Politico-Web -बिरसा के कंधे पर शिवराज का राजनीतिक कद बढ़ा

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देश में आदिवासी शोषण के खिलाफ बिगुल बजाने वाले भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में शामिल होकर जनजातीय महासम्मेलन के माध्यम से जो उद्घोष किया है उसकी गूंज जल्दी ही सत्ता के गलियारे से लेकर देश के कोने कोने में बसे वनवासी इलाकों में सुनी जा सकेगी।

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स्वाधीनता आंदोलन में जनजातियों के संघर्ष और बलिदान को सम्मान देने व उनकी गौरवशाली संस्कृति का उत्सव मनाने के लिए जनजाति महानायक बिरसा मुंडा की जयंती का दिन हर वर्ष जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत मध्यप्रदेश से करवा कर शिवराज सिंह चौहान ने ऐसी चाल चली है जिसकी काट ढूढना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।इस पूरे कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का जो उन्हें खुला समर्थन मिला है वह पार्टी के अंदर शिवराज को मजबूत करेगा। कुल मिलाकर नए हालात में अब शिवराज सिंह चौहान का कद जरूर बढ़ गया है और वे मप्र को ज्यादा फ्री हैंड से चला सकेंगे।

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450 करोड़ की लागत से बने देश के सबसे पहले वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन को रानी कमलापति के नाम पर लोकार्पित किया जाना बेहद महत्वपूर्ण संदेश देता है कि अब जनजाति समुदाय को दुनिया की श्रेष्ठतम सुविधाओं के साथ जोड़ा जा रहा है।

इसी के साथ जनजातीय बच्चों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने के लिए देश भर में 50 एक्लव्य स्कूलों को शुरू किया जाना तथा जनजातीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति वर्ष राजा संग्राम शाह के नाम पर पाँच लाख रुपये का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा, राशन आपके ग्राम योजना व मप्र सिकेल सेल उन्मूलन योजना की घोषणा आदिवासियों को प्रभावित जरूर करेगी और इसके दूरगामी परिणाम भी दिखेंगे।

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आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी जनजातियों के योगदान को नगण्य ही माना जाता रहा है। विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ 1818 में सबसे पहले जनजातियों ने ही हथियार उठाए थे। पर अंग्रेजों के दुमछल्ले वामपंथ प्रभावित इतिहासकारों ने कभी भी इनके योगदान को गौरव के साथ दर्ज ही नहीं किया।

भाजपा नेता खुलकर कहते हैं कि “मुगल व अंग्रेज हमारे नायक कैसे हो सकते हैं”। उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार भी राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए खड़ी है और मानती है कि “इतिहास में जो कुछ भी अधिनायकवादी व साम्प्रदायिक मानसिकता को बढ़ावा देता हुआ दिखेगा उसे हटा दिया जाएगा”। मध्यप्रदेश की सरकार भी उतने ही दमखम के साथ काम कर रही है पर थोड़ी सतर्क और संभल कर।

भारत भर में मुगलों की छाप
मुगलों का शासन (1526-1857) भारत के इतिहास और संस्कृति के साथ अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है। अपने पीछे छोड़े गए ऐतिहासिक स्मारकों के अलावा आज उनके शासन की सबसे अधिक दिखाई देने वाली विरासत भारत भर के विभिन्न कस्बों और गांवों में है जो उनके नाम पर हैं।

देश के लगभग 6 लाख शहरों, कस्बों और गांवों में से 704 में पहले छह मुगल बादशाहों के नाम आज भी देखे जा सकते हैं, जैसे, बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब।

सबसे अधिक दिखाई देने वाली विरासत अकबर की है, जिसके नाम पर आज 251 शहर और कस्बे हैं। उसके बाद औरंगजेब (177), जहांगीर (141), शाहजहां (63), बाबर (61), और हुमायूं (11) का स्थान आता है।
चूंकि मुगलों का प्रभाव क्षेत्र उत्तर व मध्य भारत पर अधिक था इसीकारण मुगलों के नाम पर अधिकांश स्थान उत्तरी और मध्य भारत में हैं।

आधुनिक भारतीय राज्यों में, उत्तर प्रदेश सूची में सबसे ऊपर है – इसके 1 लाख से अधिक गांवों और कस्बों में से 396 में अभी भी मुगलों के नाम हैं। यूपी के बाद बिहार 97, महाराष्ट्र 50 और हरियाणा 39 के साथ है।राजधानी दिल्ली में बाबर रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड, लोधी रोड, कर्जन रोड आदि अनेक नाम आज भी आम भारतीयों को मुंह चिढ़ाते हैं।
इनमें से लगभग आधे स्थानों पर अकबरपुर, औरंगाबाद, हुमायूँपुर और बाबरपुर जैसे अलग-अलग नाम हैं; हालाँकि, अकबर निवास खंडरिका और दामोदरपुर शाहजहाँ जैसे मिलेजुले नाम भी हैं।

सबसे आम नाम अकबरपुर है – जिसमें से देश भर में लगभग 70 हैं – इसके बाद औरंगाबाद है, जो 63 स्थानों का नाम है। आपको पता होगा ही कि औरंगाबाद नाम का जिला व शहर महाराष्ट्र और बिहार दोनों में है। औरंगाबाद नाम से दोनों राज्यों में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र भी हैं। कोई भी सरकार इनके नाम में बदलाव करना भी नहीं चाहती क्योंकि इससे वोट बैंक पर असर जो पड़ सकता है। पिछले दो दशकों से औरंगाबाद (महाराष्ट्र) का नाम बदलने की बात तो चल रही है पर इच्छाशक्ति की कमी साफ दिखती है।

हालांकि 2017 में सत्ता में आने के बाद से उप्र की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में कई स्थानों का नाम बदल दिया है। महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन मुगलसराय का नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज और फैजाबाद का नाम अयोध्या रखा गया। यह नामकरण पूर्व-इस्लामिक समय में भारत के “मूल” खोए हुए गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए संघ परिवार की वैचारिक प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

पिछले दिनों राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार के लिए जब हमारी जनजातीय विभूतियां पहुंचीं तो उनके पैरों में चप्पल भी नहीं थीं। यह देखकर दुनिया हैरान रह गई। यह जनजातीय क्षेत्रों में काम करने वाले ही हमारे असली हीरो हैं पर किसी भी सत्ता ने इन्हें कभी वांछित महत्व नहीं दिया।

अंग्रेज शासन के दौर में आदिवासियों का दमन कर उन्होंने जो भी भवन, अस्पताल, पुल आदि बनवाए तो सबके नाम उन्हीं अंग्रेजों के नाम पर ही आज भी देखे जा सकते हैं। मप्र विधानसभा के लिए 2018 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी व जनजातीय वोटों पर सेंध मारकर भाजपा को 5 सीटों से जो नजदीकी पटखनी दी थी, वह टीस आज भी शिवराज सिंह चौहान के मन के कोने में दबी पड़ी है।

यह पूरा प्रयास उस दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा ने पूरा साथ दिया है। उनका मानना है कि आदिवासियों व जनजातियों के साथ अबतक जो अन्याय हुआ है,उसे उनका सम्मान कर समाज में प्रतिस्थापित कर ही किया जा सकता है और भाजपा इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।

वैसे बता दूं कि लोकसभा की 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं जिनमें सबसे ज्यादा 6 सीटें मप्र से हैं जबकि झारखंड व ओडिसा से 5-5 सीटें हैं। वहीं,मप्र विधानसभा में भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटें पिछली बार की तरह ही अगले चुनाव में भी निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं, इसीलिए सबकी निगाह में हैं।