आलू चिप्स उत्पादन का ज़हरीला पानी पांच गाँवों और महू शहर के हिस्से तक फैला

आलू चिप्स का हब बनेगा तब तक कहीं कुओं में न उतर जाए जहरीला पानी 

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आलू चिप्स उत्पादन का ज़हरीला पानी पांच गाँवों और महू शहर के हिस्से तक फैला

दिनेश सोलंकी की ख़ास रिपोर्ट 

इंदौर की बावड़ी को बेढंगे तरीके से बंद करने का खामियाजा 36 इंसानी ज़िंदगियों को छीनने से भोगा गया तब जाकर मुख्यमंत्री से लेकर पूरा सरकारी महकमा हरकत में आया लेकिन इंदौर ज़िले के महू के पांच गाँवों में फ़ैल रहा आलू चिप्स उत्पादन का प्रदूषित ज़हरीले पानी को लेकर सारे जिम्मेदार विभाग ऐसे खामोश बैठे हैं जैसे सब कुछ जायज चल रहा है। ऐसा लगता है कि यहाँ भी जब कुवों में ज़हरीला पानी उतरेगा और यशवंत सागर प्रदूषित होगा तब जाकर ही नींद खुलेगी सरकार की !

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*ये है हक़ीक़त* 

हर साल महू से लगे कोदरिया पंचायत सहित पांच गाँवों में आलू चिप्स बनाने का का धंधा जोर शोर से चलता है। यह धंधा कोई 35 से 40 साल पुराना है जिसमें अब यह धंधा सैकड़ों कारखानों के साथ शुरू होकर ग्राम मलेंडी, न्यू गुराडिया, गुजरखेड़ा, और सातेर गांव तथा आसपास के इलाकों तक फैल गया है। माह जनवरी से अप्रैल तक चलने वाले इस धंधे के कारण प्रत्येक कारखाने से निकला हुआ केमिकल युक्त गंदा पानी खेतों की जमीन को सड़ाता हुआ नालियों से होकर बड़े नाले में मिलकर नदी के रूप में आकार लेता हुआ महू शहर के बाहर तक जा पहुंचता है।

बारिश के दिनों में जब यह नाला पूर आता है तो इसका पानी बहता हुआ इंदौर के यशवंत सागर डैम में जा मिलता है याने इंदौर के लोगों को भी नहीं मालूम यशवंत सागर डेम में प्रदूषित पानी का प्रवाह भी होता है।

आलू चिप्स का उत्पादन कोदरिया से शुरू होकर आज 5 बड़े गांव में पहुंच गया है। कारखानों की स्थिति सैकड़ों की संख्या में हो गई है लेकिन इतने सालों में स्थानीय प्रशासन से लगाकर जिला प्रशासन, प्रदूषण विभाग और राज्य शासन तक ने आलू चिप्स के निकलने वाले केमिकल युक्त गंदे पानी को रोकने हेतु समस्या का निराकरण करने का कोई प्रयास नहीं किया। सिवाय इसके के अधिकारियों के दौरे होते रहे, बैठके होती रही मगर नतीजा शून्य ही रहा।

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आज यह गंदगी जिसकी असहनीय बदबू कोदरिया से निकलकर महू तक आ पहुंची है और बारिश के दिनों में इसी गंदगी का बहता हुआ पानी इंदौर के यशवंत सागर डैम मिल जाता है।

 

यह गौर करने वाली बात है कि जिस खेत में भी आलू चिप्स का उत्पादन होता है वहां पर किसी प्रकार के सोक पिट्स (गड्ढे) नहीं बने हुए हैं जिससे कि जमीन में पानी उतर जाए। लेकिन यह गंदा पानी खेत की जमीन को सड़ाता हुआ नाली में आकर बड़े नाले में मिल जाता है। इसकी बदबू से पहले केवल कोदरिया वासी ही परेशान होते थे जहां सैकड़ों कालोनियों में हजारों लोग निवास करते हैं लेकिन अब 5 गांव के लोगों के साथ-साथ महू शहर का एक हिस्सा भी इस गंदगी से सराबोर हो गया है। यह बदबू भी इतनी जहरीली है कि बड़ी देर तक यदि नाक में घुस जाए तो इसका प्रभाव बना रहता है।

*बीते 40 सालों में इस प्रदूषण के खिलाफ शासन-प्रशासन जागा क्यों नहीं !* 

इसके पीछे का मुख्य कारण है आलू चिप्स के धंधों में कांग्रेसी और भाजपा के लोगों का उत्पादक के रूप में शामिल होना। कांग्रेस शासन के समय से चला आ रहा या खेल भाजपा के शासन में और भी ज्यादा हो गया है। इन नेताओं के हाथों की कठपुतलियां स्थानीय प्रशासन के अधिकारी भी बने होते हैं अप्रत्यक्ष रूप से लाभ बिजली विभाग और वन विभाग भी उठाता है। लोग बताते हैं अस्थाई कनेक्शन तो लिए जाते हैं लेकिन उसकी आड़ में भरपूर बिजली चोरी होती है। रोजाना ट्रकों से भर भर कर लकड़ियों के टुकड़े लाए जाते हैं जो आलू उबालने के लिए भट्टों में झोके जाते हैं।

 *ऐसे कारनामें भी चल रहे हैं* 

बताते हैं कि इस मामले में कतिपय वनकर्मी ट्रकों की कम संख्या बताकर बाकी की संख्या छुपाकर अवैध वसूली करते हैं। इस तरह हर साल संबंधित कई विभाग पिछ्ले दरवाजे से भरपूर कमाई करते हैं। खाद्य विभाग तो यह भी नहीं देखता कि जो आलू चिप्स के लिए उपयोग किया जा रहा है उसकी क्वालिटी क्या है। चेक नहीं होने के कारण सड़ा आलू भी पपड़ी बनाकर बिकने चला जाता है। कई जगह हमारे संवाददाता ने काली पपड़ी भी सूखती देखी जो न तो खाद्य विभाग को दिखती है और न ही स्थानीय प्रशासन को ही।

 

यह ख़ुशी की बात है शासन आलू हब बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है। इसके लिए मानपुर के पास कुवाली में ज़मीन भी ले ली गई है। लेकिन जब तक वहां पपड़ी उत्पादन शुरू होगा तब तक मौजूदा स्थानों पर गंदगी को ज़मीन सोख चुकी होगी और उसके कारन पीने योग्य कुओं का पानी विषैला हो जायेगा जो जन स्वास्थ्य को चुनौती देंगे।