कचरे के निष्पादन पर राजनीति नकारात्मक सोच है …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
यूनियन कार्बाइड कचरे का वैज्ञानिक पद्धति से हो रहे निष्पादन पर मध्यप्रदेश में हो रही राजनीति ठीक नहीं है। कम से कम ऐसे संवेदनशील और गंभीर प्रकृति के मुद्दों पर राजनीति कर अपने ही नागरिकों के मन में मैल पैदा करने की कवायद को स्वस्थ परंपरा नहीं माना जा सकता है। कोर्ट के निर्देश और कई विभागों के सुझाव व परामर्श के बाद यदि कचरा निष्पादन की प्रक्रिया शुरू हुई है, तो इसका स्वागत होना चाहिए। इसलिए क्योंकि भोपाल की 40 साल पुरानी समस्या का समाधान होने की राह तो मिली है।
विपक्ष और सत्तापक्ष को लोकतंत्र की गाड़ी के दो पहियों की संज्ञा दी गई है। एक भी पहिया अगर गड़बड़ है, तो लोकतंत्र की गाड़ी चल नहीं सकती और आगे बढ़ नहीं सकती है। ऐसे में प्रदेश का विकास अवरुद्घ होता है। और तब विपक्ष की नकारात्मक भूमिका कटघरे में खड़ी हो जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सकारात्मक विपक्षी भूमिका निर्वाह के सैकड़ों उदाहरण हैं। जब 1971 में भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले का कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग विपक्ष ने किया था। केंद्र की कांग्रेस सरकार के समय यूनाइटेड नेशंस में भारत का पक्ष रखने के लिए अटल जी का जाना भी सकारात्मक विपक्ष का दूसरा उदाहरण है। ऐसे उदाहरण यह प्रमाणित करते हैं कि सकारात्मक विपक्ष देश की कितनी बड़ी ताकत होती है। और वास्तव में लोकतंत्र की सार्थकता इसी में है।
भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के कचरे के निष्पादन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वैज्ञानिक मार्गदर्शन में तय हुई प्रक्रिया के आधार पर ही कचरे का निष्पादन हो रहा है। कचरा निष्पादन को लेकर उठ रही आशंकाएं निर्मूल हैं। भोपाल के लोग 40 वर्षों से इसी कचरे के साथ रहते आए हैं, इसलिए कांग्रेस या जो लोग इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं उन्हें इस विषय में राजनीति नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यूनियन कार्बाइड के 358 टन कचरे का वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार निष्पादन पीथमपुर में किया जा रहा है। इस कचरे में 60 प्रतिशत मिट्टी और बाकी 40 प्रतिशत में 7 फीसदी नेफ्थाल और अन्य प्रकार के केमिकल से जुड़े अपशिष्ट है। कीटनाशक बनाने में नेफ्थाल सहउत्पाद की भूमिका में रहता है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसका असर 25 वर्षों में समाप्त हो जाता है। चूंकि घटना को 40 वर्ष हो चुके हैं इसलिए कचरे के निष्पादन को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही हैं वो स्वत: समाप्त हो जाती हैं।
यदि मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि कचरे के निष्पादन के लिए कई संस्थाओं ने गहन अध्ययन और परीक्षण किया है। कोर्ट और कई विभागों के सुझाव और परामर्श के बाद ये प्रक्रिया शुरु हुई है। भारत सरकार की विभिन्न संस्थाओं जैसे नेशनल इन्वायरमेंट इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर, नेशनल जियोफिजिकल इंस्टीट्यूट हैदराबाद, आईआईसीटी यानि इंडियन इंस्टीट्यूट आफ केमिकल टेक्नोलॉजी, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किये गए अध्ययन और उनकी रिपोर्ट के बाद कचरा निष्पादन प्रक्रिया तय हुई है। इससे पहले 2013 में केरल के कोच्ची के संस्थान में 10 टन यूनियन कार्बाइड के समान कचरे का परिवहन कर इसे पीथमपुर में जलाकर परीक्षण किया जा चुका है। इसे सफलता के साथ जलाकर इसकी रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई। सभी निष्कर्षों की रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई थी, जिसमें कहा गया कि कचरे के निष्पादन से किसी प्रकार वातावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ है। सभी रिपोर्ट के गहन परीक्षण के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया की अनुमति दी है। तब फिर विपक्ष की भी जिम्मेदारी बनती है कि सकारात्मक सोच सहित ऐसे मुद्दों पर अपनी भूमिका का निर्वहन करे।
सरकार का यह फैसला भी ठीक है कि फैक्ट्री के बाहर के कचरे का भी निष्पादन किया जाएगा। खैर कचरे के निष्पादन से भोपाल की 40 साल पुरानी समस्या का समाधान हो रहा है। विपक्ष को अगर संदेह है, तब उसे सरकार से सवाल-जवाब कर अंतिम तौर पर तथ्यों के साथ सहमति या असहमति का फैसला करे। अगर शंका है तो विपक्ष अंतिम तौर पर संतुष्टि या असंतुष्टि का भाव बनाने को स्वतंत्र हैं। यदि मुख्यमंत्री भरोसा दिला रहे हैं कि हम सभी लोगों को विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं। जानकारी पारदर्शिता के साथ रख रहे हैं। तब इस विषय में राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह प्रदेश के नागरिकों के हित में नहीं है।
नेता प्रतिपक्ष प्रदेश हित के मुद्दों पर सीधे मुख्यमंत्री से सवाल-जवाब कर सकते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी नेता प्रतिपक्ष से राय-मशविरा कर अपनी जिज्ञासा को शांत कर सकते हैं। और प्रदेश हित में सत्ता पक्ष और विपक्ष मिलकर सकारात्मक सोच से ही अपनी नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन कर समृद्ध लोकतंत्र में भागीदारी निभा सकते हैं। राजनैतिक हितों को देखते हुए राजनैतिक दल चुनावी साल में भले ही एक-दूसरे से परहेज करें। और सरकार की विफलताओं को उजागर कर अपनी विश्वसनीयता बढाई जाए। पर यूनियन कार्बाइड कचरा निष्पादन जैसे गंभीर व संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति विपक्ष की नकारात्मक सोच को ही प्रमाणित करती है…।