शिक्षा के समग्र विकास की शैक्षणिक रणनीति!
डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर की कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता का कॉलम!
‘शिक्षा का उद्देश्य अकादमिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि मूल्यों का सही ज्ञान होना है!’ किसी व्यक्ति की वास्तविक पहचान उसके चरित्र से होती है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि चारित्रिक गठन इंसान की प्रथम आवश्यकता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के जीवन में चरित्र निर्माण का विशेष योगदान रहता है। व्यक्ति के चरित्र से उसके कुल और संस्कारों का पता चलता है। यही वजह है कि कहा जाता है शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति का चारित्रिक निर्माण कर सके।
मनुष्य का चरित्र वह वस्त्र है, जो विचारों के धागों से बनता है और बेहतर विचार का प्रस्फुटन मूल्य आधारित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। ऐसे में कहीं न कहीं मूल्याधारित शिक्षा और चरित्र निर्माण व्यक्तित्व विकास के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक हैं। जो व्यक्ति के संपूर्ण विकास में मदद करता है और ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं और एक व्यक्ति के सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नई शिक्षा नीति-2020 छात्रों के संपूर्ण विकास का खाका खिंचती है, क्योंकि आज का वैश्विक परिवेश ऐसा है, जहाँ सिर्फ ज्ञान की महत्ता नहीं है। आप मूल्य आधारित शिक्षा के प्रति कितने समर्पित हैं, आज जमाना इसका है।
प्रतिस्पर्धा के बीच मानवीय पहलुओं और मानवतावादी दृष्टिकोण को जीवित रखना भी एक कठिन काम है और नई शिक्षा नीति इस बिंदु को केंद्र में रखकर तैयार की गई है। चूंकि भारत वैश्विक फलक पर एक अग्रणी राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है, तो यहाँ की शिक्षा व्यवस्था भी मूल्यों और चरित्र निर्माण पर आधारित हो, इसका ध्यान भली भांति रखा गया है। भारतीय छात्र अग्रणी हो सके और वे नए भारत के निर्माण में आधारभूत भूमिका का निर्वहन कर सकें।
इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संकल्प में मूल्य आधारित एवं व्यक्तित्व विकास के शिक्षण को रेखांकित किया गया है। इस नीति के माध्यम से तैयार विभिन्न पाठयक्रमों द्वारा छात्रों के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों एवं अभिभावकों से संवेदनशील एवं पेशेवर बनाने के लिए प्रशिक्षण दिए जाने का भी प्रावधान है।
मूल्य आधारित शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को नैतिक मूल्यों के आधार पर उचित तथा अनुचित के बीच विचार करने की क्षमता प्रदान करना है जो छात्रों को उच्च मानवीय मान्यताओं, संस्कृति, राष्ट्रीयता, और सामरिक गुणों के विकास के साथ आध्यात्मिक मूल्यों को समझने की अवधारणा देती है तथा छात्रों के विचार और व्यवहार में नैतिकता, सहयोग, समझदारी, धैर्य, समर्पण, ईमानदारी और समझौता को विकसित करने का माध्यम बनती है और साथ ही दूसरों की भावनाओं को समझने के लिए प्रोत्साहित करती है।
छात्रों का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास, नैतिक बुद्धि और समाज सेवा की भावना के साथ सशक्त नागरिकों के रूप में तैयार करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। इस शिक्षा का मूल उद्देश्य विश्व में मानवीय अधिकारों का सम्मान, गरीबों, पिछड़ों, वंचितो के अधिकारों का संरक्षण, सामाजिक एवं आर्थिक विकास की अवधारणा को सर्वसुलभ करना तथा छात्रों में संवेदनशीलता बढ़ाने, सहनशीलता विकसित करने, सामरिक भावनाओं को समझने और समाज में उच्च मानवीय मूल्यों की प्रणाली का पालन करने की क्षमता प्रदान करना है। इसके माध्यम से, छात्रों को सटीक निर्णय लेने, अपने पसंदीदा मूल्यों को पकड़ने और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने की क्षमता विकसित होती है।
यह शिक्षा छात्रों को आचरण और मानवीय मूल्यों के साथ ज्ञान की भावना को जागरुक करती है और वाणिज्यिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विषयों में भी अभिरूचि विकसित करती है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को सदैव उच्च आदर्शों पर चलने की प्रेरणा प्रदान करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने मूल्य आधारित शिक्षा तथा चरित्र निर्माण एवं समग्र विकास की शिक्षा पर विशेष बल दिया है।
डॉ हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर ने भी इस ओर सकारात्मक कदम उठाते हुए एनईपी 2020 पर आधारित पाठ्यक्रम में मूल्य आधारित शिक्षा तथा चरित्र निर्माण एवं समग्र विकास को समाहित कर लिया है जिससे आने वाले समय में विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं चरित्र निर्माण तथा समग्र विकास और साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा और मानवीय मूल्यों के बारे में विस्तार से समझ पाएंगे, क्योंकि नई शिक्षा नीति में मानवीय मूल्यों और चरित्र निर्माण के लिए ऐसे ‘मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम’ बनाए गए हैं, जिनमें गांधीवादी पद्धति का अनुसरण करते हुए 50 प्रतिशत अध्ययन व्यावहारिक और अनुभवजन्य है और सुखद बात यह है कि न केवल विज्ञान की ओर उन्मुख पाठ्यक्रमों पर, बल्कि मानविकी और साहित्य पर आधारित पाठ्यक्रमों पर भी ये बात लागू होती है। एनईपी-2020 के तहत ये सभी पाठ्यक्रम क्रेडिट आधारित हैं, और विज्ञान, मानविकी और समाजविज्ञान तथा वाणिज्य सभी के लिए अनिवार्य है।
ऐसे में यदि हम नई शिक्षा नीति के आधार पर 25 साल आगे का सोचें तो नई शिक्षा नीति मात्र अब कुछ पन्नों तक ही सीमित नहीं रह गई है परंतु हर एक पन्ने के अंदर कई गहन चीजें समाहित हैं। नई शिक्षा नीति, स्कूल शिक्षा से लेकर कौशल विकास शिक्षा, उच्च शिक्षा तक लागू हो गई है। इस तरह से जब हम समन्वय और समायोजित रूप से भविष्य में चलेंगे और नई शिक्षा नीति के पूर्ण क्रियान्वयन को लेकर चलेंगे और उसको समझेंगे जिसकी शुरुआत स्कूल, कॉलेज में हो चुकी है।
भविष्य में वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश पूर्ण विकसित देश बनेगा। उस समय अगर हम देखें तो ऐसा नहीं होगा कि विज्ञान का विद्यार्थी सिर्फ विज्ञान को पढ़े और कॉमर्स का विद्यार्थी सिर्फ कॉमर्स जो पहले होता था। अब विद्यार्थी अपनी मर्जी से अपने विषय चुन सकते हैं, वह प्रमुख विषय के साथ अन्य विषय ले सकते हैं, स्किल बेस्ड विषय ले सकते हैं, वैल्यू बेस्ड विषय ले सकते हैं। जब भविष्य में छात्र-छात्राओं के पास ये सारी चीजें आ जाएंगी और देश शिक्षा नीति को पूर्णतः अपना लेगा तो ऐसा पूर्ण विश्वास है कि आगे आने वाले समय में देश ‘वर्ल्ड लीडर’ बन जाएगा और हमारे छात्र मूल्यवान तथा चरित्रवान बनने का एक नया कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे।