Politico Web : जरा भी हल्के में न लें क्रिप्टो क्रिश्चियंस को

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सनातन धर्म के बाद ही पृथ्वी पर अन्य धर्मों का शनै शनै प्रादुर्भाव हुआ। इस वक्त के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में पहले नम्बर पर 238 करोड़ अनुयायियों के साथ इसाइयत है, फिर 191 करोड़ अनुयायियों के साथ के साथ इस्लाम, 116 करोड़ अनुयायियों के साथ हिन्दु हैं जबकि 119 करोड़ लोग ऐसे भी है जो किसी भी धर्म मेंविश्वास नही रखते हैं।

2011 के जनसांख्यकीय आंकड़ों को आधार माने तो भारत में 79.8% आबादी हिन्दु, 14.23% मुस्लिम और 2.30% आबादी इसाइयों की थी। 2001 से 2011 के दशक में मुस्लिम आबादी का वृद्धि दर 24.6% रही जबकि हिन्दुओं में 16.8% और इसाइयों में 15.5% ही वृद्धि दर दर्ज किया गया।

आइए अब बात करते है देश के सुदूर दक्षिण में स्थित कन्याकुमारी जिले की 2011 की आधिकारिक जनसंख्या की। कन्याकुमारी में18.70 लाख की आबादी में से 48.65% हिन्दु, 46.85% इसाइ और 4.20% मुस्लिम आबादी थी।

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हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने कैथोलिक पादरी जॉर्ज पोन्नैया से जुड़े एक मामले में टिप्पणी की कि अनुसूचित जाति से आने वाले ऐसे लोग भी होते हैं जो धर्मांतरण कर इसाइ तो बन जाते हैं, लेकिन आरक्षण का फायदा लेने के लिए खुद को दस्तावेजों में हिंदू बताते रहते हैं। मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की यह टिप्पणी चिंता पैदा करने वाली है। देश में लंबे समय से ‘क्रिप्टो क्रिश्चियन (Crypto Christian)’ पर गुपचुप बहस चल रही थी। पर कोई खुलकर नहीं बोल रहा था। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी कर के मामले पर सार्वजनिक पटल पर ला दिया।

असल में मामला यह था कि पादरी ने भारत माता और भूमा देवी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसको लेकर एफआईआर दर्ज की गई। इसे रद्द करने को लेकर पादरी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाई कोर्ट ने उसे राहत देने से इनकार करते हुए अपने फैसले में कन्याकुमारी की जनसांख्यिकी में बदलाव का भी जिक्र किया।

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जस्टिस स्वामीनाथन ने अपनी टिप्पणी में इशारा किया कि हकीकत में कन्याकुमारी जिला ईसाई बहुल आबादी में तब्दील हो चुका है। उन्होंने कहा, “धार्मिक तौर पर कन्याकुमारी की जनसांख्यिकी में बदलाव देखा गया है। 1980 के बाद से जिले में हिंदू बहुसंख्यक नहीं रहे। हालाँकि 2011 की जनगणना बताती है कि 48.5 फीसदी आबादी के साथ हिंदू सबसे बड़े धार्मिक समूह हैं। पर यह जमीनी हकीकत से अलग हो सकती है। इस पर गौर किया जाना चाहिए कि बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के लोग धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके हैं, लेकिन आरक्षण का लाभ पाने के लिए खुद को हिंदू बताते रहते हैं।”

हाई कोर्ट ने कहा कि पादरी के टिप्पणियों पर गौर करने के बाद उसकी मंशा स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। इसका मकसद हिंदुओं को निशाना बनाना है। एक पाले में हिंदुओं और दूसरे में ईसाई तथा मुस्लिमों को खड़ाकर उसने एक समूह को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की।

अब सवाल उठता है कि आखिर ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन क्या है? ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो का अर्थ होता है छुपा हुआ या गुप्त। क्रिप्टो-क्रिस्चियन (crypto-christian) का अर्थ हुआ गुप्त-इसाइ। इसमें खास बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिस्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं। क्रिप्टो-क्रिस्चियानिटी इसाइ धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है। क्रिप्टो-क्रिस्चियनिटी के मूल सिद्धांत के तहत इसाइ जिस देश में अल्पसंख्यक होते है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते है, वहाँ का धर्म, रीति-रिवाज मानते हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है, पर वास्तव में अंदर से वे इसाइ होते हैं और निरंतर अपने धर्म का प्रसार करते रहते हैं।

