राज-काज: छिंदवाड़ा में ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ का खेल…
– छिंदवाड़ा कमलनाथ के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, भाजपा के लिए उससे ज्यादा महत्वपूर्ण। यहां कमलनाथ के छिंदवाड़ा मॉडल की छीना-झपटी के हालात हैं। भाजपा हर मुमकिन कोशिश कर रही है कि कमलनाथ को छिंदवाड़ा में ही घेर कर शिकस्त दी जाए ताकि वे बाहर कम जा सकें। इसके विपरीत कमलनाथ छिंदवाड़ा को बचाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा छिंदवाड़ा में आदिवासी वोट बैंक पर सेंध लगाने की कोशिश में हैं और कमलनाथ अपने पक्ष में बचाए रखने में।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पांढुर्ना को जिला बना दिया, ताकि मराठी वोटों को प्रभावित किया जा सके, जवाब में कमलनाथ कट्टर हिंदुत्व के प्रतीक मराठा नेता बाला साहेब ठाकरे परिवार के आदित्य ठाकरे को ले आए और महाराज शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण करा दिया। आदित्य ने यहां तक कह दिया कि कमलनाथ जी, हम आपको मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, आप शपथ ग्रहण की तारीख बताइए। यह मराठियों के लिए उनका सीधा संकेत था। भाजपा ने अपने बड़े और कट्टर हिंदू नेताओं को छिंदवाड़ा में लगा रखा है तो कमलनाथ ने बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री और शिव भक्त पंडित प्रदीप मिश्रा को बुलाकर उनकी कथा करवा दी। छिंदवाड़ा में ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ का रोचक खेल देखने को मिल रहा है।
* उमाकांत ने क्यों कहा, लक्ष्मीकांत के साथ हुआ धोखा….*
– पूर्व मंत्री स्वर्गीय लक्ष्मीकांत शर्मा जितने धीर-गंभीर और शांत थे, उनके भाई विधायक उमाकांत शर्मा इसके बिल्कुल विपरीत हमेशा विवाद में रहने वाले। इस समय उनकी एक फेसबुक पोस्ट चर्चा में है। इसमें उन्होंने बिना नाम लिए बिना अपनी सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि ‘अगर मेरे अंत के भी अंत में सिर्फ दो चीजें बचें, धोखा देना और धोखा खाना तो मैं धोखा खाना ही पसंद करूंगा, फिर मुझे क्यों न मृत्यु का ही वरण करना पड़ जाए। यह बात अलग है कि हम सबके परम प्रिय, सिंरोंज-लटेरी क्षेत्र के लाड़ले बेटे, मेरे सर्वस्व, मेरे मंझले भाई परम श्रद्धेय स्व लक्ष्मीकांत शर्मा जी ने धोखा भी खाया और मृत्यु भी वरण कर ली। अब मेरा नंबर है। मैं मर जाऊंगा लेकिन धोखा किसी को नहीं दूंगा।
धोखा देकर, झूंठ बोलकर मुझे मारने पर तुले महानुभावों का भी भगवान भला करे।’ बयानों से चर्चा में रहने वाले उमाकांत की यह पोस्ट गंभीर है। लगता है उन्हें लक्ष्मीकांत को धोखा देने वाले के बारे में जानकारी है और वे खुद भी किसी के निशाने पर हैं। सरकार को इसका संज्ञान लेकर जांच कराना चाहिए। जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान लटेरी में भाजपा के जिलाध्यक्ष के साथ हाल ही में हुआ उनका विवाद भी चर्चा में है। अपने बयानों के कारण पहले भी वे सरकार को असहज करते रहे हैं।
* उमा ने भाजपा नेतृत्व को फिर किया असहज….*
– भाजपा की फायरब्रांड नेत्री साध्वी उमा भारती फिर चर्चा में हैं। वजह है महिला आरक्षण बिल। लोकसभा एवं राज्यसभा में यह लगभग सर्वसम्मित से पारित हुआ है। केंद्र सरकार ने जैसे ही महिला आरक्षण बिल लाने का फैसला किया, उमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने में देर नहीं की। उन्होंने बिल का स्वागत करते हुए कहा कि इसके अंदर पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण की अलग से व्यवस्था की जाए।
