राज-काज:प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को लेकर चौंकाएगी भाजपा….!
– नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के अधिकांश निर्णय चौंकाने वाले होते हैं। भाजपा का अध्यक्ष कोई भी हो लेकिन बड़े निर्णय यह जोड़ी ही करती है। इसी तर्ज पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए भी चौंकाने वाला नाम सामने आ सकता है। दिसंबर में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव संभावित है। नए नाम को लेकर अटकलों का दौर जारी है। किसी का कहना है कि एक बार फिर प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण समाज से हो सकता है। इस आधार पर नराेत्तम मिश्रा, रामेश्वर शर्मा जैसे नेताओं के नाम चर्चा में हैं। कुछ किसी महिला को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के कयास लगा रहे हैं। दावेदारों में ऊषा ठाकुर, अर्चना चिटनीस, कविता पाटीदार, संध्या राय, संपत्तिया उइके और रीति पाठक के नाम लिए जा रहे हैं। कुछ का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी वर्ग से हो सकता है। इनमें फग्गन सिंह कुलस्ते, सुमेर सिंह सोलंकी के नाम लिए जा रहे हैं। इनके अलावा लगभग आधा दर्जन प्रदेश अध्यक्ष पद की कतार में हैं। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी दौड़ से बाहर नहीं हैं। उन्हें एक और मौका दिया जा सकता है। लेकिन चूंकि भाजपा हमेशा चौकाने वाले निर्णयों के लिए जानी जाती है, इस कारण कोई दावा करने की स्थिति में नहीं है। राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों की तरह भाजपा नेतृत्व किसी ऐसे नाम पर अपनी मुहर लगा सकता है, जिसके बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
*0 ‘इंतहा हो गई इंतजार की’, नहीं हटा प्रतिबंध….*
– एक फिल्मी गाने की लाइन ‘इंतहा हो गई इंतजार की..’ और दूसरी फिल्म का डॉयलाग ‘तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख’, उन सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को बार-बार याद आ रहे हैं जो तबादलों पर प्रतिबंध हटने के इंतजार में हैं। मंत्री, विधायक हों या अन्य नेता, सभी ने समर्थकों को आश्वासन दे रखा है कि जब प्रतिबंध हटेगा, तबादला हो जाएगा। केबिनेट की कई बैठकों से पहले यह चर्चा चली की इस बार तबादलों से प्रतिबंध हट जाएगा। यह भी बताया गया कि इस बार सिर्फ 15 दिन के लिए प्रतिबंध हटेगा और जरूरी तबादले ही होंगे। पर प्रतिबंध नहीं हटा। आमतौर पर हर साल जून-जुलाई में तबादलों से कुछ दिन के लिए प्रतिबंध हटाने की परंपरा रही है। बाद में अवधि कुछ समय के लिए बढ़ा दी जाती है। इस बार चूंकि अप्रैल से जून तक लोकसभा के चुनाव थे, इस कारण इसके बाद प्रतिबंध हटने की उम्मीद की जा रही थी। बताया भी जा रहा था कि तबादला नीति तैयार है, बस केबिनेट की मुहर लगना शेष है। आखिरी बार 15 अक्टूबर से 15 दिन के लिए प्रतिबंध हटाए जाने की चर्चा थी लेकिन फैसला नहीं हुआ। अब ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री डाॅ यादव तबादलों से प्रतिबंध हटाने के मूड में नहीं हैं। वजह, तबादलों को लेकर लेन-देन के आरोप लगना भी है। वैसे भी सरकार जिनके तबादले करना चाहती है, वे हो ही रहे हैं।
गौमाता की पूछ पकड़ नैया पार लगाएंगे मोहन….!
