राज- काज: BJP President Elections: ‘बीरबल की खिचड़ी’ बन गए भाजपा के जिलाध्यक्ष….
– भाजपा के जिलाध्यक्षों का निर्वाचन ‘बीरबल की खिचड़ी’ बन कर रह गया है। हालांकि जिस तरह जिलाध्यक्षों का चयन हो रहा है, नेताओं के बीच सिर फुटौव्वल है, इसे देखते हुए निर्वाचन शब्द का इस्तेमाल बेईमानी हो गया है। जिलाध्यक्षों के मामले में भाजपा मजाक का पात्र बन कर रह गई है। 29 दिसंबर तक भाजपा के जिला निर्वाचन अधिकारियों और पर्यवेक्षकों ने जिलों में जाकर पैनल बनाने का काम पूरा कर लिया था। इसके बाद प्रदेश स्तर पर भाजपा ने 3 जनवरी तक जिलाध्यक्षों की सूची तैयार कर केंद्रीय नेतृत्व के पास भेज दी थी। सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया गया था कि 5 जनवरी तक जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा कर दी जाएगी। पर यह संभव नहीं हाे सका। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद दिल्ली जाकर इस मसले पर केंद्रीय नेतृत्व के साथ दो दिन की बैठक कर आए। बावजूद इसके जिलाध्यक्षों की सूची जारी नहीं की जा सकी। कहा जा रहा है कि पार्टी सभी जिलाध्यक्ष एक साथ घोषित करना चाहती है लेकिन कुछ जिलों में दिग्गजों में टकराव के कारण सहमति नहीं बन पा रही है। इधर हर रोज सूची का इंतजार किया जा रहा है। अब कहा जा रहा है कि जिलाध्यक्षों की घोषणा जिला स्तर पर होगी। तो क्या भाजपा पूरी तरह कांग्रेस की राह पर है और उसकी सभी बीमारियां उसके अंदर प्रवेश कर गई हैं?
0 जीतू-कालरा विवाद में भाजपा ने कराई फजीहत….*
– इंदौर में एक भाजपा पार्षद जीतू यादव के समर्थकों द्वारा दूसरे भाजपा पार्षद कमलेश कालरा के घर हमला करने के मामले में प्रदेश भाजपा ने अपनी फजीहत करा ली। जीतू के आधा सैकड़ा से ज्यादा समर्थकों ने कालरा के घर में घुस कर परिवार की महिलाओं के सामने उसके नाबालिग बेटे को निर्वस्त्र कर मारपीट की थी। उसके प्रायवेट को पकड़ कर खींचा था। अप्राकृतिक कृत्य किया था। कालरा के साथ पुलिस में शिकायत करने खुद विधायक मालिनी गौड़ गई थीं, बावजूद इसके राजनीतिक संरक्षण की वजह से कोई कार्रवाई नहीं हुई। कालरा ने शिकायत पीएमओ और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा तक भेजी। इधर खबर मीडिया की सुखियां बन गई। तब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के हस्तक्षेप पर आरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हुई। भाजपा संगठन तब भी नहीं चेता। इसके बाद पीएमओ ने घटना की पूरी रिपोर्ट तलब कर ली। दबाव बढ़ने पर जीतू यादव ने एमआईसी की सदस्यता और भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भाजपा संगठन की आंख खुली और जीतू को पार्टी से निकालने की औपचारिकता पूरी की। इस बीच पार्टी की जम कर छीछालेदर हो चुकी थी। इंदौर के भाजपा नेता खुद को बहुत सक्रिय और जागरूक मानते हैं लेकिन इस मामले को लेकर उनकी चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
*0 ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज पर भूपेंद्र की नाराजगी….*
– पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह की प्रदेश नेतृत्व से नाराजगी थमने का नाम नहीं ले रही। वे ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज पर मोर्चा खाेल कर आर-पार के मूड में दिख रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के खिलाफ बगावती तेवर वे पहले ही दिखा चुके हैं, अब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के खिलाफ भी उनकी नाराजगी सामने आ गई है। हालांकि भूपेंद्र को इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। सागर के गौरव दिवस को लेकर तैयार पोस्टर से उनका फोटो और नाम नदारद था, इसका जवाब उन्होंने खुरई में होने वाले एक कार्यक्रम के पोस्टर से दिया है। यह पोस्टर