‘नव प्रभात’ की ओर ‘प्रभात’…

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‘नव प्रभात’ की ओर ‘प्रभात’…

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रभात झा अब इस जीवन की निशा को पार कर परम पिता परमात्मा के प्रकाश की शरण में चले गए हैं। ‘कारगिल विजय दिवस’ पर 67 साल एक माह 22 दिन के इस जीवन पर विजय पाकर प्रभात झा 26 जुलाई 2024 को ब्रह्म मुहूर्त में अनंत की यात्रा पर चले गए। उस यात्रा पर, जहां जाने की अनिवार्यता नियंता ने नियति के रूप में हर जीव के लिए तय की है। कौन कब जाएगा, यह भी तय है और कोई कुछ लेकर नहीं जाएगा, यह भी तय है। बाकी जीवन में जो अवसर मिलते जाते हैं, हर जीव का जीवन उसी तरह संवरता जाता है। इच्छाएं अनंत हैं, जिन पर इक्के-दुक्के जीव ही विजय पा पाते हैं। वहीं कार्यों का अंत नहीं है, जाते-जाते भी अधूरे रह ही जाते हैं। पर कुछ लोग बिरले होते हैं, बिहार में जन्मे और मध्यप्रदेश को कर्मभूमि बनाने वाले प्रभात झा ऐसे ही एक विलक्षण प्रतिभा के धनी इंसान थे।

3 जून 2024 को जब मेरी मुलाकात प्रभात जी से उनके 74 बंगला स्थित आवास पर हुई, तब मैं वास्तव में किसी और से मिलने निकला था लेकिन सामने प्रभात जी का बंगला दिखा तो गाड़ी उस तरफ मुड़ गई। प्रभात जी अपने आवास स्थित कार्यालय में अकेले बैठे थे। उस दिन एक घंटे से अधिक समय तक हमारी उनसे चर्चा होती रही। उनसे ही ज्ञात हुआ कि 4 जून को वह जन्मदिन इसलिए मनाएंगे, क्योंकि लोकसभा चुनाव परिणाम आएंगे और मोदी के नेतृत्व में एग्जिट पोल्स की तरह उनके विश्वास में भी भाजपा की ऐतिहासिक जीत होना तय है। प्रभात जी सह्रदयता से भरे थे और लोकसभा चुनाव परिणाम में मोदी और भाजपा केंद्रित अपने आलेख को अंतिम रूप दे रहे थे। भाजपा नेता के साथ एक पत्रकार का उत्साह उनके चेहरे से साफ झलक रहा था। मैंने स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उन्होंने स्वास्थ्य अच्छा होने की बात साझा की। और अपने सहयोगी से आलेख को शीघ्र अंतिम रूप देने को कहा, ताकि समय पर छपने के लिए भेजा जा सके। आलेख सामने आया तो पहले उन्होंने सुधार किया, बाद में पढ़कर अंतिम रूप देने के लिए मेरे सामने कर दिया। यह भी बोले कि पत्रकार की नजर से अब तुम इसे अंतिम रूप दो। मैंने पढ़ा और आलेख को अंतिम रूप देकर उनकी सहमति ली। तब आलेख सभी को भेजने का निर्देश प्रभात जी ने सहयोगी नितेश द्विवेदी को दिया। बाद में आलेख मेरे पास भी आया। मैंने फोन लगाकर पूछा कि आपने कोई हैडिंग नहीं दी, तो उनका जवाब था कि वह हैडिंग का फैसला संपादक पर छोड़ते हैं। यह थी प्रभात जी की अद्वितीय सोच। प्रभात जी सामान्य तौर पर जन्मदिन मनाने के पक्षधर नहीं थे। पर उस दिन वह जन्मदिन मनाने को लेकर उत्साहित थे। तर्क भी था कि उनके जन्मदिन 4 जून 2024 को लोकसभा चुनाव परिणाम आना था और वह मोदी के नेतृत्व में भाजपा की रिकॉर्ड जीत को लेकर आश्वस्त थे। चूंकि उस दिन मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले परिणाम आने थे, इसलिए प्रभात जी इस दिन ऐतिहासिक जन्मदिन मनाने का मन बना चुके थे। पर यह कोई भी नहीं सोच सकता था कि यह ऐतिहासिक जन्मदिन उनका अंतिम जन्मदिन होगा। और उनके जीवन के बस 52 दिन शेष बचे हैं।