– गरुड़ पुराण में गाय की पूछ पकड़ कर वैतरणी पार करने का उल्लेख मिलता है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इसे अपना सूत्र वाक्य बना लिया है। वे गौमाता की पूछ पकड़ कर अपनी राजनीतिक नैया को पार लगाने तैयार दिखते हैं। गोवर्धन पूजा में सरकार की बढ़-चढ़ कर भागीदारी और मुख्यमंत्री डाॅ यादव द्वारा गौधन को लेकर की गईं घोषणाएं इसी कड़ी में उठाए गए कदम हैं। डॉ यादव ने ऐलान किया है कि गौधन के पालन-पोषण का खर्च सरकार उठाएगी। गौधन पालकों के क्रेडिट कार्ड बनाए जाएंगे। बीमार गौधन के इलाज के लिए गौ-एम्बुलेंस सेवा शुरू होगी। मुख्यमंत्री इससे पहले भी कई घोषणाएं कर चुके हैं। साफ है कि जिस तरह शिवराज सिंह चौहान ने भाई, मामा बनने में ताकत झोंकी थी, डॉ यादव सबसे बड़े गौसेवक के रूप में इमेज बनाने प्रयास कर रहे हैं। गोपाष्टमी के अवसर पर भी वे कई घोषणाएं कर सकते हैं। इनमें गौ-शालाओं को बिजली बिल माफ करना शामिल है। डॉ यादव गौ-पालकों को गोपाल कहते हैं और भगवान कृष्ण को लेकर भी कई घोषणाएं कर चुके हैं। जन्माष्टमी भी सरकार की ओर से धूम धाम से मनाई गई थी। बाकायदा सरकारी आदेश जारी हुआ था और मुख्यमंत्री डॉ यादव ने खुद इसमें हिस्सा लिया था। लाड़ली बहना योजना को भी उन्होंने छोड़ा नहीं है। इस तरह बहना, गोपाल और गौमाता पर मुख्यमंत्री डॉ यादव ने अपना पूरा फोकस बना रखा है।
दिग्विजय-अजय के बीच छत्तीस का आंकड़ा….!
– जीतू पटवारी की कार्यकारिणी को लेकर पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने बिना नाम लिए जिस तरह वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर निशाना साधा, वह चौंकाने वाला था। इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। अजय ने कहा कि जिनकी वजह से कांग्रेस दो दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता से बाहर है। जो पार्टी की दुर्दशा के लिए जवाबदार हैं, उनके इशारे पर अब भी फैसले लिए जा रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस का भगवान ही मालिक है। हमला दिग्विजय पर ही है, क्योंकि जीतू की टीम में उनके ही समर्थक ज्यादा हैं। भाजपा के सत्ता में आने से पहले 10 साल तक वे ही मुख्यमंत्री रहे हैं। कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन 15 माह के अंदर उसके गिरने के लिए भी उन्हें ही जवाबदार माना जा रहा है। अजय का बयान चौकाने वाला इसलिए है क्योंकि उन्हें दिग्विजय का करीबी माना जा रहा था। हालांकि अजय की दिग्विजय से अदावत नई नहीं है। इसके बीज तब पड़ गए थे जब उनके पिता अर्जुन सिंह ने कांग्रेस छोड़कर तिवारी कांग्रेस बनाई थी। उस समय दिग्विजय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनकी वजह से अर्जुन समर्थक नेताओं ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा था। बाद में इस नाराजगी पर बर्फ पड़ गई थी। अचानक अजय ने हमला बोल कर सभी को हैरान कर दिया। शायद इसकी वजह यह भी है कि दिग्विजय कांग्रेस में अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना चाहते, उन्हें अपने बेटे जयवर्धन को स्थापित जो करना है।
चुनौती बन गया कुनबे को संभाल कर रखना….
– प्रदेश कांग्रेस के मुखिया जीतू पटवारी पहले प्रदेश कार्यकारिणी को आलाकमान की हरी झंडी न मिलने से परेशान थे। इसके लिए उनकी आलाेचना हो रही थी। दस माह के इंतजार के बाद टीम घोषित हुई तो और बड़ी चुनौती सामने आ गई। जिस तरह नाराजगी सामने आई, इस्तीफे हुए, इसे देखते हुए जीतू के लिए कुनबे को संभाल कर रखना कठिन हो रहा है। दिग्विजय सिंह को छोड़कर हर कोई नाराज दिखाई दे रहा है। प्रमोद टंडन, मोनू सक्सेना, अमन बजाज, राम लखन दंडोतिया, कल्पना वर्मा, नासिर हसनात सिद्दीकी जैसे नेताओं ने अलग-अलग कारण बताकर इस्तीफा दे दिया है। दिग्विजय के अनुज लक्ष्मण सिंह ने पद लेने से इंकार कर दिया है। पहली सूची जारी होने के बाद तंज कसते हुए उन्होंने कहा था कि नई टीम में शामिल पदाधिकारी अपना-अपना विधानसभा क्षेत्र ही जिता दें तो कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कार्यकारिणी को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुके हैं। उनके खास महेंद्र सिंह चौहान तक को जगह नहीं मिली। अलीराजपुर के महेश पटेल ने भी कार्यकारिणी की आलोचना की है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं बोले लेकिन चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी जैसे उनके समर्थकों को बाहर करने और विरोधियों को ज्यादा तवज्जो देने से वे भी नाराज हैं।