
Problematic Personalities: एक सनकी,दो तानाशाह,एक जोकर,एक अड़ियल,एक धूर्त दुनिया बरबाद कर देंगे
रमण रावल
मुझे लगता है आप भी मेरा इशारा समझ ही गये होंगे। फिर भी इनके नाम स्पष्ट कर ही देता हूं। वर्ष 2025 का साल समूची दुनिया के लिये बेहद अनिश्चितता,संताप और संक्रमण का होता जा रहा है। दो देशों की कुछेक जोड़ियां तो युद्ध लड़ ही रहे हैं,थोड़ी-सी गड़बड़ से यह तीसरे विश्व युद्ध में बदल सकता है। तमाम हालात उसी तरफ दौड़ रहे हैं और ज्योतिषीय आकलन भी स्पष्ट संकेत दे ही चुके हैं। यदि ऐसा हुआ तो इसके दोषी होंगे-डोनाल्ड ट्रम्प(सनकी),व्लादिमीर पुतिन व शी जिनपिंग(तानाशाह), जेलेंस्की(जोकर), बेंजामिन नेतन्याहू(अड़ियल) और असीम मुनीर(धूर्त) ।
सबसे पहले हम दुनिया के सबसे बड़े सनकी की बात कर लें। किसी देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कैसा हो,इसका कोई खाका तो नहीं है, लेकिन पद के मान से मर्यादा जरूरी रहती है। वह व्यक्ति जाहिरा तौर पर शिष्टाचारी,संतुलित बातें करने वाला,स्पष्ट विचारवादी,देश के हितों का पोषक और आम तौर पर किसी विवाद से बचने वाला होना चाहिये। हैरत है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के पहले कार्यकाल की समाप्ति पर लोगों को भड़काकर राष्ट्रपति भवन की ओर जाने के लिये उकसाने जैसा छिछोरापन करने वाला दूसरे कार्यकाल में सारे मान्य मानकों को निरंतर सूली पर टांग रहा है। वह भी इस तरह से कि उसके ही देश में उसका चौतरफा तीव्र विरोध हो रहा है।
राष्ट्रपति के नाते ट्रम्प ने मात्र सात महीने के कार्यकाल(20 जनवरी 2025 से अभी तक) में करीब पौने दो सौ फैसले लिये, जिनमें से अधिकांश में या तो खुद ने पलट दिये या फिर संघीय अदालतों ने उन्हें रोक दिया। वहां की जनता,मानवाधिकार कार्यकर्ता,पत्रकार,व्यापारी,उद्योगपति,राजनीतिक कार्यकर्ता उनके खिलाफ मुकदमा-दर-मुकदमा दायर कर रहे हैं। फिर भी बेहद बेशर्मी से ट्रम्प नित-नये सनक भरे फैसले लिये जा रहे हैं। उनके दो फैसले तो सनक की पराकाष्ठा के प्रतीक हैं। अवैध अप्रवासियों को क्रूरतापूर्वक निकालना या अमानवीयपूर्ण माहौल में शेल्टर होम में रखना और दूसरा अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले उन देशों पर मनमानी टैरिफ दरें लगाना,जो उनकी हां में हां नहीं कर रहे हैं। जैसे भारत ।
ये वो ही ट्रम्प हैं, जो अपने पहले कार्यकाल में भारत से गलबहिया किया करते थे और मोदीजी को अपना दोस्त बोलते थकते नहीं थे। वही ट्रम्प अब 50 प्रतिशत टैरिफ थोप चुके हैं, यह सोचकर कि भारत गिड़गिड़ाते हुए आयेगा। उन्हें पता चल गया होगा कि ये नया भारत है। घुटनों पर आने वाले भारत का दौर बीत चुका है। अमेरिका के टैरिफ का कारोबारी,कॉरपोरेट क्षेत्र से तो विरोध हो ही रहा है, आम जनता भी उससे न घबराने का मानस बना चुकी है।
ये वो ही ट्रम्प है, जो कभी-फलस्तीन-इजराइल के बीच समझौते की पहल करते हैं, कभी फलस्तीन को धमकाते हैं, कभी कहते हैं कि वे इस युद्ध में पार्टी नहीं बनेंगे और कभी इरान के मैदान में आने पर उसे तबाह करने निकल पड़ते हैं। ये वो ही ट्रम्प हैं, जो जेलेंस्की-पुतिन के बीच समझौता वार्ता की पहल करते हैं, कभी अमेरिका बुलाकर जेलेंस्की को समझाइश देना चाहते हैं तो कभी पुतिन से युद्ध विराम की चर्चा के लिये अलास्का में मिलने की पहल करते हैं तो कभी जेलेंस्की तो कभी पुतिन को धमकाते हैं।
