Pahalgam Terror Attack:कड़ा सबक़ सिखाया जाएगा, लेकिन अभी युद्ध की संभावना नहीं

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Pahalgam Terror Attack:कड़ा सबक़ सिखाया जाएगा, लेकिन अभी युद्ध की संभावना नहीं

रमण रावल

कश्मीर में आतंकवादी हमले को लेकर देश भर में तीव्रतर आक्रोश है। जन-जन का दिल कह रहा है कि पाकिस्तान को निपटा दिया जाये। आतंकवादियों के अड्‌डे समाप्त कर दिये जायें, वगैरह-वगैरह। हालांकि, यह सब तात्कालिक आवेग है। जबकि जमीनी सच्चाई एकदम भिन्न है। इसका यह मतलब नहीं कि हम कमजोर हैं। सैन्य बल या संसाधन कम है। तैयारियां पर्याप्त नहीं है। फाइटर जेट,तोपें,मिसाइलें अपेक्षानुरूप नहीं हैं। हममें हिम्मत ही नहीं है। कहीं देश के भीतर अलग ही युद्ध न छिड़ जाये।
तो हमें यह जान लेना चाहिये कि इनमें से एक भी कारण सही नहीं है। हम हर तरह से सक्षम,संसाधन संपन्न,अस्त्र-शस्त्र से मजबूत और प्रभावी हैं। हमारी सेना जोश से भरी हुई है। हमारे लड़ाके दुनिया के बेहतरीन जवानों में गिने जाते हैं। फिर भी अभी तो हम युद्ध नहीं कर रहे। क्यों ? यह जानना जरूरी है।
किसी भी देश के साथ युद्ध छेड़ने के लिये केवल सैन्य क्षमता ही मायने नहीं रखती। समय और रणनीति का सक्षम होना बेहद आवश्यक है, अन्यथा मुंह की खानी पड़ सकती है। इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने पहलगाम में निर्दोंषों की हत्या कर युद्ध भड़काने जैसे हालात ही पैदा किये हैं, लेकिन भारत जैसे विशाल देश का नेतृत्व अभी जिन हाथों में है, वे कोई भी ऐसा कदम नहीं उठायेंगे, जो बीच में वापस लेना पड़े। जिसका उचित निर्णय न हो। जो दूरगामी परिणाम न दे और जो विश्व समुदाय के समक्ष पूरी तरह से अपने फैसले को सही न ठहरा सके।
एक बात और है। पहलगाम हादसे के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह की सैन्य तैयारियां कीं, 18 फाइटर जेट विमानों के बेड़े कराची से भारत की सीमा की ओर रवाना किये, एलओसी पर सेना का कूच हुआ और सरकार ने उच्च स्तरीय बैठकें कर योजनाओं व अंजाम पर चर्चा की। इससे वह बुरी तरह से उजागर हो गया कि वह इस आतंकवादी घटना का अंजाम या प्रतिक्रिया जानता था। इसीलिये उसने ताबड़तोड़ व्यवस्था की। इस तरह आतंकवादियों के साथ पाकिस्तानी सरकार व सेना का गठजोड़ उजागर हो गया। उसकी मंशा अपने आप जाहिर हो गई। निश्चित ही भारत सरकार की यह पहली बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक विजय है। पाकिस्तान की इस हड़बड़ी को विश्व समुदाय के सामने अलग से लाना भी नहीं पड़ेगा, क्योंकि ये खबरें तो तत्काल पूरी दुनिया में पहुंच गई कि पाकिस्तान तो युद्ध की तैयारी में लगा है। जबकि भारत ने ऐसा कोई संकेत ही नहीं दिया।
वैसे भी युद्ध जैसा फैसला देश की जनता को नहीं रणनीतिकारों को,सैन्य प्रमुखों को,गुप्तचर संस्थाओं को, दुश्मन देश के अंदर फैले अपने सूचना तंत्र से मिले संकेतों से,सहयोगी देशों के साथ परामर्श करके लेना पड़ता है। यह रातोरात नहीं होता। इसमें महीनों भी नहीं लगते, लेकिन बिना योजना के युद्ध जैसे कदम उठाने के नुकसान अनेक राष्ट्र अतीत में उठा चुके हैं। उसके सबक यही हैं कि युद्ध जब अपरिहार्य हो जाये, तब किया जाये और निर्णायक लड़ा जाये। जो परिणाम हम चाहते हैं,उसकी प्राप्ति तक लड़ा जाये। इसमें क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं,इसके प्रारंभिक आकलन किये जाते हैं। यह कोई आइसक्रीम नहीं है कि कहीं भी रुककर ले ली और फटाफट खा भी ली, नहीं तो पिघल जायेगी। युद्ध तो दहकता ऐसा अंगारा है, जिसे हाथ में लेकर दूसरे पर फेंका तो भी स्वयं का हाथ तो जलेगा ही,आपका बदन भी झुलस सकता है।
भारत की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार के हक में यह बात तो जाती है कि वह कोई फैसले हड़बड़ी में नहीं करती। वह दूरगामी परिणामों का बखूबी आकलन करती है। फिर इस समय विश्व समुदाय स्वाभाविक तौर पर भारत के साथ है। संसद पर हमला,मुंबई पर हमला,पुलवामा हमला,पहलगाम हमले के परिप्रेक्ष्य में विश्व की सहानुभूति हमारे साथ है। दुनिया देख रही है कि भारत आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित राष्ट्र है, जिसने बेहद आत्म संयम बरतते हुए गिने-चुने मौकों पर आक्रामक पलटवार किया है। करगिल युद्ध की यादें भी ताजा हैं, जब सर्वथा शांति काल में पाकिस्तान में हम पर हमला बोल दिया था। जिसका जबरदस्त जवाब हमने दिया भी।
इसलिये भारत कुछ बड़ा करेगा,अवश्य करेगा, सही समय पर करेगा। प्रधानमंत्री ने पहले भी पुलवामा हमले के बाद बोला था-हम इसका जवाब देंगे। समय भी हम तय करेंगे और स्थान भी हम ही तय करेंगे। हमने वैसा ही किया भी। इसलिये भारत की जनता को आश्वस्त रहना चाहिये कि पहलगाम हादसे को दोहराने का दुस्साहस आतंकवादी व उसके पाकिस्तानी सरगना कभी न कर सकें,वैसा कुछ भारत सरकार करेगी ही। उसे समय दे,उस पर विश्वास रखें। केवल भावनाओं में बहकर या विपक्ष के इस उकसावे से प्ररित होकर सरकार,सेना पर युद्ध का दबाव न डाले कि वह तो बस अगली फ्लाइट पकड़ कर इस्लामाबाद रवाना हो और घेर-घार कर आतंकवादियों व पाकिस्तान के सेना प्रमुखों को बंदी बनाकर ले आये। यदि ऐसा कभी हुआ तो हमें निश्चिंत रहना चाहिये कि इस बार बंदी सेना को मुफ्त में छोड़ा तो नहीं जायेगा।