व्यंग
Players of Danger: खतरों के खिलाड़ी और जहरीला संसार—-
सुषमा व्यास
आज नागपंचमी है। नींद जरा देर से खुली।हड़बड़ाहट मच गई, पूजा करनी है, दालबाटी बनानी है और नींद सुबह सुबह ही लग गई।
अब क्या करें, इंसान है, जानवर तो है नहीं कि चाहे जब सो लिए, चाहे जब उठ गए।
नागिन जैसी फुर्तीले अंदाज में काम निपटाया। अगर देर हो गयी तो नागवाले भैया( सपेरे) निकल जाएंगे।
ऐसे तो जंगल से नाग देवता को पकड़ कर लाने और उसे पूजने पर प्रतिबंध है परंतु हम कहां मानने वाले हैं, नाग पकड़ने वाले के पापी पेट का सवाल है और हमारे धर्म-कर्म पूजा पाठ का । हम कितने ही क्रांतिकारी विचार रख लें, जहां पूजा पाठ की बात है वहां सब विचार भी हवा हो जाते हैं।
खैर,
तैयार होकर बाहर झांका खिकड़ी से,जैसे ये नाग टोकनी का ढक्कन जरा सा उठाने पर झांकते है।
एक नागवाली मेरा मतलब सपेरन चली आ रही थी, दो छोटे बच्चों के साथ–दस साल की लड़की और आठ साल का लड़का।
लड़के के हाथ में नाग की टोकनी थी और लड़की के हाथ मे बड़ा सा पोटला, मांगे हुए कपड़ों का।
आवाज लगाई, ऐसे दौड़े चले आए जैसे मैराथन में भाग ले रहे हो।
लड़के ने टोकनी का ढक्कन उठाया।नाग देवता सुस्त सोऐ पड़े थे। छोरे ने जबरदस्ती मुंह पकड़कर बाहर कर दिया।
बाल मजदूरी प्रतिबंध की धज्जियां उड़ी हुई थी। आठ साल के छोरे के हाथ में नाग था।
पूछने पर औरत कह रही थी– मेरे को तो सांप से ड़र लगता है। मेरा आदमी पकड़ता था, वो मर गया । अब बच्चे पकड़ नहीं पाते हमने इस सांप को –1100 रूपये में खरीदा है।
वाह रे! नागदेवता। तू तो इंसान के हाथ बिक गया रे।
ये इंसान तेरे को बेचते भी है और तेरे से कमाते भी है चाहे ड़रते हो पर तुझे छोड़ेगे नही।
इंसानों को तो आस्तीन में सांप पालने का वैसे भी अनुभव है। इनके आसपास अनेक सांप है जो बिकते रहते है ।
पूजा करते हुए मैंने पूछा-” बच्चों को स्कूल पढने भेजते हो कि नहीं।”
” हां हां भेजते है ना, सरकार भोजन देती है ना इसलिए। नहीं तो हम तो नहीं भेजे, अब पढलिखकर क्या करेंगे?”
“हमारे समाज में काम धंधा नहीं करते, करो तो चौपट हो जाता है, बिना काम के बहुत माल मिलता है ऐसे ही, मांग मांगकर।
प्रेमचंद जयंती: पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा रचना पाठ आयोजित
काम करो तो हमारी बिरादरी से बाहर कर दिया जाता है।”
मुझे देश के चंद भ्रष्ट नेताओं और उनमें कोई अंतर नहीं दिखा।
काम करोगे ईमानदारी से तो देखना कहीं नेतागिरी ठप्प ना हो जाए।
“अच्छा कितने बच्चे है?”
“बहनजी – बारह बच्चे हुए थे?”
उसने तो एक क्रिकेट टीम ही गिनवा दी।
थे मतलब?
दो मर गए।
“मैने सांस ली, चलो हाॅकी टीम तो पक्की है देश की।
ओलम्पिक में मेड़ल पक्का है अब तो।”
अब सरकार की परिवार नियोजन की प्लानिंग धरी की धरी रह गई।
लड़की को हममें नहीं पढाते। कहने पर मैने कहा- “छोरे को ही खूब पढा लेना।”
नहीं , नहीं। फिर सांप पकड़ना भूल जाएगा। ड़रने लगेगा। ड़र हमारी जिंदगी का जहर जो है।
“सांप से क्या ड़रना मैड़म, जहर अब जहरीला नहीं रहा।
ड़रना है तो इस दुनियां से ड़रो, कब कौन ड़ंसेगा और हम झाग उगलने लगेंगे पता भी नहीं चलेगा।”
तभी तो बड़ी हो गयी छोरी को साथ ले लेकर घुम रही हू।
हममें छोरीयों को पढाते नहीं फटाफट शादी करके भविष्य सुरक्षित करते हैं। फिर चिंता नहीं। घर में रहो, रोटी पानी के साथ सांपों को भी सम्हालो।
Indian snakes : राष्ट्रीय सम्पदा कदापि न मारें, एक इंच की दरवाजे की गैप से आपके आवास में प्रवेश कर सकते हैं,सावधानी बहुत जरुरी है .
“मैड़म ये जानवर इतना भी जहरीला नहीं जितना इंसान विषैला है। इससे ज्यादा जहर दारू, जुए, पैसे वालों में है।”
सच ही तो कह रही थी वह सांप का विष तो फिर भी निकाला जा सकता है, परन्तु इंसान का नफरत रूपी विष निकालना तो संभव नहीं है। यह इंसान अपने अंदर जात-पात, धरम-करम के नाम पर इतना ज्यादा विष पाले बैठा है कि पूरी दुनिया को मरने मारने और नष्ट करने पर उतारू है। इससे कैसे बचोगे?
“इन रेंगने वाले जानवरों से ज्यादा तो यह दो पैरों पर चलने वाला जानवर ज्यादा खतरनाक है ।
इनसे बचो मैड़म और चढाओ नाग देवता पर 100 रूपए और नाग को दूध पिलाओ।
आप पैसे वालों के लिए सौ रूपए बड़ी बात नही।”
कहकर उसने झोला समेट लिया, मांगकर लाया हुआ जो था और छोरे ने टोकनी का ढक्कन खोलकर नागदेवता मेरे सामने कर दिए।
“नहीं मैं नाग देवता को दूध नहीं पिलाऊंगी । सिर्फ हल्दी — कंकु कर दिया वही बहुत है। तुमने तो पहले ही इसका विष निकाल दिया है, अब इस बेचारे को दूध में डूबा डूबा कर मार ही डालोगे। अरे ! यह जीव- जंतु ,प्रकृति, पहाड़- नदी सब ईश्वर के ही तो बने हुए हैं। हमारे जीने का आधार है, इसलिए तो हम इन्हें देवी देवता मानकर पूजते हैं। तुम में हम में सब में ईश्वर है।” स्वभावनुसार मेरा लेक्चर चालू हो गया। सपेरन और उसके बच्चे आंखें और मुंह फाड़ कर मुझे देखने लगे ,मेरा दिमाग सही नहीं है वे शायद यही समझ रहे थे। नॉर्मल व्यक्ति ऐसी तार्किक बातें नहीं करता है। उन्हें अजीब नजरों से देखते हुए देखकर मैंने अपना भाषण रोका और जल्दी से
नागदेवता पर मैं पैसेवाली पैसे चढाकर अपनी तुलना नाग से करने लगी।
खतरों के खिलाड़ी मुझे देखकर व्यंग्य से मुसकरा रहे थे।
सुषमा व्यास ‘राजनिधि’, इंदौर