयामी भौतिक संरचना, उन मालीक्यूल में स्थित परमाणुओं के प्रोटोन-न्यूट्रान-इलेक्ट्रान तथा अन्य पार्टीकल्स की भौतिकी समझना होती है। किसी और ग्रह पर जीवन का आधार शायद कोई अन्य प्रकार के रसायन होते होंगे या शायद ये ही होते हो?

 

जीवन की आधारभूत संरचनाएं

उपरोक्त रसायन पूरे शरीर में ऐसे ही गड्ड मड्ड रूप में नहीं भरे रहते। उनके वितरण का एक सिस्टम होता है। एक structure होता है।

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          (a) शरीर की रचनात्मक और कार्यात्मक इकाई कोशिका होती है।

(b) प्रत्येक कोशिका के नाभिक (Nuclease) मे धागे नुमा क्रोमोसोम होते है — मनुष्य में 23 जोड़े अर्थात् 46. इन धागों पर मनके यो मोती के रूप में जीन्स की बड़ी पिरोई रहती है। जीन्स बनती है DNA नामक रसायन की।

(c) कोशिका एक अकेली हो सकती है या हजारों लाखों, करोड़ों, अरबों की संख्या में जुड़कर नाना प्रकार की छोटी बड़ी काया बना सकती है। धरती के किसी भी कोने में यदि जीवन है, छोटा या बड़ा, सरल या जटिल, पुराना विलुप्त या वर्तमान में मौजूद, वनस्पति या प्राणी, स्वजीवी या परजीवी तो उस जीवन में कोशिकाएं होगी, क्रोमोसोम पर जीन होगी और इन सब को बनाने वाले वे रसायन होगे जो ऊपर गिनाए गये। यदि ये नहीं है तो जीवन नहीं है।

(d) उक्त रचनाओं को अतिसूक्ष्म स्तर पर गढ़ने वाले हजारों प्रकार के विशिष्ट रसायन है जिनके बगैर जीवन नहीं गढ़ा जा सकता। जीवन यकायक किसी भगवान द्वारा चमत्कार के रूप नहीं बना। उसके निर्माण और विकास की प्रक्रिया स्वतः अपने आप चली है। अरबों वर्षों से चल रही है। सरलता से जटिलता की ओर की यात्रा है।

प्रत्येक कोशिका का इको-सिस्टम है

एक कोशिका में किसी भी एक क्षण में एक साथ हजारों रासायनिक क्रिया होती रहती है। ये सब आपस में सूक्ष्म Mix-up नहीं होती। मानों हजारों सूक्ष्म सूक्ष्म कोठरियां हो जिनमें भित्र भिन्न अनुष्ठान चल रहे हों। जैसे सहस्त्र चण्डी यज्ञ। ये सब एक दूसरे से परिचित है, सूचना का आदान प्रदान करते हैं, एक दूसरे से सम्बद्ध रहते है और आपस में एक दूसरे को प्रभावित भी करते है फिर भी जुदा जुदा है, कुछ कुछ सीमा तक स्वतंत्र है, स्वायत्र है।

सारा संवाद आपस में मिल कर नाना प्रकार की Ecology या Ecosystem को गढ़ता है। कोशिका के अन्दर का Ecosystem /एक अंग या टिशु (जैसे कि लिवर या ब्रेन) की करोड़ों कोशिकाओं का इकोसिस्टम भी ऐसा ही होता है। फिजिक्स में शुरु होकर केमिस्ट्री आती है। नियम और प्रक्रियाएं आती है। संरचनाएं आती है। सूचना तंत्र विकसित होता है।

अजीवित पदार्थों में भी Physics, Chemistry, Ecology होती है लेकिन अकार्बनिक किस्म की, तुलनात्मक रूप से अत्यन्त सरल और उनमें सतत प्रवाहमान डायनामिक सूचना तंत्र नहीं होता। यदि होता भी है तो फीडबेक नहीं होते तथा Feedback के आधार पर परिवर्तन नहीं होते।

        जीवित और आजिवित के मध्य एक सटीक लक्ष्मण रेखा खींचना सम्भव नहीं है।

जीवन की सूक्ष्मता की दिशा में हम कहां तक आगे जा सकते हैं? 17 शताब्दी में ल्यूहेनहाक ने अपने नये नये माइक्रोस्कोप में बारिश के पानी की एक बूंद के भीतर झांका और दंग रह गया। पहली बार सूक्ष्म जीवियों के दर्शन हो रहे थे। जीवन का एक नया संसार उजागर हो रहा था। नाम रखा Animalcules । ये बेक्टीरिया थे।

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दो शताब्दी बाद वायरस की खोज हुई। और भी अधिक सूक्ष्म। महज DNA या RNA का एक अणु और उसे ढकने वाला प्रोटीन का एक खोल। विभाजन, प्रजनन, म्यूटेशन, भिन्नीकरण, प्राकृतिक चयन जैसी डार्विनियन प्रक्रियाएं इन पर भी लागू होती है। लेकिन स्वतंत्र अस्तित्व नहीं। किसी अन्य कोशिका के अन्दर घुसकर उसकी मशीनरी को हाइजैक करके खुद की कापियां बनाते जाता और मेजबान कोशिकाओं का मरते जाना, वायरस द्वारा पड़ोस की जिन्दा कोशिकाओ मैं घुसते जाना।

