Politico Web: यूक्रेन पर हमले ने खड़ा किया भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल

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Politico Web: यूक्रेन पर हमले ने खड़ा किया भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल

यूक्रेन के खिलाफ रूस की युद्धक कार्रवाई जहां एक तरफ शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था के लिए चिंता की बात है, वहीं इस प्रकरण ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, जिसका समय रहते निदान किया जाना अत्यावश्यक है और यही समय की भी मांग है।

बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्या मजबूरी है विश्व गुरु बनने की ओर बढ़ रहे हमारे भारतवर्ष के छात्रों को डिग्री लेने के लिए यूक्रेन जैसे छोटे देशों में जाना पड़ रहा है। क्या हमारे देश में अपने नवयुवकों को वाजिब फीस के एवज में स्तरीय डिग्री देने की व्यवस्था नहीं है।

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यूक्रेन के शिक्षा एवं विज्ञान मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार युद्धक कार्रवाई शुरु होने के पहले तक 18,095 भारतीय छात्र वहां एमबीबीएस शिक्षा ग्रहण करने के लिए गए हुए थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार यूक्रेन में एमबीबीएस की डिग्री लेने जाने वाले अधिकांश छात्र पंजाब हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के हैं। यूक्रेन में पढ़ने वाले एक छात्र के माता-पिता का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य मेडिकल डिग्री यूक्रेन में काफी कम फीस पर उपलब्ध हो जाती है, इसलिए उनकी पहली पसंद यूक्रेन जैसे छोटे देश होते हैं। पंजाब के नवांशहर की युवती जो खुद यूक्रेन में अटकी हुई है, के अनुसार यूक्रेन में मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाले 100 से ज्यादा एमबीबीएस छात्रों को तो वह खुद ही जानती है जो अभी भी यहां फंसे हुए हैं।

मेडिकल डिग्री के लिए छात्रों को यूक्रेन भेजने वाले एक कंसलटेंट का मानना है कि ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को मेडिकल डिग्री के लिए यूक्रेन इसलिए भेजते हैं क्योंकि वहां अपने देश की तरह अंधाधुंध कंपीटीशन नहीं हैं। मनचाही ब्रांच और स्पेशियलाइजेशन की सुविधा के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। सबसे बड़ा फायदा तो यह होता है कि हमें कम फीस पर विदेशी विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय डिग्री मिल जाती है जो पूरी दुनिया में मान्य होती है। आप जानते ही हैं कि विदेशी डिग्री को आज भी भारतीय डिग्री से ज्यादा तरजीह और सम्मान दिया जाता है।

भारत में मेडिकल शिक्षा के लिए सामान्य तौर पर सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कालेज होते हैं। प्राइवेट मेडिकल कालेज में साढ़े चार वर्ष के इस कोर्स के लिए हर साल 10 से 12 लाख रु खर्च करने पड़ते हैं। इस तरह पूरा कोर्स लगभग 50 लाख रुपए का पड़ ही जाता है। वहीं सरकारी मेडिकल कालेज में फीस व अन्य खर्च लगभग 2 लाख रु प्रति वर्ष हो जाता है यानी पूरा कोर्स 10 से 12 लाख में हो जाता है।

यूक्रेन में मेडिकल डिग्री के लिए 4 से 5 लाख रुपए प्रति वर्ष खर्च आता है जो कि भारतीय प्राइवेट मेडिकल कालेज के खर्च के आधे से भी कम होता है और विदेशी विश्वविद्यालय की डिग्री ऊपर से। वहां के मेडिकल कालेजों में सीट भी भरपूर होती हैं।डाक्टर बनने के इच्छुक जिन छात्रों को देश में एडमीशन नहीं मिल पाता है वे यूक्रेन की ओर मुंह कर लेते हैं।

