“अविश्वास “और “विश्वास” के बीच छिड़ेगी सियासी जंग

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“अविश्वास “और “विश्वास” के बीच छिड़ेगी सियासी जंग

मध्य प्रदेश विधानसभा का सत्र सरकार के चार साल पूरे होने के दो दिन बाद सोमवार 19 दिसंबर से शुरू हो रहा है जिसके दौरान कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से शिवराज सरकार की तगड़ी घेराबंदी करने का मंसूबा बना रही है तो उसके प्रत्युत्तर में भाजपा भी पूरी तैयारी और लाव-लश्कर के साथ सदन में लगभग डेढ़ साल की कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में हुए कथित घपले-घोटालों के आधार पर उल्टे उस पर भारी पड़ने का प्रयास करने की तैयारी में है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि विधानसभा के इस सत्र पर 2023 में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव की परछाई पूरी तरह छाई रहेगी। यही कारण है भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हुए बढ़त लेने का हरसंभव प्रयास करेंगे। वहीं दूसरी ओर पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार ने आरक्षण संबंधी जो विधेयक पारित किया है वह फिलहाल राजभवन में अटक गया है जिसको लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा के साथ ही राज्यपाल अनुसुइया उइके की घेराबंदी करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है। आरक्षण के मुद्दे पर बघेल ने भाजपा पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा नेताओं के दो मुंह हैं, पहले आरक्षण का समर्थन कर रहे थे और अब क्या कर रहे हैं ? उनका आरोप था कि भाजपा राजभवन के माध्यम से खेल कर रही है और क्या विधानसभा से विभाग बड़ा हो गया।

दिसम्बर के प्रथम और द्वितीय दिन छत्तीसगढ़ में राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण सम्बंधी विधेयक पारित किया गया था जिस पर राज्यपाल के हस्ताक्षर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं हुए हैं। मुख्यमंत्री बघेल ने राज्यपाल के विधिक सलाहकार पर गलत सलाह देने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि आरम्भ में जो बात हुई थी वह बिलकुल ठीक हुई थी, आरक्षण किसी एक वर्ग का नहीं होता वह सारे वर्गों के लिए होता है, इसके लिए बहुत सारे नियम होते हैं क्या यह बात राजभवन को पता नहीं थी, क्या कोई विभाग विधानसभा से बड़ा हो गया है जो विभागों से जानकारी ले रहे हैं। विधानसभा से पारित हो जाने के बाद विभागों से जानकारी नहीं ली जाती है, कुल मिलाकर यह है कि भारतीय जनता पार्टी के हाथों में राजभवन है और उसके द्वारा ही पूरा खेल हो रहा है, यह ठीक नहीं है। पहले कुछ और स्टेंड था, अब वह स्टेंड बदलते जा रहे हैं। इसके साथ ही बघेल ने यह भी स्पष्ट किया कि आरक्षण केवल आदिवासियों के लिए नहीं है हमने 32 प्रतिशत आदिवासियों को आरक्षण दिया लेकिन उसके साथ ही पिछड़े का भी आरक्षण है। 12 प्रतिशत अनुसूचित जाति का था जिसे 13 प्रतिशत कर दिया है, पिछड़े वर्ग का 24 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया है। फिलहाल गेंद राजभवन के पाले में है और देखने वाली बात यही होगी कि अंततः अनुसुइया उइके इस पर क्या निर्णय लेती हैं।

 