सभी धर्मों के रणनीतिकारों का प्रयास रहता है कि उनके धर्म का विस्तार द्रुत गति से हो। समाजशास्त्रियों का मानना है कि सामान्य तौर पर इस्लाम का प्रचार तलवार और ताकत के बल पर होता रहा है जबकि इसाइ रणनीतिकारों ने ताकत के मुकाबले दिमाग का उपयोग कर दूसरे धर्म के ईश्वर व प्रतीकों की गरिमा भंग करने और दूसरों की कमजोरियो, दुखों और मजबूरियों का फायदा उठाने का तरीका अपनाया। दोनों धर्मों के पहले टार्गेट के तौर पर हिन्दू ही रहा है जबकि इस्लाम के टार्गेट पर हिन्दु और इसाइ दोनों रहे हैं। भारत में इन दिनों बढ़ रहे जातिवाद, अलगाववाद और देशद्रोह से जुड़ी घटनाओं मे जो उबाल आया है वह क्रिप्टो-क्रिस्चियन रणनीति का ही असर है।

क्रिप्टो-क्रिस्चियन का सबसे पहला उदाहरण रोमन सामाज्य में मिलता है जब इसाइयत ने शुरुवाती दौर में रोम में अपने पैर रखे थे। तत्कालीन रोमन सम्राट ट्रॉजन ने इसाइयत को रोमन संस्कृति के लिए खतरा समझा और जितने रोमन इसाइ बने थे, उनसे कहा गया कि या तो वे इसाइयत छोड़ें या मृत्यु-दंड भुगतें। रोमन इसाइयों ने मृत्यु-दंड से बचने के लिए इसाइ धर्म छोड़ने का नाटक किया और उसके बाद दिखावे के तौर पर वे रोमन देवी देवताओं की पूजा करते रहे, पर दिल से इसाइयत को ही मानते रहे।

जैसे मुसलमान जब किसी इलाके में 2-4 प्रतिशत होते हैं तब उस देश के कानून को मनाते हैं पर जब 20-30 प्रतिशत होते हैं तब शरीअत की मांग शुरू होती है, दंगे होते है। आबादी और अधिक बढ़ने पर गैर-मुसलमानों का जातीय सफाया शुरू हो जाता है। 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ यही हुआ था।

क्रिप्टो-क्रिस्चियन भी जब एक प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपनाकर अपना काम करते रहते हैं और जब अधिक संख्या में हो जाते तो उन्ही देवी-देवताओं का अपमान करने लगते हैं। हालिवुड की मशहूर फिल्म अगोरा (2009) में दिखाया है कि जब क्रिप्टो-क्रिस्चियन रोम में संख्या में अधिक हुए तब उन्होंने रोमन देवी-देवताओं का अपमान करना शुरू कर दिया। जिससे रोमन समाज में तनाव और गृह युद्ध की स्थिति बन गयी।

भारत में भी क्रिप्टो-क्रिस्चियन ने पकड़ बनानी शुरू कर दी है। यहाँ भी हिन्दू देवी-देवताओं, ब्राह्मणों को गाली देने का काम शुरू कर दिया। हिन्दू नामों में छुपे क्रिप्टो-क्रिश्चियन्स पिछले कई दशकों से कभी देवी दुर्गा, देवी सरस्वती या माता सीता के लिए अपशब्दों का उपयोग कर रहे हैं। राम को शंभूक (बलि देने वाला दुष्ट तांत्रिक) का हत्यारा प्रचारित कर रहे हैं। ब्राह्मणों के खिलाफ ब्राह्मण विरोधी विचारधारा के अंतर्गत ब्राह्मणों के खिलाफ मनगढंत कहानियां रची जा रही हैं।

जब इंसान दुखी होता है या किसी मुश्किल में होता है तब वह दूसरे के विचार आसानी से ग्रहण कर सकता है जो धर्मान्तरण का रास्ता है। इसी कारण मिशनरीज अस्पताल खोलते है कि दुःखी मरीजों का धर्मान्तरण करवाएं, प्राकृतिक आपदाओं में सेवा के लिए नहीं धर्मान्तरण के लिए जाते है जैसे कि नेपाल का भूकंप, भोपाल गैस कांड में टेरेसा का कलकत्ते से भोपाल आना।

