Penalty on CE of PWD : कोर्ट को गुमराह करने पर PWD के CE पर हाई कोर्ट ने 1 लाख का जुर्माना ठोका, यह जुर्माना जेब से भरना होगा!

हाई कोर्ट ने विभाग के प्रमुख सचिव को CE के खिलाफ विभागीय जांच कर रिपोर्ट पेश करने के भी निर्देश दिए!

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Penalty on CE of PWD o: कोर्ट को गुमराह करने पर PWD के CE पर हाई कोर्ट ने 1 लाख का जुर्माना ठोका, यह जुर्माना जेब से भरना होगा!

Jabalpur : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जुर्माने की राशि उन्हें अपनी जेब से देनी होगी। इसे हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति कोष में जमा करना होगा। यह कॉस्ट मुख्य अभियंता एससी वर्मा द्वारा कोर्ट को गुमराह करने पर लगाई गई। हाई कोर्ट ने विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिए कि सीई के खिलाफ विभागीय जांच कर रिपोर्ट पेश करे।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि लोक निर्माण विभाग के अधिकारी ने मामले में लगातार कोर्ट के साथ धोखाधड़ी करते हुए गुमराह करने की कोशिश की है। कोर्ट ने विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिए हैं कि सीई के खिलाफ विभागीय जांच कर रिपोर्ट पेश करे। अवमानना याचिका बालाघाट निवासी कृष्णकुमार ठकरेले सहित 6 अन्य ने लगाई थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मोहन लाल शर्मा और शिवम शर्मा ने कोर्ट में पक्ष रखा। बताया कि याचिकाकर्ताओं का विभाग ने टरमिशन कर दिया था।

बाद में ये लोग लेबर कोर्ट गए, जहां से उन्हें नियमित करने के आदेश देते हुए सेवा से बहाल करने को कहा था। इस मामले में मुख्य अभियंता एससी वर्मा ने 19 सितंबर 2024 को आदेश जारी करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता नियमितिकरण की पात्रता नहीं रखते। मुख्य अभियंता वर्मा ने वित्त विभाग के एक परिपत्र का हवाला देते हुए कहा था कि सभी दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को नियमित कर दिया है।

हाईकोर्ट ने जब इस जवाब का अवलोकन किया तो पाया कि मुख्य अभियंता एससी वर्मा ने कोर्ट को गुमराह करते हुए धोखा दे रहे हैं। इस मामले में एक दिन पूर्व भी सुनवाई हुई। जिसमें कि हाई कोर्ट ने बेहद नाराजगी जताते हुए तल्ख टिप्पणी में कहा था कि विभाग के पीडब्ल्यूडी विभाग के इंजीनियर इन चीफ राजेंद्र मेहरा को व्यक्तिगत रूप से इस न्यायालय के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उपस्थित रहने के निर्देश दिए जाते हैं। वे अपने साथ याचिकाकर्ता के प्रकरण की संपूर्ण फाइल भी लेकर उपस्थिति सुनिश्चित करानी होगी।

यह है मामला

अप्रैल माह में हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसके जरिए 7 अक्टूबर, 2016 की नीति के स्थान पर उमादेवी के न्याय दृष्टांत के अनुरूप नियमितिकरण का लाभ दिए जाने की मांग की गई थी। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने 7 अक्टूबर 2016 की नीति के अंतर्गत दिए गए लाभ को निरस्त करते हुए अपेक्षित लाभ प्रदान करने के निर्देश दिए थे।

कोर्ट ने साफ किया था कि याचिकाकर्ता श्रम न्यायालय से जीत चुका है अत: उमादेवी के न्याय दृष्टांत के अनुरूप नियमितिकरण के लाभ का पात्र है। 60 दिन के भीतर यह लाभ प्रदान कर दिया जाए। लेकिन 60 दिन बीतने के बावजूद लाभ नहीं दिया गया। इसीलिए अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी।