पराँठे खींचते है स्वाद के पारखियो को अपनी तरफ़

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पराँठे खींचते है स्वाद के पारखियो को अपनी तरफ़

 

हम हिंदुस्तानी खाने पीने के शौकीन। मौका भर मिल जाए खाने का। रूपए पैसे। घर दुकान। ज़मीन जायदाद। जंगल। हवा। पानी। जो हाथ लग जाए ,सरेआम फौरन निःसंकोच खा लेते हैं और डकार भी नही लेते। पर खाने मे जो चीजें सबसे ज्यादा पसंद है हमें , पराठे उसमें शामिल है। मुझे नही लगता कि हमारे खाते पीते महान देश मे ऐसा भी कोई बदनसीब शख़्स पैदा हुआ होगा जिसने पराँठे ना खाये हों।

यूरोप मे इतने क़िस्म के गुलाब नही होगे जितने किस्मों के पराँठे हमारे खाऊ देश मे पाए जाते है। हमारे खेतों मे आलू ,मटर ,प्याज़ ,गोभी ,मूँग मसूर ,अरहर ,मैथी ,चावल ,गेहूँ ,ज्वार ,बाजरा और इन सबके अलावा और भी जो कुछ उगाया जाना मुमकिन है ,जो भी किचन मे मौजूद हो ,जो भी खाया जा सकता है ,हमारी चतुर गृहणियाँ उसे स्वादिष्ट पराँठो मे बदल सकती है।

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पराठे आन बान शान है हमारी। हमारा फ़ास्ट फ़ूड हैं ये। पीत्ज़ा बर्गर के दादा हैं। यदि हम दुनिया की आर्थिक महाशक्ति होते पूरी दुनिया मेकडोनल्ड की जगह पराँठों की दुकान मे घुसने के लिये धक्का मुक्की कर रही होती। खैर। उम्मीद करे आज नही तो कभी न कभी पराठों के अच्छे दिन आएँगे और तब वो पूरी दुनिया मे हमारा नाम रोशन करेंगे।

दिल्ली मे तो एक गली ही पराँठों के नाम लिख दी गई है। बहुतेरे चटोरे चाँदनी चौक जाते ही पराँठों के लिये हैं। आगरा मे एक रामबाबू की पराँठा परोसने वाली दुकान है। यदि आगरा मे ताजमहल ना भी होता तब भी टूरिस्ट रामबाबू के पराँठे खाने के लिये भी आगरा की टिकट कटा सकते थे।

पराँठे को पूड़ी का बड़ा भाई समझिए। ग़रीब रोटी का नज़दीकी अमीर रिश्तेदार। फटाफट बनते है ये और देर तक खाने लायक बने रहते है । आप दाल के पराँठे भी खा सकते है और दाल के साथ भी पराँठों का भोग लगा सकते हैं। वैसे भी क़ायदे का पराँठा किसी अचार ,सब्ज़ी चटनी या दही का मोहताज नही होता। पराँठा अपने आप मे पूरा भोजन है। इनके होने भर से थाली सौभाग्यवती हो जाती है।

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पराठे हर जगह मौजूद है। इनकी पहुँच बच्चों के टिफ़िन से लेकर सरकारी बाबू के लंच बॉक्स तक ,सरकारी बसो से लेकर हवाई जहाज़ तक ,और किसी क़स्बे के ढाबे से लेकर महानगरों के फ़ाईव स्टार होटलो तक हर जगह है। ये हर उस जगह पाये जाते है जहाँ भूख पहुँची हुई हो। ये ना होते तो भूख हमें मार सकती थी। लिहाज़ा हमें पराठों के साथ साथ पराँठे बनाने वालियों की भी दिल से इज़्ज़त करनी चाहिए।

पराँठे खींचते है स्वाद के पारखियो को अपनी तरफ़। इक डोर खींचे दूजा दौड़ा चला आये टाईप का मामला। इनकी ख़ुशबू किसी को भी अपना दीवाना बना सकती है। ये आपकी भूख जगा देते है। आप थोड़े भी मनुहार के कच्चे हुये तो आप इन्हें खाते हैं और खाते चले चले जाते हैं। पराँठे खा तो ले आप फिर वह सारा दिन ,अगली सुबह तक आपको अपनी याद दिलाते हैं। पेट तम्बूरे की तरह फूल जाता है। गुड़गुड़ाता है , फटकारता है आपकी जीभ को। आप पराँठों को ना खाने की क़समें खाते है। वैसे पराँठों से हुई बदहजमी से ज्यादा तकलीफ तब होती है जब आप ऑफिस या ट्रैन मे अपनी रोटी सब्ज़ी का टिफ़िन खोले वो किसी और की प्लैट मे मौजूद हो।

पर सच्ची बात तो यह है मै अब तक किसी ऐसे आदमी से मिला नही हूँ जो पराँठों से की गई अपनी तौबा पर क़ायम रह सके। यदि किसी की पत्नी तरह तरह के पराँठे बनाने मे पारंगत हो तो वसा से भरपूर ,तर पराठे उसकी टाईम से पहले मौत की वजह बन सकते है। इस ख़तरे के बावजूद ऐसे बंदे को दुनिया के ख़ुशनसीब आदमियों मे शामिल करने मे मुझे क़तई संकोच नही है।

मै अब अपने बारे मे क्या कहूँ ,मेरी आलीशान तक़दीर से तो आप भली भाँति वाकिफ है ही। पराठों से मेरी मुलाकात आए दिन हो जाती है। अपनी आप देख लें। मुकेश