Paralympics 2024: IAS Officer Won Silver, भारत के खाते में आया 12वां मेडल
सुहास ने पेरिस पैरालंपिक में टोक्यो का प्रदर्शन दोहराया और पुरुष एकल एसएल4 स्पर्धा में रजत पदक जीतने में सफल रहे। इसी तरह सुहास पैरालंपिक में लगातार दो पदक जीतने वाले भारत के पहले बैडमिंटन खिलाड़ी बन गए हैं।
पिता से मिला आत्मविश्वास
सुहास ने बताया था कि बचपन में ही उनके पिता ने उनमें ऐसा कूट-कूटकर आत्मविश्वास भरा कि इंजीनियरिंग से आईएएस और यहां से पैरा शटलर के रास्ते खुलते गए। सुहास के मुताबिक उन्हें मेडिटेशन की जरूरत नहीं पड़ती। जब वह कोर्ट पर होते हैं तो उन्हें आध्यात्म का अनुभव होता है। बैडमिंटन ही उनके लिए ध्यान और साधना है। अहम जिम्मेदारी होने के बावजूद सुहास बैडमिंटन के लिए समय निकाल लेते हैं। वह कहते हैं कि दुनिया में लोगों के पास 24 घंटे ही हैं। इनमें कई सारे काम कर लेते हैं और कुछ कहते हैं कि उनके पास समय नहीं है। किसी चीज के प्रति दीवानापन है तो उसे करने में तकलीफ नहीं होती। इसी तरह बैडमिंटन उनके लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। काम के साथ तीन घंटे की मेडीटेशन की बात को बड़ा नहीं माना जाएगा, लेकिन काम के साथ तीन घंटे बैडमिंटन खेलना लोगों को बड़ा लगेगा। बैडमिंटन उनके लिए मेडीटेशन है। जब वह खेलते हैं तो आध्यात्म का अनुभव करते हैं जिसमें किस तरह एक-एक प्वाइंट के लिए डूबना होता है। अगर किसी चीज को करने की चाहत है तो सामंजस्य बिठाया जा सकता है।
आईएएस अकादमी में रहे बैडमिंटन, स्क्वैश के उपविजेता
सुहास ने बताया था कि वह बैडमिंटन कॉलेज के दिनों से पहले से भी रोजाना खेलते आ रहे हैं। जब वह 2007 में आईएएस अकादमी मसूरी गए तो वहां साई कोच एमएम पांडे मिले। अकादमी में वह बैडमिंटन और स्क्वैश के उपविजेता रहे। उस दौरान एमएम पांडे ने उन्हें एक दिन कोर्ट पर बुलाया और इधर-उधर शटल देकर बुरी तरह नचाया। वह थक गए तो कोच ने कहा कि अपने पर घमंड मत करो। उन्हें अभी ट्रेनिंग की जरूरत है। तब उन्होंने बैडमिंटन की कोचिंग दी और उसके बाद गौरव खन्ना उन्हें पैरा बैडमिंटन में लाने के लिए जिम्मेदार बने।