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 “वायरस” जीवित माने या अजीवित? ऐसा प्रतीत होता है कि वे एक कोशीय जीव है, बैक्टीरिया जैसे। उनके अन्दर बार बार विभाजित होने वाला DNA /RNA होता है, वे अपनी कापी ब‌नाते है, उनकी पीढ़ियां चलती है। उनके जीनोम में म्यूटेशन होते है। प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया द्वारा वायरस का Evolution होता है। लेकिन वायरस का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। उन्हें किसी जीव की कोशिकाओं के अन्दर रहना होता है। 100% परजीवी। मेजबान कोशिका की मशीनरी को हाइजैक कर के खुद की कापी बनाते जाते है, पड़ौस और दूर की कोशिकाओं में घुसते जाते है। अत: इन्हें “जीवन” नहीं माने क्या? इसकी विपरीत दिशा में तर्क हैं — थोड़ा बहुत परजीवीपना तो लगभग सभी प्राणियों में होता है। किसी मे कम, किसी में ज्यादा। जहां में ऐसा है कौन है जिसे सहारा न मिला।

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वायरस से भी छोटे होते है Viroids — एक गोलाकार RNA मालीक्यूल जिसके बाहर प्रोटीन का खोल नहीं होता। आलू की फसल की बीमारी के रूप में इन्हें पहली बार पहचाना गया था। अब सैकड़ों वेरायटी की पहचान हो चुकी है।

वायरस से भी एक पायदान नीचे PRION होते हैं।  Protenaceous Infective Particle । इनमें DNA या RNA नहीं होता। प्रियान सिर्फ प्रोटीन होते हैं। सामान्य स्वस्थ प्रोटीन में से कभी कभी किसी मालीक्यूल की त्रिआयामी संरचना में गड़बड़ी आ जाती है। इस MIS-Folding कहते है।

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तहें ऐसी लगनी थी, लेकिन वैसी लग गई। प्रियान बड़े तेज कापीकर्ता होते हैं। REPLICATORS । मेजबान की कोशिकाओं के अन्दर, न जाने क्यों, न जाने कैसे, न जाने कब किसी प्रोटीन के किसी अणु की डिजाइन में गलत फ़ोल्डिंग हो जाती है। फिर शुरू होता है कापी बनाने का कारखाना। देखते ही देखते खोटे सिक्के, अच्छे सिक्कों को चलन बाहर कर देते हैं कोशिकाएं मरने लगती है। उन्हें धारण करने वाले अंग क्षय होने लगते है।

खैरियत है कि ऐसा बहुत कम होता है। ये प्रियान कण एक प्राणी से दूसरे प्राणी के शरीर में प्रवेश कर जावें तो उसे भी संक्रामित कर देते हैं। बहुत थोड़े से मामलों में माता-पिता से संतानों में जिनेटिकली अनन्तरित होते हैं।

क्या Prion को जीवन की श्रेणी में रखें? कोई भी वैज्ञानिक इन्हें जीवित नहीं मानते।

तालिका: प्रियान पार्टिकल्स के कारण कुछ रोग

रोग का नाम
मानव प्रियान रोग:

क्रूट्जफेल्ड-जैकब रोग (Creutzfeldt-Jakob Disease)

जेर्स्टमैन-स्ट्रॉइसलर-स्की रोग (Gerstmann-Sträussler-Scheinker Disease)

फैटल फैमिलियल इंसोम्निया (Fatal Familial Insomnia)

वैरियंट क्रूट्जफेल्ड-जैकब रोग (Variant Creutzfeldt-Jakob Disease) (Mad Cow Disease)

पशु प्रियान रोग:

बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (Bovine Spongiform Encephalopathy)

स्क्रैपी (Scrapie)

चिंकी रोग (Chronic Wasting Disease)

क्या हम इन्हें जीवित पदार्थ की श्रेणी में रखेंगे? कदापि नहीं।

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कहने का मतलब यह कि अजीवित से जीवित की यात्रा में कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है वरन एक इन्द्रधनुष है। वायराइड्स, प्रियान प्रोटीन और वायरस इस इन्द्र‌धनुष के अंग हैं।

अजीवित और अजीवित की सीमा रेखा पर से दो और प्रश्न? —

(1) गर्भ में पल रहे शिशु को कितने दिन या सप्ताह की उम्र के बाद “जीवन” मानना चाहिये? क्या प्रथम दिन से। लगभग सभी लोग कहेंगे हाँ। फिर गर्भपात को कानूनी मान्यता क्यों प्राप्त है? क्या यह मर्डर नहीं है?

