राज- काज: मोहन के सामने शिवराज से बड़ा करने की चुनौती….

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राज- काज: मोहन के सामने शिवराज से बड़ा करने की चुनौती….

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– राजधानी का जंबूरी मैदान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की झांकी जमाने का गवाह रहा है। उन्होंने कई बड़े आयोजन इस मैदान में किए, जिनमें प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित चोटी के नेता आए। सभी शिवराज की पीठ थपथपाकर कर गए। यह मैदान शिवराज की सफलता का प्रतीक बन गया था। उन्हें यह इतना पसंद है कि अपने बेटे की शादी का भोज भी उन्होंने इसी मैदान में दिया। अब बारी मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की है। देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती पर वे पहली बार इस मैदान में बड़ा आयोजन कर रहे हैं। 31 मई को यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य आतिथ्य में महिला सशक्तीकरण महा-सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। भाजपा सरकार और संगठन ने इसमें प्रदेश भर से 2 लाख महिलाओं की मौजूदगी का दावा किया है। इतना ही नहीं कार्यक्रम की पूरी बागडोर एक हजार महिलाएं संभालेंगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ यादव जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। प्रदेश का दौरा कर लोगों के बीच पहुंचने के मामले में उन्होंने शिवराज को भी पीछे छोड़ दिया है। अब चूंकि उनके नेतृत्व में जंबूरी मैदान में पहला बड़ा आयोजन हो रहा है। इसलिए सहज ही इसे लेकर उनकी शिवराज के साथ तुलना होने लगी है। लिहाजा, मोहन के सामने यह आयोजन शिवराज से बड़ा करने की चुनौती है।

*0 सिर्फ एक दिन क्यों याद की जाती है महिला शक्ति….?*

– हर मौके पर महिला-पुरुष को बराबरी का हक देने की बात की जाती है। महिला शक्ति को पुरुषों की बराबरी पर लाने के उद्देश्य से कई सरकारें महिलाओं को आरक्षण दे रही हैं। बावजूद इसके हर दिन महिला शक्ति को याद नहीं किया जाता। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर लोकसभा और विधानसभाओं में एक दिन के लिए आसंदी पर महिलाएं बैठाई जाती हैं। सवाल भी महिलाओं को ही पूंछने दिया जाता है। इस एक दिन महिलाओं को लेकर कई तरह के आयोजन हाेते हैं। कई जगह महिलाएं ही सुरक्षा का दायत्व संभालती नजर आती हैं। 31 मई को देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती पर भोपाल के जंबूरी मैदान में महिला सशक्तीकरण महा सम्मेलन हो रहा है। निर्णय लिया गया कि इस आयोजन की सारी व्यवस्थाएं महिलाएं ही संभालेंगी। अहिल्याबाई की जन्म शताब्दी के मौके पर ही इंदौर भाजपा ने निर्णय लिया है कि 30 मई को शहर के 34 प्रमुख चौराहों पर महिलाएं यातायात संभालेंगी। महिलाओं के लिए कई स्पर्धाओं का आयोजन भी होगा। सवाल यह है कि जब हर अवसर पर महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जा रहा है तो सिर्फ विशेष अवसरों पर ही महिला शक्ति की याद क्यों की जा रही है। पुरुषों के लिए तो कोई ऐसा दिन नहीं जब उन्हें ही याद किया जाए। कंधा से कंधा मिला कर साथ काम करने और पढ़ने वाले युवाओं ने यह सवाल उठाया है, इसका जवाब दिया जाना चाहिए।

*0 इनके रवैये ने तबादलों के मौसम को बनाया मजाक….!*

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– मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों के दबाव के बाद एक माह के लिए तबादलों पर से प्रतिबंध हटाया था। एक माह की यह अवधि चार दिन बाद पूरी हो जाएगी। इस अवधि में ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसी मात्रा में तबादले हुए हैं। इक्का-दुक्का विभागों ने कुछ सूचियां जारी की हैं, शेष अब तक सूचिया बनाने में ही मस्त हैं। कुछ विभाग तो अब तक अलग तबादला नीति जारी कर रहे हैं। ये या तो एक माह की अवधि पूरी होने के बाद पिछली तारीखों में सूचिंया जारी करेंगे या इन्हें भरोसा है कि तबादलों की यह अवधि अभी और बढ़ेगी। कुछ नेताओं ने तबादलों के इस मौसम को मजाक बना कर रख दिया है। पहले उज्जैन के सांसद अनिल फिरोजिया ने अपने कार्यालय के सामने बोर्ड टांग दिया था कि स्थानांतरणों के संबंध में उनसे कोई मुलाकात न करे। अब इनका अनुसार प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने भी कर दियाा। उन्होंने भी बंगले के सामने बोर्ड लगा दिया कि तबादलों के संबंध में कोई उनसे संपर्क न करे। परेशान अधिकारी-कर्मचारी अब किसके पास जाएं और जनप्रतिनिधि ऐसा क्यों कर रहे हैं? तबादला नीति में विभाग के मंत्रियों और प्रभारी मंत्रियों को अधिकार दिए गए हैं। ये ही मुंह मोड़ लेंगे तो पीड़ित किसके दरवाजे पर दस्तक देंगे? तबादले इतने ही बुरे हैं तो इनसे प्रतिबंध ही क्यों हटाया गया?

