राजनीति भुजंग की भांति कुटिल, तड़ित की तरह चंचल होती है..!

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राजनीति भुजंग की भांति कुटिल, तड़ित की तरह चंचल होती है..!

 

 

– जयराम शुक्ल

 

राजनीति तड़ित की तरह चंचल और भुजंग की भांति कुटिल होती है.. वाकई! कई विधायकों को भुजंग की तरह डस गई, तो कई ऐसे टिकटाकांक्षी जो यहां वहां डूब उतरा रहे थे उन्हें सीट के घाट पर लाकर खड़ा कर दिया।

 

जो कभी गजमाला पुष्पहारों से स्वागत करते हुए जयकारा लगाते नहीं थकते थे वहीं अब उन्हीं नेताओं की तस्वीरों पर गोबर पोत रहे, चप्पलों से पीट रहे हैं। भाई साहब लोगों की धुनाई कर रहे हैं। यही राजनीति है कभी तोला तो कभी मासा। सिद्धांत, अनुशासन, जनसेवा सभी के सब टिकट के घन चक्कर में फंसे, उलझे हैं।

 

पिछले चुनाव में कई बुजुर्गों बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, कुसुम महदेले, रामकृष्ण कुसमरिया आदि जैसों के उत्तरार्द्ध को खा गई तो इस बार जयंत मलैया, माया सिंह, नीना वर्मा, दोनों नागेन्द्र सिंह(गुढ़/नागौद) महेंद्र हार्डिया जैसों को उबार लिया। भाजपा का जनरेशन नेक्स्ट का आइडिया धरा रह गया। अब सत्तर पार बुजुर्गों की भरमार है।

 

अब अपने विन्ध्य की बात करते हैं। मौसम की तरह दल बदलने वाले अभय मिश्रा (कांग्रेस सेमरिया)के बाद सिद्धार्थ तिवारी (भाजपा त्यौंथर) को तड़ित की गति से टिकट भी मिल गई, बेचारे श्यामलाल द्विवेदी और पंचूलाल (भाजपा मनगवां) को अकारण ही डस गई। नागौद के कांग्रेसी यादवेन्द्र सिंह डसे जाने के बाद भी बसपा की भभूत झारते हुए उठ खड़े हुए। सबसे दुस्साहसी सीधी के केदारनाथ शुक्ल निकले जिन्होंने अपनी पार्टी भाजपा की बल्दियत को ही चुनौती दे दी।

 

अभय मिश्रा आधुनिक राजनीति के नए रोल माडल बनकर उभरे हैं। जब से राजनीति में घुसे जो चाहा हांसिल किया, येन-केन प्रकारेण। इस रेस में नारायण त्रिपाठी पिछड़ गए। त्रिपाठी ने अखाड़े के हर पैंतरे आजमाएं पर खुद की ही लिंगी में उलझे गए।

 

रीवा की दो टिकटें बड़ी कमाल की हैं एक सिद्धार्थ तिवारी (भाजपा)की दूसरी पद्मेश गौतम(कांग्रेस)की। सिद्धार्थ कांग्रेस के दिग्गज नेता व स्पीकर रहे श्रीनिवास तिवारी के नाती हैं और पद्मेश भाजपा नेता व स्पीकर गिरीश गौतम के भतीजे। नवगठित जिले मऊगंज के देवतालाब से चाचा भतीजे के बीच में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा।

गिरीश गौतम और श्रीनिवास तिवारी के बीच मनगवां से जंगी मुकाबला हुआ करता था। यह जंग इतनी विकराल थी कि तिवारी के स्पीकर काल में जब पद्मेश गौतम पर एक छात्र नेता अमित मिश्रा की हत्या का आरोप लगा तो पुलिस ने गिरीश गौतम के घर को ऐसे घेरा मानों वो कोई दुर्दांत आतंकी हो। तत्कालीन एसपी उनके घर का दरवाजा तोड़ने पहुंच गए थे। गिरीश के साथ भाजपा खड़ी थी उन पर मुकदमा दर्ज न हो पाया अलबत्ता परिवार के चार छह लोगों को जेल जाना पड़ा। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि गौतम पद्मेश के चाचा थे। सरकार उसी कांग्रेस की थी जिस कांग्रेस ने अब पद्मेश गौतम को टिकट देकर देवतालाब के मैदान से उतारा है।

 

दूसरे हैं सिद्धार्थ तिवारी। इसी भाजपा की सरकार ने उनके दादा श्रीनिवास तिवारी पर इतने मुकदमें पहनाए दिए कि उन्हें जीवन के उत्तरार्द्ध में ह्वील चेयर पर जमानत के लिए भोपाल जिला अदालत की दहलीज पर हाजिरी बजानी पड़ी। उन पर विधानसभा में भीषण भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए और जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी आयोग बैठाया। श्री तिवारी के स्पीकर काल में भर्ती हुए 30 से ज्यादा लोगों पर जुर्म दर्ज हुआ, उनमें से कइयों को जेल जाना पड़ा और बर्खास्त हुए। इसी भाजपा सरकार ने सिद्धार्थ तिवारी के पिता सुंदरलाल तिवारी के की मुकदमें उखाड़े और उन्हें राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगानी पड़ी। कांग्रेस से टिकटें चित सिद्धार्थ उसी भाजपा की शरण में गए। चुनाव की नजाकत की नब्ज पकड़ने में माहिर भाजपा अब सिद्धार्थ के बहाने आठों सीटों में उन्हीं श्रीनिवास तिवारी के असर और जनाधार को अपने हक में कैश करना चाहती हैं जिन्हें जीवन के उत्तरार्द्ध में चैन से जीने तक न दिया। अब तो मानना पड़ेगा ना कि राजनीति तड़ित की तरह चंचल और भुजंग की भांति कुटिल होती है।

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