*चुनावी साल और अविश्वास प्रस्ताव*

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब एक वर्ष से भी कम समय बचा है ऐसे में आगामी साल में जो जमीनी संघर्ष भाजपा और कांग्रेस के बीच होने वाला है उसकी झलक विधानसभा के इसी माह होने वाले सत्र में देखने को मिलेगी। दोनों दलों ने ही अपनी तरकश में तरह-तरह के आरोपों के बाण सजा रखे हैं जिससे एक-दूसरे को घायल करने का कोई भी मौका चूकने वाले नहीं है। चुनौतियां लगभग दोनों ही पार्टियों के सामने हैं और समान रुप से लगभग एक-सी चुनौतियां एवं संघर्ष है। कांग्रेस को दलबदल के द्वारा सत्ताच्युत होने का गम अभी तक दुखी किए हुए है और यही कारण है कि वह सत्र में जहां शिवराज सरकार पर आरोपों की बौछार करेगी तो डेढ़ साल में उसने जो कुछ किया है उसका भी बखान करेगी। भाजपा भी इस प्रयास में रहेगी कि वह सदन के माध्यम से प्रदेश की जनता के सामने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का असली चेहरा दिखा कर यह साबित कर सके कि उसकी सरकार सुशासन और जनकल्याण को प्राथमिकता देती है जबकि कांग्रेस सरकार ने इसके उलट काम किये थे। जहां तक भाजपा का सवाल है उसे अब अपने ढाई साल के कार्यकाल के भरोसे चुनावी इस वर्ष में जनता से और गहरे से जुड़ने वाली योजनाओं को महिमामंडित कर प्रस्तुत करना है ताकि वह अपने आपको कमलनाथ सरकार से बेहतर साबित कर सके। वहीं कांग्रेस यह बताने का भरसक प्रयास करेगी कि डेढ़ साल के कार्यकाल में उसके द्वारा जनता से किए गए वायदों को पूरा करने की दिशा में सधे हुए कदमों से आगे बढ़ना प्रारंभ किया था, यदि दलबदल के जरिए उसकी सरकार नहीं गिराई गई होती तो वह अपने सभी वायदे पांच साल में पूरा करती। कांग्रेस की रणनीति पुराने वायदों को दोहरते हुए कुछ नये वायदे करने की है ताकि वह चुनावी दृष्टि से फायदे में रहे और अपनी खोई हुई सत्ता वापस पा सके।

आगामी विधानसभा चुनाव की दृष्टि से मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने जो तैयारियां आरम्भ की हैं उसको धार देने के लिए अविश्वास प्रस्ताव को वह एक बड़े हथियार के रुप में मानती है जिसकी विधिवत सूचना कि अविश्वास प्रस्ताव लायेगी, विधानसभा के प्रमुख सचिव ए.पी. सिंह को दे दी है। यही कारण है कि 19 दिसम्बर से शुरू हो रहा विधानसभा का सत्र काफी हंगामापूर्ण होने के आसार हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह की तरफ से विधानसभा के प्रमुख सचिव को पत्र सौंपने के बाद वरिष्ठ विधायक एवं पूर्व मंत्री पी.सी. शर्मा ने कहा है कि पिछले दो साल से प्रदेश में जिस तरह से बीजेपी की सरकार चल रही है और जिस तरह मंत्रिमंडल काम कर रहा है उससे किसान, मजदूर, कर्मचारी और व्यापारी सभी वर्ग परेशान हैं। कांग्रेस विधायक दल की 18 दिसम्बर को होने वाली बैठक में अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दों को लेकर अंतिम चर्चा की जाएगी और 19 दिसम्बर को उसे सदन में पेश किया जायेगा। इस प्रस्ताव में प्रमुख रुप से कथित भ्रष्टाचार के मामलों को रखा जायेगा जिसमें पोषण आहार, प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड की शिक्षक एवं पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा में हुई गड़बड़ी, कारम बांध में अनियमितता, किसानों के लिए माफी न करके अपात्र बनाये रखने, एमपीएससी की परीक्षाएं न होने, ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ न दिला पाना आदि शामिल हैं।

*और यह भी*

दिसम्बर माह के तीसरे सप्ताह में कांग्रेस पूरी आक्रामकता के साथ प्रदेश में लगातार हो रही बिजली कटौती और बिजली की कमी को मुद्दा बनाकर विधानसभा में उठायेगी। तबादलों के चलते प्रदेश में कथित तौर पर चरमराई प्रशासनिक व्यवस्था पर भी कांग्रेस के तेवर तीखे रहेंगे और वह आरोप लगायेगी कि इसमें भारी भ्रष्टाचार हुआ है। किसानों की समस्याओं को भी पार्टी भुनाने की पूरी-पूरी कोशिश करेगी एवं कानून व्यवस्था के मुद्दे पर उसका कड़ा रुख रहेगा। देखने वाली बात यही होगी कि सरकार किस कुशलता से कांग्रेस द्वारा बनाये जा रहे चक्रव्यूह को भेदकर बाहर निकलने के साथ ही कांग्रेस को नये चक्रव्यूह में उलझाने में सफल रहती है या नहीं, क्योंकि इस सत्र का उपयोग दोनों ही दल अधिक से अधिक अपने पक्ष में राजनीतिक लाभ लेने के लिए करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो कांग्रेस को घेरने की कला में माहिर हैं ही लेकिन असली परीक्षा नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह की होना है जिन्हें अपने नये तेवर के साथ सत्र में अपना जौहर दिखाते हुए एक प्रभावशाली नेता प्रतिपक्ष में रुप अपने को साबित करना है।