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(2) मधुमक्खीयों की कालोनी में एक सामाजिक ताना बाना होता है। एक रानी मक्खी होती है। पुरुष लिंग के ‘ड्रोन’ होते हैं। और सबसे अधिक संख्या में नपुंसक मजदूर या Worker मक्खियां होती है जो प्रजनन करके अपनी जीन्‌स को आगे नहीं बढ़ा सकते। क्या हम उन्हें जीवित नहीं मानेंगे? जरूर मानेंगे।

Honey-Bee Colony Hierarchy.

The worker Bees do not reproduce. Yet they are alive.

Reproductive division of labor—

  1. Queen (reproductive female),
  2. Workers (non-reproductive females),
  3. Drones (males).

Each caste has a clearly defined role that is not performed by any other caste.

Cooperative brood care— Workers care for the queen’s offspring.

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          क्या मनुष्य को कृत्रिम जीवन बनाना चाहिये। यह ख़तरनाक हो सकता है।

रोबोट में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस द्वारा मनुष्य जैसी चेतना स्थापित हो पाने की सम्भावना से आज अनेक विचारक उत्तेजित हैं तो कुछ बेहद डरे हुए हैं। इस बात की सम्भावनाएं या आशंकाएँ बढ़‌ती जा रही है कि आगामी कुछ दशकों में वैज्ञानिक लोग अपनी प्रयोगशालाओं में कृत्रिम जीवन [Artificial or synthetic life] गढ़ने में सफल हो जावें।

Substrate of life?       Wet or Dry OR Substrate Agnostic

जीवन का पदार्थ गीला या सूखा हो क्या फर्क पड़ता है? कार्बन हो या सिलिकान?

जीवन पदार्थनिरपेक्ष हो सकता है। इसकी शुरुआत Mirror molecules से हो चुकी है। दर्पण-अणु। किसी अणु की ऐसी कापी जो मानों दर्पण में दिखती है। या जैसे कि हमारा दायां और बांया अंग एक दूसरे की लगभग हुबहु नकल होते हैं।

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केमिस्ट्री पढ़‌ने वाले छात्र जानते है Chiral Molecules के बारे में। कुछ Right handed डिजाइन के होते है तो कुछ left handed design के। मानों गणेश जी की सूंढ दायी दिशा में मुड़ी हुई है या बायीं दिशा में। अधिकांश DNA दक्षिण हस्त (Right handed) मुद्रा में फोल्डेड होता है। अधिकांश प्रोटीन वाम हस्त [left-handed] मुद्रा में। आज से करोड़ों वर्ष पूर्व एक कोशीय जीवों [जैसे बैक्टीरिया] के आविर्भाव के समय से उनकी केमिस्ट्री ऐसी ही चली आ रही है। पता नहीं Evolution की दृष्टि से उसका क्या उपयोग रहा होगा।

अब वैज्ञानिक DNA, और Protein तथा अन्य अणुओं के विपरीत Chiral दिशा वाली Mirror Copies बना पा रहे है। धीरे-धीरे वे शायद पूरी कोशिका की कृत्रिम दर्पण कापी प्रयोगशाला में बना पायेंगे। जीवन की परिभाषा क्या उन पर लागू होगी? क्या इस दिशा में आगे बढ़‌ना चाहिये? सभी वैज्ञानिक इसके खतरों में परेशान है। कौन जाने चीन वाले अपनी Wuhan lab में ऐसा कुछ कर रहे हों। इनका इन्फेक्शन यदि लीक हो गया या कर दिया गया तो कोरोना महामारी उसकी आगे पिद्दी लगेगी।

प्रयोगशाला में Artificial life (कृत्रिम जीवन) बनाये जाने का विचार आमतौर पर लोगों को अच्छा नही लगता है। हालांकि कृत्रिम बुद्धि [Artificial Intelligence] से उन्हें परेशानी नहीं होती। A.I. प्रणालियां बहुत तेजी से अद्‌भुत चमत्कारी प्रगति कर रही है। इस मशीन में इन्सान जैसी सोच है। क्या उसमें मानव जैसी चेतना भी है? क्या हम उसे जीवित /Living माने?

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कंप्यूटर वैज्ञानिक एलन ट्‌यूरिंग ने 1950 के दशक में एक परीक्षण विकसित किया जिसमें कम्प्यूटर और मानव से प्रश्न पूछे जाते है। एक तीसरा निष्पक्ष निर्णायक फैसला करता है कि कौनसा उत्तर मशीन ने दिया होगा और कौनसा इन्सान ने। यदि दोनों की बुद्धिमत्ता में अन्तर न मिले तो मानते हैं कि मशीन ने ट्‌यूरिंग टेस्ट पास कर लिया। A.I. अभी तक इसे 100% दर से पास नहीं कर पाया है। इस परीक्षण के लिये अत्यन्त मौलिक, जटिल, कठिन प्रश्न बनाने पड़ते हैं। अब कसौटियां बदल गयी है। कृत्रिम बुद्धि को मनुष्य के समकक्ष तब माना जायेगा जब वह नयी मौलिक वैज्ञानिक खोजें करके बतायें।

