‘पलक्कड़’ ने तय की 21 वीं सदी की भारतीय राजनीति की दिशा  …

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‘पलक्कड़’ ने तय की 21 वीं सदी की भारतीय राजनीति की दिशा…

केरल के पलक्कड़ ने 21वीं सदी में भारतीय राजनीति की दिशा तय कर दी है। सरकारें तो जातिगत समीकरणों से ही बनती रही हैं और भारतीय राजनीति में आगे भी इसका कोई विकल्प नहीं है। जब जाति केंद्रित राजनीति होनी ही है, तो फिर जातिगत जनगणना से परहेज करना यानि ‘दिखाने के दांत और तो खाने के दांत और’। पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अब दिशा दे दी है कि ‘जातिगत जनगणना’ होनी चाहिए। पर जातिगत जनगणना का इस्तेमाल राजनीति में वोटों की खातिर नहीं होना चाहिए। हालांकि जनता के कल्याण के लिए योजनाएं बनाने को जातिगत जनगणना के आंकड़ों का उपयोग जरूर किया जाना चाहिए। जब ऐसा होगा तो इससे ही आगे का रास्ता खुल जाएगा। पहली बात जब ‘जातिगत जनगणना’ के लिए भाजपा की सरकार राजी होगी, तो विपक्ष का सबसे बड़ा मुद्दा माटी में मिल जाएगा। तब केंद्र की भाजपा सरकार के प्रति जातिगत जनगणना समर्थक जातियों का खुलकर झुकाव होगा। और तब जातिगत जनगणना और उसके आधार पर जातिगत केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वन से सत्ता के बहुमत का रास्ता खुद-ब-खुद साफ हो जाएगा। तो बात वही कि कान दायीं तरफ की जगह बायीं तरफ से पकड़ लो और रास्ता बदलकर अपने लक्ष्य को हासिल कर लो। पलक्कड़ में संघ ने समुद्र के करीब सच का अहसास कर ही लिा है कि सत्ता का सूरज अब बिना जातिगत जनगणना के उदय नहीं होगा। और जब सत्ता के सूरज की रोशनी नहीं बिखरेगी, तो फिर कमल कैसे खिल पाएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 2 सितंबर 2024 को कहा कि जाति आधारित जनगणना लोगों के कल्याण के लिए सही है, लेकिन इसे चुनावों में राजनीतिक हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए। सरकार को सिर्फ डेटा के लिए जातिगत जनगणना करवानी चाहिए। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा है कि हमारे हिंदू समाज में जाति बहुत संवेदनशील मुद्दा है। जनगणना हमारी राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए अहम है। इसे बहुत गंभीरता के साथ किया जाना चाहिए। किसी जाति या समुदाय की भलाई के लिए भी सरकार को आंकड़ों की जरूरत होती है। ऐसा पहले भी हो चुका है, लेकिन इसे सिर्फ समाज की भलाई के लिए किया जाना चाहिए। इसे चुनावों का पॉलिटिकल टूल न बनाएं। तो केरल के पलक्कड़ में 31 अगस्त से चल रही तीन दिन की समन्वय बैठक के आखिरी दिन संघ के ‘मन की बात’ सबके सामने आ गई। और भाजपा को जातिगत जनगणना से सहमत होने की खास वजह मिल गई है।

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि जातिगत जनगणना देश की एकता-अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसलिये इसको बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस पर राजनीति नहीं की जा सकती है। जातिगत आंकड़ों का इस्तेमाल अलग-अलग जातियों और समुदाय की भलाई के लिए करना चाहिए।

संघ का मानना रहा है कि हिंदुओं में जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। पर अब जिस तरीके से जातीय जनगणना कराने की बात संघ ने की है, उससे यह साफ हो गया है कि 21वीं सदी की राजनीति की दिशा ‘जाति केंद्रित’ थी, है और रहेगी। इसका मतलब यह भी है कि जातिगत जनगणना के नाम पर किसी राजनैतिक दल को अकेले चुनावी फायदा उठाने का कोई अधिकार नहीं है। यदि फायदा की ही बात है तो संघ ने भी जातिगत जनगणना को जन कल्याण के रैपर में लपेटकर भाजपा को उपहार में दे दिया है। अब भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों और संगठन को मिलकर यह संदेश जन-जन तक पहुंचाकर ‘जातिगत जनगणना’ में रम जाना चाहिए…। कांग्रेस, आरजेडी, समाजवादी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियां तो जातिगत जनगणना की मांग कर ही रही हैं। उधर बीजेपी के सहयोगी दल भी जातीय जनगणना को लेकर मुखर हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू, चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) भी जातीय जनगणना के पक्ष में है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने जातीय जनगणना के मुद्दे को ज्यादा भाव नहीं दिया था। उल्टा बिहार के जातिगत जनगणना पर तमाम सवाल भी उठाए थे। पर अब संघ को यह समझ में आ गया है कि जातिगत जनगणना जरूरी है। तो पलक्कड़ ने 21वीं सदी में भारत की जनता के कल्याण और भारतीय राजनीति की दिशा तय कर दी है…।