ज़हरीला मध्य प्रदेश – प्रदूषित उत्तर भारत
कार्तिक पूर्णिमा और प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर हुई वर्षा से मध्य प्रदेश के अधिकांश भागों में ज़हरीला वायु प्रदूषण समाप्त हो गया है।पश्चिमी विक्षोभ तथा अन्य कारकों से होने वाली इस वर्षा की भविष्यवाणी सात दिन पहले ही कर दी गई थी। पिछले कुछ दिनों से मैं एकांत पार्क में मास्क लगाकर वॉक तथा खिड़की दरवाज़े बंद करके एक्सरसाइज़ कर रहा था। आज खुली हवा में एक्सरसाइज कर रहा हूँ। दीवाली से 15 दिन तक भोपाल का तड़के AQI 300 के ऊपर चल रहा था, जो ख़तरनाक स्तर का था।यही स्थिति मध्य प्रदेश के सभी छोटे-बड़े शहरों की थी। इस ज़हरीली हवा का मुख्य कारण धूल भरी सड़कें और फुटपाथ हैं, जिन पर वाहन धूल उड़ाते चलते हैं। दूसरा बड़ा कारण नगर निगम द्वारा चोरी छिपे तथा अनेक लोगों द्वारा खुलेआम कूड़ा जलाना है। मध्य प्रदेश के प्रदूषण का 20% कारण उत्तर भारत से आने वाली गंदी हवाएँ भी हैं। उत्तर भारत में पंजाब से बंगाल तक के सभी शहर और गांव प्रदूषित हो गये हैं। दिवाली के पटाखों का धुआँ भी इस मौसम में बहुत दिनों तक वायुमंडल में रहता है।पहले से प्रदूषित वातावरण में पटाखों का धुआँ अतिरिक्त प्रदूषण फैला रहा है। बच्चे तथा बुजुर्ग अस्पतालों में साँस की बीमारियों के लिये जा रहे हैं।
स्थानीय समाचार पत्रों में यदा कदा प्रदूषण के समाचार आने के उपरांत भी बुद्धिजीवी वर्ग इससे अनभिज्ञ बना रहता है। भोपाल झीलों की नगरी है तथा हरियाली से भरपूर है।इसलिए धारणा है कि इसके पार्क और खुले क्षेत्र प्रदूषित नहीं है। यह धारणा ग़लत है तथा शहर का प्रत्येक क्षेत्र प्रदूषित है। वर्षों से TV देखते हुए एक धारणा यह भी बन गई है कि भारत में प्रदूषण केवल दिल्ली में होता है। यह सही है कि दिल्ली का प्रदूषण बहुत अधिक है, परन्तु पूरा उत्तर भारत आज प्रदूषित है और अब मध्य प्रदेश भी उत्तर भारत का ही भाग बन गया है। दिल्ली में केंद्र सरकार, दिल्ली की राज्य सरकार, चार नगर निगम, सुप्रीम कोर्ट और अनेक प्रदूषण बोर्ड उपस्थित है, परंतु स्थिति यथावत ख़राब है। केंद्र सरकार धृतराष्ट्र जैसी है और उसे अपने ही घर का प्रदूषण नहीं दिख रहा है। मुख्य ज़िम्मेदारी वाली दिल्ली की केजरीवाल सरकार केवल बयानबाज़ी में सिद्धहस्त है। पहले वह पंजाब में पराली जलाने को दोष देती थी। अब अचानक उसने कुछ और बहाने ढूंढ लिये हैं। पड़ोसी राज्य हरियाणा,राजस्थान और उत्तर प्रदेश तथा आगे बिहार और बंगाल की सरकारें भी हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। सुप्रीम कोर्ट केवल उपदेशक की भूमिका में रह गया है। धूल और धुआँ समाप्त करना भारतीय व्यवस्था के वश में नहीं रहा है। इसलिए सभी सरकारें वाहनों और पटाखों पर अधिक दोष देकर भ्रम फैला रही हैं।
मध्य प्रदेश की सरकार और स्थानीय निकाय उत्तर भारत से आने वाली हवाओं को नहीं रोक सकती हैं। लेकिन साल भर ज़मीनी कार्रवाई करके ये इतना स्वच्छ वातावरण तो बना ही सकती हैं कि वह वाहनों और दिवाली के पटाखों का प्रदूषण आसानी से झेल सके।मध्य प्रदेश में स्थिति इतनी गंभीर है कि पिछले सप्ताह जब मैं सतपुड़ा के सुरम्य जंगलों में गया था तब वहाँ मैंने स्वयं जंगल में अपने मीटर से AQI 213 नापा था जो स्वस्थ नौजवानों के लिए भी हानिकारक है।
समय आ गया है कि केंद्र सरकार आवश्यक धनराशि, तकनीक और विशेषज्ञ उपलब्ध कराये और उत्तर और मध्य भारत की सभी सरकारें साल भर परिश्रम करके ज़मीनी कार्रवाई से स्वच्छ पर्यावरण बनायें। ज़हरीला प्रदूषण भारत के विकास तथा मानवीय संसाधनों के लिए बहुत घातक हो रहा है।