बायोलॉजी में फ़िजिक्स वालों का दखल

फिजिक्स वाले बायोलाजी को हेय दृष्टि से देखते है। उनके अनुसार भौतिक शास्त्र के मुद्दे अधिक गहन गम्भीर व उपयोगी होते हैं। लेकिन जब वे बायोलाजी पढ़‌ना शुरू करते हैं तो गजब ढाते हैं। प्रसिद्ध Astrologist कार्ल सागन की पुस्तक Dragons of Eden तथा Broca’s Brain जो न्यूरोलाजिकल विषयों से सम्बन्धित थी, पढ़कर मैं दंग रह गया था। Erwing Schrodinger शायद पहले. भौतिक शास्त्री ने जिन्होंने 1943 में पुस्तक लिखी थी।

इस व्याख्यान और निबन्ध की तैयारी में मैने अनेक Podcast, YouTube, Interviews सुने देखे, लेख पढ़े। उनमें से एक था Sean Caroll और Michael Wong के बीच।

जटिल विकासमान प्रणालियां

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माइकेल वांग एक Astro-biologist है। अंतरिक्ष में अन्य ग्रहों और पिण्डों की बायोलाजी का अध्धयन। अभी कौन पहुंचा है वहाँ? क्या सेम्पल मिले है? क्या उनमें जीवन के सबूत है? यदि यहां जीवन होगा तो क्या धरती जैसा ही होगा? या अलग तरह का होगा? क्या वहां की chemistry भिन्न होगी? क्या वहां के नियम प्रथक होंगे। किसी पदार्थ में जीवन है या नहीं इसका निर्णय लेने की कसौटियां क्या होगी?

माइकेल वांग बात करते है Complex Evolving Systems की।

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ऐसी प्रणालियां, पदार्थ, Ecology आदि जो स्वतः विकसित होती है। इन प्रणालियों की संरचना या structure जटिल से जटिलतर होता जाता है। इनमें सूचनाएं या Information भरती रहती है और विकासमान systems की अगली पायदानों तक अग्रेषित होती है। इनकी रचना की परतों में विकासशील परिवर्तनों का इतिहास पढ़ा जा सकता है। Evolving Systems के Function या कार्य भी विकसित होते हैं।

जीवन की स्पीशीज भी Evolving System का उदाहरण है जिसके नियमों की व्याख्या चार्लस डार्विन कर चुके थे। म्यूटेशन, नकता में गलतियां और परिवर्तन, Variation (भिन्नताएं), Selection (चयन) Survival जिन्दा रहना, बने रहना Persistence), Function (कार्य) Adapting to changing environment (बदलते वातावरण या Ecology के साथ अनुकूलन) Competition (प्रतिस्पर्धा)।

हुबहू ऐसी ही प्रक्रिया A-Biotic Systems के विकास पर भी लागू होती है। अज़ीवित प्रणालियां। इस प्रक्रिया के नियमों और समीकरणों को गणितीय भाषा में परिभाषित किया जा रहा है।

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विकासमान प्रणालियों [Evolving Systems] के मुख्य गुण

Complexification

Diversification

Patterning

Many Components

Many Configuration

Function

Selection

Autocatalysis

Positive feedback

Negative feedback

Persistence

Purpose

जटिलतर होना

भिन्नीकरण

पैटर्न या डिजाइन का होना

अनेक अवयव

अनेक कुण्ड‌लिया

कार्य

चयन

स्वउत्प्रेरकता

धनात्मक प्रतिपुष्टि

ऋणा‌त्मक प्रति पुष्टि

बने रहना स्थायित्व

उद्देश्य

जीवन के प्रादु‌र्भाव के तीन मार्ग

Genetics First

Primordial soap –

The ocean surface water exposed to sunroof

Function First Metabolism First

Hydro thermal

vents in deep

sea/ocean floor

समीकरण /फार्मूला

निम्न संख्या जितनी कम होगी उस प्रणाली की Functional Information उतनी ही अधिक होगी। जो Evoluting System में बढती जाती है।

कार्यात्मक सूचना की गणना = प्रणाली के स्वरूप का अंश जो किसी कार्य को सम्पादित करता है
प्रणाली का संपूर्ण स्वरूप
­
Negative log base 2 of the above
Functional Information Content of a System = The part of the system which conducts a function
To total size of the system
­
Negative log base 2 of the above

मेरे लिये एक और स्त्रोत रहा सारा वाकर के दो इन्टरव्यू — सैम हैरिस और डेविड ईगलमेन के साथ।

सारा की एक पुस्तक आई है- Life as no one knows it” The physics of life’s Emergence

समुच्चय सिद्धांत – Assembly Theory

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सारा एरिजोना यूनिवर्सिटी में एक सैद्धानिक भौतिक विद [Theoretical Physicist] और खगोल-जीव-वैज्ञानिक [Astro-biologist] है।

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सारा वाकर ने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया है —

Assembly Theory- समुच्चय सिद्धांत

Mass spectrometry (MS) analyzes molecules by measuring their mass-to-charge ratio, enabling identification and quantification of molecules in complexixtures, including proteins and other biomolecules.

