PM मोदी ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी देकर सभी धारणाओं को निर्मूल किया
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों अपने पहले पॉडकास्ट में एक प्रश्न के जवाब कहा था कि मेरे द्वारा ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’ के सम्बन्ध में दिए गए मंत्र का कतिपय लोगों ने गलत अर्थ निकाल लिया था। कुछ लोगों ने कहा कि मोदी कर्मचारियों की संख्या कम करना चाहते हैं। कुछ ने इसका अर्थ मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या कम करने की मंशा बता दिया तो कुछ ने इसके अन्य ही अर्थ निकाल लिए जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने उन तमाम आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए जवाब दिया कि ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’ पर मेरा मंतव्य पेंचीदगी भरी लंबी सरकारी प्रक्रियाओं को समाप्त कर उन्हें सरल बनाना था ताकि जन साधारण के कार्य बिना किसी दिक्कत और बिना विलम्ब के हो सकें। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बताया कि केन्द्र में उनकी सरकार आने के बाद कई अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त किया गया हैं और हमारी सरकार ऐसे कई प्रयास और नवाचार कर रही हैं जिसके चलते विकास की हर बाधा को समाप्त कर दिया जाए तथा सामान्य मानवी को प्रशासनिक मशीनरी से होने वाली सभी कथित मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़े।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दिलवा कर उन सभी धारणाओं को समाप्त कर दिया है जोकि सरकारी कर्मचारियों के संदर्भ में उनके विरोधियों द्वारा की जाती रही हैं। अगले माह एक फरवरी को आने वाले केन्द्रीय बजट से पहले ही मोदी सरकार ने लाखों केंद्रीय कर्मचारियों को नए वर्ष का यह नायाब तोहफा देकर करोड़ों सरकारी कर्मचारियों का दिल जीत लिया हैं। केंद्र सरकार ने गुरुवार को आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी देने का एलान किया है। केन्द्र सरकार के इस अहम फैसले से करोड़ों कर्मचारियों के वेतन भत्तों में बढ़ोतरी होंगी। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सरकारी कर्मचारियों की सैलरी के साथ ही पेंशनधारकों के पेंशन में भी इजाफा होगा। बताया जा रहा है कि आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर एक करोड़ से अधिक सरकारी कर्मी लाभान्वित होंगे।
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि 8वें वेतन आयोग का अतिशीघ्र गठन होगा और आयोग अगले वर्ष 2026 तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगा। आयोग में अध्यक्ष के अलावा दो सदस्यों की नियुक्ति भी अतिशीघ्र की जाएगी।
भारत सरकार के इस कदम का इंतजार एक करोड़ से अधिक केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को काफी अर्से से इंतजार था। केन्द्रीय कर्मचारी अपने मूल वेतन, मंहगाई भत्ते, पेंशन और अन्य लाभों को संशोधित करने के लिए 8वें वेतन आयोग के गठन की आस लगाए बैठें थे। पिछली परंपरा के अनुसार केंद्रीय वेतन आयोग का गठन हर 10 साल में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतनमान, भत्ते और लाभों में बदलाव की समीक्षा और सिफारिश करने के लिए किया जाता है। यह आयोग महंगाई और आर्थिक स्थितियों जैसे कारकों को ध्यान में रखकर फैसला लेता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार की ओर से 28 फरवरी, 2014 को 7वें वेतन आयोग का गठन किया गया था जिसने 19 नवंबर, 2015 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी तथा आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी, 2016 से लागू हो गईं थी। इस आधार पर, 8वें वेतन आयोग के 1 जनवरी, 2026 से प्रभावी होने की उम्मीद की जा रही है। आयोग की सिफारिशों के आधार पर केन्द्रीय कर्मियों की तनख्वाहों में बढ़ोतरी होगी और पेंशनभोगियों के लिए भी महंगाई भत्ते (डीए) और महंगाई राहत (डीआर) में समायोजन किया जाएगा।
जब-जब केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होती है तब-तब राज्यों में भी केन्द्र के समान वेतनमान लागू करने की मांग जोर पकड़ लेती है तथा सरकारी कर्मचारी वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए आंदोलन की राह भी पकड़ लेते है। हालांकि कई राज्य सरकारें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होते ही अपने प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को केन्द्र के अनुरूप वेतन भत्ते मंजूर कर देते है,लेकिन कई प्रदेश कतिपय कारणों से ऐसा नहीं कर पाते बावजूद देर सवेरे उन्हें भी ऐसा करना ही पड़ता हैं। राजस्थान जैसे कुछ प्रदेशों ने यह नीतिगत फैसला लिया हुआ है कि वे अपने कर्मचारियों को केन्द्र के अनुरूप हरसंभव वेतन भत्ते देंगी। इसी कारण जब-जब केन्द्रीय कर्मियों के मंहगाई भत्तों आदि में वृद्धि होती है तब-तब राजस्थान सरकार भी बिना किसी देरी के तुरंत इसकी घोषणा कर उसे लागू करती हैं। हालांकि वेतन आयोग की सिफारिशें और वेतन एवं महंगाई भत्तों आदि को लागू करने से केन्द्र और प्रदेश की सरकारों पर भारी अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ता हैं और विशेष कर इसकी भरपाई और विकास कार्यों के लिए राज्यों की सरकारों की केन्द्र सरकार पर निर्भरता बढ़ जाती है। राजस्थान जैसे बड़े भूभाग वाले प्रदेश केन्द्र सरकार से विशेष अनुदान की मांग भी करते है। भारत सरकार देश के पर्वतीय और सीमावर्ती विशिष्ठ श्रेणी के राज्यों को शत प्रतिशत मदद करती है, लेकिन राजस्थान जैसे विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले मरुस्थलीय एवं सीमावर्ती राज्य इस लाभ से वंचित रह जाते हैं ।
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन,भत्तों और सेवा शर्तों के संबंध में भारत सरकार को कतिपय अपवादों को छोड़ कर पूरे देश में बिना किसी भेदभाव के एक समान नीति लागू करनी चाहिए ताकि सरकारी कारिंदो में असंतोष और असुरक्षा की भावना जागृत नहीं होवे। साथ ही सरकारी मिशनरी में व्याप्त कथित भ्रष्टाचार की प्रवृति पर भी अंकुश लग सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में सरकारी कर्मचारियों के रिटायर्ड होने की उम्र 58 वर्ष है जबकि अन्य कई प्रदेशों में केन्द्र की तरह सेवानिवृति की आयु 60 वर्ष हैं। इस प्रकार की विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए।
इसके अलावा केन्द्र सरकार को सरकारी कर्मचारियों के वेतन भत्तों आदि में बढ़ोतरी के साथ ही मंहगाई में होने वाली वृद्धि की रोकथाम के उपाय भी ढूंढने चाहिए,ताकि मंहगाई की मार से आम आवाम पीड़ित नहीं होवे। देखना है केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा इन ज्वलंत सवालों के हल के लिए निकट भविष्य में किस प्रकार के उपाय किए जाएंगे?
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