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मध्य प्रदेश को बीमारु राज्य की श्रेणी से निकालकर बेमिसाल राज बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। इस पूरे बदलाव के लिए मध्य प्रदेश सरकार, राजनीतिक नेतृत्व व प्रशासनिक अधिकारियों ने जी जान से काम किया है। पर सोमवार को जारी एक रिपोर्ट ने प्रदेश के नीति नियंताओं की नींद एक बार फिर उड़ा दी है और वह रिपोर्ट है देश का स्वास्थ्य सूचकांक जिसे नीति आयोग ने जारी किया। ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ के नाम से जारी रिपोर्ट के अनुसार 19 बड़े राज्यों की स्वास्थ्य सूचकांकों की रैंकिंग के मामले में मध्यप्रदेश की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है।

2019-2020 के लिए 19 राज्यों की जारी इस रिपोर्ट में मध्यप्रदेश 17वें स्थान पर है, जो हम सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हालांकि पिछले वर्ष की अपेक्षा मध्य प्रदेश स्वास्थ्य सूचकांक में दो पायदान ऊपर चढ़ा है। थोड़ा पीछे जाएं तो पता चलेगा कि 2015-16 में भी मध्य प्रदेश का 17वां स्थान था जो 2017-18 में 18वां हो गया था और 2018-19 में 19वां हो गया था। आंकड़ों के लिहाज से अफसरशाही के लिए भले ही राहत की बात हो पर वास्तविक धरातल पर हालात सिहरन ही पैदा करते हैं। चिंता की बात यही है कि पिछले 5 वर्षों में हम निचली पायदानों के व्यतिक्रम से बाहर नहीं निकल पाए हैं। इस स्वास्थ्य सूचकांक में मध्य प्रदेश सिर्फ बिहार (18वें पायदान) व उत्तर प्रदेश (19वें पायदान) से ऊपर स्थान पा सका है।

मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य की दृष्टि से यह हाल तब है जबकि प्रदेश में हर साल 5000 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों पर खर्च किया जा रहा है। यह राशि सिर्फ स्वास्थ विभाग की है, मेडिकल कॉलेजों यानी चिकित्सा शिक्षा विभाग का बजट इससे अलग होता है।

आइए, मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य की दृष्टि से ढांचागत संसाधनों पर एक नजर डालें तो पता चलेगा कि 2021 में प्रदेश की 8 करोड़ 68 लाख की अनुमानित आबादी के लिए सभी 52 जिलों में जिला चिकित्सालय हैं और साथ में 97 सिविल अस्पताल भी हैं। 321 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं तो 1232 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। प्रदेश भर में 10,223 उप स्वास्थ्य केंद्र, 696 शहरी परिवार कल्याण केंद्र हैं। विशिष्ट चिकित्सा के लिए 7 क्षयरोग अस्पताल ,6 पॉलीक्लिनिक, 8 ट्रोमा सेंटर, 3 कैंसर चिकित्सालय तथा दो मानसिक चिकित्सालय भी हैं। इसके अलावा 49,864 ग्राम आरोग्य केंद्र भी हैं।

नीति आयोग द्वारा जारी इस सूची में केरल को पहला स्थान, तमिलनाडु को दूसरा स्थान, तेलंगाना को तीसरा, आंध्र प्रदेश चौथे, महाराष्ट्र 5वें, गुजरात 6वें, हिमाचल प्रदेश 7वें, पंजाब 8वें, कर्नाटक 9वें, छत्तीसगढ़ 10वें, हरियाणा 11वें, असम 12वें, झारखंड 13वें, ओडिशा 14वें, उत्तराखंड 15वें, राजस्थान 16वें, मध्य प्रदेश 17वें, बिहार 18वें और उत्तर प्रदेश सबसे आखिर में 19वें स्थान पर है।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश में केरल स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में सबसे आगे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे नीचे है। केरल ने सभी मानकों पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे पहला स्थाल हासिल किया है। नीति आयोग के चौथे स्वास्थ्य सूचकांक (Health Index 2021) रिपोर्ट नीति आयोग के सरकारी थिंक टैंक द्वारा बनाई गई है।

स्वास्थ्य के मानकों पर रिपोर्ट में कहा गया है कि वृद्धि संबंधी प्रदर्शन में उत्तर प्रदेश ने सबसे ऊंचा स्थान हासिल किया है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश ने आधार वर्ष (2018-19) से संदर्भ वर्ष (2019-20) तक सर्वाधिक वृद्धि परिवर्तन दर्ज किया है। छोटे राज्यों में मिजोरम शीर्ष स्थान पर है जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिल्ली एवं जम्मू कश्मीर ने सभी मानकों पर सबसे नीचे है और वृद्धि संबंधी प्रदर्शन में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त किया।