*0 विजय शाह को माफी दे पाएगी सुप्रीम अदालत….!*

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– एक कहावत है, ‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात’। अर्थात छोटे उत्पात करें और माफी मांग लें तो बड़ों को क्षमा कर देना चाहिए। प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए तीन बार माफी मांग चुके हैं। तीनों बार की माफी में साफ अंतर दिखाई पड़ा। पहली बार उन्होंने माफी नहीं मांगी थी, कहा था कि उनकी बात को गलग ढंग से लिया गया। दूसरी बार हाईकोर्ट के सख्त होने पर उन्होंने माफी मांगी। इसमें उनकी मजबूरी साफ झलक रही थी। तीसरी बार की माफी में वे गंभीर थे और अपने बयान के लिए शर्मिंदा दिख रहे थे हैं। बड़ा सवाल यह है कि उन्हें माफी मिलेगी या नहीं। विजय शाह वरिष्ठ नेता और मंत्री हैं, इसलिए छोटे तो नहीं हैं। साेफिया कुरैशी उनसे उम्र में काफी छोटी हैं, पर सेना बड़ी है। दूसरा, सुप्रीम अदालत भी उनसे बड़ी है। जब तक यहां माफी स्वीकार नहीं होती, तब तक किसी अन्य के माफ करने का औचित्य नहीं है। मंत्री पद से न हटा कर सरकार और भाजपा उनके साथ खड़े और माफी का संकेत देते नजर आ रहे हैं लेकिन न तो सोफिया कुरैशी ने उन्हें माफ किया और न ही सुप्रीम अदालत ने नरमी दिखाई। कांग्रेस ने तो उन पर 11 हजार का ईनाम ही घोषित कर रखा है। अब 28 मई को एसआईटी द्वारा अदालत में पेश होने वाली रिपोर्ट शाह का भविष्य तय करेगी।

*0 गोपाल कन्यादान, भूपेंद्र रक्तदान में हो गए अव्वल….!*

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– बुंदेलखंड अंचल के दो दमदार नेता इस बार सरकार में मंत्री नहीं हैं लेकिन समाज सेवा के क्षेत्र में वे झंडे गाड़ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं मंत्रियों गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह की। इन दोनों नेताओं की भाजपा संगठन और सरकार में तूती बोलती रही है। दोनों मंत्री भले नहीं हैं लेकिन इन्होंने सामाजिक दायित्वों से मुंह नहीं मोड़ा। यही वजह है कि गोपाल भार्गव कन्यादान में अव्वल हैं तो भूपेंद्र रक्तदान में। गोपाल अब तक लगभग 28 हजार कन्याओं के विवाह करा कर उनके धर्मपिता बन चुके हैं तो दूसरी तरफ भूपेंद्र ने रक्तदान में नया रिकार्ड बनाया है। रक्तदान के क्षेत्र में भूपेन्द्र का स्ट्राइक रेट देश में सबसे अधिक है। उन्होंने रक्तदान शिविरों के माध्यम से समाज और राष्ट्र की सेवा के क्षेत्र में सागर से एक नई ज्योति जलाई है। उन्होंने रक्तदान के माध्यम से समाज का जुड़ाव कर दिया और सबको समरसता के अमृतपान का अवसर दिया है। वे अपने जन्मदिन से उनको जीवन दे रहे हैं, जिनका जीवन रक्त के अभाव में समाप्त हो सकता है। आप जानकार हैरान होंगे, इस बार जन्मदिन समाराेह में भूपेंद्र को रक्त से तौला गया। इसके बाद तीन ब्लड बैंकों को 1612 यूनिट रक्त सौंपा गया। इतने रक्तदान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। रक्त जीवन है इसलिए रक्त देने वाला जीवनदाता है। भूपेंद्र का यह प्रयास देश के लिए मिसाल बन सकता है।

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