Pahalgam Terror Attack:क्या POK वापसी का समय आ गया ?

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Pahalgam Terror Attack:क्या POK वापसी का समय आ गया ?

 

रमण रावल

पहलगाम में भारतीय पर्यटकों पर लश्कर-ए-तैयबा के कायराना हमले की जिस गूंज से घाटी थर्राई, उसकी अनुगूंज अब कभी-भी सरहद पार पाक अधिकृत कश्मीर तक सुनाई देने में बस कुछ ही देर समझना चाहिये। इसके झटके नापाक पाकिस्तानी सेना,नेता और आतंकवादियों की जड़ें हिला देने में सक्षम होंगे। लोहा तो इतना गरम है कि अमेरिका,रूस,इजराइल तक से संदेशे आ रहे हैं कि भारत आगे बढ़ो,हम साथ हैं। याद कीजिये,विदेश मंत्री एस.जयशंकर का लंदन में दिया वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि POK की वापसी का इंतजार है। पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी इसका न्यौता ही समझें।

Pahalgam Terror Attack:क्या POK वापसी का समय आ गया ?
Pahalgam Terror Attack:क्या POK वापसी का समय आ गया ?

इस घटना के बहुत सारे संकेत हैं। पहला और प्रमुख तो यही कि पाकिस्तान कभी-भी अपने नापाक इरादों से बाज नहीं आने वाला। बावजूद इसके कि वह स्वयं भी आतंकवाद से बुरी तरह जूझ रहा है, भारत के खिलाफ उसके प्रयोग से पीछे नहीं हटता। दरअसल,पाक के नेता-सरकार-सेना एक ही धुरी पर अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं-भारत विरोध। यह सिर्फ विरोध तक सीमित न होकर भारत को बरबाद करने के तमाम निकृष्टतम हथकंडों तक जा पहुंचता है। जब उसके नागरिकों को आटे-दाल के भाव मालूम चल रहे हैं, जब स्वयं पाक सरकार दुनिया के सामने भीख का कटोरा लिये घूम रही है, जब उसकी अर्थ व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है, जब सरकार विदेशी कर्ज ले-लेकर अपना राशन-पानी जुटा रही है, तब भी उसके मन में एक ही अभिलाषा हिलोरे मारती है-भारत में अस्थिरता।

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अपनी हताशा,विफलता और विवशता में वह यह तक नहीं देख पा रहा कि उसके पैरों में खड़े रहने की ताकत ही नहीं बची है। उसके जेब खाली है। उसके बलूचिस्तान व खैबर पख्तूनख्वाह जैसे राज्य में आतंकवाद चरम पर है और पाकिस्तान के साथ निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है। विपक्षी नेता जेलों में ठूंसे जा रहे हैं। सेना-सरकार का भ्रष्टाचार बेइंतिहा बढ़ता जा रहा है। फिर भी उसकी हालत उस बूढ़े-बीमार व्यक्ति की तरह हो गई है, जो कब्र में पैर लटकाये बैठा होकर भी शादी का सेहरा बांधने की इच्छा रखता है।

पहलगाम में जो कुछ उसने करवाया,उसका उद्देश्य यह है कि भारतीय पर्यटक कश्मीर जाने से कतरायें। साथ ही दुनिया में यह संदेश जाये कि कश्मीर घाटी में अभी-भी आतंकवाद प्रबल है। जबकि जमीनी हकीकत विपरीत है। 2023-24 में कश्मीर में 25 लाख पर्यटक पहुंचे थे, जिनमें से पहलगाम में ही 22 लाख थे। तात्कालिक तौर पर वहां जाने वालों के मन में खौफ पैदा हुआ है, लेकिन इसमें पहला नुकसान किसका है? कश्मिरियों की आजीविका पर सबसे पहले और तीव्र असर होगा। 1990 से 2015 तक घाटी के लोगों ने लगभग भुखमरी के हालात ही देखें हैं। वहां सेना,सुरक्षा बलों के साये में थोड़ा बहुत पर्यटन हो पाता था। केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद धीरे-धीरे वहां पर्यटक बढ़ने लगे, जिसे रफ्तार मिली 5 अगस्त 2019 को धारा 370 हटाने के बाद। इसने जहां कश्मिरियों को रोजगार के जरिये बेहतर जीवन की आशा जगाई, वहीं देशी-विदेशी पर्यटकों को अनुपम प्राकृतिक छंटा को निहारने की जिज्ञासा पैदा की।इसलिये कशमीरियों को किसी भी कीमत पर आतंकवादियों को संरक्षण देने से परहेज करना होगा,अपनी जान की कीमत पर भी।कश्मीर की बेहतरी से पहला और ज्यादा फायदा कश्मीरियों का भी है। वे यदि दुनिया में आतंकवाद के पनाहगार माने जायेंगे तो इतिहास अब उन्हें माफ नहीं करेगा। वे यह समझने भी लगे हैं।