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यह सिद्धांत पदार्थों पर तथा उन्हें गढ़ने वाले molecules लागू होता है। Mass spectrometer जैसे जाने पहचाने यंत्रों की मदद से उक्त पदार्थ में मौजूद विभिन्न अणुओं की जटिलता /Complexity को नापते है। उससे गणना होती है कि उक्त पदार्थ को बनाने में कितनी स्टेप्स लगी होंगी। या काल की गणना स्टेप्स या पदों की संख्या से करी जाती है।

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Lego नामक खिलौने से ताजमहल का माडल बनाने में जितनी स्टेप्स लगी होंगी वह उस रचना का Assembly Index कहलायेगा। किसी पदार्थ में ऐसे कितने सूक्ष्म ताजमहल है इसे कहते है Copy Number. कापी नम्बर और समुच्चय प्राप्तांक से मिल कर बना Assembly अंक।

          विभिन्न प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि जीवित पदार्थों में पाए जाने वाले अणुओं का Assembly नम्बर 15 या उससे अधिक तथा अजीवित पदार्थों में पाये जाने वाले अणुओं का असेम्बली नम्बर 13 या उससे कम पाया गया। इस सिद्धांत की मदद से अन्य ग्रहों से प्राप्त मिट्टी का परीक्षण करके अनुमान लगाया जा सकेगा कि वहां जीवन कभी रहा या नहीं।

इन जटिल यौगिकों के निर्माण में डार्विन के विकासवाद जैसी प्रक्रियाएं कार्यरत होती हैं। Complex Matter संयोग वश नहीं बनता। समुच्चय सिद्धांत Pre Biotic (जीवन के पहले) Biotic (जीवन) तथा Post-Biotic (जीवन के बाद) की निर्मितियों पर लागु होता है। Post-Biotic संरचनाए जैसे कि भाषा, शहर, Memes, पर भी डार्विनियन सिद्धांत और Assembly Theory लागू होते हैं।

एस्ट्रोबायोलॉजी

जब हम जीवन की चर्चा करते हैं तो हमारा ध्यान स्वाभाविक ही हमारी धरती पर जीवन पर रहता है। हालांकि सम्भव है कि पूरे ब्रम्हाण्ड के अरबों खरबों तारों में कुछ अरब ग्रह शायद पृथ्वी जैसे हों जिन पर ‘जीवन’ पनपा हो। क्या उस जीवन के गुण भिन्न होंगे? क्या उनका धरती जैसा होना जरुरी है?

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अंतरिक्ष में किसी भी पिण्ड पर जीवन हो सकने के सम्भावना पर Goldilock Principle लागू होना चाहिये। प्रसिद्ध Fairy Tale है एक नन्ही लड़‌की की जो जंगल में भटक कर एक भालू परिवार के घर में घुस कर अपने लायक टेबल, क्राकरी, बिस्तर पाती है।

ब्रम्हांड में जीवित के तलाश के लिये हमारा अपना सोलर सिस्टम अच्छी तरह से खंगाला चुका है। किसी अन्य ग्रह पर उम्मीद नहीं है। दूसरे सूर्यों (अर्थात् तारों) की परिक्रमा लगाने वाले ग्रहों की खोज जारी है। जेम्स वेब टेलीस्कोप जैसी शक्तिशाली मशीनों की मदद से बड़ी तेजी से नये नये बाह्य ग्रहों [Exo-planets] के बारे में जानकारी बढ़ती जा रही है। अभी तक 6000 हो चुके है और गिनती जारी है। इनमें से कुछ तो अपनी धरती जैसे होंगे। हो सकता है कि इन ग्रहों के अपने खुद के चन्द्रमा (उपग्रह) हों। उन सब में से कुछ पर जीवन होना चाहिये। जीवन? कैसा होगा वह, क्या वह धरती के जीवन की परिभाषाए पूरी करेगा? क्या उसकी फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलाजी धरती पर जीवन जैसी होगी? Assembly theory की समीकरणें शायद इन Exo-planets पर लागू हो पायें? वह जीवन धरती की तुलना में कम विकसित होगा या अधिक?

ALIENS IMAGINATIONS

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एलिएन्स (Aliens) की कल्पना हम अपने रूप से मिलती जुलती ही क्यों करते है? है किसी के मन में कोई भौतिक कल्पना? कुछ एक्सो प्लेनेट्‌स के कुछ चाँद विशालकाय है, उनमें उर्जा के स्त्रोत अन्तर्निहित है, उन्हें अपने तारे (सूर्य) से उर्जा की जरूरत शायद न हो।

ऐसे बाह्य ग्रह [Exo-planets) हमसे हजारों लाखों प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। उन तक हमारा पहुंचना या उनका हम तक भौतिक रूप से पहुंचना असम्भव सा है। आने जाने विकिरणों और प्रकाश तरंगों को capture करके ही कुछ अनुमान लगाये जा सकते है।

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Nature magazine reported that analysis of samples from the asteroid Bennu, collected by NASA’s OSIRIS-REx mission, revealed a wealth of organic molecules, including key building blocks of life, suggesting asteroids could have seeded Earth with the raw ingredients for life

अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था NASA का राकेट अपने सौर मण्डल में परिक्रमा लगाने वाले एस्टीराइड (छुद्रग्रह) के समूह में से एक की मिट्टी का सेम्पल वर्ष 2023 में धरती तक लाया। उसके नमूनों का गहन रासायनिक विश्लेषण विभिन्न देशों की अनेक अग्रणी प्रयोगशालाओं में किया गया। चौंका देने वाली खोजें हुई हैं। शोध पत्रिका Nature के 29 जनवरी 2025 के अंक में बताया गया कि धरती ग्रह बनने से भी पहले सौरमण्डल के आरम्भिक दिनों में गैस और ठोस पदार्थ की अनेक रचनाओं में बर्फ, पानी, नमक के साथ कार्बनिक यौगिक और कार्बन डाय आक्साईड, मीथेन, फार्मल्डीहाईड अमोनिया आदि बनने लगे थे।

बायोलाजिकल रसायनों के बनाने हेतु आरम्भिक अवयव सुदूर सौरमण्डल के बेहद ठन्डे भागों में उपलब्ध होने लगे होंगे। उन्हें उचित वातावरण की प्रतीक्षा रही होगी। जो अनेक करोड़ों वर्षों बाद धरती ग्रह पर उपलब्ध हुआ होगा।

बड़े ग्रहों की तुलना में एस्टीराइड एक ढेले समान है। जो अच्छा ही है क्योंकि उसकी फिजिक्स और केमिस्ट्री में उतने परिवर्तन नहीं होते। सोलर सिस्टम के इतिहास की किताब के आरम्भिक अध्याय उसी की मिट्टी में लिखे हुए हैं। अनेक मिनरल भी मिले है। केल्साइट, हेलाइट, सिल्वाइट। जो वाष्पीकृत होते है, फिर द्रवित होते हैं, नमकीन डबरे बनाते हैं। छुट्‌ग्रहों के उदर में तापमान गरम होता है। पानी के रहने की सीरत बनती है।

इतिहास, पुराण, रिलीजन्स, हिन्दू धर्मं

यूनानी दार्शनिक प्लेटो, अरस्तु ने Anima की बात करी जो वेंदात में ‘आत्मन’ और ‘प्राण’ कहलाई। Empedocles ने 4 तत्व शक्तियाँ बताई [भूमि-वायु-जल-अग्नि] जिनके उचित सम्मिश्रण-संयोग से जीवन बनता है। Epicures ने परमाणुओं के योग की बात करी। वह योग यदि विखण्डित हो जावें तो मृत्यु होती है।

मेरी शैली के उपन्यास फ्रैंक्कीस्टाइन में वैज्ञानिक विक्टर मृत देहों में जीवन फूंकता है।

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यहू‌दी पुराण कथाओं में गोलम मिट्टी का पुतला है —उसके सिर पर यदि कोई कुछ इबारत लिख दें तो वह प्राणवान हो जाता है। लिखे को मिटा दो तो फिर सिर्फ पुतला। हिन्दू दर्शन में ‘जीव’ के दो अंग है —

— शरीर (भौतिक)

— सूक्ष्म शरीर        —      जिसके तीन अंग है —

                                       मानस (Mind)

                                       बुद्धि (Intellect)

                                       अंहकार (Igo – the self)

                                       चित्त (Consciousness)

जीव परमात्मा का एक लघु अंश है। परमात्मा सर्वोच्च सत्ता है। एक सागर के साथ समान। जीव एक बूंद है। जब जीव अपने सत्य स्वरूप को पहचान कर, उसे परमात्मा के रूप मे स्वीकार करता है, तो मोक्ष को प्राप्त होता है।

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स्टीफेन हाकिंग के [असीमता प्रस्ताव] No Boundary Proposal तथा वेदान्त+उपनिषद फिलोसफी में साम्य

स्टीफेन हाकिंग के अनुसार ब्रहमाण्ड की कोई Boundary या सीमा नहीं है। ब्रहमाण्ड का अस्तित्व अनादि और अनन्त है। ब्रम्हाण्ड के चार आयाम है— लम्बाई´चौड़ाई´ऊंचाई´समय

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क्वांटम उथलपुथल

भौतिक शास्त्र के अनुसार Particle तथा [कण] तथा Anti-Particle [प्रति कण] का उद्‌गम शून्य में से सम्भव है। इन्हीं उथल पुथल के चलते ब्रह्माण्ड की सृष्टि हुई।  वेदान्त और उपनिषद् में भी मिलते जुलते विचार है।

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  1. ब्राम्हण: अनादि ब्रम्हाण्ड

                             मनुष्य की समझ और कल्पत्य से परे ‘[नेति’ ‘नेति’] [यह भी नहीं। यह भी नहीं]

                             या ऋगवेद का नासदीय सूक्त कोई नहीं जानता कि सृष्टि के आरम्भ में क्या था।

  1. शून्यता: Nothing Ness
  2. माया: Illusion — क्वान्टम उथलपुथल
  3. सृष्टि: Creation
  स्टीफेन हाकिंग के सिद्धान्त वेदान्त
Mechanism

