
जनता उन मनुष्यों को कहते है जो वोटर हैं …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
इन दिनों देश में वोट को लेकर बहुत बवाल मचा हुआ है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी यह मान चुके हैं कि वोटों की चोरी न होती तो कम से कम 25 लोकसभा सीटें और उनके खाते में आ जातीं और तब मोदी की जगह शायद वह देश के भाग्य विधाता बने नजर आते। वोटों की चोरी के चलते ही उनकी गिनती 99 पर अटकी है और 100 तक नहीं पहुंच पा रही।
खैर इसमें एक बात बहुत ही दिलचस्प है और वह यह है कि बात जब वोटों की हो रही है तब वोटर की हालत भी समझ में आ ही जाती है। वोटरों को लेकर आजादी के बाद से ही लगातार आरोपों का दौर चलता रहा है। हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई का एक वीडियो वायरल हो रहा था, इसमें वह अपनी पीड़ा जाहिर कर रहे थे कि किस तरह अपराधियों का लोकसभा में प्रवेश हुआ। अटल जी बेबाकी से हर बात सामने रखते थे। वीडियो में अटल जी ने बताया कि एक समय अपराधी जनप्रतिनिधियों से मदद मांगने आते थे। फिर एक समय वह आया कि चुनाव जीतने के लिए जनप्रतिनिधि अपराधियों की मदद लेने लगे। और उन्होंने खुद के चुनाव हारने के पीछे भी यही वजह का जिक्र किया। और इसके बाद उन्होंने बताया कि तब अपराधियों ने सोचा कि नेता को चुनाव जिताने की जगह खुद ही चुनाव लड़ें और संसद पहुंच जाएं। चुनाव जीतने की इस कहानी में भी वोटरों के अधिकार पर डाका डालने वाली बात ही थी। और राजनीति के घाघ ऐसे सभी घटनाक्रमों से बखूबी वाकिफ हैं। तब तो चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं के पास भी ना तो संसाधन थे और ना ही तकनीक। और तब से अब तक चुनावी वैतरणी में समुद्र जितना पानी बह चुका है। तब अगर बूथ लूट जाते थे और वोटर देखते रह जाते थे, तो अब तकनीक के जरिए वोट चुराने का आरोप चश्पा हो रहा है। यह आरोप भी वोटर के हक पर डाका डालने की कहानी बयां कर रहे हैं।
अब हम आते हैं अपनी मूल बात पर। आज हम एक ऐसे व्यंगकार की बात कर रहे हैं, जो हिंदी के पहले रचनाकार थे जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। और यह भी बड़े गौरव की बात है कि इनका नाता भी मध्यप्रदेश से ही है। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (वर्तमान नर्मदापुरम) जिले में ‘जमानी’ नामक गाँव में इनका जन्म हुआ था। और इनका नाम था हरिशंकर परसाई। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को हरिशंकर परसाई ने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा-शैली में एक ख़ास प्रकार का अपनापन नज़र आता है।
तो हरिशंकर परसाई जी ने वोटर को बड़ी ही पूर्णता से परिभाषित किया है। उन्होंने अपनी बैंक में चुटकी लेते हुए पर लिखा है कि ‘जनता उन मनुष्यों को कहते है जो वोटर हैं और जिनके वोट से विधायक मंत्री बनते हैं। इस पृथ्वी पर जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रीमंडल बनते हैं। अगर जनता के बिना सरकार बन सकती है, तो जनता की कोई जरूरत नहीं है।’ दूसरी जगह वह लिखते हैं कि
