भाजपा में जाने से हैरानी बढी
पंजाब की राजनीति कयी दशकों से कांग्रेस और अकाली दल के इर्द-गिर्द घूमती रही है। भाजपा हमेशा अकाली दल के सहयोगी की भूमिका में रही। लेकिन किसान आंदोलन ने बडे भायी अकाली दल ने छोटे भाई भाजपा से नाता तोड़ कर बसपा से चुनावी गठबंधन कर लिया।
पंजाब की राजनीति में दूसरा महत्वपूर्ण बदलाव पिछले साल सितंबर में तब आया जब अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पडा। उन्होंने अपनी नयी पार्टी बनाई और भाजपा तथा अकाली दल के असंतुष्ट नेता सुखदेव सिंह ढीढसा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला किया। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले किसानों का एक बड़ा धडा भी चुनाव मैदान में उतर गया है।
इस उठा पटक के बीच बडी संख्या में नेताओं का भाजपा में शामिल होने राजनीतिक पंडितों की समझ से परे है। सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात कांग्रेस के नेताओं का भाजपा में जाना है। क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान सबसे अधिक मुखर पंजाब की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेता ही थे।
अब तक करीब आधे दर्जन कांग्रेस के विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं। इनमें राणा गुरमीत सोढ़ी, बलविंदर सिंह लद्दी, फतेह जंग बाजवा, भूतपूर्व सांसद राजदेव खालसा, पूर्व क्रिकेटर दिनेश मोंगिया जैसे दिग्गज है। फतेह जंग बाजवा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा के भाई हैं। अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस में भी कांग्रेस के कुछ नेता शामिल हो गए हैं। कुछ और लाईन में लगे हैं। एक अकाली दल का नेता भी भाजपा में जा चुका है।
अकाली दल और कांग्रेस भगदड़ रोकने में व्यस्त
कांग्रेस में हाल ही में सोनू सूद की बहन माल्विका ही शामिल हुई हैं जबकि अकाली दल, बादल आशा भरी नज़रों से किसी बड़े नेता के आने की प्रतीक्षा कर रहा है। आप भी पंजाब के चुनाव में है। उसने सभी 117 सीटो पर अपने प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं। किसानों का समाज दल भी उम्मीदवार के चयन की उधेडबुन में व्यस्त है। बसपा की ओर से कोई हलचल नही दिख रही। लगता है वह अपने सहयोगी अकाली दल पर ही निर्भर है। पंजाब में एक ही चरण में 14 फरवरी को मतदान होना है।
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अजय कुमार चतुर्वेदी
भारतीय सूचना सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी हैं। वर्तमान में वे स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कई मीडिया संस्थानों के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं। वे नोएडा में रह रहे हैं।