प्रमुख चौराहे पर लगाया गया है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित उनका खुद का फोटो और नाम है लेकिन वीडी शर्मा के साथ मुख्यमंत्री डॉ यादव नदारद हैं। मुख्यमंत्री को नजरअंदाज करने का यह पहला मौका नहीं है। डॉ यादव इससे पहले बीना के एक कार्यक्रम में गए थे तब भूपेंद्र ने उसका बॉयकाट किया था। मुख्यमंत्री को सफाई देना पड़ी थी कि भूपेंद्र पहले से व्यस्तता के चलते नहीं आ सके। इतना ही नहीं गौरव दिवस के कार्यक्रम में उन्होंने डॉ यादव की मौजूदगी में विकास के लिए खुलकर शिवराज सिंह चौहान की तारीफ की थी और शिकायती लहजे में कहा था कि वे पोस्टर में रहें या न रहें लेकिन लोगों के दिल में रहना पसंद करेंगे।
*0 अब जीतू पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की वक्रदृष्टि….*
– कुछ गलतियां करने के बावजूद इस बात से काेई इंकार नहीं कर सकता कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी संगठन को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। विजयपुर विधानसभा के उप चुनाव में पार्टी की जीत और बुदनी में मामूली अंतर से पराजय इस मेहनत का नतीजा है। बावजूद इसके पटवारी को सतर्क और सावधान रहना होगा, क्योंकि पार्टी के बड़े नेताओं की वक्रदृष्टि उन पर पड़ चुकी है। कमलनाथ ने बाद में भले सफाई दी हो लेकिन सच यही है कि पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर कमेटी की बैठक में उन्होंने पटवारी की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। नियुक्तियों में उनसे मशविरा न करने और बैठकों की सूचना न देने की बात कही थी। उनका समर्थन दिग्विजय सिंह के साथ मीनाक्षी नटराजन ने भी किया था। दरअसल, प्रदेश अध्यक्ष स्व सुभाष यादव रहे हों, उनके पुत्र अरुण यादव या कांतिलाल भूरिया सहित कोई अन्य, जब भी इन वरिष्ठ नेताओं के इशारे पर संगठन नहीं चलता, ये काम में रुकावट पैदा करते हैं। माहौल ऐसा बनाया जाता है कि मौजूदा नेतृत्व से हर कोई नाराज है। इसके साथ पद से हटाने का अभियान चल पड़ता है। पहले इस अभियान में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल होते थे लेकिन अब वे भाजपा में हैं। इसलिए पटवारी को सफल होना है तो फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा और बड़े नेताओं की चालों से सावधान भी
*0 चतुर नेता साबित हुए दिग्विजय, नाथ का पत्ता साफ….*
– राजनीति में दिग्विजय सिंह की गिनती चतुर राजनेता के तौर पर होती है जबकि कमलनाथ को गंभीर और सीधी बात करने वाला माना जाता है। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी दिग्विजय के खास नेताओं में से हैं लेकिन जब कमलनाथ ने जीतू की कार्यशैली पर सवाल उठाए तो दिग्विजय ने भी ‘सुर में सुर’ मिला दिए। अब पटवारी द्वारा किए गए प्रदेश संगठन पदाधिकारियों के बीच काम के बंटवारे पर नजर डालिए तो पता चलेगा कि दिग्विजय चतुर साबित हुए और बाजी मार ले गए। संगठन में उनका दबदबा है जबकि कमलनाथ का पत्ता साफ हो गया। राजीव सिंह और जेपी धनोपिया कमलनाथ के नजदीक थे, काम के बंटवारे में इन्हें कमजोर कर दिया गया। कमलनाथ के खास किसी अन्य पदािधकारी को भी संगठन में महत्वपूर्ण जवाबदारी नहीं दी गई। इसके विपरीत दिग्विजय के बेटे विधायक जयवर्धन को युवा कांग्रेस के प्रभार के साथ कई अन्य दायित्व सौंपे गए। प्रदेश कांग्रेस के सबसे महत्वपूर्ण संगठन प्रभारी का दायित्व उनके दूसरे रिश्तेदार प्रियव्रत सिंह को दे दिया गया। पार्टी के कोषाध्यक्ष राज्यसभा सदस्य अशोक सिंह भी दिग्विजय के अपने हैं। उनके कई अन्य समर्थकों को भी जवाबदारी मिली। संगठन में अजय सिंह, अरुण यादव के खास नेताओं को भी जगह मिल गई, लेकिन कमलनाथ खाली हाथ हैं। यह केंद्रीय नेतृत्व के संकेत का नतीजा तो नहीं?
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