राजस्थान में विधानसभा के 5 उप चुनावों की तैयारियां, भाजपा चुस्त और कांग्रेस सुस्त
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट
देश के सात प्रदेशों की 13 विधानसभाओं के उप चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली शिकस्त के बाद अब अन्य राज्यों में रिक्त हुई सीटों पर भी आने वाले महीनों में उप चुनाव होने वाले हैं। आने वाले महीनों में राजस्थान में पांच विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उप चुनावों की तैयारियां भी शुरू हो गई है। इन तैयारियों में
भाजपा चुस्त और कांग्रेस सुस्त दिखाई दे रही हैं।
भारत निर्वाचन आयोग ने हालांकि अभी तक चुनाव तिथियों की घोषणा नहीं की है। लेकिन अनुमान है कि आगामी अक्टूबर अथवा नवंबर में अन्य प्रदेशों के साथ राजस्थान विधानसभा की रिक्त हुई सभी 5 सीटों पर भी चुनाव होने की संभावना है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कई विधायक चुनाव मैदान में उतरे थे। इनमें से 5 विधायक ऐसे रहे जो लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुए। संयोग से इन पांचों नव निर्वाचित सांसदों में एक भी भाजपा का सांसद नहीं बना है।
खींवसर से विधायक रहे हनुमान बेनीवाल नागौर लोकसभा क्षेत्र से, झुंझुनूं से विधायक रहे कांग्रेस के बृजेंद्र ओला झुंझुनूं लोकसभा सीट से, डूंगरपुर जिले की चौरासी विधान सभा सीट से विधायक रहे भारत आदिवासी पार्टी बाप के राजकुमार रोत बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा सीट से, देवली उनियारा से विधायक रहे कांग्रेस के हरीश मीणा टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र से और दौसा से विधायक रहे कांग्रेस के ही मुरारी लाल मीणा दौसा लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए। सांसद निर्वाचित होने के बाद ये पांचों नेता नियमानुसार राजस्थान विधान सभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी को विधायक पद से अपना इस्तीफा दे चुके हैं। कोई भी जन प्रतिनिधि संसद सदस्यता और विधायक में से एक पर ही पद पर रह सकता हैं ।
अब इन पांच विधानसभा सीटों खींवसर, झुंझुनूं, चौरासी, देवली उनियारा और दौसा पर जल्दी ही विधान सभा उप चुनाव होने वाले हैं। इन पांच विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। पार्टी के प्रदेश कार्यालय में पिछले दिनों एक अहम बैठक भी हुई हैं जिसमें लोकसभा चुनाव के राजस्थान प्रभारी डॉ. विनय सहस्रबुद्धे, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी सहित संगठन के तमाम पदाधिकारी मौजूद रहे थे। इस बैठक के बाद जयपुर में प्रदेश कार्यसमिति की एक वृहद बैठक भी हो चुकी है जिसमें प्रदेश से मोदी सरकार में मंत्री बने भूपेन्द्र यादव, गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल और भागीरथ चौधरी का अभिनंदन भी किया गया। इन दो बड़ी बैठकों में आने वाले चुनाव को लेकर भाजपा ने अपनी रणनीति बनाई है। पार्टी हाईकमान ने भी प्रदेश नेतृत्व को चुनाव की तैयारियों में जुटने का टास्क दिया है। प्रदेश भाजपा के नेता अब इन सभी विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को जीत का मंत्र पढा रहे हैं। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी उपचुनाव वाले क्षेत्रों के दौरे पर निकले हुए हैं। कुछ दिन दिन पहले वे नागौर जिले के खींवसर पहुंचे थे। हाल ही उन्होंने झुंझुनूं जाकर बैठक ली और आगामी 27 जुलाई को उनका दौसा का कार्यक्रम है। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा भी आगामी दिनों में इन सभी क्षेत्रों का सघन दौरा करने वाले है। हालांकि कांग्रेस ने भी पिछले दिनों जयपुर में एक बैठक का आयोजन किया था जिसमें नव निर्वाचित सांसदों के स्वागत के साथ चुनावी रणनीति पर भी विचार विमर्श किया। इस बैठक में सहयोगी दलों के सीकर से जीते भाकपा के कामरेड अमरा राम ने ही भाग लिया और हनुमान बेनीवाल तथा राज कुमार रोत अनुपस्थित रहें।