ये वो ही ट्रम्प हैं, जो भारत के साथ मजबूत व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों की दुहाई देते हैं, मोदीजी को मित्र बताते हैं और फिर अचानक पाकिस्तान जैसे दुनिया भर में घोषित आतंकवाद समर्थक होने के बावजूद उसके सेनाध्यक्ष असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में भोज पर आमंत्रित करते हैं। वे अल्प काल में ही मुनीर को दोबारा बुलाते हैं। वह भी तब जब पाकिस्तान में इस समय तक निर्वाचित प्रधानमंत्री है। ऐसा कर वे साफ संदेश देते हैं कि पाकिस्तान की रीति-नीति सेना तय करती है न कि निर्वाचित सरकार। संभव है, आने वाले समय में वहां सेना विद्रोह कर सत्ता हथिया ले और शाहबाज शरीफ को जेल में डाल दे तो अमेरिका खुलकर समर्थन करे।

एक जेलेंस्की हैं। राजनीति से पहले वे कॉमेडियन थे। कतई गलत नहीं कि वे राजनीति में आ गये, लेकिन रूस के साथ लंबे युद्ध के लिये वे पुतिन से अधिक जिम्मेदार हैं। यदि रूस की आपत्ति इस बात में थी कि यूक्रैन नाटो में शामिल न हो तो उस कीमत पर अपने देश के लाखों लोगों की जान गंवाकर और अरबों का आर्थिक नुकसान कर एक समूची पीढ़ी का जीवन तबाह कर वे कौन-सा अहंकार संतुष्ट कर रहे हैं, वे ही जानें। वे चाहते तो अपने देश को इस भयानक विध्वंस से बचा सकते थे। अनेक देश नाटो में नहीं हैं तो क्या वे असहाय हैं? वे तो सामान्य शिष्टाचार का पालन भी नहीं करते और अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में और राष्ट्रध्यक्षों से मुलाकात में टी शर्ट पहनकर पहुंच जाते हैं। एक टांग दूसरी पर रखकर बात करते हैं। वे शायद यह दिखाना चाहते हों कि वे किसी से डरते नहीं है तो इसके लिये दृढ़ मत प्रकट करने से भी सेदश चला जाता है। चूंकि अब यूक्रैन के समर्थन में यूरोपीय यूनियन एक होती जा रही है तो संभव है कि थोड़ी सी बात बिगड़ने पर विश्व युद्ध छिड़ जाये।

रूसी राष्ट्रपति पुतिन व चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तानाशाही प्रवृत्ति से दुनिया बेखबर नहीं है। वे 2000 तक राष्ट्रपति येल्तसिन के सुरक्षा परिषद के सचिव रहे,फिर मई 2000 से मई 2012 प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद से वे स्वयं भू राष्ट्रपति बने हुए हैं। दिखावे के चुनाव होते हैं, जिसमें विरोधी का दूर-दूर तक पता नहीं होता। इस तरह 25 साल से रूस पर कुंडली मारकर बैठे पुतिन सर्वथा तानाशाही बरतते हुए यूक्रैन को छंटाक भर देश मानकर निपटाने चले थे, लेकिन छब्बेजी चौबेजी भी नहीं बचे हैं। गले की फांस अब पुतिन के प्राण लेने को उतावली है, फिर भी मान नहीं रहे।
चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग तो कभी किसी से कम थे ही नहीं । वे सरेआम पाकिस्तान की पीठ थपथपाते हैं,उसे रसद-पानी,हथियार,नकद सहायता देते हैं, कर्ज अदायगी न कर पाने के बावजूद पाकिस्तान को लगातर धन देते चलते हैं और भारत के साथ हालिया युद्ध में भी पाकिस्तान को माल-असबाब देते हैं। वे कभी हमें धमकाते हैं, कभी व्यापार बढ़ाने की बात करते हैं, कभी तिब्बत को अपना मसला बताते हैं तो कभी अरुणाचल को भी अपना बताते हैं। नेपाल,श्रीलंका को हड़पने की गिद्ध नजर गड़ाये हुए हैं ही। वे भी विश्व युद्ध की आग भड़कने पर आहूति डालने को बेताब नजर आते हैं।
नेतन्याहू बरसों से गाजा पट्टी खत्म करने पर तुले हैं, लेकिन कर नहीं पा रहे। इसी एक मसले पर वे अपने ही देश में अलोकप्रिय होते जाने के बावजूद बने हुए हैं। लगभग बरबाद कर देने के बाद भी गाजा के आतंकियों से अपने दर्जनों अपहृत नहीं छुड़ा पा रहे, जो उनकी खीज बनता जा रहा है। इरान ने हस्तक्षेप भी इसीलिये किया था कि नेतन्याहू फलस्तीन को अकेला न समझे। यदि ये दोनों भी चर्चा की जाजम पर नहीं आये तो दोतरफा बरबादी तय है, जो विश्व युद्ध भी भड़का सकता है।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर की तो बात ही क्या करें ? पाक सेना के अधिकारी दोगलेपन की ऐसी मिसालें हैं, जो समूची धरती पर नहीं मिलती। उनके लिये वादे,वचन,प्रतिबद्धता,शिष्टाचार तो खाने की टेबल पर रखे अचार की तरह है, जो ना-ना करते भी अतिथि कब लेकर खा लेता है, पता भी नही चलता। जिस आतंकवाद को फलते-फूलते पूरी दुनिया दिन-रात देखती है,उससे साफ इनकार करते रहते हैं। वजह यह है कि अपने को दुनिया का चौधरी मानने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस ओर से आंखें मूंद रखी है। चूंकि ट्रम्प को अपने बेटे का क्रिप्टो करेंसी का कारोबार पल्लवित करना है, जिसके लिये मुनीर काफी मुफीद साबित हो रहे हैं तो सौ खून माफ शैली जारी है।
मुनीर तो अपनी अमेरिका की हालिया यात्रा में कह चुके हैं कि यदि भारत ने पानी की एक बूंद भी रोकी तो हम परमाणु अस्त्र के उपयोग से भी नहीं हिचकेंगे। हम भले ही खत्म हो जाएं,अपने साथ आधी दुनिया को भी ले जाएँगे। ऐसी धौंसबाजी के बावजूद ट्रम्प का मुँह सिला रहने का भावार्थ तो यही है कि उनकी शह पर यह बयान आया है।
ये सारे पात्र दुनिया से केवल अपना उल्लू सीधा करने पर तुले हैं। इन्हें तो विश्व में शांति चाहिये ही नहीं । इनकी तो मंशा ही यही है कि दुनिया अस्थिर रहे तो अपने अस्त्र-शस्त्र बेचते रहें । अपने उत्पाद दुनिया पर थोपते रहें और दुनिया के बेहतर उत्पाद को अपने यहां आने से रोकें। इन्हें चिंता है अपने डॉलर के मजबूत होने की , जिस पर विश्व व्यापार में शामिल अनेक देश पानी फेरने में लगे हैं। अब यह प्रचलन बढ़ रहा है कि दो देश अपनी-अपनी मुद्रा में व्यापार करें। ट्रम्प इससे बौराये घूम रहे हैं। वे अमेरिका के राष्ट्रपति बाद में है, व्यापारी पहले हैं। वे संभवत दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति बनने की चाहत रखते हैं। इसीलिये तो अलन मस्क ने भी उनसे किनारा कर लिया,जिससे अब ट्रम्प उनके पीछे भी लगे हैं। याने वे हर उस अवरोध को रास्ते से हटा देना चाहते हैं, जो उनकी समृद्धि को रोक सकती है। उनकी यह सनक और शेष लोगों की अपने-अपने स्तर की हठधर्मिता अनिश्चित और असुरक्षित भविष्य के संकेत दे रही है।





