Prayagraj Mahakumbh: जो 4 मेहमान संभाल नहीं सकते, वे 45 करोड़ के भीड़ प्रबंधन पर दे रहे ज्ञान

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Prayagraj Mahakumbh: जो 4 मेहमान संभाल नहीं सकते, वे 45 करोड़ के भीड़ प्रबंधन पर दे रहे ज्ञान

 

रमण रावल

प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर भगदड़ में जितनी भी मौतें हुई,घायल हुए,गुम हुए वह सब कुछ अपूरणीय क्षति है,जो किसी भी तरह की सहायता,सांत्वना से पूरी नहीं हो सकती। लेकिन इस भव्य,दिव्य,आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय जैसा लगने वाले दुनिया के सबसे विशाल लोक एकत्रीकरण के धार्मिक समागम में हुई भगदड़ और मौतों को लेकर भारतीय संचार तंत्र,चंद कथित बुद्धिजीवी-सुधारवादी-प्रगतिशील,वामपंथी विचारधारा के पोषक और कुछ विपक्षी नेता इसमें गिद्ध की तरह आयोजन की व्यवस्थाओं का शिकार करने के लिये टूटे पड़ रहे हैं। ऐसे लोगों की सोच पर तब सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर उनकी क्या मानसिकता है, जो 45 करोड़ के जन समूह जुटने वाले आयोजन की अक्षुण्ण परंपरा की एक किसी कमजोर कड़ी को पकड़कर समूचे आयोजन को निशाना बना रहे हैं। भारतीयों के डीएनए की इसी कमतरी का फायदा विदेशी और विरोधी हमेशा से उठाते रहे,जिसे अभी-भी हम समझ ही नहीं पा रहे।

मौनी अमावस्या की दरम्यानी रात को अनुमान से कहीं अधिक श्रद्धालु संगम किनारे जमा हो रहे थे। इनमें से अनेक गंगा तट पर ही सोने लगे,जिसे दुर्घटना का बड़ा कारण भी बताया जा रहा है। इस बारे में वहां के जिलाधिकारी का वीडियो भी सामने आया है, जिसमें वे तट पर सोये लोगों से अन्यत्र जाने का आग्रह कर रहे हैं। संभव है,इसके बाद भी भगदड़ मचती, लेकिन कहीं से गड़बड़ी की शुरुआत होनी होती है और वह हो चुकी थी।

अनुमान है कि मौनी अमावस्या पर साढ़े तीन से चार करोड़ लोग प्रयागराज पहुंच गये थे। अब यह कैसे संभव है कि मात्र 40 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में 4 करोड़ लोगों को सौ प्रतिशत सुरक्षा दी जा सके ? बावजूद इसके कि समूचे महाकुंभ के दौरान करीब 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया गया था। साथ ही प्रमुख स्नानों व विशेष अवसरों पर भी संख्या का अंदाज था ही। फिर भी प्रति व्यक्ति एक सुरक्षाकर्मी या उन्हें पूरी तरह से नियंत्रित करने वाला तंत्र तैयार रखना असंभव ही है। ऐसे में कहने वाले कह सकते हैं कि इतना बड़ा आयोजन करने की आवश्यकता क्या है? जो लोग सनातनी पंरपरा,तीज-त्यौहारों,तीर्थ क्षेत्र के महत्व,प्रमुख नदियों में स्नान-ध्यान की आध्यात्मिकता के बारे में शून्य है, वे बकवास करते भी रहें तो फर्क नहीं पड़ने वाला। भारत भूमि में सदियों से ऐसे समागम होते रहे हैं और वे चिरंतन होते रहेंगे।

इस हादसे के बाद भी मीडिया की हेड लाइंस यह बन रही है कि भगदड़ के वास्तविक प्रभावितों की संख्या नहीं बताई जा रही। इस चक्कर में वे खबर में आने वाले श्रद्धालुओं की करोड़ों की संख्या को कमतर आंकने में लगे है। जिसका मतलब यह है कि हादसे से अवगत होने के बाद भी आने वालों की श्रद्धा और साहस में कोई कमी नहीं आई है। पिछले एक हफ्ते में ही 5 करोड़ के करीब श्रद्धालु आ चुके हैं, जो खबरों की हेड लाइन में नहीं बताया जा रहा। कुछ विपक्षी नेता यह राग आलाप रहे हैं कि महाकुंभ में वीआईपी को नहीं आना चाहिये, जो बेहद हास्यास्पद है। क्या वे यह कह सकते हैं कि क्रिसमस पर किसी वीआईपी को चर्च या ईद पर नमाज पढ़ने ईदगाह नहीं जाना चाहिये? ऐसी बकवास वे केवल सनातनी आयोजनों के लिये ही कह सकते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि सनातनी समुदाय शांतिप्रय, सद्भाव प्रिय,सहनशील है। वह किसी को भी कुछ भी कहने की स्वतंत्रता देता् है, चाहे वह उसकी परंपराओं,प्रतीकों,पर्व को लेकर भी क्यों ना हो।

