Bhopal MP: कल टीवी पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली को मध्य प्रदेश में लागू करने की घोषणा प्रदेश के गृह मंत्री ने कर दी। दूसरे राज्यों से फ़ीडबैक लेकर इस प्रणाली को लागू करने पर विचार करने का आश्वासन कुछ समय पूर्व उनके द्वारा दिया गया था। पिछले 40 वर्षों से समय-समय पर दोनों पार्टियों की सरकारों ने ऐसी घोषणाएँ की हैं, परंतु आज की प्रभावशील घोषणा से मुझे इस बात का हर्ष है कि मध्य प्रदेश के दो महानगरों इंदौर और भोपाल में जनता को एक अच्छी पुलिस व्यवस्था देने का राजपत्र में प्रकाशन कर दिया गया है। इसके लिए सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने निर्णायक क़दम के लिए बधाई के पात्र है
संक्षेप में कहें तो इस प्रणाली में बड़े शहरों में पुलिस को कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। क़ानून व्यवस्था से निपटने के लिये आवश्यक अधिकार जैसे सामान्य प्रतिबंधात्मक कार्यवाही से लेकर जिला बदर और एन एस ए तक के तथा आर्म्स एक्ट आदि के अधिकार पुलिस को आ जाते हैं। दूसरे शब्दों में पुलिस जिन कामों के लिये उत्तरदायी है उन्हें पूरा करने के लिए संबंधित अधिकार उसे मिल जाते है। गम्भीर दंगों की स्थिति में पुलिस त्वरित कार्यवाही कर सकती है।
19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज़ों ने भारत में जो पुलिस व्यवस्था क़ायम की वह आज भी ज्यों की त्यों है। उस समय अधिकांश अंग्रेज़ों की जनसंख्या केवल 3 रेसिडेंसी महानगर कलकत्ता, मद्रास और बम्बई में रहती थी और उन्होंने अपने लिये इन शहरों में कमिश्नर प्रणाली लागू की।शेष भारत के शहरों और गाँवों में भारत की मध्य युगीन व्यवस्था को अंग्रेज़ी क़ानूनों का मुलम्मा लगाकर लागू कर दिया गया। बाद में पुलिस कमिशनर व्यवस्था दक्षिण के कुछ और शहरों में और फिर 1979 में दिल्ली में लागू की गई। धीरे धीरे यह व्यवस्था अन्य शहरों में भी प्रचलित हो गई और आज 70 से अधिक महानगरों में यह व्यवस्था लागू है। राष्ट्रीय पुलिस आयोग की अनुशंसा इस प्रणाली को 5 लाख से अधिक के सभी शहरों में लागू करने की थी। पिछले एक डेढ़ दशक में इसका बहुत विस्तार हुआ है। बड़े राज्यों में केवल 3 पिछड़े हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश रह गए थे। उत्तरप्रदेश में योगी सरकार ने कुछ प्रमुख शहरों में यह व्यवस्था लागू कर दी है और अब मध्य प्रदेश ने भी यह साहसिक क़दम उठाया है। कोई आश्चर्य नहीं है कि बिहार जैसा पिछड़ा राज्य अभी भी बाक़ी है जहाँ कोई भी सुधार अत्यंत धीमी गति से आते हैं।
कमिश्नर प्रणाली को पुलिस अधिकारियों को सरकार की तरफ़ से कोई तोहफ़ा न समझ कर इसे महानगर के नागरिकों के लिए एक अच्छी व्यवस्था देने का माध्यम माना जाना चाहिये।