पाकिस्तान व आतंकवादी इसी पर पानी फेरने की मंशा रखते हैं, जिसका ज्वलंत प्रमाण है पहलगाम हमला। इसका शर्मनाक पहलू यह है कि धर्म पूछकर आतंकवादियों ने गोलियां बरसाई। इस वाकये ने लोगों को यह मानने का ब़डा आधार दिया कि आतंकवादियों की जाति होती है। अभी तक कुछ लोग तुष्टिकरण का चश्मा पहनकर दलील देते थे कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, वे अभी तक चुप्पी ओढ़े हुए हैं।

इस समय समूचे देश ही नहीं दुनिया की नजर भारत सरकार की प्रतिक्रिया पर लगी हुई है। तरह-तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं, जिसका सार यह है कि भारत कोई असाधारण कदम तो अवश्य उठायेगी। वह क्या होगा, यह तो तभी पता चलेगा, जब क्रिया प्रारंभ होगी। दुनिया फलस्तीन-इजराइल की, यूक्रेन-रूस की लड़ाई देख रही है। वह एक सीमा से अधिक हस्तक्षेप नहीं कर रही। कारण साफ है कि जो देश आतंक व दादागीरी या हठधर्मिता पर अड़ा है,उसके लिये हम क्यों तनाव झेलें।

Pahalgam Terror Attack:क्या POK वापसी का समय आ गया ?

इस घटना को मोदी सरकार ने बेहद गंभीरता से लिये है, यह तो नजर आ ही रहा है। पहले तत्काल गृह मंत्री अमित शाह कश्मीर रवाना हुए। फिर यूएई के दौरे पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दौरा रद्द कर दिल्ली लौटे। दिल्ली में हवाई अड्‌डे पर ही वरिष्ठ सहायकों के साथ बैठक की। यह बताता है कि सरकार इसे सामान्य आतंकी घटना मानकर छोड़ देने वाली नहीं है। कुछ बड़ा, कुछ कड़ा संदेश तो दिया जायेगा। यह आतंकवादियों को भी होगा, पाकिस्तान सरकार को भी और शेष दुनिया के लिये भी। ऐसा इसलिये कि पूरी दुनिया इस समय आतंकवाद से त्रस्त है। कट्‌टरवादी ताकतें दुनिया को एक ही रंग में कर देने पर उतारू हैं। सामूहिक रूप से उन्हें सबक सिखाने की आवश्यकता है। पाकिस्तान व अफगानिस्तान इन विध्वसंक ताकतों के अड्‌डे हैं। यह और बात है कि ये दोनों ही देश भस्मासुर की गति को प्राप्त होते जा रहे हैं।

इस समय यदि पाकिस्तान जैसे देश थोड़ी बहुत राहत महसूस कर रहे हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सनक से दुनिया के बीच प्रारंभ हुए व्यापार युद्ध से।कभी अमेरिका-रूस आमने-सामने होते हैं तो कभी चीन-अमेरिका। कभी यूरोपीय देशों के साथ ट्रम्प का पंगा चल रहा होता है। दुनिया की इस अस्थिरता से पाकिस्तान जैसे मौका परस्त देश को चीन की गोद में जा बैठने में फायदा नजर आ रहा है,जो कि पहले से चीन के अहसानों तले दबा हुआ है। तभी वह आतंकवाद को हवा देने के धतक्रम से बाज नहीं आ रहा, क्योंकि वह समझता है कि अभी दुनिया के सामने ट्रम्प से निपटना बड़ी चुनौती है। इसलिये भारत को अपेक्षित समर्थन नहीं मिलेगा। यह पाकिस्तान की बड़ी चूक है। पहले और आज की स्थिति में बेहद भिन्नता है। जिस धारा 370 की समाप्ति से कश्मीर में एक चींटी भी न मरी, वहां पर्यटन बढ़ने,चुनाव होने,खुशहाली व शांति से आतंकवादी व उनके सरगना बौखला उठे। ऐसे में वे जो कर बैठे हैं,उसका सही-सही अनुमान व पश्चाताप तो आने वाले दिनों में उन्हें होगा या शायद अफसोस करने लायक भी न रहे।

इस समय देश का जनमानस तो यह चाहता है कि पीओके के आतंकी शिविर नष्ट कर फिर से उसे भारत का हिस्सा बना ले। संभव है, अंतर राष्ट्रीय स्तर पर यह मान्य न किया जा सके तो पीओके को स्वतंत्र राष्ट्र बना दिया जाए, जो भारत से सहानुभूति रखें। इससे आतंकवादियों की घुसपैठ और पाकिस्तान के सीधे भारत प्रवेश को रोका जा सकेगा।

बेशक,युद्ध किसी मसले का हल नहीं, लेकिन कुछ मसलों का स्थायी हल तो युद्ध से ही होता है।अस्तित्व के संघर्ष में युद्ध से परहेज मूर्खता ही होता है।इस बार छोटा,प्रतीकात्मक या सबक के लिये कुछ नहीं होगा। परिणाममूलक कार्रवाई ही इसकी उचित प्रतिक्रिया मानी जाना चाहिये। यह समय ऐसा है, जब विपक्ष को किंतु-परंतु हटाकर देश के साथ सरकार के फैसले के साथ खड़े रहना चाहिये। अब भी उसने अपना अलग राग ही आलापा तो उसके अंतिम संस्कार से जनता पीछे नहीं हटेगी।