

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के जन्म दिवस पर :-
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल{Pandit Ramprasad Bismil} : क्रांतिकारी जिन्हें मात्र तीस वर्ष की उम्र में ही काकोरी हत्याकांड केअपराध में फांसी पर लटका दिया गया!
शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बस मेले ,
वतन पर मरने वालों का
यही बांकीं निशां होगी ।
भारत की यह आजादी हमें केवल कांग्रेस के नरम दल वाले असहयोग आंदोलन से ही नहीं प्राप्त हुई वरन इसकी आआदी के लिये भारत के वीर सपूतों ने कांग्रेस के ही दूसरे दल गरम दल के क्रांतिकारियों ने अपना लहू बहा कर दश को यह आजादी दिलाई ।उनके बलिदान को हम भूल नहीं सकते । गांधी जी के 1920 में णलाये गये असहयोग आंदोलन की विफलया के बाद देश में क्रांतिकारियों का हौसला बढ़ गया और उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने के लिये ऐसे से कारनामे साहस पूर्वक किये कि ब्रिटिश सरकार की नींद
हराम हो गई ।
ऐसे ही भारत के वीर सपूत थे स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जिन्हें मात्र तीस वर्ष की उम्र में ही काकोरी हत्याकांड और सरकारी खजाना लूटने केअपराध में अपने साथी अशफाक उल्ला खान एवं ठाकुर रोशन सिंह के साथ 19 दिसम्बर 1927 को फांसी पर लटका दिया गया ।
वह तीनों ही एक साथ इस गीत को गाते हुये:-सरफ़रोशी की तमन्ना , अब हमारे दिल में है ,देखना है जोर कितना
बाजुये कातिल में है ।
फांसी के फंदे पर झूल गये ।
उनका यह जोश भरने वाला गीत रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने ही क्रांतिकारी साथियों के लिये लिखा जो बाद में देश भक्ति की पहचान बन गया।
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11जून 1897को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के खिरननी बाग मुहल्ला में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।उनके पिता का नाम मुरलीधर एवं माता का नाम मूलमती था ।
उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शाहजहांपुर में प्राप्त की ।बाद में उच्च शिक्षा के लिये इलाहाबाद गये । देशभक्ति की प्रेरणा उन्हें दयानंद सरस्वती की सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक से मिली ।जिससे प्रेरित होकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कार्य कर रही हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी (HSRA) में शामिल हुये जिसका उद्देश्य देश को किसी भी प्रकार से ब्रिटिश हुकूमत को परेशान करते हुये देश छोड़ने पर विवश करना था।
काकोरी काण्ड:- 8अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल के घर पर यह योजना बना ई गई जिसमें -अशफाक उल्ला खान, मुरारी शर्मा, राजेन्द्र लाहिड़ी, बनवारी लाल,केशव चक्रवर्ती, मन्मथ नाथ गुप्ता, चंद्रशेखर आजाद, शचींद्रनाथ बख्शी, ठाकुर रोशन सिंह और मुकुंदी लाल थे। जिसका उद्देश्य सरकारी जाने को लूटकर ब्रिटिश सरकार चुनौती देना था । बाद में इस पैसे से हथियार खरीद के क्रांतिकारियों को दिये जाते ।
9 अगस्त 1925 को लखनऊ से सहारनपुर सरकारी खजाना लेकर जारही ट्रेन को लूटना ही क्रांतिकारियों का एकमात्र उद्देश्य था। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिये 14 सदस्यों की टोली बनाई गई थी ।जिसमें राजेन्द्र लाहिड़ी को लखनऊ से ट्रेन में बैठक उसे काकोरी में चेन पुल करके रोकना था । जैसे ही लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी में ट्रेन पहुंची राजेन्द्र लाहिड़ी के चेनपुल करते ही सभी क्रांतिकारी ट्रेन में चढ़ कर सरकारी खजाना लूट लिया।काकोरी काण्ड ने स्वतंत्रता संग्राम को एक निर्णायक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था । बाद में ब्रिटिश सरकार ने सभी क्रांतिकारियों को पकड़कर उनपर लूट और हत्या का मुक़दमा चलाया जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को 19दिसम्बर 1927को फांसी की सजादीगई शेष को जेलकी सजा ।चंद्र शेखर आजाद भी बाद में मुखबिर के द्वारा उनका पता बताये जाने पर इलाहाबाद में ही एक पार्क में पुलिस से मुठ भेड़ में मारे गये ।
काकोरी काण्ड का एकमात्र उद्देश्य था कि ब्रिटिश हुकूमत चाहे कुछ भी कर ले वह हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को समाप्त नहीं कर सकती ।भारत के ऐसे वीर सपूतों को नमन जिनका नाम सुनते ही ब्रिटिश सरकार के हुक्मरानों की नींद उड़ जाती थी ।आज पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की स्मृति में एक सदी बाद भी हम उन्हें स्मरण करते हुये वंदन में शीश झुकाते हैं ।
ऊषा सक्सेना-मुंबई