प्रदेश की इन पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों अपनी-अपनी रणनीति बना रहे हैं,लेकिन सियासी समीकरण कुछ भिन्न ही बन रहे हैं। भाजपा जहां अकेले चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है, वहीं कांग्रेस अपने एलाइंस सहयोगी दलों के साथ मैदान में उतरेगी। इन चुनावों में भी भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के लिए पार्टी के भीतर मौजूद गुटबाजी एक चुनौती है। कांग्रेस में भी कई नेता गुटबाजी और भितरघात की बात कह रहे हैं तो वहीं भाजपा के दो दिग्गजों नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भजन लाल सरकार में वरिष्ठतम मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा के नाराज होने से पार्टी को नुकसान की आशंका है। इन दोनों नेताओं को भाजपा मना भी रही है लेकिन अभी बात पूरी तरह से नहीं बन पाई है। इस कारण अभी टिकट निर्धारण पर भी बात नहीं बन पा रही है। कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोर के अस्वस्थ होने के बाद अब सारा दारोमदार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के कंधों पर आकर टिक गया है। सचिन पायलट भी केन्द्र में ही अधिक व्यस्त दिखते हैं। इन परिस्थितियों में अभी किसी दल के मजबूत होने की स्थिति नहीं दिख रही है। हालांकि निकट भविष्य में यहां के सियासी समीकरण में कई दांव-पेंच और उतार चढ़ाव देखने को मिलेगे। फिर भी यह स्पष्ट है कि राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस और सहयोगी दलों की इन विधान सभा सीटों पर भाजपा के मुकाबले स्थिति मजबूत मानी जा रही हैं
यदि विधानसभा वार स्थिति का जायजा लें तो देवली-उनियारा से दो बार के विधायक हरीश मीणा अब कांग्रेस के टिकट पर सांसद बन चुके हैं। अब यहां पर कांग्रेस से कौन चुनाव लड़ेगा इस पर अभी कोई तस्वीर सामने नहीं है। लेकिन, यहां हरीश मीणा और सचिन पायलट के कंधे पर सब कुछ निर्भर है। जो तय होगा बिना इन नेताओं की सहमति से नैया पार नहीं लगने वाली है। वहीं भाजपा यहां से गुर्जर नेता पर ही मुहर लगाएगी, ऐसा लगता हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिना गुर्जर चहेरे के भाजपा को जीत नहीं मिल सकती है।
डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तर्ज पर भारत आदिवासी पार्टी बाप के साथ ही मैदान में रहेगी। ऐसा माना जा रहा है। यहां भाजपा और बाप के सामने भी चुनौती ये है कि वे किस चेहरे पर दांव लगाए। चौरासी के विधायक राजकुमार रोत सांसद बन चुके हैं। यहां भाजपा की नजर अपने पूर्व विधायकों पर हैं।
झुंझुंनू विधानसभा से कई बार के विधायक बृजेन्द्र सिंह ओला अब कांग्रेस से सांसद बन चुके है। यहां पर भाजपा किसे मैदान में उतारेगी यह अभी तय नहीं दिख रहा है। झुंझुंनू में अब तक ओला परिवार का ही दबदबा बना रहा है। इसी तरह दौसा से विधायक मुरारी लाल मीणा अब कांग्रेस के टिकट पर सांसद बन चुके हैं। जिसे लेकर यहां पर भाजपा बड़ी तैयारी कर रही है। बीजेपी यहां पर जातिगत समीकरण साधकर चल रही है। खींवसर से बीजेपी अकेले मैदान में रहेगी लेकिन कांग्रेस गठबंधन में रहकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। यहां रणनीति हनुमान बेनीवाल पर ही तय रहेगी।
राजस्थान में होने वाले इन पांच सीटों के उपचुनाव के परिणाम बहुत रोचक रहने की संभावना हैं क्योंकि, भाजपा उप चुनावों की हर सीट पर चुनाव जीतना चाहेगी। वैसे भी परंपरा के अनुसार सत्ताधारी दल को उप चुनावों में अधिक फायदा मिलता है। लेकिन राजस्थान में जातिगत राजनीति हावी होने से कोई भी सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकता । वैसे यह उप चुनाव कांग्रेस और भाजपा की आगे की राजनीति तय करेंगे। विशेष कर मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के लिए ये चुनाव अग्नि परीक्षा साबित होने वाले है। प्रतिपक्ष के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाने और आगामी राज्य सभा चुनाव आदि की दृष्टि से इन चुनावों की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी, ऐसा माना जा रहा हैं।
देखना है राजस्थान में आने वाले विधानसभा उप चुनावों में कांग्रेस और भाजपा में से जीत किसका वरण करने वाली है?