राज-काज:  प्रदेश भाजपा को सोते से जगा गए अमित शाह….

राज-काज:  प्रदेश भाजपा को सोते से जगा गए अमित शाह….

– कहा जाता है भाजपा हमेशा चुनावी मोड में रहती है। पार्टी कार्यक्रमों में नेता-कार्यकर्ता सदैव व्यस्त रहते हैं। बावजूद इसके ऐसा लगता है कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह के अचानक भोपाल दौरे से पहले प्रदेश भाजपा चुनाव तैयारी के लिहाज से निद्रा में थी। शाह की चार घंटे मैराथन बैठक के बाद ही नेता इस निद्रा से जागे। शाह ने प्रदेश के नेताओं को चेताया, हिदायत दी और चुनावी टिप्स दिए। उन्होंने सवाल किया की अब तक जन आशीर्वाद क्यों शुरू नहीं हुई? चुनाव से जुड़ी समितियां अब तक क्यों नहीं बन पाईं?

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सरकार और संगठन से पार्टी कार्यकर्ता खफा क्यों है? उन्होंने कहा कि सभी को भोपाल छोड़कर अपने क्षेत्रों में ध्यान देना चाहिए। शाह के सवालों के जवाब न सरकार के पास थे, न संगठन के पास। शाह की घूंटी का असर ये हुआ कि पार्टी में अचानक चेतना आ गई। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बना दिया गया। चुनाव से जुड़ी अन्य समितियां गठित होने लगीं। चुनाव प्रभारी बनाए गए केंद्रीय मंत्री द्वय भूपेंद्र यादव एवं अश्विनी वैष्णव का तीन दिनी दौरा बन गया। नाराज नेताओं, कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने की दिशा में योजना बनने लगी। सरकार और संगठन जल्दी ही जन आशीर्वाद यात्रा लेकर जनता के बीच पहुंचेगी। सोई भाजपा अब चाक-चौंबद दिखने लगी।

 

भाजपा में बढ़ गया केंद्रीय नेतृत्व का दखल….

– वजह प्रदेश भाजपा की साख में गिरावट हो या विधानसभा चुनाव में पराजय की आशंका, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश में अपना दखल बढ़ा दिया है। खबर है कि चुनाव में काम तो प्रदेश संगठन एवं प्रदेश के नेता करेंगे लेकिन होगा सब केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशन। इसीलिए संभवत: पहली बार दो केंद्रीय मंत्रियों को प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। तीसरे केंद्रीय मंत्री को चुनाव प्रबंधन समिति की कमान सौंपी गई है। तीनों केंद्रीय मंत्री प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह के खास हैं। चुनाव तक ये तीनों मंत्री मप्र में ही कैम्प करेंगे। सत्ता और संगठन को ये अपने हिसाब से चलाएंगे।

BJP's Mission-2023: कितनी तोमर की चलेगी, कितना संगठन सक्रिय होगा ?

जोर इस बात पर होगा कि चुनाव में जीत हासिल कर किसी भी तरह फिर सरकार बनाई जाए। केंद्रीय मंत्रियों भूपेंद्र सिंह, अश्विनी वैष्णव एवं नरेंद्र सिंह तोमर ने तीन दिन भोपाल में डेरा डाल कर इसकी शुरूआत कर दी है। खबर यह भी है कि प्रदेश भाजपा की मीडिया का काम भी तीन केंद्रीय प्रवक्ता देखेंगे। उनका कार्यालय भाजपा कार्यालय से अलग बनाया जाएगा। इसके लिए जगह तलाशी जा रही है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए जो पहला गीत तैयार किया है, वह नरेंद्र मोदी पर केंद्रित है। इससे पता चलता है कि पार्टी विधानसभा का चुनाव भी मोदी के नाम पर ही लड़ेगी, प्रदेश के किसी नेता के चेहरे पर नहीं।

 

शाही भोज के बहाने सिंधिया का शक्ति प्रदर्शन….

