

रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ाया पटवारी
– राजेश जयंत
झाबुआ। जिले के पेटलावद क्षेत्र में लोकायुक्त पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई की है। यहाँ हल्का नंबर 13 के पटवारी विशाल गोयल को ₹12,500 की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया है। ये कार्रवाई ग्राम करणगढ़ में मोईचारणी रोड पर की गई थी। लोकायुक्त टीम पटवारी को लेकर रेस्ट हाउस में पहुंची है। यहां आगे की कार्रवाई की गई। फिलहाल पूरे इलाके में इस खबर की चर्चा है।
*क्या होगा अब आगे*
रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़े जाने पर संबंधित के खिलाफ *Prevention of Corruption Act* के तहत FIR दर्ज की जाती है और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसके बाद पुलिस जांच करती है, चार्जशीट दाखिल होती है और मामला कोर्ट में जाता है। अगर दोषी पाया गया, तो जेल और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
हाल ही में ऐसे ही एक केस में पटवारी को 4 साल की सजा और ₹30,000 का जुर्माना हुआ था। पेटलावद वाले केस में भी इसी तरह की कानूनी प्रक्रिया चलेगी। पहले जांच, फिर कोर्ट ट्रायल और दोषी पाए जाने पर सजा।
कई मामलों में देखने सुनने में आया है कि लोकायुक्त कई बार सरकारी अधिकारी कर्मचारी को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ती है, लेकिन बाद में कई मामलों में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ती या बहुत धीमी हो जाती है। इस विषय पर हमने पड़ताल की तो कुछ तथ्य सामने निकल कर आए।
1. जांच में लापरवाही या ढिलाई: कई बार लोकायुक्त या जांच एजेंसियां चार्जशीट तो फाइल कर देती हैं, लेकिन सही तरीके से जांच नहीं करतीं, जिससे कोर्ट में सबूत कमजोर पड़ जाते हैं और आरोपी बरी हो जाता है।
2. गवाहों या सबूतों की कमी: रिश्वत के मामलों में गवाह मुकर जाते हैं या सबूतों की कमी रह जाती है, जिससे केस कमजोर हो जाता है।
3. प्रशासनिक या राजनीतिक दबाव: कभी-कभी ऊपर से दबाव या सिस्टम की सुस्ती के कारण केस को आगे नहीं बढ़ाया जाता।
4. लंबी कोर्ट प्रक्रिया: भ्रष्टाचार के केस में कोर्ट की प्रक्रिया लंबी चलती है, जिससे लोगों को लगता है कि कार्रवाई नहीं हुई।
इसीलिए कई बार दिखता है कि आरोपी गिरफ्तार तो हो जाता है, लेकिन बाद में छूट जाता है या केस ठंडे बस्ते में चला जाता है।