राज – काज: इस पूर्व मंत्री तक पहुंची सौरभ मामले की आंच….
– परिवहन विभाग में आरक्षक रहे सौरभ शर्मा पर पड़े छापे की आंच भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा तक पहुंच गई है। उन्होंने सौरभ की अनुकंपा नियुक्ति के लिए अनुशंसा की थी। सौरभ के पिता स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे। उनकी मृत्यु के बाद सौरभ की अनुकंपा नियुक्ति के लिए अनुशंसा स्वास्थ्य मंत्री के नाते नरोत्तम ने की थी। शक की सुई इसलिए उन तक पहुंच रही है क्योंकि मामला स्वास्थ्य विभाग का था लेकिन सौरभ को नियुक्ति परिवहन विभाग में मिली। ऐसा बिना लिए दिए और सिफारिश के संभव नहीं है। कर्मचारी इस विभाग में जाने के लिए कितना भी खर्च करने को तैयार रहते हैं। इस मामले में नरोत्तम की सफाई भी आ गई है। उन्होंने कहा है कि ‘कानूनी रूप से क्या गलत किया। मैं उस विभाग का मंत्री था। अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन आया था। उसे कार्रवाई के लिए आयुक्त स्वास्थ्य विभाग को भेज दिया गया था। यह तो रुटीन का काम काज है। आगे क्या हुआ यह नहीं मालूम।’ बड़ा सवाल यही है कि जब मामला स्वास्थ्य विभाग का था और इस विभाग में पदों की कमी भी नहीं रहती तो फिर सौरभ की नियुक्ति परिवहन विभाग में कैस कर दी गई? दतिया से कांग्रेस विधायक राजेंद्र भारती ने कहा है कि ट्रांसपोर्ट घोटाले के तार नरोत्तम से जुड़े हैं। इनके आगे भाजपा की वाशिंग मशीन भी फेल है।
*0 अब मीडिया विभाग की सूची फजीहत की वजह….*
– प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की किस्मत खराब है या वे खुद ऐसा कुछ कर बैठते हैं, जिससे पार्टी के साथ उनकी फजीहत हो जाती है। ताजा मामला प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग से जुड़ा है। पार्टी ने एक तरफ प्रदेश प्रवक्ताओं और मीडिया पैनलिस्ट की सूची जारी की और दूसरी तरफ उसे रद्द भी कर दिया। पहले बैठक कर सभी की सहमति से सूची तैयार हुई, उस पर जीतू पटवारी के साथ डिस्कशन हुआ और फिर सूची जारी की गई। अचानक उसे पटवारी के निर्देश पर ही रद्द कर दिया गया। इससे यह भी पता चलता है कि जीतू अभी परिपक्व नेता नहीं बन पाए हैं। बाबा साहेब की फोटो घुटने में रख कर लिखने से ऐसा लगा था और विधानसभा घेराव के लिए भीड़ जुटने पर मंच से ही गिरफ्तारी देने पर भी। प्रदेश अध्यक्ष के पास सभी अधिकार होते हैं। वे चाहते तो मीडिया विभाग की जारी सूची को रद्द करन की बजाय बाद में उसमें संशोधन कर लेते। कम से कम तत्काल मजाक तो नहीं उड़ता। चर्चा है कि सूची को कुछ प्रवक्ताओं के कारण रद्द किया गया। इन्हें पटवारी नहीं चाहते थे। सवाल है कि जब डिस्कशन हो रहा था तब पटवारी का ध्यान इन प्रवक्ताओं पर क्यों नहीं गया? यह भी कहा जा रहा है कि कुछ बड़े नेताओं के समर्थकों को अलग करने के कारण ऐसा करना पड़ा। वजह जो भी लेकिन एक बार फिर कांग्रेस मजाक का पात्र बन कर रह गई।
*0 कचरे ने ताई, भाई के साथ जीतू को भी किया एक….*
– भोपाल से पीथमपुर भेजे गए यूका के जहरीले कचरे का निष्पादन शुरू नहीं हुआ, इससे पहले बवाल मच गया है। कचरे ने भाजपा के प्रतिद्वंद्वी ताई सुमित्रा महाजन और भाई कैलाश विजयवर्गीय के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को भी एक कर दिया। कैलाश ने कहा था कि वे कचरे को पीथमपुर नहीं आने देंगे, फिर भी उसे पहुंचा दिया गया। विरोध न हो इसलिए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कैलाश को ही बैठक बुलाकर सहमति बनाने की जवाबदारी सौंप दी। कैलाश ने बैठक कर सभी को समझाया और अधिकारियों ने भी बताया कि कचरे के निष्पादन से कोई नुकसान नहीं होगा। फिर भी पीथमपुर में भीड़ ने गदर कर दिया। दो लोगों ने आत्मदाह करने तक की कोशिश की। आंदोलन सर्वदलीय हो रहा है, इसमें भाजपा भी शामिल है लेकिन सरकार द्वारा कांग्रेस को राजनीति न करने की सलाह दी जा रही है। जबकि धरने पर भाजपा विधायक नीना वर्मा खुद बैठीं। विजयवर्गीय द्वारा बुलाई बैठक में भी उन्होंने पीथमपुर में कचरे के निष्पादन का विरोध करते हुए कहा कि इसे कहीं भी ले जाएं लेकिन पीथमपुर में स्वीकार्य नहीं। सरकार नहीं मानी तो बवाल हुआ। लिहाजा हालात देख कर फिलहाल सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े हैं। मुख्यमंत्री ने आपात बैठ कर बयान जारी किया और अगले दिन मुख्य सचिव को भी पीसी लेना पड़ी।