– भाजपा में किनारे किए जाने की चर्चाओं के बीच केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ताकत दिखाते नजर आने लगे हैं। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का ग्वालियर आगमन और जय विलास पैलेस में उनका शाही भोज सिंधिया का शक्ति प्रदर्शन जैसा था। मुर्मू ने राज्यपाल मंगूभाई पटेल, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई हस्तियों के साथ महल में काफी समय बिताया। उनका आलीशान स्वागत, सत्कार हुआ। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी जयविलास पैलेस जाकर सिंधिया का सत्कार स्वीकार कर चुके हैं।

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तब शाह भी सिंधिया को अपने साथ ले गए थे। लंबे समय बाद देश की ताकतवर हस्तियों का सिंधिया महल में जाना शुरू हुआ है। इसका श्रेय ज्योतिरादित्य को ही जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल आए, तब भी सिंधिया छाए रहे थे। मोदी उनका हाथ पकड़ विमान में साथ ले गए थे। चुनाव से जुड़ी बैठकों में भी वे सक्रियता से हिस्सा लेने लगे हैं। अचानक रात में जब अमित शाह भोपाल आए तब चर्चा ही शुरू हो गई की सिंधिया को बड़ी जवाबदारी मिलने वाली है। ताजे राजनीतिक घटनाक्रम से साफ है कि सिंधिया ने भाजपा में अपनी जगह बना ली है। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन भले न हो, लेकिन चुनाव की दृष्टि से सिंधिया को महत्वपूर्ण जवाबदारी मिल सकती है।

विधानसभा सत्र की गरिमामय विदाई भी नहीं….

पंद्रहवीं विधानसभा का मानसून सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। विधानसभा के लगभग हर सत्र में यही हो रहा है। सत्तापक्ष और विपक्ष द्वारा जो हालात बनाए जाते हैं, इसे देखकर लगता है कि कोई दल सत्र चलाने को लेकर गंभीर नहीं है। नंवबर में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं, इस नाते संभवत: यह इस विधानसभा का अंतिम सत्र था। उम्मीद की जा रही थी कि इसकी विदाई गरिमामय माहौल में होगी। सदस्यगण राजनीतिक गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से मिलेंगे। बधाईयां देंगे। सामूहिक भोज और फोटो सेशन होगा। लेकिन यह सब सपना बनकर रह गया। 10 जुलाई से शुरू होने वाले इस सत्र को पहले ही 11 जुलाई से कर दिया गया था।

MP Budget 2022

पहले दिन श्रद्धांजलि के बाद दो सवाल हुए और हंगामा शुरू हो गया। दूसरे दिन भी प्रश्नकाल चला, इसके बाद सदन हंगामे में डूब गया। स्पीकर ने दोनों दिन हंगामें, शोर-शराबे के बीच कार्यसूची निबटाई। पहले दिन कार्यसूची निबटाने के बाद अगले दिन के लिए सदन की कार्रवाई स्थगित की और दूसरे दिन तो पूरक एजेंडा लगाकर पूरा काम ही निबटा दिया। सदन की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। सदन आधे दिन भी नहीं चला। सदन चलाने का माहौल बनाने कोई प्रयास करता भी नहीं दिखा। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर का यह हश्र चिंताजनक है।

राज्य सरकार के गले की फांस बनते ये संकट….

– चुनावी साल में सरकार के सामने संकटों की भरमार है। एक खत्म नहीं हो पाता, दूसरा खड़ा हो जाता है। यह बात अलग है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान धैर्य और चातुर्य का परिचय देते हुए इनसे निबट रहे हैं। पहले सीधी के पेशाब कांड का संकट आया। मुख्यमंत्री चौहान ने आरोपी के खिलाफ सख्ती दिखा और पीड़ित के घावों पर मरहम लगाकर इससे निबटने की कोशिश की। हालांकि इस कार्रवाई से ब्राह्मणों का एक वर्ग नाराज हो गया। यह शांत नहीं हुआ था कि पटवारी भर्ती परीक्षा का संकट आ गया। भाजपा के एक विधायक के कालेज से परीक्षा देने वाले ही जब मैरिट में आ गए तो बवाल मच गया। छात्र, बेरोजगार और विपक्ष सड़क पर उतर आया। मुख्यमंत्री ने देर किए बिना जांच होने तक चयन प्रक्रिया पर रोक लगा कर युवाओं के गुस्से को शांत करने की कोशिश की। कर्मचारियों के लिए मुख्यमंत्री लगातार घोषणाएं कर रहे हैं। पहले संविदा कर्मचारियों के बारे में निर्णय लिया, इसके बाद सभी कर्मचारियों के लिए केंद्र के सामान महंगाई भत्ते का एलान कर दिया लेकिन पुरानी पेंशन स्कीम सरकार के गले की फांस बन गई है। इसे लेकर कर्मचारी लामबंद हो रहे हैं। आंदोलन की घोषणा हो गई है। पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर कर्मचारियों को समझाना कठिन हो रहा है। मुख्यमंत्री इससे कैसे निबटते हैं, इस पर नजर है।