क्रिप्टो-क्रिस्चियन के बहुत से उदाहरण हैं पर सबसे रोचक उदाहरण जापान से है। मिशनरियों का तथाकथित-संत ज़ेवियर जो भारत आया था वह 1550 में धर्मान्तरण के लिए जापान गया और उसने कई बौद्धों को इसाइ बनाया। 1643 में जापान के राष्ट्रवादी राजा शोगुन ने इसाइ धर्म का प्रचार जापान की सामाजिक एकता के लिए खतरा माना। शोगुन ने बल का प्रयोग किया तो कई इसाइयों ने बौद्ध धर्म में घर वापसी का नाटक किया। 1550 से लेकर अगले 400 सालों तक क्रिप्टो-क्रिस्चियन बुद्ध धर्म के छद्मावरण में रहे। 20वी शताब्दी में जब जापान औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ा और बौद्धों के धार्मिक कट्टरवादिता कम हुई तो इन लोगों ने बौद्ध धर्म के मुखौटे से बाहर निकल अपनी इसाइ पहचान उजागर कर दी थी।

भारत में ऐसे बहुत से क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं जो सेक्युलरवाद, वामपंथ और बौद्ध धर्म का मुखौटा पहन कर हमारे बीच हैं। भारत में इसाइ आबादी आधिकारिक रूप से ढाई करोड़ है और अचंभे की बात नहीं होगी अगर भारत मे 10 करोड़ से ज्यादा इसाइ निकलें। अकेले पंजाब में अनुमानित इसाइ आबादी 10 प्रतिशत से ऊपर है। सिखों में बड़ा वर्ग क्रिप्टो-क्रिस्चियन है। केजरीवाल खुद भी क्रिप्टो-क्रिस्चियन है।

बहुत से क्रिप्टो-क्रिस्चियन आरक्षण लेने के लिए हिन्दू नाम रखे हैं। इनमें कइयों के नाम राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा आदि भगवानों पर होते है जिन्हें कोई भी सपने में गैर-हिन्दू नहीं समझ सकते जैसे कि पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन जिंदगी भर दलित बन के मलाई खाते रहे और जब मरने पर इसाइ धर्म के अनुसार दफनाने की प्रक्रिया देखी तो समझ में आया कि ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन थे।

देश में ऐसे बहुत से क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं जो हिन्दू नामों में हिन्दू धर्म पर हमला करके सिर्फ वेटिकन के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। आम आदमी रोजमर्रा की ज़िंदगी में हर दिन क्रिप्टो-क्रिस्चियनों को देखता है पर उन्हें पहचान नहीं पाता क्योंकि वे हिन्दू नामों के छद्मावरण में छुपे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर राम को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी क्रिप्टो-क्रिस्चियन है। मीडिया में भी बड़ी संख्या में स्टाफ क्रिप्टो-क्रिस्चियन है।

तमिलनाडु में द्रविड़ियन पहचान में छुप कर उत्तर भारतीयों पर हमला करने वाले भी क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं। बंगाल में हिंदी का विरोध करने वाले क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं। अंधश्रद्धा के नाम हिन्दू त्यौहारों के खिलाफ एजेंडे चलाने वाला और बकरीद पर निर्दोष जानवरों की बलि और ईस्टर के दिन मरा हुआ आदमी जिंदा होने को अंधश्रद्धा न बोलने वाला दाभोलकर भी क्रिप्टो-क्रिस्चियन था।

भारत ही नहीं, बालकन और एशिया माइनर, मध्यपूर्व, सोवियत रूस, चीन, नाज़ी जर्मनी समेत अनेक देशों में भी क्रिप्टो क्रिश्चियनों की बहुतायत है। इसलिए क्रिप्टो-क्रिस्चियन बड़े ही सधे अंदाज में धैर्य के साथ अपना काम करते हैं।इनका प्रयास होता है कि शासन प्रशासन के हर विभाग में अपना आदणी सेट होना चाहिए ताकि कभी भी किसी काम के लिए रुकना न पड़े।

क्रिप्टो-क्रिस्चियनिटी का पूरा प्रोजेक्ट मन और दिल पर केंद्रित रहता है और दुनिया का कोई भी कानून मन और दिल पर पकड़ नहीं बना सकता है, इसीलिए यह रणनीति सफलतापूर्वक चल रही है। मद्रास हाईकोर्ट ने टिप्पणी कर इस ओर ध्यान आकर्षित कर एतिहासिक कार्य किया है। जब रोग पता चल जाता है तो इलाज तो खोज ही लिया जाता है चाहे थोड़ा ज्यादा समय लगे।