आंकड़ों के अनुसार झारखंड में प्रति 10,000 जनसंख्या पर कुल 4 चिकित्सक, नर्स और दाइयों की संख्या है जबकि अपेक्षित औसत 45 का है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार में प्रति 10,000 जनसंख्या पर 14, 15, 15 और 17 HCWs (Health Care Workers) हैं। नागालैंड, अंडमान और निकोबार में यह आंकड़ा 10 से भी कम हैं।

केरल में प्रति 10,000 जनसंख्या पर 114 HCWs हैं और इसीकारण केरल इस श्रेणी में शीर्ष पर हैं। इस श्रेणी में केवल छह राज्यों ने लक्ष्य हासिल किया है। वे आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मिजोरम, पंजाब और राजस्थान हैं। HCWs के मामले में भारत का औसत 37 है।

मध्य प्रदेश में 10 हजार की आबादी पर आयुष और एलोपैथी चिकित्स कों को मिलाकर सिर्फ 11 डॉक्टर, पांच नर्स और चार अन्य स्वास्थ्यकर्मी हैं। इस तरह 10 हजार की आबादी पर कुल 21 स्वास्थ्यकर्मी (HCWs) हैं। इतनी आबादी पर कुल स्वास्थ्यकर्मियों के मामले में मप्र देश में नीचे से छठवे नंबर पर है। पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के आधार पर आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में यह आंकड़े शामिल किए गए हैं। हालांकि, सिर्फ डॉक्टरों की बात की जाए तो मप्र से बेहतर स्थिति में सिर्फ केरल, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल हैं।

मप्र मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार कार्यालय के अनुसार 2021 की शुरूआत तक काउंसिल में 45 हजार डॉक्टर पंजीकृत थे। हालांकि इनमें कई डॉक्टर मप्र मेडिकल काउंसिल से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर दूसरे राज्यों में जा चुके हैं। हर साल करीब 800 डॉक्टर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं, जबकि 300 से 400 के बीच मध्य प्रदेश में आ रहे हैं। इस तरह प्रदेश में पंजीकृत चिकित्सक भले ही 45 हजार हैं, लेकिन असलियत में उनकी संख्या 30 हजार के करीब है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक है कि एक हजार की आबादी पर एक एलोपैथिक चिकित्सक होना चाहिए। मध्य प्रदेश में यह अनुपात 2666 है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टरों की कमी है। विशेषज्ञों के 2738 और चिकित्सा अधिकारियों के 1466 पद खाली बताए गए हैं।

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक व प्रदेश कोविड नियंत्रण समिति के सदस्य डा. अभिजीत देशमुख का मानना है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में जनजातीय व अनुसूचित वर्ग की आबादी होना भी एक बड़ा कारण है। हमारा प्रयास है कि प्रदेश के हर इलाके में बेहतरीन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए। पर कई बार जनजातीय व अनुसूचित वर्ग के परंपरागत रीति-रिवाजों व संस्कृति के चलते कुछ जेनेटिक बीमारियों से निपटने के लिए हमें थोड़े ज्यादा प्रयास करने पड़ते हैं।

इन अंचलों में कुपोषण के मामले पर भी फोकस किया जा रहा है। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य योजना के तहत महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ मिलकर 6 वर्ष के कम के बच्चों में कुपोषण के मामलों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

डा देशमुख कहते हैं कि प्रदेश में स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बढ़ाने के प्रस्ताव पर गंभीरता के साथ मंथन चल रहा है। इसके तहत प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में कार्यरत 20 हजार जनस्वास्थ्य रक्षकों को नवीनतम प्रशिक्षण दे कर HCWs का दर्जा दिया जा सकेगा। ऐसा होने पर आम आदमी तक बेहतर स्वाथ्य सुविधाएं पहुंचाने के संकल्प की दिशा में हम और आगे बढ़ सकेगें।

स्वास्थ्य विभाग से जुड़े विशेषज्ञों का भी माना है कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए सभी जिला अस्पतालों से संबद्ध कर चिकित्सा महाविद्यालय खोलना चाहिए। साथ ही प्रदेश में डाक्टरों की सेवा शर्तें ऐसी की जाएं कि डॉक्टर प्रदेश छोड़कर दूसरे राज्यों में नहीं जाएं।

मध्यप्रदेश को बीमारु राज्य के बदनुमा दाग से मुक्त कराकर बेमिसाल राज्य की श्रेणी में खड़ा करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि प्रदेश को स्वास्थ्य सूचकांक में TOP 10 में कैसे स्थान दिलाया जाए।