सेनापतियों की पीठ थपथपाई, रण जीतने की नीति बनाई…

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सेनापतियों की पीठ थपथपाई, रण जीतने की नीति बनाई…

चुनावी साल में प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने जिलों में तैनात अपने मुख्य सेनापतियों को पहले महीने में ही तलब कर लिया। अब लोकतांत्रिक मुख्य रण में जिलों के यह अधिपति ही अपने बुद्धिकौशल और मैदानी प्रबंधन से मतदाताओं को संतुष्ट रखेंगे तो संतुष्टि का मीठा फल मुखिया के हिस्से में आएगा। सो कलेक्टर-कमिश्नर कॉन्फ्रेंस में सीएम शिवराज ने मध्यप्रदेश के इन सेनापतियों के कामों की दिल खोलकर प्रशंसा की है। अधिकारियों की कार्यकुशलता की सराहना की है। चुनावी साल के पहले महीने के आखिर में शिवराज ने प्रदेश के इन चुनिंदा जिला मुख्यालयों के मुखियाओं संग चुनाव से पहले मुख्य अस्त्र-शस्त्र सामाजिक योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा की तो यह भी साफ कर दिया कि कहीं भी गड़बड़ न हो जाए। सारे अस्त्र-शस्त्र, हाथी-घोड़े और गोला-बारूद सब इतने चाक-चौबंद रहें कि 2018 की तरह 9-14 के फेर में पंद्रह महीने बेवजह गंवाने को मजबूर न होना पड़े। इसलिए मुखिया शिवराज ने रण से नौ महीने पहले ही अपने मुख्य सेनापतियों संग मिलकर रणनीति भी पूरा समय लेकर बनाई और सेनापतियों की पीठ भी खूब थपथपाई। समझाइश यही कि अब एक पल का समय भी बर्बाद करने को नहीं बचा, जैसा वह खुद 18-18 घंटे परिश्रम की पराकाष्ठा लक्ष्य‌ केंद्रित कर रहे हैं। ठीक वैसी ही परिश्रम की पराकाष्ठा हर सेनापति को करनी है ताकि दिसंबर 2023 में साथ मिलकर सेवा का फिर महासंकल्प लिया जाए। अब जब परिणाम मिलेगा तो सेवा का महामेवा सबके हिस्से में आएगा, यह तो सेनापति भी जानते हैं।
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सेनापतियों को समझाइश दी गई कि हम वो लोग हैं, जिन्हें जनता की जिंदगी बदलने का सौभाग्य मिला है। जिलों के मुखिया शासन के प्रतिनिधि हैं। जिलों में अच्छा कार्य देखकर मन में आनंद और प्रसन्नता होती है। हम लोगों की जिंदगी बदलने के लिए काम कर रहे हैं। उन्हें अहसास दिलाया गया कि वह साधारण नहीं, मध्यप्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। प्रदेश के साढ़े आठ करोड़ नागरिकों में से चुनिंदा लोग हैं। प्रदेश में 52 कलेक्टर,10 कमिश्नर और वल्लभ भवन के सीनियर अफसर हैं। यही टीम मध्यप्रदेश है, जो प्रदेश की उन्नति के लिए हर क्षण संकल्पित है। अब अधिक जी-जान व साहस के साथ लोगों की सेवा में जुटना है। यानि 2023 को आंखों के सामने रखकर वह बेस्ट परफॉर्मेंस देना है, जिससे नाथ को पता ही न चल पाए और वह सत्ता से अनाथ हो जाएं। फिर पांच साल इन चुनिंदा लोगों को भी परफार्मेंस के आधार पर सेवा का भरपूर मौका मिलने से कोई रोक नहीं पाएगा, यह बात चुनिंदा लोग ज्यादा बेहतर समझते ही हैं। बताया गया कि उपलब्धियां बहुत हैं जैसे ग्रोथ रेट 19.76% है।

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प्रदेश में सड़क और सिंचाई के हजारों करोड़ रुपये के काम चल रहे हैं। बस सेनापतियों को सुशासन लाना है कि बिना किसी परेशानी के समय पर सुविधाओं का लाभ लोकतांत्रिक फैसला-दाताओं को मिल जाए। सीहोर, इंदौर, डिंडौरी, सिंगरौली और बड़वानी कलेक्टर सहित अन्य जिलों की तारीफ की और अपेक्षा भी यही कि काम में यही तड़प सबमें दिखनी चाहिए। डिंडौरी कलेक्टर विकास मिश्रा तो सीएम शिवराज की आंखों के तारे हैं।‌ ऐसा कलेक्टर जो सुबह छह बजे जनता के बीच पहुंच जाए, बाकी 51 जिलों के कलेक्टर से भी यही अपेक्षा है। बड़वानी में कुष्ठ रोगियों के लिए बड़वानी कलेक्टर की पहल सराहनीय है। नामराशि शिवराज सिंह कलेक्टर भी मुखिया की पसंद में शुमार हैं। सिंगरौली और टीकमगढ़ जिले की भी भू अधिकार योजना क्रियान्वयन की दिल खोलकर तारीफ की गई। गर्व का यही भाव कि हमने मध्यप्रदेश को बदला है। और फिर मुख्य बात वही कि हमें रोडमैप बनाकर और अधिक तेजी से विजन और मिशन के साथ जुटना है। अपने एक-एक मिनट का सदुपयोग कर साढ़े आठ करोड़ नागरिकों की बेहतरी की चिंता करना है। प्रदेश की उन्नति और जनता के हित में अपना सर्वश्रेष्ठ देना है।गरीबों की जिन्दगी में बदलाव लाना ही हमारा लक्ष्य है। प्रदेश के नागरिकों के जीवन में खुशहाली लाना ही हमारा कर्तव्य है। ताकि कर्तव्य पथ पर लगातार आगे बढ़ते रहने का मौका मिला रहे।
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चुनावी साल के पहले महीने के आखिरी दिन सेनापतियों के साथ शिवराज चुनावी रणनीति बनाने में इतने मशगूल रहे कि जगद्गुरू रामभद्राचार्य के दर्शन के अलावा अपना पूरा समय प्रदेश के अपने मातहत भाग्य-विधाताओं को दे दिया।  दिल खोल कर बात की और दिल की बात उन तक पहुंचाई। यह अहसास दिलाया कि हम एक दूसरे के पूरक हैं। मेहनत से ईमानदारी से काम मैदान में हुआ तो तारीफ मुखिया के हिस्से में ही आएगी। और यह तारीफ ही तो 9-14 के फेर से बहुत दूर ले जाएगी। अब सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी-2 के बाद लाड़ली बहना को भी लांच कर दिया है। सेनापतियों ने लाड़ली लक्ष्मी और बहनों को ही समय पर सेवक बनकर लाभ पहुंचा दिया तो आधी आबादी तो वैसे भी एकतरफा नजर आएगी। ऐसे ही दूसरी योजनाओं पर भी‌ दिल से बात हुई। हाथ में सब सेनापतियों के ही, बस फिर रणनीति के सफल होने और रण जीतने से कोई रोक नहीं सकता। संगठन की तरफ से बेफिक्र हैं ही, सेनापतियों ने कमाल दिखाया तो दोनों हाथों में लड्डू और बल्ले-बल्ले…। इसीलिए मुखिया ने सेनापतियों की पीठ भी थपथपाई और रण जीतने की नीति भी बनाई…।