प्रभु जोशी घर ऐसे लौटे कि आंसू बह निकले….
कोरोना त्रासदी का शिकार हुए साहित्यकार-चित्रकार प्रभु जोशी को पत्नी (अनिता जोशी) और बेटा (पुनर्वसु-गुड्डू) ठीक से अंतिम बिदाई भी नहीं दे सके थे।बैठक कक्ष में यहां-वहां बिखरी उनकी किताब, अधूरे छूट गए ‘पंधाना भूकंप’ के लिखे पन्ने, दूसरे कमरे और ऊपर के हॉल में रखी एकाधिक पेंटिंग से एक अहसास बना रहता था कि वो यहीं-कहीं हैं….।
पर अभी जब भतीजे अनिरुद्ध जोशी के साथ 15 हजार 840 रु चुका कर अनिता वापस शांति निकेतन वाले अपने फ्लैट पर लौटीं तो ‘कथा देश’ के 150 अंक वाले तीन गट्ठरों को रखते उनके दिलो-दिमाग में समाए प्रभु जोशी आंसू बन कर निकले…!
पौने दो साल पहले जब कभी प्रभु जोशी का लिखा कथादेश में छपता, डाक से अंक घर पहुंचता तो प्रभु दा पूरे दिन बच्चों की तरह उत्साहित रहते। कोई मिलने आए तो अपना छपा पढ़ने को सामने रख देते या फोन कर के प्रकाश कांत, जीवन सिंह ठाकुर आदि मित्रों को बताते कि तुमने इस बार का अंक देखा या नहीं….!
तीन बंडलों के साथ अपनी उदासी का गट्ठर लिए अनिता जमीन पर बैठ गईं।ये पूरा अंक प्रभु जोशी को समर्पित था और कवर पेज पर वही पोट्रेट था जो प्रभु जोशी ने 2015 में ‘रचना समय’ के लिए बनाया था उस स्मृति विशेषांक में सभी प्रमुखों पर उनके लिखे श्रद्धांजलि लेख थे। इसके कवर पेज पर खुद का पोट्रेट बनाया जिस पर उनके सिर पर फूल गिर रहे थे। पत्नी ने रोते हुए पूछा तुम्हारे सिर पर फूल क्यों है? तब पत्नी से हंसते हुए कहा था अनिता मेरे मरने पर पता नहीं कोई स्मृति लेख लिखे ना लिखे, श्रद्धांजलि भी दे या नहीं इसलिए खुद ही फूल डाल दिए अपने सिर पर।
सात साल पहले हंसी हंसी में कही यह बात इस तरह सच साबित होगी यह तो किसी ने सोचा नहीं था।कथादेश का यह अंक प्रभु जोशी के बहुआयामी कला कर्म को समर्पित है और कवर पेज पर वही पोट्रेट है बरसते फूलों के बीच बड़ी-बड़ी आंखों से शून्य में कुछ खोजते प्रभु जोशी।
कथा देश ने अपने इस लेखक पर पूरा अंक तो निकाला है लेकिन परिवार को प्रति नहीं मिली है, मिलेगी भी तो एक या दो। प्रभु के चाहने वाले और नजदीकी परिजन चाहते हैं कि वो भी जानें कि अन्य लेखकों की नजर में प्रभु की क्या अहमियत है लेकिन इन सब को भी अंक कैसे मंगाए कि झंझट में पड़ने से बेहतर यही लगा कि अनिता से ही मांग लें। 15 हजार रु और अन्य खर्च के 840 रु चुका कर तीन गट्ठरों में वो डेढ़ सौ प्रतियों में अक्षर, रंग और आवाज में सदैव जिंदा रहने वाले प्रभु जोशी को घर लेकर आ गईं हैं। पहले पति अपना लिखा-छपा अपने मित्रों को बताते रहते थे, अब मां-बेटे उन सब तक ये किताब भेज देंगे।
आकाशवाणी इंदौर के आर्काइव में अब भी कहीं धूल खा रही होगी उनके लिए साक्षात्कार, कलाकारों से चर्चा के साथ ही उनके द्वारा तैयार किए नाटकों से केंद्र का सम्मान बढ़ाने वाली रिकार्डिंग। मालवा हाउस को भी कहा फुर्सत है कि उनके ऐसे सारे काम को तलाशे और उनके परिवार को स्मृति के बतौर भेंट कर सके। मप्र सरकार ने भी सिंहस्थ-16 के लिए उनसे पेंटिग्ज बनवाई थी, रात-रात भर जाग कर काम पूरा किया, पेटिंग तो समय पर दे दी लेकिन पेमेंट आज तक नहीं मिला। मां-बेटे तब से अब तक सरकार को कई चिट्ठियां लिख चुके हैं। उनकी चिट्ठियां, पेंटिंग संबंधी आदेश वाली फाइल की तरह उज्जैन के त्रिवेणी संग्रहालय में वो दोनों पेंटिंग भी कहीं धूल खा रही होंगी।
समय के साथ बदलाव हुआ है तो इतना कि मां-बेटे अस्थायी तौर पर गोरेगांव (मुंबई) शिफ्ट हो गए हैं।इसकी बड़ी वजह हर दिन कचोटती उनकी यादें तो हैं ही इससे बड़ा कारण है उनकी पेंटिग्ज को मुंबई की कला दीर्घा में प्रदर्शित कराने की भागदौड़।