

Padma Shri डॉ. एमसी डाबर का निधन: सेवा, सादगी और इंसानियत की मिसाल
Jabalpur पद्मश्री से सम्मानित, जबलपुर के गोरखपुर इलाके में गरीबों और जरूरतमंदों के लिए दशकों तक उम्मीद का नाम रहे डॉ. एमसी डाबर का 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और अपने निवास पर ही अंतिम सांस ली। उनके निधन से चिकित्सा जगत, समाज और लाखों मरीजों में शोक की लहर है। उनका अंतिम संस्कार गुप्तेश्वर मुक्तिधाम में ससम्मान किया गया, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हुए।
डॉ. डाबर का जन्म 16 जनवरी 1946 को पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। देश के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। बचपन में ही पिता का साया उठ गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जालंधर से स्कूल की पढ़ाई पूरी कर वे जबलपुर मेडिकल कॉलेज पहुंचे और 1967 में MBBS की डिग्री प्राप्त की।
*1971 के युद्ध में सेवा*
डॉ. डाबर ने 1971 के भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak War) के दौरान लगभग एक साल तक भारतीय सेना में अपनी medical सेवाएं दीं। युद्ध के समय उन्होंने फील्ड में रहकर घायल सैनिकों और नागरिकों की सेवा की, जिससे कई जिंदगियां बचीं। इसके बाद 1972 से उन्होंने जबलपुर में गरीबों के लिए चिकित्सा सेवा शुरू की।
*मात्र 2 रुपये से शुरू, आजीवन सिर्फ 20 रुपये फीस*
उन्होंने इलाज की शुरुआत सिर्फ 2 रुपये फीस से की थी। समय के साथ भी उनकी फीस कभी 20 रुपये से ज्यादा नहीं हुई, जबकि बाकी doctors की फीस हजारों में पहुंच गई। उनका clinic सुबह 6 बजे से खुल जाता था और वे रोजाना सैकड़ों patients को देखते थे। कई बार वे जरूरतमंदों को free medicine देते, financial मदद करते और कभी-कभी घर जाकर भी इलाज करते थे। उनकी सादगी और सेवा भावना के किस्से पूरे महाकौशल क्षेत्र में मशहूर थे।
*सेवा, सादगी और संवेदना की मिसाल*
डॉ. डाबर ने अपने जीवन में लाखों मरीजों का इलाज किया, लेकिन कभी भी पैसे को priority नहीं दी। वे हमेशा कहते थे- “डॉक्टर का धर्म है सेवा, और मरीज की मुस्कान ही मेरी सबसे बड़ी फीस है।” उनके clinic में न कोई चमक-दमक थी, न ही modern सुविधाएं, लेकिन उनकी honesty, अनुभव और अपनापन ही सबसे बड़ी पूंजी थी।
*सम्मान और समाजसेवा*
भारत सरकार ने 2020 में उन्हें Padma Shri सम्मान से नवाजा। वे कई social संगठनों से जुड़े रहे और health शिविर, रक्तदान, तथा महामारी के समय नि:शुल्क सेवा में हमेशा आगे रहे। कोविड-19 के दौरान भी उन्होंने अपनी उम्र की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा जारी रखी।
*मुख्यमंत्री और समाज का शोक*
डॉ. डाबर के निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहित कई प्रमुख नेताओं, डॉक्टरों, सामाजिक संगठनों और उनके मरीजों ने गहरा शोक व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. डाबर का जाना प्रदेश के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और श्रद्धांजलि दी।
*प्रेरणा का स्तंभ*
डॉ. डाबर सिर्फ एक doctor नहीं, बल्कि सेवा, सादगी और इंसानियत के प्रतीक थे। जब चिकित्सा सेवा महंगी होती जा रही है, ऐसे समय में भी उन्होंने साबित किया कि इंसानियत जिंदा है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए inspiration और मानवता की मिसाल रहेगा।