PM Modi’s Shahdol Visit: प्रधान मंत्री पकरिया गांव में ग्रहण करेंगे कोदो भात-कुटकी खीर
शहडोल: पीएम नरेंद्र मोदी कल शहडोल यात्रा के दौरान पकरिया गांव में कोदो भात-कुटकी खीर ग्रहण करेंगे।
शहडोल जिले पकरिया गांव अद्भुत एवं अविस्मरणीय है। जनजातीय संसार में जीवन अपनी सहज निश्छलता के साथ आदिम मुस्कान बिखेरता हुआ सात रंग के इंद्रधनुष की तरह गतिमान है। शहडोल जिले का पकरिया गांव सघन वनों से आच्छादित एक ऐसा गांव है, जहाँ साल, सागौन, महुआ, कनेर, आम, पीपल, बेल, कटहल, बांस और अन्य पेड़ों की हवाएं उन्नत मस्तकों का गौरव-गान करती है। उनकी उपत्यकाओं में अपने कल-कल निनाद से आनंदित करती सोन नदी की वेगवाही रजत-धवल धाराएँ मानो, वसुंधरा के हरे पृष्ठों पर अंकित पारंपरिक गीतों की मधुर पंक्तियाँ है।
पकरिया गांव में लगभग 4700 लोग निवास करते हैं,जिसमें से लगभग 2200 लोग मतदान करते हैं। गांव में लगभग 700 घर जनजातीय समाज के हैं। जिनमें गोंड समाज के 250, बैगा समाज के 255, कोल समाज के 200, पनिका समाज के 10 तथा अन्य समाज के लोग निवास करते हैं। पकरिया गांव में 3 टोला है, जिसमें जल्दी टोला, समदा टोला एवं सरकारी टोला शामिल है।
जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की लीला-मुद्राओं का अनुकरण
ढोल, माँदर, गुदुम, टिमकी, डहकी, माटी माँदर, थाली, घंटी, कुंडी, ठिसकी, चुटकुलों की ताल पर जब बाँसुरी, फेफरिया और शहनाई की स्वर-लहरियों के साथ भील, गोंड, कोल, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया आदि जनजातीय युवक-युवतियों की तरह बुंदेलखंड-शिखर थिरक उठते हैं, जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की इन्हीं लीला-मुद्राओं का तो अनुकरण है।
पकरिया गांव का जनजातीय समुदाय अद्भुत एवं अद्वितीय इसलिए भी है कि यहां के जनजातियों के रीति रिवाज, खानपान, जीवन शैली सब अविस्मरणीय है। जनजातीय समुदाय प्राय: प्रकृति सान्निध्य में रहते हैं। इसलिये निसर्ग की लय, ताल और राग-विराग उनके शरीर में रक्त के साथ संचरित होते हैं। वृक्षों का झूमना और कीट-पतंगों का स्वाभाविक नर्तन जनजातियों को नृत्य के लिये प्रेरित करते हैं। हवा की सरसराहट, मेघों का गर्जन, बिजली की कौंध, वर्षा की साँगीतिक टिप-टिप,पक्षियों की लयबद्ध उड़ान ये सब नृत्य-संगीत के उत्प्रेरक तत्व हैं।
नृत्य-संगीत जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग
नृत्य मन के उल्लास की अभिव्यक्ति का सहज और प्रभावी माध्यम है। संगीत सुख-दुख यानी राग-विराग को लय और ताल के साथ प्रकट करता है। कहा जा सकता है कि नृत्य और संगीत मनुष्य की सबसे कोमल अनुभूतियों की कलात्मक प्रस्तुति हैं। जनजातियों के देवार्चन के रूप में आस्था की परम अभिव्यक्ति के प्रतीक भी। नृत्य-संगीत जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग है। यह दिन भर के श्रम की थकान को आनंद में संतरित करने का उनका एक नियमित विधान भी है।
गोंड समुदाय के ‘सजनी’ गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएँ चमत्कृत