एक और बात की हैरत है कि जिन लोगों के अपने घर 4 मेहमानों को बुलाने पर 10 आ जायें तो व्यवस्थायें जुटाने में पसीने छूटने लगते हैं, वे सरकार को बता रहे हैं कि वह सही ढंग से इंतजाम नहीं कर सकी।आलोचक इन तथ्यों की भी अनदेखी कर रहे हैं कि ऐसे किसी भी विशाल लोक एकत्रीकरण के कार्यक्रमों में अनुमान से कई गुना अधिक भीड़ आ जाती है और भगदड़ या अव्यवस्था मचती है, फिर भी उन्हें अगले किसी कार्यक्रम में जाने से फर्क नहीं पड़ता। भारत में देश भर से 50 लाख लोग सीहोर जैसे छोटे से शहर में केवल इसलिये इकट्‌ठा हो जाते हैं कि उन्हें अभिमंत्रित रूद्राक्ष मिल जायेगा, जो उनके कष्ट कम करने में सहायक होगा। वहां भी भगद़ड मचती है, लेकिन दूसरे ही दिन फिर से वे जुटते हैं।

यदि कुंभ की ही बात करें तो 1954 और 2013 में भी प्रयाग कुंभ में भगदड़़ हुई थी, ,जिसमें क्रमश: 800 व 40 मौतें हुई थीं। क्या इससे किसी कुंभ या सिंहस्थ में श्रद्धालुओं की कमी आई? केदारनाथ त्रासदी को याद कीजिये, जिसमें सैकड़ों लोग आज तक लापता हैं। क्या लोगों ने केदारनाथ-बद्रीनाथ यात्रा कम कर दी? इसका यह मतलब यह नहीं कि इस तरह के अतिशय भीड़ वाले आयोजनों में सरकारें व्यवस्थायें न जुटायें या लापरवाही बरतें। हमें देखना यह चाहिये कि जो किया गया है, क्या वह अपर्याप्त है?

प्रयाग महाकुंभ की बात करें तो 40 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र को आयोजन के लिये पृथक जिला बनाकर सारी व्यावस्थायें वहां एक जिले की तरह जुटाई गईं। साथ ही डेढ़ लाख अस्थायी शौचालयों के लिये 20 हजार सफाईकर्मी तैनात किये गये। 50 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। सैकड़ों रेलगाड़ियां चल रही हैं। चलित अस्पताल व अन्य आवश्यक सेवायें भी की गईं, लेकिन यह कैसे संभव है कि हजारों की तादाद में मरीजों-घायलों के आ जाने पर भी व्यवस्थायें सुचारू हो सकें ? यह सोच ही नादानीपूर्ण है।

प्रत्येक व्यक्ति का जीवन अनमोल है, लेकिन इन धार्मिक आयोजनों, यात्राओं की बात करें तो हम पाते हैं कि ज्ञात इतिहास में जब कभी-भी कोई दुर्घटना,हादसा हुआ हो तो भी वैसे ही किसी अन्य आयोजन पर उसका किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ा। श्रद्धालुओं की तादाद लगातार बढ़ती ही है। जो लोग इनका हिस्सा बनते हैं, वे मन में अगाध श्रद्धा लेकर यात्रा करते हैं। वे इन पुण्य भूमि पर प्राणोत्सर्ग को भी मोक्ष मानते हैं। उन्हें ऐसा मानने के लिये कोई समझाता या उकसाता नहीं है। इस महाकुंभ में भी लोगों की बेहिसाब भीड़ इस बात का प्रमाण है कि दुर्घटनायें उनके संकल्प और आस्था को रत्ती भर डिगा नहीं सकती। फिर जो लोग और मीडिया के असंख्य साथी वहां होकर आये हैं, वे बता रहे हैं कि इस सदी में उपलब्ध तमाम सुविधायें वहां जुटाई गई हैं। इसे देखने-जानने के लिये देश-दुनिया के प्रबंधन तंत्र के विशेषज्ञ,आपदा प्रबंधक,शोधार्थी लगातार आ रहे हैं कि जहां 45 करोड़ तक लोग आयेंगे, वहां किस तरह का तंत्र और व्यवस्थायें संचालित हो रही हैं।

हम यहीं प्रार्थना और आशा करें कि शेष महाकुंभ निर्विघ्न संपन्न हों और एक बार फिर से उन व्यवस्थाओं का जायजा लेकर उन्हें चाक-चौबंद करें।