यही मांग कांग्रेस सहित लगभग पूरा विपक्ष कर रहा है। उमा यहीं नहीं रुकीं, बिल पास होने के बाद पिछड़े वर्ग के नेताओं की बैठक बुलाने का एलान भी कर दिया। इन नेताओं के साथ बैठक में वे क्या करेंगी, क्या रणनीति बनाएंगी, कोई नहीं जानता। विपक्ष का जवाब तो भाजपा दे रही है लेकिन उमा के रुख से असहज है। कोई नेता उमा भारती पर बोल नहीं पा रहा है। यह पहला अवसर नहीं है जब उमा ने पार्टी से अलग हट कर लाइन ली है। पहले भी कई मुद्दों पर वे ऐसा कर चुकी हैं। जन आशीर्वाद यात्रा में न बुलाए जाने पर भी उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अप्रसन्नता व्यक्त की थी। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि वे चुनाव प्रचार में नहीं जाएंगी। हालांकि वे सध कर बोलती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं करतीं। पर हैं तो वे पार्टी नेतृत्व के रवैए से बेहद नाराज।
*कहां से आया शिवराज में यह आत्मविश्वास….*
– अचानक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव नतीजों को लेकर आत्मविश्वास से लवरेज दिखने लगे हैं। पहले उन्होंने मुख्यमंत्री निवास में आयोजित पत्रकार समागम में पत्रकारों से जुड़ी कई घोषणाएं करते हुए कहा था कि ये हम कर ही रहे हैं, आगे भी हम ही करेंगे क्योंकि चुनाव में जीत कर हम ही आने वाले हैं। इसके शक की कोई गुंजाइश नहीं है। शुक्रवार को वे फिर बोले कि मैं पूरे प्रदेश का दौरा कर हर वर्ग से मिल रहा हूं। इसलिए दावे से कह रहा हूं कि हम फिर सत्ता में आ रहे है और रिकार्ड बहुमत के साथ।
शिवराज ऐसा पहले कभी नहीं बोलते थे। अलग-अलग तरह के सर्वे देखकर वे मेहनत कर रहे थे लेकिन इस तरह का दावा नहीं कर रहे थे। अचानक वे जीत को लेकर आश्वस्त दिखने लगे हैं। यह उनकी लाड़ली बहना योजना जैसी अन्य योजनाओं के सफल होने का नतीजा है, ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के लोकार्पण से उन्हें कोई ऊर्जा मिली है या किसी नए सर्वे ने उनका हौसला बढ़ाया है, वजह जो भी हो लेकिन वे आत्मविश्वास से भरे नजर आने लगे हैं। लोग उनके आत्मविश्वास को दाद देते नजर आते हैं। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कांग्रेस खेमे में किसी तरह की निराशा का भाव है। वहां भी जीत को लेकर सब आश्वस्त दिखते हैं। सभी मान रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में आ रही है।
*गोविंद-भूपेंद्र अब कर रहे नुकसान की भरपाई….*
– चुनाव में सागर जिले के चर्चा में रहने की वजह हैं सरकार में शामिल तीन दिग्गज मंत्री गोपाल भार्गव, गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह। गोविंद और भूपेंद्र के आपसी विवाद की गूंज सागर, भोपाल से लेकर दिल्ली तक सुनाई दी थी। इनके गिलेशिकवे दूर करने की भाजपा और सरकार की हर कोशिश नाकाम थी। चुनाव नजदीक आए तो दोनों गले मिल गए और अब हुए नुकसान की भरपाई करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। गोविंद के बुलाने पर भूपेंद्र पहुंचे और भूपेंद्र के लिए गोविंद। जन आशीर्वाद को सफल बनाने के लिए भी दोनों ने अतिरिक्त कोशिश की। दोनों ने अपने क्षेत्रों में दो मुख्यमंत्री बुलाए।
गोविंद के सुरखी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पहुंचे तो भूपेंद्र के खुरई में शिवराज सिंह के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी। खुरई में स्वागत का अलग अंदाज तब देखने को मिला, जब जेसीबी के जरिए फूलों की बारिश की गई। यह जन आशीर्वाद यात्रा का सबसे बड़ा कार्यक्रम था। तीसरे मंत्री गोपाल भार्गव ने ऐसा कोई तामझाम नहीं कया। वे खुद अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने उत्तरप्रदेश के मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह की मौजूदगी में जन आशीर्वाद यात्रा निकाली। वैसे भी आमतौर पर भार्गव पार्टी के किसी बड़े नेता को क्षेत्र में प्रचार के लिए नहीं बुलाते।
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