भारत में मेडिकल डिग्री के लिए एडमीशन के लिए नीट (NEET) परीक्षा में हाई परसेंटाइल हासिल करना जरूरी होता है। ऐसा न होने पर मनमाफिक कालेज नहीं मिल पाता है। विदेशी विश्वविद्यालयों में सिर्फ नीट क्वालिफाई कर लेना ही पर्याप्त होता है हाई परसेंटाइल जरूरी नहीं होता है।यूक्रेन में भी एमबीबीएस की डिग्री के लिए सिर्फ नीट क्वालिफाई कर लेना ही पर्याप्त होता है, वहां भी हाई परसेंटाइल होना कतई जरूरी नहीं होता है।

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नीट 2021 में कुल 15,44 275 छात्र शामिल हुए थे जिनमें से 8,70,075 ही नीट क्वालिफाई कर सके थे।आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2021-22 को सत्र के लिए 5170 एमबीबीएस सीट्स और जोड़ी गई थीं फिर भी सीटों का मारामारी जारी थी क्योंकि सरकारी मेडिकल संस्थानों में एमबीबीएस की 83,075 सीट्स थी जबकि बीडीएस की 26,949 तथा आयुष की 52,720 सीट्स थीं। बाकी सभी इच्छुक छात्रों के लिए भारी फीस चुका कर प्राइवेट मेडिकल कालेज मे दाखिला लेना मजबूरी हो जाता है। इसी मौका का फायदा उठाकर तमाम यूक्रेनी मेडिकल कालेज के भारत भर में व्याप्त कमीशन एजेंट कम फीस में विदेशी मेडिकल डिग्री का लालच दिखा कर भारतीय छात्रों को अपने साथ ले जाते हैं।

नाम न छापने की शर्त पर एक छात्र के अभिभावक ने आंखों में आंसू भर कर पूछा कि मेरा बेटा जिसका एमबीबीएस कोर्स इसी साल जून में यूक्रेन में पूरा हो जाता तो उसे कहीं भी अच्छी नौकरी मिल सकती थी और वह 25 लाख का अपना एजुकेशन लोन चुका देता। पर अब हम ऐसी विकट स्थिति में फंस गए हैं कि लोन सिर पर है और डिग्री पूरी होने का सवाल ही नहीं उठता है। हम एजुकेशन लोन कैसे चुका पाएंगे। भारत सरकार को इस बारे में भी विचार करना चाहिए। वहां से छात्रों को सुरक्षित निकालकर भारत सरकार ने जो मानवीयता दिखाई है, वह काबिलेतारीफ है पर आर्थिक तौर पर जो बोझ हम पर पड़ गया है, उसका निदान क्या है।

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अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी यह बड़ा सवाल बन गया है। यूक्रेन के छात्रों को वापस लाने की कोशिशों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेडिकल की शिक्षा के लिए बड़े पैमाने पर छात्रों के छोटे-छोटे देशों में जाने की मजबूरी पर चिंता जताई है। उन्होंने निजी क्षेत्र एवं राज्य सरकारों से देश में ही सस्ती और बेहतरीन मेडिकल शिक्षा का ढांचा तैयार करने का आग्रह भी किया है ताकि छात्रों को इसके लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं पड़े।

इसी के साथ प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट में किए गए आवंटन के बेहतर उपयोग के साथ ही निजी क्षेत्र से मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में आगे आने की अपील की है। साथ ही उन्होंने राज्य सरकारों को भी ऐसी नीतियां बनाने को कहा है कि जिससे मेडिकल कालेजों की स्थापना के लिए आगे आने वाले निजी क्षेत्र को आसानी से सस्ती जमीन उपलब्ध हो सके।

दरअसल, देश में मेडिकल शिक्षा के अवसर की कमी के कारण ही छात्रों को दूसरे देशों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्रधानमंत्री ने छात्रों की समस्या को गहनता से समझते हुए कहा कि इन छात्रों को उन देशों की भाषा की सीखने समझने में भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि देश में ही मेडिकल शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था होगी तो छात्रों को काफी सुविधा मिल जाएगी।

इसी अवसर पर मध्य प्रदेश सरकार ने एक प्रशंसनीय पहल कर दी। काफी लंबे समय से की जा रही मांग के मद्देनजर अब मध्य प्रदेश सरकार ने कहा है कि मप्र में अब बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी (MBBS) की पढ़ाई राजभाषा हिन्दी में भी होगी। इससे संबंधित पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत राजधानी भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज (GMC) से होगी। मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री विश्वास सारंग ने गुरुवार, 24 फरवरी 2022 को इस आशय की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि गांधी मेडिकल कॉलेज में यह कोर्स शुरू होगा।

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विश्वास सारंग ने कहा कि विभिन्न शोधों से यह भी पता चला है कि मातृभाषा में सीखना फायदेमंद होता है और इसके बेहतर परिणाम होते हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष से हम हिंदी में भी एमबीबीएस के पाठ्यक्रम की शुरूआत करने जा रहे हैं। प्रथम वर्ष के तीन विषयों एनोटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की किताबों का हम अनुवाद कराएंगे। घोषणाएं कर देना आसान होता है पर इन पर सटीकता से अमल कर पाना मध्य प्रदेश शासन के लिए आसान न होगा।

उल्लेखनीय है कि देश में 2014 से पहले मात्र 55,000 एमबीबीएस सीटों की व्यवस्था थी जो कि 2022 में बढ़कर लगभग 85,000 हो गई हैं। नवंबर 2019 में 75 नए मेडिकल कॉलेज खोले जाने की अनुमति देकर और उनके लिए पर्याप्त बजट आवंटित कर इस दिशा में काफी महत्वपूर्ण काम किया गया है।

भारत में मेडिकल शिक्षा के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद यानी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1933 के अंतर्गत 1934 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा हेतु तथा भारत व विदेशों में चिकित्सा योग्यता की मान्यता के लिए समान मानकों को स्थापित करना था। पर अकूत भ्रष्टाचार के कारण अपने उद्देश्यों में विफल इस संस्था को अब निरस्त कर दिया गया है।

22 अप्रैल 2010 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई ) द्वारा भारतीय चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष केतन देसाई की गिरफ्तारी के बाद भारत के राष्ट्रपति ने 15 मई 2010 को परिषद को ही भंग कर दिया था। सीबीआई ने केतन देसाई के परिसरों से डेढ़ किलोग्राम सोना, 80 किलो चांदी बरामद की गई थी। इसके अलावा अहमदाबाद में देसाई के बैंक लाकरों से 35 लाख का सोना बरामद किया गया था। केतन देसाई को सीबीआई ने एक निजी मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने के लिए 2 करोड़ रु की रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा था। उन्हें तुरंत मेडिकल काउंसिल से हटा दिया गया तथा उनका पंजीकरण भी रद्द कर दिया गया था।

काफी विचार विमर्श के बाद 6 जनवरी 2019 को लोकसभा में भारतीय चिकित्सा परिषद संशोधन विधेयक (2018) पारित कर दिया। प्रख्यात पेशेवरों के एक पैनल को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया चलाने की अनुमति दी गई थी ताकि चिकित्सा शिक्षा को सर्वोत्तम तरीके से नियमित किया जा सके। इसके बाद पारदर्शिता के उद्देश्य से एमसीआई ऑनलाइन की व्यवस्था की गई। एमसीआई ऑनलाइन पंजीकरण के लिए ऑनलाइन प्रसंस्करण के लिए और व्यावसायिक प्रमाण पत्रों के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद का पोर्टल है।

भारतीय चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में सीटों की कमी, योग्य शिक्षकों की कमी, पर्याप्त लैबों की अनुपलब्धता, संसाधनों की कमी और सबसे बड़ी व मूल समस्या इस प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार है जो दीमक की तरह पूरी व्यवस्था का समूल नाश कर रहा है।युक्रेन पर युद्धक कार्रवाई में भारतीय मेडिकल छात्रों के वहां फंसने से इस समस्या पर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट हुआ है। अब इस दिशा में देश की सरकार सोचना होगा और जरूरी कदम भी उठाने होंगे ताकि कम फीस के चक्कर में कोई भी भारतीय छात्र युक्रेन जैसे देश जाकर अपनी जान खतरे में न डाले।