प्रभात जी लेखन के कर्म में भी सतत रत थे। उस दिन उन्होंने साझा किया था कि जल्दी ही उनकी अब तक भारत रत्न पाने वाली विभूतियों पर पुस्तक प्रकाशित होने जा रही है। यह पुस्तक अब उनके जाने के बाद प्रकाशित होगी, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वह ऐसे आलेख भी लिख रहे थे, जो आमजन की समस्याओं पर केंद्रित थे। यदि सब कुछ ठीक रहता तो शायद वर्ष 2024 में उनके इन अनूठे आलेखों पर केंद्रित पुस्तक भी पाठकों के हाथों में होती। हालांकि उनकी सुगर सबकी चिंता का विषय होती थी, पर वह इसकी परवाह नहीं करते थे। और यही निश्चिंतता का भाव हमेशा उनके चेहरे पर दिखता था। उनकी बातों में रहता था और उनकी यही दृढ़ इच्छाशक्ति उनकी परवाह करने वालों को बैकफुट पर जाने को मजबूर करती थी। यहां तक कि जब वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे, तब भी सुगर की समस्या ने उन्हें कई बार बैकफुट पर धकेलने की कोशिश की…पर प्रभात जी संगठन को बूथ-बूथ तक जाकर मजबूत करने को समर्पित रहकर सुगर को धता बताते रहे। और शिवराज सिंह चौहान को जननायक बनाने में प्रभात जी के सांगठनिक योगदान को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि जब 2012 में पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष पद से उनकी विदाई की और वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को तब अध्यक्ष का दायित्व सौंपा, तब मंच पर प्रभात जी पोखरण की तरह फट पड़े थे। और मंच पर मौजूद सभी दिग्गज उनका सामना करने का हौसला नहीं जुटा पाए थे। उसके बाद प्रभात जी को राज्यसभा में पार्टी ने दूसरी बार भेजकर उनकी क्षमताओं का पूरा सम्मान किया था। पर प्रभात जी भी हमेशा आदर्श कार्यकर्ता की तरह पार्टी की ईमानदारी से सेवा करते रहे। इसीलिए प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद भी बी-31, 74 बंगला स्थित उनके आवास पर उनके गढ़े कार्यकर्ताओं की उपस्थिति इस बात को प्रमाणित करती रही।

खैर अब प्रभात जी का जीवन पन्नों में सिमट गया है। चाहे मध्यप्रदेश भाजपा के मीडिया प्रभारी और प्रवक्ता के रूप में याद करें, पत्रकार और स्तंभकार के रूप में याद करें, कमल संदेश के संपादक के रूप में याद करें, शिल्पी, जन गण मन (तीन खंड), अजातशत्रु- पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसी पुस्तकों के लेखक के रूप में याद करें, चाहे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में याद करें, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में याद करें या फिर राज्यसभा सदस्य के रूप में याद करें। यह बात सच है कि उनकी कर्मस्थली भले ही ग्वालियर या मध्यप्रदेश और पूरा देश रही हो, लेकिन उनकी आत्मा बिहार के पुश्तैनी गांव में ही बसती थी। 3 जून को जब उनके पैतृक स्थान से किसी प्रिय का फोन आया तो उन्होंने प्रसन्न मुद्रा में यही इच्छा जाहिर की थी कि बस तू विधायक बन जा और फिर मैं वहीं गांव आकर रहूंगा। मुझसे भी वह बोले कि अब हम पति-पत्नी हमारे पुश्तैनी गांव में जाकर ही रहेंगे,यही इच्छा है। पर ईश्वर के विधान में कुछ और ही था। नियति के अधीन बिहार में सीतामढ़ी जिले के उनके पुश्तैनी कुरियाही गांव में 27 जुलाई 2024 को उनकी पार्थिव देह पंचतत्व में विलीन हो जाएगी। और अब हम सभी का प्रभात जी को जिस रूप में याद करने का मन हो, उस रूप में याद करते रहें…पर सत्य यही है कि ‘प्रभात’ देह त्यागकर ‘नव प्रभात’ की ओर गमन कर गए हैं…।k

बॉक्स

राजनैतिक संवाददाता के नाते प्रभात जी के साथ बहुत सारी यादें ताजा हो रही हैं। पर सबको यहां कलमबद्ध करना संभव नहीं है। हालांकि मैंने 4 जून के अपने आर्टिकल में प्रभात जी के जन्मदिन मनाने का जिक्र किया था। आर्टिकल की हैडिंग थी – ‘भारतीय राजनीति में इतिहास बनाएंगे यह लोकसभा चुनाव परिणाम…।’ इसमें एक बॉक्स था –

‘ऐतिहासिक जन्मदिन प्रभात का’

मध्यप्रदेश में एक राजनेता के जन्मदिन को 2024 लोकसभा चुनाव के परिणाम की तारीख ने ऐतिहासिक बना दिया है। वह राजनेता हैं प्रभात झा। वह मध्यप्रदेश के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं और पूर्व राज्यसभा सांसद भी रहे हैं। विशेष दिन होने की वजह से प्रभात झा ने इसे मनाने का फैसला किया है। वह इसे ऐतिहासिक जन्मदिन मान रहे हैं, जब एग्जिट पोल के मुताबिक परिणाम आएंगे और इतिहास बनाएंगे। सामान्य तौर पर वह जन्मदिन मनाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। उनका मानना है कि अटल और नरेन्द्र मोदी में कई समानताएं हैं। बस मोदी की लकीर अब अटल जी से भी लंबी हो गई है। और मोदी के बराबर फिलहाल कोई नहीं है।