*0 प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में इस दिग्गज का भी नाम….*
– भाजपा जिलाध्यक्षों के निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। उत्सुकता इस बात को लेकर है कि प्रदेश का अगला अध्यक्ष कौन होगा? भाजपा के अंदर चर्चा का मुख्य मुद्दा भी यही है। प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों में एक और कद्दावर नेता गोपाल भार्गव का नाम जुड़ गया है। खबर है कि इस मसले पर उनकी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से चर्चा हुई है। भार्गव को प्रदेश में ब्राह्मण समाज का चेहरा माना जा है। मुख्यमंत्री के पद पर पिछड़े वर्ग के डॉ मोहन यादव हैं और क्षत्रिय नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष। प्रदेश में ब्राह्मण समाज की तादाद काफी ज्यादा है। यह समाज अन्य वर्गों में भी असर रखता है। नरोत्तम मिश्रा और रामेश्वर शर्मा का नाम इस समाज का होने के कारण ही चल रहा है। गोपाल भार्गव भाजपा में अन्य की तुलना में बडा चेहरा भी हैं। इसे देखते हुए उनके नाम पर विचार हो सकता है। सागर की राजनीति में इस समय मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच घमासान के हालात हैं। भार्गव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद संतुलन और समन्वय बन सकता है। भूपेंद्र ने कहा भी है कि कांग्रेस से आए गोविंद को मंत्री बनाया गया तो जिले से किसी अन्य विधायक को मंत्रिमंडल में लेकर संतुलन बनाया जाना चाहिए था। भार्गव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह कमी पूरी हो सकती है।
*0 भाजपा में कई समेटने लगे अपना बोरिया-बिस्तर….*
– प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का चुनाव अभी हुआ नहीं और प्रदेश कार्यालय में कई पदाधिकारियों ने अपना बोरिया-बिस्तर समेटना शुरू कर दिया है। ये वे पदाधिकारी हैं जो वर्तमान अध्यक्ष वीडी शर्मा के नजदीक हैं। इन्हें लगता है कि नया अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्हें जाना पड़ेगा, इसलिए ये अभी से कहने लगे हैं कि हमने दूसरी जगह बैठने की आदत डाल ली है। दरअसल, प्रदेश भाजपा काे शीघ्र ही नया अध्यक्ष मिलने वाला है। केंद्रीय मंत्री धमेंद्र प्रधान को निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया जा चुका है। जिलाध्यक्षों की घोषणा के बाद प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। आमतौर पर नए अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद नई कार्यकारिणी गठित होती है। इसमें सभी की सहमित से जातीय, क्षेत्रीय और गुटी संतुलन को ध्यान में रखकर पदाधिकारियों को रखा जाता है। फिर भी कुछ कार्यालयीन और प्रादेशिक पद ऐसे होते हैं जिन पर नया अध्यक्ष अपने विश्वस्त लोगों को बैठाता है। ऐसे पदों पर बैठे पदाधिकारी रवानगी की तैयारी करने लगे हैं। दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों के समर्थक अभी से ये जगह पाने के लिए जोड़तोड़ में जुट गए हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि नया अध्यक्ष बिना फेरबदल किए पुरानी कार्यकारिणी से ही काम चलता है। हालांकि मोदी- शाह की जोड़ी हमेशा की तरह प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी चौंका सकती है।
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