
मंदसौर कॉलेज की प्रो. उषा अग्रवाल ने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सस्टेनेबल ट्यूरिज्म एंड वेलनेस विषय पर संबोधित किया
इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस धर्मशाला हिमाचल में सम्पन्न
मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
मन्दसौर। हिमाचल प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला द्वारा आयोजित 16वां इंडियन टूरिज़्म एंड हॉस्पिटैलिटी कांग्रेस का (ITHC) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 2025 का आयोजन धर्मशाला गया।
इस वर्ष सम्मेलन का विषय “सस्टेनेबल टूरिज़्म एंड वेलनेस: ए पाथ टू ए ग्रीनर फ्यूचर” निर्धारित किया गया था।
इस सम्मेलन में देश–विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और पर्यटन विशेषज्ञों ने भाग लेकर सतत पर्यटन, जलवायु परिवर्तन, सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण और वेलनेस-आधारित विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार साझा किए।
इस अवसर पर पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस, मंदसौर की प्राध्यापिका डॉ. उषा अग्रवाल ने रिसोर्स पर्सन के रूप में अपनी महत्वपूर्ण सहभागिता दर्ज कराते हुए intengible heritage and its sustainablity विषय पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया।
आपने कहा कि आज के वैश्वीकरण के दौर में ‘विरासत’ केवल अतीत का दर्पण नहीं, बल्कि व्यापार, पर्यटन, राजनीति और सामाजिक विकास—सभी क्षेत्रों में प्रेरक शक्ति का रूप ले चुकी है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अमूर्त सांस्कृतिक विरासत और सतत विकास एक-दूसरे के पूरक हैं, जो पर्यावरणीय संतुलन, आर्थिक प्रगति और सामाजिक समरसता को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति का वैविध्य हिमालय से लेकर समुद्री तटों तक फैले प्राकृतिक सौंदर्य, धर्म, स्थापत्य, लोककला, संगीत, हस्तशिल्प और उत्सवों में अभिव्यक्त होता है। किंतु यह समृद्ध विरासत वर्तमान में प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित वाणिज्यिक दबाव और सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही है।
इन समस्याओं का समाधान सुनियोजित विरासत प्रबंधन, समुदाय आधारित भागीदारी और सतत विकास की समग्र नीति से ही संभव है।सांस्कृतिक विरासत प्रबंधन का उद्देश्य मूर्त और अमूर्त दोनों धरोहरों को इस प्रकार संरक्षित करना है कि वर्तमान और भावी पीढ़ियाँ अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव का गौरव महसूस कर सकें। इसके लिए विधिक प्रावधान, नियंत्रित व्यावसायिक उपयोग, सूचीकरण, समुदाय की सक्रिय भागीदारी एवं नीति-निर्माण में सुधार अत्यावश्यक हैं।
डॉ. अग्रवाल ने यह संदेश दिया कि यदि सरकार, उद्योग जगत, विशेषज्ञ और स्थानीय समुदाय मिलकर विरासत संरक्षण को साझा दायित्व के रूप में स्वीकार करें, तो पर्यटन न केवल आर्थिक प्रगति और रोजगार सृजन का माध्यम बनेगा, बल्कि लुप्त होती परम्पराओं, हस्तशिल्प व लोक कलाओं को भी नई ऊर्जा प्रदान करेगा।
सम्मेलन के समापन पर विशेषज्ञों ने आपसी सहयोग और सहभागिता से मानवीय, समावेशी एवं सतत विकास की दिशा में ठोस कदम उठाने पर जोर दिया।





