महात्मा फुले से प्रेरणा लें बेटियों के प्रति घृणित भाव रखने वाले लोग…

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महात्मा फुले से प्रेरणा लें बेटियों के प्रति घृणित भाव रखने वाले लोग…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

ब्राह्मणों की बेटियों को लेकर विवादित बयान देने वाले अजाक्स के प्रांताध्यक्ष और आईएएस अधिकारी संतोष कुमार वर्मा को राज्य शासन ने नोटिस जारी किया है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 26 नवंबर 2025 देर रात जारी नोटिस में कहा गया है कि 23 नवंबर 2025 को भोपाल में हुए अजाक्स के प्रांतीय अधिवेशन में दिया गया बयान भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों से अपेक्षित आचरण के अनुरूप नहीं है। यह अनुशासनहीनता, स्वेच्छाचारिता और गंभीर कदाचरण की श्रेणी में आता है। नोटिस में कहा गया है कि वर्मा द्वारा अखिल भारतीय सेवाएं आचरण नियम 1967 के नियमों का उल्लंघन किया गया है। इसके आधार पर वर्मा ने खुद को अखिल भारतीय सेवाएं अनुशासन तथा अपील नियम 1969 के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही का भागीदार बना लिया है। वर्मा बताएं कि ऐसे कृत्य पर उनके विरुद्ध अखिल भारतीय सेवाएं अनुशासन तथा अपील नियम 1969 के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए? सरकार ने वर्मा से 7 दिन में जवाब मांगा है। जवाब न मिलने पर एकपक्षीय कार्यवाही करने की चेतावनी भी दी गई है।

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा यह नोटिस जारी करके ऐसे विवादास्पद अधिकारी

को उनकी उद्दंडता का ख्याल कराया गया है। ऐसे में हम आज अछूतोद्धार और महिला शिक्षा के प्रणेता महात्मा ज्योतिबा फुले की बात करते हैं जिनसे बेटियों के नाम पर कुत्सित और अपमानित विचार रखने वाले लोग प्रेरणा ले सकते हैं। ज्योतिबा फुले’, (जन्म: 11 अप्रॅल, 1827 ई. – मृत्यु: 28 नवम्बर, 1890 ई.) महाराष्ट्र में सर्वप्रथम अछूतोद्धार और महिला शिक्षा का काम आरंभ करने वाले महान् भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रॅल, 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग ‘फुले’ के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया। परंतु लोगों के यह कहने पर कि पढ़ने से तुम्हारा पुत्र किसी काम का नहीं रह जाएगा, पिता गोविंद राम ने उन्हें स्कूल से छुड़ा दिया। जब लोगों ने उन्हें समझाया तो तीव्र बुद्धि के बालक को फिर स्कूल जाने का अवसर मिला और 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंग्रेज़ी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की।

ज्योतिबा फुले का विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ था। ज्योतिबा की संत-महत्माओं की जीवनियाँ पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना चाहिए। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए। अछूतोद्धार के लिए ज्योतिबा ने उनके अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी। परिणामस्वरूप उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। कुछ समय तक एक मिशन स्कूल में अध्यापक का काम मिलने से ज्योतिबा का परिचय पश्चिम के विचारों से भी हुआ, पर ईसाई धर्म ने उन्हें कभी आकृष्ट नहीं किया। 1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए। दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वे लोकमान्य के प्रशंसकों में थे।

सन 1873 में महात्मा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की थी और इसी साल उनकी पुस्तक “गुलामगिरी” का प्रकाशन भी हुआ। दोनों ही घटनाओं ने पश्चिमी और दक्षिण भारत के भावी इतिहास और चिंतन को बहुत प्रभावित किया। महात्मा फुले की किताब ‘गुलामगिरी’ बहुत कम पृष्ठों की एक किताब है, लेकिन इसमें बताये गये विचारों के आधार पर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में बहुत सारे आंदोलन चले। उत्तर प्रदेश में चल रही दलित अस्मिता की लड़ाई के बहुत सारे सूत्र ‘गुलामगिरी’ में ढूंढ़े जा सकते हैं। आधुनिक भारत महात्मा फुले जैसी क्रांतिकारी विचारक का आभारी है।

आज हम महात्मा फूले को इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि 28 नवंबर 1890 ई. को महान् समाज सेवी ज्योतिबा फुले का देहांत हो गया था।

और बात फिर वहीं आ जाती है कुंठित और कुत्सित राजनीति करने वाले और बेटियों का अपमान करने के साथ ही उनके प्रति घृणित भाव रखने वाले किसी भी वर्ग के व्यक्ति को महात्मा फुले से प्रेरणा लेनी चाहिए। मध्य प्रदेश सरकार ने अजाक्स के प्रांताध्यक्ष संतोष वर्मा को नोटिस जारी कर सही दिशा में कदम आगे बढ़ाया है। महिलाओं और बेटियों का सम्मान करने में सबसे आगे मध्य प्रदेश सरकार है और इसीलिए बेटी चाहे ब्राह्मण की हो या फिर किसी और वर्ग की, प्रदेश सरकार बेटियों और महिलाओं के सम्मान की जिम्मेदार है। और संतोष वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत इसी बात का संदेश है। मानसिक विचारों के शुद्धिकरण के लिए

समाज से भेदभाव खत्म करने

की दिशा में काम करने वाले महात्मा फुले से प्रेरणा ली जा सकती है…।

 

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।