‘जनता कच्चा माल है। इससे पक्का माल विधायक, मंत्री आदि बनते हैं।पक्का माल बनने के लिए कच्चे माल को मिटना ही पड़ता है।’ यह बातें 20वीं सदी की हैं और भारत के आजाद होने के बाद की हैं। और अब इसी तरह की बातें ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से होने वाले चुनाव में वोटर की दुर्दशा की कथित पुष्टि कर रही हैं। यानी की वक्त बदलेगा लेकिन बुराइयां जस की तस बदले हुए स्वरूप में अट्टहास करती रहेंगी। और पीड़ित होने वाले चेहरे बदलते रहेंगे। ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ की रचना हरिशंकर परसाई ने की जो एक व्यंग्य है। उन्होंने लिखा कि ‘गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिकी है। गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलती है, जिनके मालिक के पास हाथ छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है।’ यही कहा जा सकता है कि वोटर भी खोटी किस्मत लेकर पैदा हुआ है। कभी उसे दबाव में वोट डालना पड़ता था तो कभी उसे वोट डालने ही नहीं दिया जाता था और उसके नाम का वोट डाल जाता था। और वर्तमान आरोप यही हैं कि वोटर ईवीएम तक अपना वोट पूरे भरोसे से पहुंचा रहा है और तंत्र तकनीकी के जरिए उसके वोट को भी चुरा रहा है। अब आखिर वोटर करें तो क्या करें।
वोटरों, गणतंत्र के अलावा भी समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां व्याप्त विसंगतियों की तरफ व्यंगात्मक चुटकी परसाई जी ने न ली हो। एक जगह वह लिखते हैं कि ‘इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है। पाव ताकत छिपाने में जा रही है—शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूस लेकर छिपाने में…बची हुई पाव ताकत से देश का निर्माण हो रहा है तो जितना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आखिर एक चौथाई ताकत से कितना होगा।’ तो दूसरी जगह वह कटाक्ष करते हैं कि ‘पागलपन को गर्वपूर्वक वहन करना है तो उसे किसी दर्शन का आधार अवश्य चाहिए।’ तीसरी जगह चुटकी लेते हैं कि
‘रोटी खाने से ही कोई मोटा नहीं होता, चंदा या घूस खाने से होता है। बेईमानी के पैसे में ही पौष्टिक तत्त्व बचे हैं।’ चौथी जगह परसाई जी ने लिखा है कि
‘मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमें किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में। अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सीख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी आदमी में रख देते हैं।’
तो यह सब पढ़कर हरिशंकर परसाई जी की 20वीं सदी के भारत में व्याप्त पतन पर स्पष्ट दृष्टि और बेबाक लेखन हमें समझ में आ ही जाता है। उन्होंने उसे समय भी चिंता जताई कि
‘ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि कभी-कभी अखबार का शीर्षक बनती हैं।’ उन्होंने आश्चर्य जताया कि ‘दूसरे के मामले में हर चोर मजिस्ट्रेट हो जाता है।’ उन्होंने बड़ी साफगोई से बयां किया कि
‘इनकमटैक्स-विभाग के ईमानदार और शिक्षा-विभाग के ईमानदार में फर्क होता है- गो ईमानदार दोनों हैं।’ और उन्होंने सर्वकालिक चिंता जताई कि ‘जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं है, वह अनंतकाल के प्रति क्या ईमानदार होगा!’
तो आज बस इतना ही। हरिशंकर परसाई की बात इसलिए क्योंकि आज उनकी पुण्यतिथि है। अपनी हास्य व्यंग्य रचनाओं से सभी के मन को भा लेने वाले हरिशंकर परसाई का निधन 10 अगस्त, 1995 को जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। और 1922 में अगस्त माह में ही 22 तारीख को उनका जन्म हुआ था। हरिशंकर परसाई ने हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया, जिसके लिए हिन्दी साहित्य उनका हमेशा ऋणी रहेगा। परसाई जी ने लिखा था कि ‘कुत्ते भी रोटी के लिए झगड़ते हैं, पर एक के मुँह में रोटी पहुँच जाए जो झगड़ा खत्म हो जाता है। आदमी में ऐसा नहीं होता…।’ तो मध्य प्रदेश के सपूत हरिशंकर परसाई जी को शत-शत नमन…।