[कार्य विधि] –

quantum fluctuations

क्वान्टम उथल पुथल

ब्राम्हण + माया
Purpose /उद्देश्य ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति की विधि को समझना मूल सत्य और अस्तित्व का समझना
विधि वैज्ञानिक अवलोकन प्रमाण, प्रयोग, Data चिंतन, मनन कल्पना, तर्क, मीमांसा

मृत्यु क्या है? Second Law of Thermo-dynamics ताप भौतिकी का दूसरा नियम

हिंदू धर्म और अन्य कई संस्कृतियों में, मृत्यु को जीवन के चक्र का एक हिस्सा माना जाता है। इस दृष्टिकोण से, मृत्यु को एक अंत नहीं बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। यह विचार ताप-यांत्रिकी के दूसरे नियम (ऊर्जा के संरक्षण) और एंट्रॉपी की अवधारणा से जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह ऊर्जा के एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन को दर्शाता है।

ऊर्जा के संरक्षण के प्रथम नियम के अनुसार, ऊर्जा न तो बनाई जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है, केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित की जा सकती है। इस दृष्टिकोण से, मृत्यु को ऊर्जा के एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है। जब हम मरते हैं, तो हमारे शरीर में मौजूद ऊर्जा अन्य रूपों में परिवर्तित हो जाती है, जैसे कि गर्मी, प्रकाश, या अन्य प्रकार की ऊर्जा।

Entropy एंट्रोपी [प्रवृति]

एंट्रॉपी की अवधारणा के अनुसार, जब ऊर्जा एक प्रणाली से दूसरी प्रणाली में स्थानांतरित होती है, तो एंट्रॉपी में वृद्धि होती है। मृत्यु के संदर्भ में, यह एंट्रॉपी में वृद्धि का एक उदाहरण हो सकता है। जब हम मरते हैं, तो हमारे शरीर में मौजूद ऊर्जा और संगठन एंट्रॉपी में वृद्धि के कारण नष्ट हो जाते हैं।

किसी भी प्रक्रिया में ऊर्जा की कुल मात्रा स्थिर रहती है, कि लेकिन कुछ क्षरण होने से उर्जा की गुणवत्ता और उपयोगिता कम होती जाती है।

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Entropy, a measure of disorder, plays a significant role in understanding life and death, as the universe naturally tends toward a state of maximum entropy, while life, in a way, fights against this trend by maintaining order, ultimately leading to death as the ultimate state of maximum disorder.

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एन्ट्रॉपी का संतुलन: कहीं कम तो कहीं ज्यादा

  • The food inside resists disintegration.
  • Maintains low entropy.
  • The balance is maintained by increased entropy outside the fridge while the compressor throws heat outside.

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आरंभिक उम्र के साथ ORDERLINESS का बढ़ना और  एन्ट्रॉपी अर्थात disorder का घटना।  बाद की उम्र मे इस प्रक्रिया का उलट जाना DEATH IS THE ULTIMATE INCREASE IN ENTROPY OF A BODY

ऊर्जा की व्यवहारिकता या उपयोगिता लगातार घटती है। Order से Disorder कीदिशा में विखण्डन होता रहता है। Entropy बढ़ती रहती है। कोई भी सुसंगठित जटिल प्रणाली के बनने में और बनाये रखने में ऊर्जा लगती है। प्रत्येक सुसंगठित जटिल प्रणाली की प्रकृति में निहित है कि वह विखण्डित होती है। Order से Disorder की दिशा में। मृत्यु इसी विखण्डन की परिणिति है।

आध्यात्म और विज्ञान

“कण-कण में भगवान” एक प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक विचार है, जिसका अर्थ है कि भगवान या ईश्वर हर एक कण में विद्यमान है। यह विचार हिंदू धर्म के कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है,

ईशा उपनिषद: “ईशावास्यं इदं सर्वं यत्किंचित् जगत्सनाथम्”

यह विचार दर्शाता है कि भगवान या ईश्वर हर एक कण में विद्यमान है, चाहे वह जीवित हो या निर्जीव। यह विचार हमें यह समझने में मदद करता है कि हमें हर एक चीज़ का सम्मान और पूजा करनी चाहिए।

जीवित और अजीवित मध्य गहरी खाई के बजाय निरन्तरता की अवधारण दार्शनिक, जीव-वैज्ञानिक और इकोलाजी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

दर्शनशास्त्र में चर्चा होती है– *Holism — पूर्ण महज अंशों का जोड़ नहीं है, वरन उससे कहीं अधिक है।

*Pan psychism — यह विचार कि चेतना तथा मानस के अन्य गुण अजीविक पदार्थ में भी मौजूद रहते है।

बायोलाजी में चर्चा होती है– *Emergent Properties — जटिल प्रणालियों में कुछ ऐसे गुण प्रगट हो जाते है जो उन्हें बनाने वाले अंशों में नहीं होते। *Systems Priology. *Ecological Interconnectedness- जीवित प्राणी एक वृहत्त Ecology का अंग होते है जिसमें तथाकथित अजीवित अवयवों के सहयोग के बगैर जीवन सम्भव नहीं।उपरोक्त प्रकार का सोच मानव जाति को प्रेरित करता है हमारे कार्यकलापों से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिये।

