समसामयिक संदर्भ में प्रभु श्रीराम का व्यक्तित्व
अयोध्याधाम में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के प्रसंगविशेष पर
शीला मिश्रा
भगवान श्री राम का जन्म युगान्त- बिंदु की घटना है । उनका जन्म त्रेता और द्वापर युग की संधि बेला में होता है । श्री राम ,विष्णु भगवान के सातवें अवतार माने जाते हैं । यह प्रश्न अनेकों बार उठाया गया है कि श्री राम कौन हैं…? एक दिव्य मनुष्य…., एक कुशल शासक ..या विष्णु का अवतार ..? वास्तव में राम ईश्वर तो हैं ही साथ में सफल गुणवान दिव्य मनुष्य हैं और जब अच्छे राज्य की परिकल्पना की जाती है तो रामराज्य ही केंद्र में होता है ,इस तरह वे कुशल शासक भी हैं । ईश्वर का अवतार केवल राक्षस -वध के लिए नहीं होता अपितु संपूर्ण मानव-जाति के कल्याण के लिए होता है ।
श्री राम का पूरा जीवन ही आदर्शों व संघर्षों से भरा पड़ा है । वे केवल एक आदर्श पुत्र ही नहीं अपितु आदर्श पति व भाई भी थे । वे आदर्श व्यक्तित्व के ऐसे प्रतीक हैं जिनके आचरण का जनमानस पर गहरा प्रभाव है और यह युगों -युगों तक रहेगा । उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं । उनका तेजस्वी व पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है । इसलिए राम केवल एक नाम नहीं अपितु सनातन धर्म की पहचान हैं, चेतना व सजीवता का प्रमाण हैं, हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत हैं ।
आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में लिखा है “समुद्र इव गांभीर्ये धैर्येण हिमवानिव ” अर्थात वे गांभीर्य में उदधि के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। भगवान श्री राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा , त्याग , प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं । उन्होंने संपूर्ण मानव-जाति को मानवता का संदेश दिया । उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी , उत्प्रेरक और निर्माता भी है , इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहे जाते हैं ।
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वर्तमान संदर्भ में चरित्र की बात करें तो लोगों में विशेषकर युवाओं में क्रोध, वैमनस्य, द्वेष ,असंतोष तथा बदले की भावना तेजी से बढ़ती जा रही है । सब कुछ होते हुए भी वे अशांत हैं , फलस्वरुप हिंसक घटनाएंँ दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं । ऐसे में आवश्यकता है, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की । उनका संपूर्ण व्यक्तित्व युवाओं के लिए श्रेष्ठ शिक्षा है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने निजी सुखों को त्याग कर कठिन जीवन की चुनौती को स्वीकार कर यही संदेश दिया कि कैसा भी संकट आए , उसका डटकर सामना किया जाए , यही रामत्व है ।
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम में संगठन की शक्ति अभूतपूर्व थी । उन्होंने सभी प्राणियों को उसके गुणों के आधार पर महत्व दिया । साथ ही शत्रु की सेना में भी गुणी व्यक्ति की पहचान कर सत्ता उसके हाथों में सौंपी, यह दूरदर्शिता ही रामत्व है ।
जब एक लक्ष्य निर्धारित कर लिया , तब उसकी प्राप्ति के लिए केवल उसी का चिंतन-मनन करते हुए उसका क्रियान्वयन किया तथा उपलब्ध संसाधनों का कुशल प्रबंधन कर ,उनका बेहतर उपयोग किया, यही रामत्व है ।
उन्होंने केवट हो या सुग्रीव हो,निषादराज हो या विभीषण हो ,सभी वर्ग के मित्रों से आत्मिक रिश्ता निभाया , यही रामत्व है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने क्रोध ,लोभ, अहंकार ,मोह जैसे अवगुणों को नियंत्रित कर , मानसिक व शारीरिक संयम को कायम रखते हुए अपना जीवन बिताया , यही रामत्व है ।
भगवान श्री राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे ।उन्होंने मर्यादा का पालन करते हुए राज्य का त्याग कर, बालि का वध कर , रावण का संहार कर हमेशा न्याय व सत्य का साथ दिया, यही रामत्व है ।
उन्होंने मानव-दानव , पशु ,पक्षी ,पौधे सभी पर दया भाव रखा , यही रामत्व है ।
उन्होंने नल-नील , जामवंत , हनुमान पर विश्वास कर उनको समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया ,यही रामत्व है ।
जब रावण मृत्यु के नजदीक थे ,तब श्री राम ने लक्ष्मण को रावण के पास जाकर ज्ञान ग्रहण करने का आदेश देकर शत्रु की विद्वत्ता का सम्मान किया , यही रामत्व है ।
गोस्वामी तुलसीदास के साहित्य में राम का स्वरूप—-
अपने परम शत्रु , वेदों के ज्ञाता , महा ज्ञानी रावण को मारने से पहले उन्होंने ईश्वर से क्षमा मांगी , यह संस्कार, यह नैतिक मूल्य ही रामत्व है ।
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं ,करुणा निधि हैं, मनुष्य के आदर्श हैं, सुंदरतम अभिव्यक्ति हैं,वे मनुष्य नहीं प्राणी मात्र के मित्र हैं ,अभिरक्षक हैं , विश्वसनीय हैं । वे दूसरों के दुख में द्रवित होने वाले दया निधि हैं, वे प्रत्यक्ष आदर्श की प्रतिमूर्ति हैं ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन आदर्शों का पालन करते हुए जो व्यक्ति संयमित , मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है , उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वह असीम शांति व आनंद प्राप्त करता है । अतः वर्तमान परिदृश्य में श्री राम का जीवन चरित्र केवल पूजनीय ही नहीं अनुकरणीय है । राम का केवल गुणगान ही नहीं करना है अपितु रामचरित्र को जीवन में उतारना है , यही मनुष्य जीवन की सार्थकता है । तुलसीदास जी ने भी कहा है :-
छुटहिं मलहि-मलहि के धोंए।
धृत कि पाव कोई बारि बिलोएं।।
प्रेम भक्ति जल बिनु रघुराई।
अभि अंतर मैल कबहु न जाई।।
शीला मिश्रा
बी-4,सेक्टर-2,रॉयल रेसीडेंसी,
शाहपुरा थाने के पास,बावडियां कलां,
भोपाल (म.प्र.),462039
मो.-9977655565
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