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Padmashree Malti Joshi is no More: नहीं रहीं सुप्रसिद्ध कथाकार पद्मश्री मालती जोशी
![442364755 8128299930522387 3775582934336796924 n.jpg?stp=dst jpg p180x540& nc cat=104& nc cb=99be929b 2300bf0b&ccb=1 7& nc sid=5f2048& nc ohc=u nO4tXoMI4Q7kNvgEYVIpE& nc ht=scontent.fbho1 4 फ़ोटो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है.](https://scontent.fbho1-4.fna.fbcdn.net/v/t39.30808-6/442364755_8128299930522387_3775582934336796924_n.jpg?stp=dst-jpg_p180x540&_nc_cat=104&_nc_cb=99be929b-2300bf0b&ccb=1-7&_nc_sid=5f2048&_nc_ohc=u-nO4tXoMI4Q7kNvgEYVIpE&_nc_ht=scontent.fbho1-4.fna&oh=00_AYCvU8iJQl9SCOEVMdxt-OZriZC_DOFGj0vTaqOOv6o6AA&oe=664B4652)
महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में 4 जून, 1934 को उनका जन्म हुआ। बाद में वे इंदौर में भी रही हैं .वे किशोरावस्था से ही लेखन कार्य करने लगी थीं। खास बात यह कि मालती जोशी के लेखन की शुरुआत भी कविता से हुई। अपनी आत्मकथा में उन दिनों को याद करते हुए उन्होंने लिखा है, मुझमें तब कविता के अंकुर फूटने लगे थे।कॉलेज के जमाने में इतने गीत लिखे कि लोगों ने मुझे ‘मालव की मीरा’ की उपाधि दे डाली पर अब कविता छूट गयी है, रूठ गयी है। उनकी पहली कहानी साल 1971 में ‘धर्मयुग’ में भेजी, जिसके छपने के बाद तो वह भारतीय साहित्य, खासकर हिंदी जगत के पाठकों की चहेती लेखिका बन गईं. यह और बात है कि कालांतर में उनकी कहानियां मराठी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, मलयालम, कन्नड के साथ अंग्रेजी, रूसी तथा जापानी भाषाओं में भी अनूदित हो कर छप चुके हैं. अपनी सहज, सरल और संवेदनशील भाषा से मालती जोशी ने हिंदी कथा साहित्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई।