मध्यम  वर्ग को खुश करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती

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मध्यम  वर्ग को खुश करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में  एक कार्यक्रम में कहा कि  “मैं खुद को मिडिल क्लास परिवार के रूप में पहचानती हूं तो मैं ये बात जानती हूं | मोदी सरकार ने मिडिल क्लास के ऊपर कोई नए तरह के कर या टैक्स का बोझ नहीं डाला है | इसके अलावा 5 लाख रुपये तक की आय को भी टैक्स मुक्त रखा गया है | ” विदुषी श्रीमती सीतारमण ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र को भी  कुछ बातें स्मरण होंगी | कौटिल्य के अनुसार ‘ शासक को अपने जीवन स्तर से   सामान्य लोगों के जीवन स्तर का आकलन नहीं करना चाहिए और लोगों के कल्याण – ख़ुशी के हर संभव कदम उठाने चाहिए | इसमें कोई शक नहीं कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आठ साल पहले आई सरकार ने गरीबों के जीवन में बदलाव के लिए कई क्रन्तिकारी कल्याण कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया है | उद्योग व्यापार के क्षेत्र में तेजी से प्रगति हो रही है | लेकिन विभिन्न सर्वेक्षणों से यह बात सामने आई है कि देश का मध्य आय वर्ग अब भी सरकार के क़दमों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है | इसलिए आगामी बजट ( 2023 – 24 ) में  राहत के कुछ अच्छे क़दमों की उम्मीद कर रहा है |

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 देश का बजट एक फरवरी को पेश किया जाएगा और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसमें आम जनता से लेकर राज्य सरकारों और वित्तीय संस्थाओं की उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश कर सकती हैं |राष्ट्रीय सुरक्षा हो या धार्मिक मूल्यों का सम्मान, गरीबों का उत्थान हो या वैश्विक कूटनीति, ये कुछ ऐसे मुद्दे रहे हैं जिन्हें मोदी सरकार ने काफी अच्छे से संभाला है। हालांकि, इतनी सफलताओं के बीच सरकार के लिए जो मुद्दा सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में सामने आता है, वो है अर्थव्यवस्था का मुद्दा। विपक्ष अक्सर ही अर्थव्यवस्था और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलता नजर आता है। प्रधान मंत्री  मोदी पर सबसे बड़ा आक्रमण इस मुद्दे पर होता है कि केंद्र सरकार मध्यम वर्ग को कोई राहत नहीं देती नहीं है।वस्तुतः यह तर्क दिया जाता है कि मध्यम वर्ग में सरकारी नियमों के प्रति जागरूकता बढ़ जाने के कारण नीति संबंधी मुद्दों पर वैचारिक अंतर बढ़ने से ही मुख्यतः 2014 में भाजपा को चुनाव में भारी सफलता मिली थी | व्यापक शहरीकरण और आमदनी में वृद्धि होने से जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण भविष्य में ये प्रवृत्तियाँ और भी बढ़ सकती हैं |इस समय भारत की शहरी आबादी 32 प्रतिशत है जो 2050 तक दुगुनी हो सकती है और अनुमान है कि मध्यम श्रेणी के लोगों की संख्या 2025 तक बढ़कर एक अरब  तक हो सकती है|इन तथ्यों के बावजूद शहरी मध्यम वर्ग के बारे में सबसे अधिक धारणा यही रही है कि यह वर्ग चुनावी राजनीति के प्रति तिरस्कार और उपेक्षा का भाव रखता है |  मध्यम वर्ग नागरिक के रूप में अपनी सक्रियता का प्रदर्शन ऐसोसिएशन की ज़िंदगी जीने में करता है और चुनावी राजनीति को गरीबों का काम मानता है |

  एक प्रमुख आर्थिक सर्वे एजेंसी का  सर्वेक्षण  बताता है कि हर साल 5-30 लाख रुपये कमाने वाले परिवार मिडिल क्‍लास में आते हैं।  मिडिल क्‍लास घरों की संख्‍या दोगुनी हो गई है।  रिपोर्ट बताती है कि भारत की 4 प्रतिशत आबादी ‘अमीर’ है तो 13 प्रतिशत जनसंख्‍या ‘गरीब’।  साल में सवा लाख रुपये से कम कमाने वाला परिवार ‘गरीब’ है। यही सर्वे 2 करोड़ रुपये से ज्‍यादा कमाने वाले परिवारों को ‘सुपर रिच’ की कैटिगरी में रखता है।   साल में 5 लाख से 30 लाख रुपये सालाना आय वाले परिवार मिडिल क्‍लास में आते हैं।आबादी के लिहाज से देश की 31% आबादी मिडिल क्‍लास है। निम्न मध्यम वर्ग के परिवार की  सालाना आय का दायरा 1.25 लाख से 5 लाख रुपये के बीच रखा गया है। अनुमान है कि अगले 25 सालों में मिडिल क्‍लास आबादी का प्रतिशत बढ़कर 64% तक पहुंच सकता है।  सर्वे बताता है कि देश के 3 प्रतिशत घर संपन्न श्रेणी  में आते हैं। ये वे परिवार हैं जिनकी सालाना कमाई 30 लाख रुपये से ज्‍यादा है। भारत की सिर्फ 3 प्रतिशत आबादी ‘अमीर’ के दायरे में आती है।देश में 5 लाख से 30 लाख रुपये सालाना आय वाले 30 प्रतिशत परिवार हैं। इन्‍हें मिडिल क्‍लास में रखा गया है। कमाई से लेकर खर्च और बचत में मिडिल क्‍लास सबसे आगे है। आबादी में मिडिल क्‍लास की हिस्‍सेदारी 31 प्रतिशत है।निम्न आय वर्ग  की श्रेणी  में देश के 52 प्रतिशत घर आते हैं। आबादी में भी इनकी इतनी ही हिस्‍सेदारी है। सालाना सवा लाख से 5 लाख रुपये कमाई वाले परिवार इस रेंज में रखे गए हैं। बचत करने में लो मिडल क्‍लास की हिस्‍सेदारी सिर्फ 1% है। साल में 1.25 लाख रुपये से कम आय वाले परिवार ‘निराश्रित’ श्रेणी में रखे गए हैं। देश की 13 प्रतिशत आबादी और 15 प्रतिशत परिवार इस दायरे में आते हैं। इन परिवारों के पास पेट भरने की चुनौती है, बचत का सवाल ही नहीं उठता।महाराष्‍ट्र के 6.4 लाख घर ‘सुपर रिच’ की कैटिगरी में आते हैं। 2021 में इन परिवारों की सालाना आय 2 करोड़ रुपये से ज्‍यादा रही।  सर्वे नतीजों के अनुसार, महाराष्‍ट्र सबसे अमीर राज्‍य है। दूसरे नंबर पर दिल्‍ली है जहां 1.81 लाख ‘सुपर रिच’ घर हैं। गुजरात में 1.41 ‘सुपर रिच’ घर हैं और तमिलनाडु में 1. 37  लाख हैं |

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राजनैतिक प्रतिनिधियों द्वारा चुनाव की दृष्टि से मामूली-सा बने रहने की धारणा के अलावा मध्यम वर्ग के वे लोग जिनके पास राज्य के अंदर नैटवर्क नहीं है, न तो अपनी चिंताओं को लेकर प्रभावी रूप में आवाज़ उठा सकते हैं और न ही उनके पास राजनीति का पूरी तरह बहिष्कार करने का ही विकल्प रहता है | सार्वजनिक सेवाओं के लिए उन्हें सरकार की ज़रूरत तो है, लेकिन उनकी पहुँच वहाँ तक नहीं है | मध्यम वर्ग के ये लोग चुनावी चैनलों के माध्यम से सरकारी मशीनरी का भाग बने रहने का प्रयास करते हैं |   आर्थिक उदारीकरण के कारण राज्य-सोसायटी के संबंधों में आए व्यापक परिवर्तनों के फलस्वरूप मध्यम वर्ग की राजनैतिक लामबंदी के रूप में ये प्रवृत्तियाँ और भी बढ़ने लगी हैं | आर्थिक विकास के  फलस्वरूप मध्यम वर्ग में आए विस्तार के कारण सार्वजनिक सेवाओं में सुधार लाने की माँग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है |साथ ही  सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण और राजकोषीय विकेंद्रीकरण के कारण स्थानीय स्तर पर वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता बढ़ती जा रही है | दो कारकों के समन्वय ने स्थानीय राजनीति को और भी विवादास्पद बना दिया है. इस प्रकार मध्यम वर्ग की लामबंदी कुछ हद तक राज्य के बढ़ते संसाधनों के संदर्भ में शासन की गुणवत्ता और सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी में अंसतोष के कारण होती है | सिविल सोसायटी से लेकर चुनावी क्षेत्र में सक्रियता का यह संक्रमण मध्यम वर्ग के समूहों के लिए एक ऐसा साधन है, जिससे वे सरकारी संसाधनों के वितरण पर अधिक से अधिक सीधा नियंत्रण बनाये रखने में कामयाब होते हैं.

व्यापक दृष्टि से राजनैतिक प्रक्रिया में जुड़ने के मध्यम वर्ग के ये प्रयास सरकार की उस क्षमता को प्रदर्शित करते हैं, जिसके कारण चुनावी चैनलों या नौकरशाही के माध्यम से अधिक से अधिक मध्यम वर्ग के लोग राजनैतिक प्रक्रिया में भाग लेने लगे हैं | मध्यम वर्ग के वे लोग जो चुनावी राजनीति से अलग-थलग पड़ जाते हैं, सिविल सोसायटी में अधिक सक्रिय रह सकते हैं |इस बात का अंदाज़ा इसी बात से हो जाता है कि मध्यम वर्ग के ये लोग अनेक विशिष्ट नीतिगत मुद्दों पर व्यापक रूप में विरोध प्रदर्शन करते हैं और भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत के आंदोलन जैसे मामलों में सार्वजनिक भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं | इन विरोध प्रदर्शनों का उद्देश्य औपचारिक राजनीति के क्षेत्र से बाहर रहकर सरकारी नीतियों को प्रभावित करना होता है| सिविल सोसायटी में सक्रियता का संक्रमण चुनावी लामबंदी के रूप में तभी होता है जब वे नीतियों को प्रभावित करने में विफल रहते हैं | मध्यम वर्ग की लामबंदी के दो ही तर्क हैं, जिनका भारी प्रभाव भारत की राजनीति के स्वरूप पर पड़ता है और भारत का शहरीकरण तेज़ी से होने लगता है  | इसलिए अब सरकार को इस वर्ग पर विशेष ध्यान देगा | खासकर महिलाओं के लिए कुछ नए कदम और 65 से अधिक आयु वाले लोगों के पास केवल बचत से मिलने वाले ब्याज को टैक्स से राहत देने की मांग पर गंभीरता से विचार करना होगा |