प्रेमचंद जयंती :पंडित  दीनानाथ व्यास स्मृति “प्रतिष्ठा ” समिति, भोपाल द्वारा कहानी पाठ का आयोजन

1360

प्रेमचंद जयंती :पंडित  दीनानाथ व्यास स्मृति “प्रतिष्ठा ” समिति, भोपाल द्वारा  कहानी पाठ का आयोजन

“कालजयी साहित्य  भारतीय ही नहीं विश्व साहित्य की धरोहर है” डॉ रमेशचन्द्र शर्मा 

शिक्षा साहित्य कला और समाज को समर्पित पंडित  दीनानाथ जी व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति, भोपाल द्वारा  मुन्शी प्रेमचंद्र जी की १४३ वी जयंती  पर कहानी पाठ आयोजित किया गया .गूगलमीट के सोजन्य से आयोजित कथा गोष्ठी में  मुंशी प्रेमचंद की एवं हिदी लेखकों ने मौलिक कहानियों का पाठ किया .इस आयोजन में  मुख्य अतिथि  कहानीकार डॉ रमेश शर्माजी  ने मुंशी प्रेमचंद  के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने हिन्दी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान किया . मुंशी प्रेमचंद ने सरल सहज हिन्दी को, ऐसा साहित्य प्रदान किया जिसे लोग, कभी नही भूल सकते . बड़ी कठिन परिस्थियों का सामना करते हुए हिन्दी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी . मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के लेखक ही नही बल्कि, एक महान साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार जैसी, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे|उन्हें हर युग में याद किया जायगा .उनका  कालजयी साहित्य  भारतीय ही नहीं विश्व साहित्य की धरोहर है .समाज के उपेक्षित, अपमानित, पतित, किसान, गरीब मजदूर, दहेज प्रथा, बेमेल विवाह आदि उनकी रचनाओं के विषय थे। अपनी कहानियों में प्रेमचन्द ने भारतीय ग्राम्य जीवन व समाज का वर्णन किया।

WhatsApp Image 2023 07 28 at 15.56.02364638108 6464578330244815 4264038749549633224 n

 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था की संस्थापक अध्यक्ष डॉ स्वाति तिवारी ने कहानी कैसे लिखी जाय ,किस पर लिखी जाय और क्यों लिखी जाती है , इन बिन्दुओ पर प्रकाश डालते हुए शिक्षा शास्त्री ,विद्वान् साहित्य मर्मज्ञ पंडित दीनानाथ व्यास जी के कथोपकथन शैली की विशेषताएं बताते हुए उन्हें स्मरण किया .डॉ स्वाति तिवारी ने कहा कि प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार किया जाता है।कथा-साहित्य के शिखर पुरुष कथा  सम्राट प्रेमचन्द  की रचनाओं को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास में एक नई परंपरा की शुरुआत की जिसने आने वाली पीढ़ियों के साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया। प्रेमचंद ने साहित्य में यथार्थवाद की नींव रखी।1910 में धनपत राय के नाम से ‘सोजे-वतन’ राष्ट-प्रेम और क्रांतिकारी भावों से पूर्ण कहानी संग्रह लिखा, जिसे हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने जब्त कर नष्ट कर दिया। तब सन् 1915 में महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर ‘प्रेमचन्द’ के नाम से लेखन कार्य शुरू किया।

WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.28.03WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.28.31WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.26.47WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.32.20WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.26.31WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.32.53WhatsApp Image 2023 07 30 at 17.29.40

कार्यक्रम की विशेष अतिथि कहानीकार डॉ साधना बलवटे  ने कहानी का पाठ कैसे किया जाना चाहिए ,कहानी के तत्व क्या है और कहानी में भाषा और शैली पर अपनी  बात कही .डॉ साधना ने मुंशीजी को लेकर अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंदजी की हर कहानी प्रासंगिक है .प्रेमचंद की हर रचना बहुमूल्य है.उनके रचनात्मक योगदान के कारण 1918 से 1936 तक के काल को प्रेमचन्द युग कहा जाता है। प्रेमचन्द रचनात्मक जीवन में साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए हैं,

डॉ सुनीता फडनीस ने कहा कि प्रेमचंद ने सामाजिक मोर्चे पर सदियों से चली आ रही कुरीतियों और अंधविश्वासों का विरोध कर समाज विकास के वैज्ञानिक मत को अपनाने पर ज़ोर दिया।

कहानी पाठ की शृंखला में विनीता तिवारी, मणिमालाशर्मा ,डॉ दविंदर कौर होरा,डॉ सुनीता फड़नीस,आशा जाकड़़,मुन्नी गर्ग के आलावा अतिथियों ने भी कहानी पाठ किया ..मनीषा व्यास ने कार्यक्रम का  सुन्दर संचालन किया.संचालन करते हुए लेखिका मनीषा ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि उनका साहित्य निम्न एवं मध्यम वर्ग की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।  ममता सक्सेना ने अपने आभारिय वक्तव्य  में कहा किप्रेमचंद जी ने उर्दू, संस्कृत और हिन्दी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया है, जैसे- पीर का मजार, फुरसत, रोजनामचे. प्रेमचन्द की भाषा चुलबली है, मुहावरों-कहावतों का प्रयोग है।
कहानीकारों और बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं  का आभार ममता सक्सेना ने माना. श्रोताओं और कहानीकारों ने स्थापित और नवोदित कहानीकारों की कहानी पर अपनी राय देते हुए कहा की सभी ने अपने समय  के अनुकूल कहानियाँ लिखी है .कार्यक्रम में शिक्षाशास्त्री श्री नवीन शर्मा ने प्रेमचंद पर कहा कि मुंशी जी की सहाबहार प्रसिद्धि का कारण उनकी कहानियों और उपन्यासों में ‘समय को मात’ देने का हुनर है. विनीता तिवारी ने  कहा कि उनकी कई कहानियां जैसे बड़े भाई साहब 1910 में, ईदगाह 1933, कफ़न 1936 में लिखीं गयीं थीं, लेकिन ये सब आज भी जीवंत हैं. इन सब कहानियों को आज भी पढ़कर लगता ही नहीं है कि ये कहानियां 80 से 90 साल पहले लिखी गयीं थीं.श्रोताओं ने प्रेमचंद की अनेक चर्चित अचर्चित कहानियों को याद किया .

लोकभाषाएँ हमारी संस्कृति की संवाहक : डाॅ बार्चे 

गोविन्द गुंजन की कविता “भीतर का सच”