आस्था और विज्ञान

मैं आस्थावान नहीं हूँ?, I am not a believer लेकिन एक सांस्कृतिक हिन्दु होने के नाते मुझे गर्व है भारतीय मनीषा पर।

Abrahamic Faith की सोच Linear थी। God ने लगभग 6000 वर्ष पूर्व, एक सप्ताह में एक चपटी धरती और जीव जन्तु बनाये। अब जब उसकी मर्जी होगी कयामत लायेगा। Apocalypse ।

भारतीय दर्शन में जीवित अजीवित समस्त पदार्थों में चेतना मानी गई, उसे ब्रह‌माण्डीय चेतना का अंश माना गया। उसकी चक्रीय या Cyclical प्रवृत्ति पर जोर दिया गया।

सरलता से जटिलता की ओर, अस्थिरता से स्थिरता की ओर, अल्प या न्यून से बहुलता की ओर

इस यात्रा ने 2nd Law of Thermodynamics और Entropy के विरुद्ध गति बनाई क्योंकि उसे सूर्य से उर्जा मिलती रही। लेकिन अन्ततः Entropy को हावी होना ही है।

जो बना है उसे टूटना ही है। फिर नया बनेगा।

मैं प्रणाम करता हूँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश को।

ब्रह्मा जो प्रतीक है सृजन के। Creation के।

विष्णु जो प्रतीक है संधारण के। Maintenance के।

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महेश जो प्रतीक है — संहार के। समेटने के ताकि पुनः निर्माण हो सके। संहार का अर्थ Destruction नही है। वरन पुराने के स्थान पर नये के सृजन हेतु मार्ग प्रशस्थ करना है। मैं पुनर्जन्म को उसके गूढ़ अर्थ में नहीं मानता लेकिन सूक्ष्म अर्थ में जरूर मानता हूँ कि मेरी काया का एक एक अणु परमाणु किन्ही न किन्हीं आजीवित और जीवित पदार्थों में जरूर समाहित होता रहेगा। हम भाग्यशाली हैं कि हमें बुद्धिमान मनुष्य का जीवन मिला है। इसका एक एक क्षण एक नियामत है। भरपुर जियो। परमार्थ में आनन्द पाओ। सृजन में आनन्द पाओ। शोध में आनन्द पाओ। ज्ञान में आनन्द पाओ।  इस सबके लिये किसी कर्ता की जरूरत नहीं है। कोई Agent नहीं चाहिये। न कोई पैगम्बर या मसीहा या अवतार चाहिये। There is no need for an intelligent designer

यह सब तो नियमानुसार अपने आप घटित हो रहा है। जीवन की इस समझ में एक भव्यता है।

There is grandeur in this view of life.

ईश्वर के बगैर यह सब सम्भव है ऐसा सोच कर, ऐसा कल्पित करके मुझे प्रतिदिन Goosebumps होते है, रौंगटे खड़े होते है, मैं Ecstasy में डूब जाता हूँ। हर्षातिरेक में डूब जाता हूँ। मुझे और कुछ क्या चाहिये? केवल ज्ञान। ज्ञान जो मुक्ति देता है। ज्ञान जो हमें अच्छे बुरे Moral Immoral नैतिक-अनैतिक का न्याय बताता है।

We don’t need any commandments. Sam Harris की पुस्तक Moral Landscape में समझाया गया है कि Morality के लिये Religion और God की जरूरत नहीं है।

There is grandeur in the scientific view of life.

जीवन के बारे में वैज्ञानिक सोच में भव्यता है

मैं चार्ल्स डार्विन को उद्दत करना चाहूँगा —

Whilst this planet has gone cycling on according to the fixed law of gravity, from so simple a beginning endless forms most beautiful and most wonderful have been, and are being, evolved.” There is grandeur in this view of life.

आज चार्लस डार्विन होते तो क्या कहते? उन्हीं की पक्तियो को Paraphrase कर रहा हूँ

(1) About Abiotic evolution –

जबकि करोड़ो – अरबों वर्षों से, गुरुत्वाकर्षण के शाश्वत नियम से बंध कर धरती घुमे जा रही है, कितनी सरल रचनाओं से शुरू होकर कैसे कैसे बड़े और जटिल मालीक्यूल बनते रहे और उनका चयन स्वतः होता रहा। भौतिकी और रसायन विज्ञान की इस सोच में भव्यता है।

(2) About human consciousness चेतना, बुद्धि –

जबकि करोड़ो अरबो वर्षों से गुरुत्वाकर्षण के शाश्वत नियम से बंधकर धरती घूमे जा रही है, मानव और उसके पूर्वजों का मस्तिष्क कैसी अद्‌भुत चेतना और बुद्धि का विकास स्वतः करता रहा कि आज सुधिजन उसी बुद्धि के बारे में दार्शनिक और वैज्ञानिक चर्चा कर रहे है। न्यूरोविज्ञान की इस सोच में भव्यता है।

Let us Grow up. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

 

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