The perfume and politics of corruption: भ्रष्टाचार का इत्र और राजनीति
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में इत्र का कारोबार करने वाले पीयूष जैन के यहां मारे गए छापों में 284 करोड़ की नगदी और अकूत दौलत मिलने के मामले में राजनीति शुरू हो गयी ह।
सत्तारूढ़ भाजपा के लिए प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी पार हमला करने के लिए ये छापामारी नया हथियार साबित हुई है ,लेकिन सवाल ये है की बीते पांच साल से प्रदेश की सरकार इस काले कारोबार को लेकर मौन साढ़े क्यों बैठी थी ?क्या उसका संरक्षण भी इस भ्र्ष्टाचार के इत्र बनाने में नहीं था ?
यकीनन पीयूष जैन के इस महा पुरषार्थ से पूरे देश की तरह मै भी चकित हूँ । कोई एक आदमी इतना रुपया कमाकर उसका इस्तेमाल करने के बजाय अपने घर में रखकर बैठा हुआ है और राज्य की भाजपा सरकार को इसकी भनक तक नहीं है।तय है की पियूष ने ये साडी दौलत एक दिन में नहीं कमाई होगी। पीयूष जैन के कन्नौज स्थित पैतृक आवास पर तहखाने में 250 किलो चांदी और 25 किलो की सोने की सिल्लियां बरामद हुई हैं.
कानपुर के ठिकानों की तरह ही यहां भी नोटों से भरे 8 से 9 बोरे मिले हैं. इनमें 103 करोड़ के नोट होने की बात सामने आई है. इससे पहले पीयूष जैन के कानपुर के ठिकानों से जीएसटी की विजलेंस टीम को 185 करोड़ रुपये की नकदी बरामद हुई थी. इतने नोट गिनने के लिए कई मशीनें लगीं और उससे भी ज्यादा लोग इन्हें ले जाने के लिए लगे. रविवार को भी छापेमारी और रुपयों की गिनती जारी रही और मिलने वाले कैश का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है.
The perfume and politics of corruption
पीयूष जैन जाहिर है की इतना बड़ा कारोबार बिना राजसत्ता की मदद के नहीं कर सकता था। सत्ता में जो भी रहा होगा उसका संरक्षक रहा होगा,फिर चाहे समाजवादी पार्टी हो या भाजपा ,कारोबारी सत्तारूढ़ दल को ही नहीं विपक्ष को भी साधते है । भ्र्ष्टाचार की गंगा का पानी सभी को लगता है लेकिन मिलता सभी को उनकी हैसियत के अनुसार ही है।
भाजपा सरकार कह रही है की जैन समाजवादी पार्टी का आदमी है और समाजवादी पार्टी के सदर कह रहे हैं की जाईं भाजपा का ही अपना आदमी है और भाजपा सरकार ने गलती से अपने ही समर्थक के यहां छापा दाल दिया। उसे छापा किसी पुष्पराज जैन के यहां डालना था लेकिन अधिकारी पहुँच गए पीयूष जैन के यहां।
इस मामले में बेहूदी और बेशर्म राजनीति का चेहरा देखना हो तो पीयूष जैन के मामले को देख लीजिये। राज्य में चार साल नौ माह से भाजपा के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं,क्या इस काले कायरबार के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिये ? राज्य में इतना बड़ा अवैध कारोबार चल रहा है और उनकी सरकार सो रही है।
आखिर क्यों ? राज्य में समाजवादियों की सरकार तो है नहीं ,फिर पीयूष को संरक्षण किसका है ?हकीकत ये है की पूरे देश में कालेधन की वापसी का दावा करने वाली सरकार ने इस दिशा में कुछ किया ही नही। नोटबंदी के बावजूद काला धन घटने के बजाय बढ़ा है। देश में जहां-जहाँ भी भाजपा की सरकारें हैं वहां -वहां काले कारोबारों का ग्राफ लगातार ऊपर उठा है नीचे नहीं आया।
उत्तरप्रदेश में इस इत्र वाले को तब निशाने पर लिया गया जब लगातार लोकप्रियता खो रही भाजपा को समाजवादी पार्टी के खिलाफ कोई नया हथियार नहीं मिला। इस छापामारी की टाइमिंग ही इस बात की पोल खोलती है। यदि सरकार के पास जैन के काले कारोबार की सूचनाएं थीं तो उसके यहां ये छापे पहले क्यों नहीं मारे गए ? ठीक विधानसभा चुनावों से पहले ये कार्रवाई क्यों की गयी ?
The perfume and politics of corruption
आयकर और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा गत दिनों की गई छापेमारी से किसी को कोई शिकायत नहीं हो सकती ,होना भी नहीं चाहिए,ये संस्थाएं अब अपने मन से काम करती ही नहीं है। इन्हें अब राजसत्ता टारगेट देती है ,अन्यथा इस कारोबार के लगातार पनपते रहने के लिए इन केंद्रीय विभागों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होना चाहिए। क्यों कार्रवाई करने के लिए इन सरकारी विभागों को किसी ख़ास निर्देश और समय का इन्तजार रहता है ?
पिछ्ला इतिहास उठाकर देख लीजिये ,देश में भ्र्ष्टाचार को संरक्षण केवल और केवल राजसत्ता ही देती आयी है फिर चाहे वो कांग्रेस हो,भाजा हो या कोई और अन्य दल हो। बना सरकारी संरक्षण के कोई भ्र्ष्टाचार हो ही नहीं सकता। सरकार के पास दो नहीं बीस आँखें होती हैं लेकिन दुर्भाग्य ये है की सरकार अपनी इन आँखों का इस्तेमाल अपनी सुविधा से करती है। हर्षद मेहता का नाम याद है आपको ?वो भी कोई बुद्धिबल से घोटाला नहीं करता था बल्कि उसे ऐसा करने के लिए अवसर मुहैया कराये गए थे।
अगर आप गंभीर नागरिक हैं तो लिख लीजिये की पीयूष जैन का बाल-बांका भी नहीं होग। चुनावों के बाद जैन साहब को उनके यहां से जब्त की गयी तमाम सम्पत्ति कानूनी तरीके से वापस मिल जाएगी । उन्हें थोड़ा-बहुत त्याग करना पड़ सकता है। और ऐसा करना किसी भी पीयूष जैन के लिए कठिन काम नहीं है। देश में अब तक किसी भ्र्ष्ट कारोबारी,अधिकारी या नेता को फांसी पर नहीं लटकाया गया,क्योंकि इसका प्रावधान ही नहीं है। कालेधन का कारोबार और इस अपराध के लिए सजा बहुत कम है।
आपको बता दें कि पीयूष जैन कन्नौज और कानपुर का एक बड़ा इत्र व्यापारी है. पीयूष का जन्म कन्नौज में हुआ है और वहां पर भी इसका एक घर है. जैन 40 से ज्यादा कंपनियों का मालिक है और चौंकाने वाली बात ये है कि इसकी दो कंपनियां मिडिल ईस्ट में भी मौजूद हैं. कन्नौज में जैन की इत्र फैक्ट्री के साथ ही कोल्ड स्टोरेज और पेट्रोल पंप भी मौजूद हैं.
पीयूष ने अपनी कंपनियों का हेडऑफिस मुंबई में बना रखा है और यहीं से इसकी कंपनी का इत्र विदेशों में एक्सपोर्ट होता है. जानकारी के अनुसार मुंबई में भी पीयूष का एक आलीशान आशियाना है.पीयूष की राजनीति में दिलचस्पी होती तो वो इस अकूत दौलत के बल पर कभी भी विधान परिषद या राजयसभा के लिए सीट खरीद सकता था लेकिन उसने ऐसा कभी नहीं किया। जाहिर है उसका राजनीति से उतना ही लेना-देना है जितना किसी दूसरे कारोबारी का होता है।पीयूष को सर्वदलीय समर्थक कहा जा सकता है।
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अब देखना होगा कि पीयूष काण्ड का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर कितना फर्क पड़ता है ? मतदाता को तो इससे कोई ख़ास लेना-देना है नहीं। पीयूष जैन भाजपा को पराजय से उबारता है या नहीं अभी कहना कठिन काम है।
राकेश अचल
राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।