गांव में गोंड जनजाति समूह में करमा, सैला, भड़ौनी, बिरहा, कहरवा, ददरिया, सुआ आदि नृत्य-शैलियाँ प्रचलित हैं। गोंड समुदाय के ‘सजनी’ गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएँ चमत्कृत करती हैं। इनका दीवाली नृत्य भी अनूठा होता है। माँदर, टिमकी, गुदुम, नगाड़ा, झांझ, मंजीरा, खड़ताल, सींगबाजा, बाँसुरी, अलगोझा, शहनाई, बाना, चिकारा, किंदरी आदि इस समुदाय के प्रिय वाद्य हैं। बैगा माटी माँदर और नगाड़े के साथ करमा, झरपट और ढोल के साथ दशहरा नृत्य करते हैं। विवाह के अवसर पर ये बिलमा नृत्य कराते हैं। बारात के स्वागत में किया जाने वाला परघौनी नृत्य आकर्षक होता है। छेरता नृत्य नाटिका में मुखौटों का अनूठा प्रयोग होता है। इनकी नृत्यभूषा और आभूषण भी विशेष होते हैं।
भील जनजाति समूह के लोग नृत्य को ‘सोलो’ या ‘नास’ कहते हैं। लाहरी, पाली, गसोलो, आमोसामो, सलावणी, भगोरिया आदि इस जनजाति समूह की बहु प्रचलित नृत्य-शैलियाँ हैं। भील नृत्य के साथ प्राय: बड़ा ढोल, ताशा, थाली, घंटी, ढाक, फेफरिया, पावली (बाँसुरी) आदि वाद्यों का प्रयोग करते हैं।
पकरिया गांव के जनजातीय समाज के लोगों की पूजन अर्चन
पकरिया गांव में भील जनजाति समूह में हरहेलबाब या बाबदेव, मइड़ा कसूमर, भीलटदेव, खालूनदेव, सावनमाता, दशामाता, सातमाता, गोंड जनजाति समूह में महादेव, पड़ापेन या बड़ादेव, लिंगोपेन, ठाकुरदेव, चंडीमाई, खैरमाई, बैगा जनजाति में बूढ़ादेव, बाघदेव, भारिया दूल्हादेव, नारायणदेव, भीमसेन और सहरिया जनजाति में तेजाजी महाराज, रामदेवरा आदि की पूजा पारंपरिक रूप से प्रचलित है। पूजा-अनुष्ठान में मदिरा और पक्वान्न का भोग लगता है। भीलों के त्योहारों में गोहरी, गल, गढ़, नवई, जातरा तो गोंडों में बिदरी, बकबंदी, हरढिली, नवाखानी, जवारा, छेरता, दिवाली आदि प्रमुख हैं।
पकरिया गांव के जनजातियों का विशेष भोजन
पकरिया गांव के जनजातियों का विशेष भोजन कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, साँवा, मक्का, चना, पिसी, चावल आदि अनाज जनजाति समुदायों के भोजन में शामिल हैं। महुए का उपयोग खाद्य और मदिरा के लिये किया जाता है।आजीविका के लिये प्रमुख वनोपज के रूप में भी इसका संग्रहण सभी जनजातियाँ करती हैं। बैगा,भारिया और सहरिया जनजातियों के लोगों को वनौषधियों का परंपरागत रूप से विशेष ज्ञान है।बैगा कुछ वर्ष पूर्व तक बेवर खेती करते रहे हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पकरिया गांव में ग्रहण करेंगे कोदो भात-कुटकी खीर
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का शहडोल जिले के ग्राम पकरिया में 1 जुलाई को कार्यक्रम है जहां प्रधानमंत्री शहडोल जिले के स्थानीय जनजातीय, संस्कृति एवं परंपराओं से अवगत होंगे। यह दिन शहडोल के लिए बहुत ही ऐतिहासिक दिन होगा। ऐसा पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री देसी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठकर कोदो भात- कुटकी खीर ग्रहण करेंगे। कार्यक्रम में पूरी व्यवस्था को भारतीय परंपरा एवं संस्कृति के अनुसार तैयार जा रहा है। प्रधानमंत्री के भोज में मोटा अनाज को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। पकरिया गांव की जल्दी टोला में प्रधानमंत्री के भोज की तैयारी जोर – शोर से चल रही है।