रचनात्मकता और सृजनशीलता के अधिष्ठाता देव

761

रचनात्मकता और सृजनशीलता के अधिष्ठाता देव

 

– सोनम लववंशी

 

प्रथम पूज्य देवता गणपति महाराज शुक्ल महायोग और चित्रा नक्षत्र में विराजित हो रहे है। अब दस दिनों तक चलने वाले पर्व गणेश उत्सव की धूम रहेगी। ऐसे में गणेश जी के इस पर्व से जुड़ी कहानियों से रूबरू होना भी जरुरी हो जाता है। कहते हैं कि विश्व का प्रथम लोकतंत्र ‘वैशाली’ यानी अपने भारत देश में अस्तित्ववान था, लेकिन पुराख्यानों के आधार पर भगवान गणेश गणतंत्र के प्रथम प्रस्तोता रहे हैं। गणेश चतुर्थी से गणेश आराधना की उपासना दस दिनों के लिए की जाती है। इन दस दिनों में गणेश तत्व की पृथ्वी से निकटता अधिक रहती है। इन दिनों गणेश उपासना करने से हमारा चित्त गणपति के साथ सहजता से जुड़ जाता है।

IMG 20230920 WA0019

रचनात्मकता के मूल स्रोत

भगवान गणेश को सृष्टि का आधार भी कहा जाता है, इसीलिए वे सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक हैं। गणेश जी रचनात्मकता और सृजनशीलता के अधिष्ठाता भी हैं। यही कारण है कि हर शुभ कार्य से पहले जिस देवता की पूजा की जाती है, वे गजानन गणेश ही हैं। आज के दौर में भले ही साहित्य, फ़िल्म, नाट्य, मूर्ति, नृत्य आदि में सृजनशीलता की कमी हो रही है, पर कहते हैं कि भगवान गणेश की उपासना आराधना करने से हमारे भीतर सृजनशीलता की धारा कभी कुंद नहीं होती। भगवान गणेश रचनात्मकता के मूल स्रोत है, जो हमारे मन मस्तिष्क को सदैव उत्प्रेरित करते रहते हैं। गणपति के ‘गण’ से आशय ऐसे समूह के नायक से है। जिसकी सम्पूर्ण कार्यप्रणाली एवं प्रतीकात्मकता इसी तंत्र को समृद्ध और सशक्त बनाती है। इस तंत्र के नियोक्ता वे हैं जो ‘दुर्वा’ (सर्वहारा) से लेकर ‘बरगद’ (कुबेर) तक न्यायिक रचना का विस्तार करते हैं। वे सूपकर्ण हैं और सभी की बात सुनते हैं और सभी की बिगड़ी बनाते हैं।

IMG 20230920 WA0018

पर्व ही हमारी संस्कृति का आधार

गणेश चतुर्थी का आयोजन भले ही आज़ादी की लड़ाई में एकजुटता के निर्माण के लिए किया गया हो। लेकिन, यह दस दिन तक आयोजित होने वाला पर्व हमें कई संदेश देता है। इस बार गणेश चतुर्थी के साथ ही जैन धर्म का पवित्र पर्व पर्युषण भी शुरू हो रहा। ऐसे में हमें यह समझने की आवश्यकता है, कि अलग-अलग धर्म को मनाने वाले लोग भले अपने-अपने रीति-रिवाज से इन पर्वों को मनाते हैं। लोगों में मतांतर है, लेकिन इन पर्वों का आशय लगभग एक सा है। गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करने से लेकर दस दिनों तक उनका पूजन-अर्चन चलता है। इसी के साथ जैन धर्म से जुड़े मतावलंबी भी अपना पर्व मना रहें हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पर्युषण यानी दस-लक्षण पर्व विभिन्न धार्मिक क्रियाओं द्वारा आत्मशुद्धि करने और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने का एक प्रयास है। जैन धर्म के अनुसार 10 दिनों के दस-लक्षण पर्व के दौरान दस धर्मों जैसे उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन एवं उत्तम ब्रह्मचर्य को धारण करने की प्रथा है। मान्यता यह भी है कि यह पर्युषण पर्व व्यक्ति को क्रोध, लालच, मोह-माया, ईर्ष्या, असंयम आदि विकारों से मुक्त होने की प्रेरणा देता है।

 

विदेशों तक फैली है गणेश जी की ख्याति

दूसरी ओर गणेश चतुर्थी के साथ शुरू होने वाला हिंदू पर्व भी इन्हीं बातों को केंद्र में रखता है। गणेश जी के व्यक्तित्व से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उनका एक नाम लंबोदर भी है। उन्हें यह नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि एक नायक या नेता को कितनी ही अप्रिय बातें सहन करनी होती है और इस बात का परिचायक गणेश जी का व्यक्तित्व है। गणेशजी प्रथम लिपिकार भी हैं। ईश्वरीय आदेश पर व्यास मुनि के लिए महाभारत का लेखन भी उन्होंने किया था। गणेश उत्सव भारत तक ही सीमित नहीं, चीन, जापान, मलाया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाईलैंड और मैक्सिको तक इसे उत्सव की तरह मनाया जाता है।

 

गणेशजी की शारीरिक बनावट देती है सीख

गणेशजी का विशाल अंग भी हमें बहुत कुछ बताता है। वे भले ही स्थूलकाय वाले हों, लेकिन उनकी आंखें काफी छोटी हैं। ये छोटी आंखें एक संदेश भी है कि हर वस्तु को ध्यान से और गहराई से परखें। प्रबंधन में किसी भी सही फैसले पर पहुंचने से पहले हर पहलू को पारखी नजर से देखने की जरूरत होती है। गणेश जी का बड़ा सिर बड़े विचार और सोच की तरफ इशारा करता है। कहते हैं, जितना बड़ा सोचोगे उतने बड़े बनोगे। गणेश जी के शरीर में सबसे ज्यादा चर्चा किसी अंग की होती है ,तो वह उनकी सूंड! लेकिन जब हम सूंड के महत्व को देखते हैं, तो उसका निहितार्थ यही है कि व्यक्ति को हर समय इतना सतर्क होना चाहिए कि किसी भी हालात को भांप सकें।

 

आत्मतत्व का स्मरण

गांधी जी के तीन बंदरों की कहानी तो हम सभी ने सुनी होगी। गणेश जी के भी कान काफी बड़े और मुँह छोटा है। यह हमें संदेश देता है, कि सबकी बातों को ध्यान से सुना जाए। ज़्यादा बोलने से बेहतर है अधिक सुनना ज्यादा हितकर होता है। ऐसे में साधारण सी बात है कि छोटा मुंह इस बात का प्रतीक है कि जब भी बात की जाए सोच-समझकर की जाए और उतना ही बोला जाए जितना जरूरी है। इसके अलावा भगवान गणेश को कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। जिसमें उनका एक नाम लंबोदर भी है। लंबोदर की संधि-विच्छेद की जाए तो अर्थ होता है लम्बा है उदर (पेट) जिसका यानी गणेश जी। यहां गणेश जी का बड़ा पेट भी हमें शिक्षित करता है। एक व्यक्ति के रूप में हमें अच्छी बातों को पचाने की आदत होनी चाहिए, तभी हम जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। ऐसे में देखें तो गणेश जी की दस दिन की पूजा और उनका व्यक्तित्व हमें आत्मतत्व का स्मरण और व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने की सीख देता है और वास्तव में सफल जीवन का आधार भी यही है।